बुधवार, 15 फ़रवरी 2017
कहानी – इश्क के रंग हजार – रीता गुप्ता
कहानी का अंश… कितने सालों से अकेलेपन का दंश झेलती सौम्या के जीवन में एक ठहराव आ चुका था। अपनी नौकरी और जिंदगी को एकरसता से जीते-जीते वह मशीन बन चुकी थी। जीवन के सब रंग उसके लिए एक हो गए थे। फिर इधर कुछ दिनों से वह गौर करने लगी कि सामने के फ्ले ट में रहनेवाला एक व्यक्ति उसे बहुत ध्यान से देखने लगा है। पहले तो उसने ध्यान नहीं दिया, पर हर दिन सौम्या जब चाय और पेपर लेकर बालकनी में आती, तो देखती वह उसे ही ताक रहा है। फिर एक दिन उसने सिर हिलाते हुए मुस्करा दिया। सौम्या ने दाएँ-बाएँ, ऊपर-नीचे की बालकनी की तरफ झाँका, कहीं कोई भी नहीं था। चार लेन पर बालकनी में खड़ा वह अनाम व्यक्ति उसे ही देखकर मुस्कराया था। यह सोचकर एक झुरझुरी-सी दौड़ गई सौम्या की नसों में। हाय! कोई तो है, जो उसकी सुबह को अपनी मुस्कराहटों से खुशनुमा बना रहा है। अब उसने सुबह उठ पहले चेहरा साफ कर, सही कपड़े पहन, चाय पीने का सिलसिला शुरू किया। बीच-बीच में दरवाजे की ओट से झाँक लेती कि कहीं वह अंदर तो नहीं चला गया। हल्की मुस्कराहटों का आदान-प्रदान उसका दिन खुशनुमा बनाने लगा। उस दिन चाय पर देखा-देखी नहीं हो पाई थी। दफतर जाते वक्त बालकनी में झाँका तो वह मिल गया। सौम्या को संकोच हुआ कि वह कैसी फीके रंग की साड़ी पहने हुए है। उतनी दूर से उसने भाँप तो नहीं लिया कि वह एक बेतरतीब और नीरस महिला है। इसी ऊहापोह में दिन गुजरा, रात को चेहरे की मालिश की और कोई घरेलू फेस पैक लगाया। दूसरे दिन से सौम्या सुबह की चाय हो या दफ्तर जाना हो, अच्छी तरह से तैयार होकर ही बालकनी में आती। वह भी शौकीन मिजाज निकला। बड़े-बड़े काले गॉगल्स लगाता, कानों में हेडफोन लगा जब वह सौम्या को देख सिर हिलाता, तो वर्षों से बंजर पड़े मन पर मानों हल्की रस फुहार हो जाती। सौम्या का मन होता कभी वह दूरबीन लगाकर देखे कि वह गाहे-बगाहे झुककर क्या करता है। उसने मन ही मन अनुमान लगा लिया कि वह शायद कोई लेखक है। आगे क्या हुआ? क्या सौम्या और वह अजनबी एक-दूसरे से मिल पाए? क्या सौम्या उसे अपने मन की बात कह पाईँ? यदि कहा भी तो अजनबी ने उसे क्या जवाब दिया? इन सारी जिज्ञासाओं के समाधान के लिए इस अधूरी कहानी का पूरा आनंद ऑडियो की मदद से लीजिए….
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