मंगलवार, 30 अगस्त 2016
कविता - अनपढ़ माँ - चिराग़ जैन
कविता का अंश...
चूल्हे-चौके में व्यस्त
और पाठशाला से दूर रही माँ
नहीं बता सकती
कि ”नौ-बाई-चार” की कितनी ईंटें लगेंगी
दस फीट ऊँची दीवार में
…लेकिन अच्छी तरह जानती है
कि कब, कितना प्यार ज़रूरी है
एक हँसते-खेलते परिवार में।
त्रिभुज का क्षेत्रफल
और घन का घनत्व निकालना
उसके शब्दों में ‘स्यापा’ है
…क्योंकि उसने मेरी छाती को
ऊनी धागे के फन्दों
और सिलाइयों की
मोटाई से नापा है
वह नहीं समझ सकती
कि ‘ए’ को ‘सी’ बनाने के लिए
क्या जोड़ना या घटाना होता है
…लेकिन अच्छी तरह समझती है
कि भाजी वाले से
आलू के दाम कम करवाने के लिए
कौन सा फॉर्मूला अपनाना होता है।
मुद्दतों से खाना बनाती आई माँ ने
कभी पदार्थों का तापमान नहीं मापा
तरकारी के लिए सब्ज़ियाँ नहीं तौलीं
और नाप-तौल कर ईंधन नहीं झोंका
चूल्हे या सिगड़ी में
…उसने तो केवल ख़ुश्बू सूंघकर बता दिया है
कि कितनी क़सर बाकी है
बाजरे की खिचड़ी में।
घर की कुल आमदनी के हिसाब से
उसने हर महीने राशन की लिस्ट बनाई है
ख़र्च और बचत के अनुपात निकाले हैं
रसोईघर के डिब्बों
घर की आमदनी
और पन्सारी की रेट-लिस्ट में
हमेशा सामन्जस्य बैठाया है
…लेकिन अर्थशास्त्र का एक भी सिद्धान्त
कभी उसकी समझ में नहीं आया है।
वह नहीं जानती
सुर-ताल का संगम
कर्कश, मृदु और पंचम
सरगम के सात स्वर
स्थाई और अन्तरे का अन्तर
….स्वर साधना के लिए
वह संगीत का कोई शास्त्री भी नहीं बुलाती थी
…लेकिन फिर भी मुझे
उसकी लल्ला-लल्ला लोरी सुनकर
बड़ी मीठी नींद आती थी।
नहीं मालूम उसे
कि भारत पर कब, किसने आक्रमण किया
और कैसे ज़ुल्म ढाए थे
आर्य, मुग़ल और मंगोल कौन थे,
कहाँ से आए थे?
उसने नहीं जाना
कि कौन-सी जाति
भारत में अपने साथ क्या लाई थी
लेकिन हमेशा याद रखती है
कि नागपुर वाली बुआ
हमारे यहाँ कितना ख़र्चा करके आई थी।
वह कभी नहीं समझ पाई
कि चुनाव में किस पार्टी के निशान पर
मुहर लगानी है
लेकिन इसका निर्णय हमेशा वही करती है
कि जोधपुर वाली दीदी के यहाँ
दीपावली पर कौन-सी साड़ी जानी है।
इस अधूरी कविता को पूरा सुनने के लिए ऑडियो की मदद लीजिए...
लेबल:
कविता,
दिव्य दृष्टि
जीवन यात्रा जून 1957 से. भोपाल में रहने वाला, छत्तीसगढ़िया गुजराती. हिन्दी में एमए और भाषा विज्ञान में पीएच.डी. 1980 से पत्रकारिता और साहित्य से जुड़ाव. अब तक देश भर के समाचार पत्रों में करीब 2000 समसामयिक आलेखों व ललित निबंधों का प्रकाशन. आकाशवाणी से 50 फ़ीचर का प्रसारण जिसमें कुछ पुरस्कृत भी. शालेय और विश्वविद्यालय स्तर पर लेखन और अध्यापन. धारावाहिक ‘चाचा चौधरी’ के लिए अंशकालीन पटकथा लेखन. हिन्दी गुजराती के अलावा छत्तीसगढ़ी, उड़िया, बँगला और पंजाबी भाषा का ज्ञान. संप्रति स्वतंत्र पत्रकार।
संपर्क:
डॉ. महेश परिमल, टी-3, 204 सागर लेक व्यू होम्स, वृंदावन नगर, अयोघ्या बायपास, भोपाल. 462022.
ईमेल -
parimalmahesh@gmail.com
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
Post Labels
- अतीत के झरोखे से
- अपनी खबर
- अभिमत
- आज का सच
- आलेख
- उपलब्धि
- कथा
- कविता
- कहानी
- गजल
- ग़ज़ल
- गीत
- चिंतन
- जिंदगी
- तिलक हॊली मनाएँ
- दिव्य दृष्टि
- दिव्य दृष्टि - कविता
- दिव्य दृष्टि - बाल रामकथा
- दीप पर्व
- दृष्टिकोण
- दोहे
- नाटक
- निबंध
- पर्यावरण
- प्रकृति
- प्रबंधन
- प्रेरक कथा
- प्रेरक कहानी
- प्रेरक प्रसंग
- फिल्म संसार
- फिल्मी गीत
- फीचर
- बच्चों का कोना
- बाल कहानी
- बाल कविता
- बाल कविताएँ
- बाल कहानी
- बालकविता
- भाषा की बात
- मानवता
- यात्रा वृतांत
- यात्रा संस्मरण
- रेडियो रूपक
- लघु कथा
- लघुकथा
- ललित निबंध
- लेख
- लोक कथा
- विज्ञान
- व्यंग्य
- व्यक्तित्व
- शब्द-यात्रा'
- श्रद्धांजलि
- संस्कृति
- सफलता का मार्ग
- साक्षात्कार
- सामयिक मुस्कान
- सिनेमा
- सियासत
- स्वास्थ्य
- हमारी भाषा
- हास्य व्यंग्य
- हिंदी दिवस विशेष
- हिंदी विशेष
बहुत सुंदर रचना है | सच तो यह है कि माँ भगवान का मानवीय रूप है |
जवाब देंहटाएं- ख्यालरखे.com