मंगलवार, 16 अगस्त 2016
एक अलग आवाज... - हेमलता (16 अगस्त जन्मदिवस पर विशेष)
लेख का अंश... हेमलता के इस आलेख की शुरूआत एक घटना से करते हैं। संगीत के एक बहुत बड़े कार्यक्रम का आयोजन था, जिसमें फिल्म जगत के जाने-माने गायक-गायिका अपनी आवाज का जादू बिखेर रहे थे। बीच में एकाएक अंतराल आया क्योंकि लता मंगेशकर जी पहुँची नहीं थी, उनका इंतजार हो रहा था। इस अंतराल का लाभ उठाते हुए उद्बोधक ने एक नई आवाज को अवसर दिया। 14 वर्ष की एक नन्हीं बालिका को। उससे पूछा कि तुम कौन-सा गीत गाना पसंद करोगी, जवाब मिला – जागो मोहन प्यारे। उद्बोधक कुछ पल को खामोश हो गया क्योंकि लता जी वहाँ आकर वही गीत गाने वाली थी। फिर कुछ सोचते हुए उन्होंने उसे वह गीत गाने की अनुमति दे दी। जैसी ही उस बालिका ने जागो की लम्बी तान छेड़ी कि हॉल तालियों से गूँज उठा। और गीत खत्म होते-होते सभी उसकी आवाज के कायल हो चुके थे। लता जी से मिलती-जुलती आवाज का जादू ऐसा चला कि पिता ने निर्णय ले लिया कि अब वे अपनी बेटी को मुंबई ले जाएँगे और वहाँ उसकी संगीत की शिक्षा गंभीर रूप से शुरू होगी। बेटी के भविष्य से जुड़ा यह निर्णय लेने वाले व्यक्ति थे – जयचंद भट्ट और बेटी थी लता भट्ट। वही लता जिसे हम सभी हेमलता के नाम से जानते हैं।
हेमलता भारतीय फिल्म जगत की एक समय की जानी-मानी सफल पार्श्व गायिका थीं. 16 अगस्त 1954 को हैदराबाद में जन्मी हेमलता ने संगीत और गजल की शिक्षा उस्ताद रईस खान से ली थी. वह हमेशा अलग तरह के गीत गाने के लिए पहचानी गईं. हेमलता को 14 साल की उम्र में संगीत निर्देशक खय्याम ने गजल गाने का मौका दिया था. फिल्म संसार में जब उन्होंने गायन के लिए कदम रखा तो सन 1968 में नौशाद साहब ने हेमलता के साथ पांच साल का एग्रीमेंट कराया था कि वे उनके अलावा और किसी के लिए नहीं गाएँगी। पर गीतों की लोकप्रियता को देखते हुए 1969 में यह एग्रीमेंट तोड़ दिया गया। लक्ष्मीकांत जी ने उनके पिता को समझाया कि इन पाँच सालों में किस-किस को नाराज करेंगे? हालांकि नोशाद साहब हमेशा हेमलता के लिए यही कहते थे कि तुम्हारे अंदर क्वालिटी ऑफ लता मंगशकर और दि इनोसेंस ऑफ नूरजहाँ दोनों ही है। फिल्म संसार में उनकी गायिकी की पहचान करवाने वाले नौशाद साहब ही थे। इसलिए उनसे एग्रीमेंट तोड़ते वक्त एक डर भी था किंतु नौशाद साहब ने इस बात का बुरा नहीं माना और हेमलता को आगे बढ़ने का पूरा अवसर दिया।
एग्रीमेंट तोड़ने के बाद हेमलता के लिए मानों राहें खुल गईं। वे एक के बाद एक कई सफल गीतों को अपने हिस्से में दर्ज कराते हुए आगे बढ़ती चली गई। एक दौर ऐसा भी आया जब राजश्री प्रोडक्शन और हेमलता एक-दूसरे के पर्याय बन गए। तू जो मेरे सुर में सुर मिला ले…, अँखियों के झरोखे से मैंने देखा जो सामने.., पाहुना ओ पाहुना…, ले तो आए हो हमें सपनों के गाँव में…, जब दीप जले आना…, तू इस तरह से मेरी जिंदगी में शामिल है…, कई दिन से मुझे कोई सपनों में… आदि ऐसे अनेक गीत हैं, जो आज भी लोगों के दिलों में जिंदा हैं। कानों और मन में मिठास घोलते हैं। जब-जब ये गीत सुनते हैं, ऐसा लगता है मानों उनकी गायिकी हमें आज भी पुकार रही हैं और हम उसे गुनगुनाने पर विवश हो जाते हैं।
इस अधूरे आलेख को पूरा जानने के लिए ऑडियो की मदद लीजिए...
लेबल:
दिव्य दृष्टि,
लेख
जीवन यात्रा जून 1957 से. भोपाल में रहने वाला, छत्तीसगढ़िया गुजराती. हिन्दी में एमए और भाषा विज्ञान में पीएच.डी. 1980 से पत्रकारिता और साहित्य से जुड़ाव. अब तक देश भर के समाचार पत्रों में करीब 2000 समसामयिक आलेखों व ललित निबंधों का प्रकाशन. आकाशवाणी से 50 फ़ीचर का प्रसारण जिसमें कुछ पुरस्कृत भी. शालेय और विश्वविद्यालय स्तर पर लेखन और अध्यापन. धारावाहिक ‘चाचा चौधरी’ के लिए अंशकालीन पटकथा लेखन. हिन्दी गुजराती के अलावा छत्तीसगढ़ी, उड़िया, बँगला और पंजाबी भाषा का ज्ञान. संप्रति स्वतंत्र पत्रकार।
संपर्क:
डॉ. महेश परिमल, टी-3, 204 सागर लेक व्यू होम्स, वृंदावन नगर, अयोघ्या बायपास, भोपाल. 462022.
ईमेल -
parimalmahesh@gmail.com
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
Post Labels
- अतीत के झरोखे से
- अपनी खबर
- अभिमत
- आज का सच
- आलेख
- उपलब्धि
- कथा
- कविता
- कहानी
- गजल
- ग़ज़ल
- गीत
- चिंतन
- जिंदगी
- तिलक हॊली मनाएँ
- दिव्य दृष्टि
- दिव्य दृष्टि - कविता
- दिव्य दृष्टि - बाल रामकथा
- दीप पर्व
- दृष्टिकोण
- दोहे
- नाटक
- निबंध
- पर्यावरण
- प्रकृति
- प्रबंधन
- प्रेरक कथा
- प्रेरक कहानी
- प्रेरक प्रसंग
- फिल्म संसार
- फिल्मी गीत
- फीचर
- बच्चों का कोना
- बाल कहानी
- बाल कविता
- बाल कविताएँ
- बाल कहानी
- बालकविता
- भाषा की बात
- मानवता
- यात्रा वृतांत
- यात्रा संस्मरण
- रेडियो रूपक
- लघु कथा
- लघुकथा
- ललित निबंध
- लेख
- लोक कथा
- विज्ञान
- व्यंग्य
- व्यक्तित्व
- शब्द-यात्रा'
- श्रद्धांजलि
- संस्कृति
- सफलता का मार्ग
- साक्षात्कार
- सामयिक मुस्कान
- सिनेमा
- सियासत
- स्वास्थ्य
- हमारी भाषा
- हास्य व्यंग्य
- हिंदी दिवस विशेष
- हिंदी विशेष
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें