शुक्रवार, 3 फ़रवरी 2017
कुछ कविताएँ - नीलम जैन
कविता का अंश...
माँ होना और माँ का होना
माँ होना और माँ का होना,
दोंनों पहलू देख रही हूँ।
नेह भरा संबध सलोना,
नयन बसाए देख रही हूँ।
बह जाती हूँ मैं नदिया सी,
जगत अंक में भर लेती हूँ।
राहें चाहे जंहा बना दूं,
दीवानापन देख रही हूँ।
बरबस लहरों का मिट जाना,
शांत समंदर देख रही हूँ।
माँ होना और माँ का होना,
दोंनों पहलू देख रही हूँ।
और कभी जब तड़पी हूँ मैं,
बादल के सीने से निकली।
बरसी मुक्त धरा के आँगन,
सिमटी आँचल देख रही हूँ।
माँ की धड़कन ताल-मेल का,
नृत्य सुहाना देख रही हूँ।
माँ होना और माँ का होना,
दोंनों पहलू देख रही हूँ।
अब जो र्दपण में झाकूँ मैं,
माँ का अक्स उभर आता है।
सात संमदर पार से देखो,
स्वर ममता का देख रही हूँ।
तेरी आँखें मेरी आँखे,
कितनी पास हैं देख रही हूँ।
माँ होना और माँ का होना,
दोंनों पहलू देख रही हूँ।
जब जब मैं लोरी गाती हूँ,
राग भी तेरे बोल भी तेरे ।
भाव-विभोर स्वयं सो जाना,
स्वप्निल जादू देख रही हूँ।
चाहूँ मैं चाहे न चाहूँ,
अखंड ज्वाल सी देख रही हूँ।
माँ होना और माँ का होना,
दोंनों पहलू देख रही हूँ । ऐसी ही अन्य भावपूर्ण कविताओं का आनंद ऑडियो की मदद से लीजिए...
संपर्क - neelamj@yahoo.com
लेबल:
कविता,
दिव्य दृष्टि
जीवन यात्रा जून 1957 से. भोपाल में रहने वाला, छत्तीसगढ़िया गुजराती. हिन्दी में एमए और भाषा विज्ञान में पीएच.डी. 1980 से पत्रकारिता और साहित्य से जुड़ाव. अब तक देश भर के समाचार पत्रों में करीब 2000 समसामयिक आलेखों व ललित निबंधों का प्रकाशन. आकाशवाणी से 50 फ़ीचर का प्रसारण जिसमें कुछ पुरस्कृत भी. शालेय और विश्वविद्यालय स्तर पर लेखन और अध्यापन. धारावाहिक ‘चाचा चौधरी’ के लिए अंशकालीन पटकथा लेखन. हिन्दी गुजराती के अलावा छत्तीसगढ़ी, उड़िया, बँगला और पंजाबी भाषा का ज्ञान. संप्रति स्वतंत्र पत्रकार।
संपर्क:
डॉ. महेश परिमल, टी-3, 204 सागर लेक व्यू होम्स, वृंदावन नगर, अयोघ्या बायपास, भोपाल. 462022.
ईमेल -
parimalmahesh@gmail.com
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