दो महिलाओं की बद्दुआओं से डूबी महाराष्ट्र सरकार
हमें बचपन से यही सिखाया गया है कि कभी किसी की "हाय" मत लो। यह "हाय" उस समय तो असर नहीं दिखाती, पर कालांतर में उसका असर होता है, तो बहुत ही बुरा होता है। जब भी कोई किसी की मजबूरी का भरपूर फायदा उठाता है, तो वह दिल से उसे बद्दुआ देता है। बद्दुआ देने वाला जानता है कि उसकी बद्दुआ का असर अभी नहीं होगा, फिर भी वह उसके बारे में खूब बुरा बोलता है। उसकी इस हरकत पर कोई ध्यान नहीं देता। पर कुछ समय बाद जब वक्त बोलता है, तब उस मजबूर की बद्दुआ असर दिखाती है। उस समय लोग कहते हैं कि समय बड़ा बलवान होता है। वह अपने होने का असर दिखा ही देता है। आखिर उस मजबूर की बद्दुआ ने अपना काम कर दिखाया।
हम सभी को याद होगी 9 सितम्बर 2020 की वह घटना, जब फिल्म अभिनेत्री कंगना रनौट के कार्यालय पर बुलडोजर चला दिया गया था। तब कंगना ने उद्धव ठाकरे को संबोधित करते हुए कहा था कि आज मेरी ऑफिस टूटी है, कल तेरा शासन(घमंड) टूटेगा। उस समय किसने सोचा था कि कंगना की यह बात सच साबित हो जाएगी। तब तो हालात यह थे कि उद्धव ठाकरे के खिलाफ कुछ बोलना भी अपराध था। पूरी मायानगरी में अकेली कंगना ही वह मर्द थी, जिसने जो भी कहा, खुलकर कहा। अब हालात बदल गए हैं। उस समय उद्धव पर कांग्रेस और राजजीति के चाणक्य कहे जाने वाले शरद पवार का वरदहस्त था। आज वहां इन्हें कोई पूछने वाला भी नहीं है।
महाराष्ट्र के बागी नेता एकनाथ शिंदे के नेतृत्व में जब सूरत पहुंचे थे, तब महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री देवेंद्र फड़नवीस की पत्नी अमृता फड़नवीस ने ट्विट किया था, जिसमें परोक्ष रूप से उसने लिखा था कि एक था कपटी राजा। अमृता ने यह ट्विट उस घटना को लेकर उद्धव ठाकरे पर कटाक्ष करते हुए किया था, ढाई साल पहले जब उनके पति एक बार फिर मुख्यमंत्री पद तक पहुंचे ही थे, कि सब कुछ बदल गया। भारतीय राजनीति में सत्ता पलट की यह कोई पहली घटना नहीं है। हर राज्य में कोई एकनाथ शिंदे, एकाध ज्योतिरादित्य सिंधिया या सचिन पायलट होते ही हैं। इन सबके भीतर महत्वाकांक्षाओं का सागर उमड़ता रहता है। जो किसी ने किसी तरीके से बाहर आता है। वास्तव में उन्हें सत्ता का नशा होता है। वे मंत्री या मुख्यमंत्री पद के पीछे के ऐश्वर्यशाली जीवन को जीना चाहते हैं। उनकी यही चाहत उन्हें ऐसा करने को विवश करती है। दो महिलाओं की "हाय" ही है, जिसने महाराष्ट्र की राजनीति को एक नई दिशा दी।
आज एकनाथ शिंदे भले ही यह कहते रहे कि उन्होंने हिंदुत्व को सामने रखकर बगावत की है। परंतु सभी जानते हैं कि उनका निशाना उद्धव ठाकरे ही थे। अनजाने में वे भी मुख्यमंत्री पद की लालसा रखते थे। जिसे उन्होंने भाजपा को साथ लेकर पूरा कर दिया। महाराष्ट्र की राजनीति की उपजाऊ जमीन पर शिदे ने अपने सपने को बोकर उसे साकार कर दिखाया। बाला साहब ठाकरे भले ही सक्रिय राजनीति में न हो, उन्होंने अपने जीवन में कोई राजनीतिक पद भी स्वीकार नहीं किया। पर अपने विशाल व्यक्तित्व के कारण उन्होंने माहौल ही ऐसा बनाया कि बड़े से बड़े नेता उनके घर पहुंचकर उन्हें प्रणाम करते थे।
सत्ता का हाथ से अचानक फिसल जाना बहुत ही विस्मयकारी होता है। नेताओं के लिए यह किसी हादसे से कम नहीं है। इसे बड़ी शिद्दत से महसूस कर रहे होंगे उद्धव ठाकरे और उनके मंत्री। महाराष्ट्र की राजनीति में शरद पवार की भूमिका सुपर चीफ मिनिस्टर के रूप में होती रही है। कई लोगों ने उन्हें राजनीति का चाणक्य भी कहा है। किंतु इस बार हुई उथल-पुथल में उन्होंने एक दांव भी नहीं चला। सभी की नजर शरद पवार पर थी। पर उन्होंने अपनी तरफ से ऐसी एक भी कोशिश नहीं की, जिससे उद्धव ठाकरे की सरकार बच पाती। इधर उद्धव की सरकार डूबी, उधर शरद पावर की सुपर चीफ मिनिस्टर की भी नाव डूब गई।
अब शरद पवार कितना भी कह लें कि यह सरकार अधिक नहीं टिक पाएगी, महाराष्ट्रवासी मध्यावधि चुनाव के लिए तैयार रहें, तो उनकी इस बात को कोई मानने वाला भी नहीं है। ये बात वे खुद को राजनीति में टिके रहने के लिए कह रहे हैं। सोमवार को जो कुछ हुआ, वह फड़नवीस के अनुसार ही हुआ। उद्धव सरकार में जो हैसियत शरद पवार की थी, अब वही हैसियत एकनाथ शिंदे सरकार में देवेंद्र फड़नवीस की होगी, इसमें कोई दो मत नहीं। इस तरह से देखा जाए, तो दो महिलाओं की "हाय" और सरकार में अपनों की ही उपेक्षा से उद्धव सरकार का पतन हो गया, जो नई सरकार बनी है, उसे अभी कई चुनौतियों का सामना करना है। यह विश्वास किया जा सकता है कि ये सरकार न तो अपनों की अनदेखी करेगी और न ही किसी की "हाय" लेगी।
डॉ. महेश परिमल
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