डॉ. महेश परिमल
देश में 16 वीं लोकसभा चुनाव के लिए तीसरे चरण का मतदान हो चुका है। दिल्ली की 7 सीटों का भी इसमें समावेश होता है। किंतु चारों तरफ केवल चुनावी घोषणा पत्रों की ही चर्चा है। सभी दल अपने घोषणा पत्रों में ढेर सारे वादे करते हैं, पर उस पर अमल में लाने की फुरसत किसी को भी नहीं होती। वचन देने में हमारे नेता सबसे आगे हैं, किंतु उसे पूरा करने में सबसे पीछे। वचन देने में कोई दल किसी से पीछे नहीं रहना चाहता। पर अमल की जब भी बात आती है, तो सारे दल एक-दूसरे का मुंह ही ताकते रहते हैं। सभी दलों ने अपने घोषणा पत्र में आर्थिक तंत्र, विदेश नीति, स्वास्थ्य, महिला उद्धार, शिक्षा गवर्नेंस जैसे मुद्दों को शामिल किया है। चर्चा यह भी है कि क्या सारे दल अपने घोषणा पत्र के अनुसार व्यवहार करेंगे? क्या यह लोगों को भरमाने का एक उपक्रम मात्र है? इस समय मतदाताओं की इन दलों से अपेक्षा बढ़ीं हैं, इसलिए राजनीतिक दलों के वचनों की संख्या भी बढ़ गई है। किंतु इतने सारे वचनों को पूरा करने में क्या ये दल सक्षम हैं? इन पर किसी का ध्यान नहीं जाता। आजकल घोषणा पत्र महज एक औपचारिकता रह गई है। पहली बार ऐसा हुआ है कि मतदान शुरू होने के दिन किसी दल ने अपना घोषणा पत्र जारी किया हो। घोषणा पत्र में किए गए वादों से जनता त्रस्त हो चुकी है। अब सभी समझने लगे हैं कि चुनावी घोषणा पत्र भी केवल चुनावी वादों की तरह ही हैं। विभिन्न दल मतदान के पहले ये वादे करते हैं कि वे पूरे देश में आमूल-चूल परिवर्तन ला देंगे। इस तरह के वादे कर वे हथेली पर चांद उगाने की कोशिश करते हैं। अब जनता इस तरह के वादों से परेशान हो गई है। उनका मानना है कि वादों की सूची बड़ी न होकर छोटी करो, पर उन्हें पूरा करने में जी-जान लगा दो।
घोषणा पत्र जारी करना आसान है, पर उस पर अमल लाने के बजाए नागरिकों के सामने अपनी डींगें बताई जाती हैं। आíथक तंत्र की बात की जाए, तो पिछले दशकों में सबसे कम आíथक विकास दर 4.5 प्रतिशत है। मेन्युफैक्चरिंग क्षेत्र में सराहनीय प्रयासों की कमी देखी गई है। बजट घाटा निराशाजनक है। कांग्रेस अपने घोषणा पत्र में कह रही है कि 2015-16 में हम बजट घाटा कम करेंगे। उत्पादन क्षेत्र को मजबूत कर विभिन्न राहतें देंगे। अटकी हुई परियोजनाओं को शुरू करेंगे। इस पर भाजपा कहती है कि सीनियर सिटीजन को कर राहत दी जाएगी। उन्हें अधिक ब्याजदर दी जाएगी। इसी तरह अन्य दल भी आथिर्क तंत्र को मजबूत बनाने का दावा कर रहे हैं। विदेश नीति की बात की जाए, तो परमाणु ऊर्जा समझौता और देवयानी खोब्रागड़े के मामले में अमेरिका से संबंध थोड़े बिगड़े थे। पाकिस्तान के साथ भी संबंध अच्छे नहीं है। एफडीआई के मामले में भी विदेश नीति के खिलाफ सवाल खड़े हुए थे। कांग्रेस अपने घोषणा पत्र में कहती है कि पाकिस्तान के साथ संबंध सुधारने के प्रयास किए जाएंगे। इसी तरह श्रीलंका के तमिलों के पुनर्वास के लिए प्रयास करेंगे। भाजपा ने पड़ोसी देशों के साथ संबंध सुधारने की दिशा में मजबूत कदम उठाने पर बल दिया है। वामपंथी दलों ने भी कहा है कि पाकिस्तान के साथ संबंध सुधारने का पूरा प्रयास किया जाएगा। कई राजनीतिक दलों ने विदेशी नीति को छेड़ा नहीं है। अधिकांश ने पड़ोसी देशों से संबंध सुधारने की बात की है।
स्वास्थ्य के क्षेत्र में भारत की स्थिति अच्छी नहीं है। विश्व में पोषणयुक्त आहार से पीड़ित एक तिहाई लोग भारत में हैं। स्वास्थ्य को लेकर जीडीपी की 12 प्रतिशत राशि खर्च होती है। कांग्रेस ने अपने घोषणापत्र में कहा है कि अब जीडीपी की तीन प्रतिशत राशि स्वास्थ्य पर खर्च होंगे। 2020 तक स्वास्थ्य के क्षेत्र में 60 लाख रोजगार के नए आयाम खोले जाएंगे। भाजपा के अनुसार वह नेशनल हेल्थ इंश्योरेंसमिशन लाएगी। इससे नई स्वास्थ्य नीतियां आएंगी। वामपंथी दल सीपीआई(एम)स्वास्थ्य पर 5 प्रतिशत खर्च करना चाहती है। स्वस्थ प्रशासन देने में मनमोहन सरकार पूरी तरह से निष्फल साबित हुई है। 2 जी स्पेक्ट्रम के आवंटन, कोल ब्लॉक और कॉमनवेल्थ गेम आदि में बड़े घपले सामने आए हैं। कांग्रेस ने अपने घोषणा पत्र में लिखा है कि तय समयसीमा में सरकारी कार्यालयों में काम हो, इसके लिए ग्रीवान्सिस बिल-2011 लाया जाएगा। भाजपा ने लिखा है कि लोकपाल का असरकारक रूप से उपयोग किया जाएगा। नेशनल ई गवर्नस प्लान भी तैयार किया जाएगा। सीपीआई(एम) कहती है कि वह लोकपाल एक्ट और व्हीसल ब्लोअर एक्ट की समीक्षा करेगी।
सबसे महत्वपूर्ण मुद्दा शिक्षा का है। हाल में सरकार जीडीपी की 3 प्रतिशत राशि शिक्षा पर खर्च कर रही है। पढ़ाई बीच में छोड़ने वालों का प्रतिशत बहुत ही अधिक है। कांग्रेस इस मुद्दे पर कहती है कि पढ़ाई बीच में छोड़ने वालों की संख्या कम करने की कोशिश करेगी। भाजपा कहती है कि सर्व शिक्षा अभियान के तहत पढ़ाई का भारमुक्त बनाया जाएगा। इसके अलावा युवाओं को ऐसी शिक्षा दी जाएगी, जिससे पढ़ाई के साथ-साथ उनकी आवक भी हो। सीपीआई (एम) कहती हैकि वह जीडीपी की 5 प्रतिशत राशि शिक्षा पर व्यय करेगी। डीएमके भी शिक्षा पर 7 प्रतिशत राशि खर्च करना चाहती है। इस तरह से तमाम राजनीतिक दलों ने अपनी-अपनी तरफ से वादे किए हैं। पर इन्हें बाद में अपने ये वादे याद ही रहते। इसका पूरा दोष वे सहयोगी दलों पर डाल देते हैं। अब प्रजा समझ गई है कि हमारे नेता वादे करने में शूरवीर हैं, पर उसे अमल में लाने के नाम पर बिलकुल शून्य। वादे पूरे करना उन्हें आता ही नहीं है। इसलिए अब इनके वादों पर न जाकर उनके काम को देखा जाए। यदि कोई दल अपने अस्तित्व को बचाए रखने के लिए बड़े दलों से जा मिलता है, तो ऐसे क्षेत्रीय दलों के प्रत्याशियों को पहली नजर में ही नकार दिया जाना चाहिए। अजित सिंह जैसे लोग सत्तारूढ़ दल के ही साथ रहे हैं। इनकी अपनी कोई पहचान नहीं है। इसलिए ऐसे दलों पर कभी भरोसा नहीं किया जाना चाहिए। वास्तव में क्षेत्रीय दल ही मुख्य दल को गलत रास्ते पर ले जाने के लिए तैयार रहते हैं। कई बार मुख्य दलों की परेशानी सामने आई हैं। इसे हमारे प्रधानमंत्री ने टीवी पर सबके सामने स्वीकार भी किया है। इसलिए जनता को सचेत होकर ऐसे दलों को वोट देना चाहिए, जो अपने वादे पूरा करना जानते हों।
डॉ. महेश परिमल
देश में 16 वीं लोकसभा चुनाव के लिए तीसरे चरण का मतदान हो चुका है। दिल्ली की 7 सीटों का भी इसमें समावेश होता है। किंतु चारों तरफ केवल चुनावी घोषणा पत्रों की ही चर्चा है। सभी दल अपने घोषणा पत्रों में ढेर सारे वादे करते हैं, पर उस पर अमल में लाने की फुरसत किसी को भी नहीं होती। वचन देने में हमारे नेता सबसे आगे हैं, किंतु उसे पूरा करने में सबसे पीछे। वचन देने में कोई दल किसी से पीछे नहीं रहना चाहता। पर अमल की जब भी बात आती है, तो सारे दल एक-दूसरे का मुंह ही ताकते रहते हैं। सभी दलों ने अपने घोषणा पत्र में आर्थिक तंत्र, विदेश नीति, स्वास्थ्य, महिला उद्धार, शिक्षा गवर्नेंस जैसे मुद्दों को शामिल किया है। चर्चा यह भी है कि क्या सारे दल अपने घोषणा पत्र के अनुसार व्यवहार करेंगे? क्या यह लोगों को भरमाने का एक उपक्रम मात्र है? इस समय मतदाताओं की इन दलों से अपेक्षा बढ़ीं हैं, इसलिए राजनीतिक दलों के वचनों की संख्या भी बढ़ गई है। किंतु इतने सारे वचनों को पूरा करने में क्या ये दल सक्षम हैं? इन पर किसी का ध्यान नहीं जाता। आजकल घोषणा पत्र महज एक औपचारिकता रह गई है। पहली बार ऐसा हुआ है कि मतदान शुरू होने के दिन किसी दल ने अपना घोषणा पत्र जारी किया हो। घोषणा पत्र में किए गए वादों से जनता त्रस्त हो चुकी है। अब सभी समझने लगे हैं कि चुनावी घोषणा पत्र भी केवल चुनावी वादों की तरह ही हैं। विभिन्न दल मतदान के पहले ये वादे करते हैं कि वे पूरे देश में आमूल-चूल परिवर्तन ला देंगे। इस तरह के वादे कर वे हथेली पर चांद उगाने की कोशिश करते हैं। अब जनता इस तरह के वादों से परेशान हो गई है। उनका मानना है कि वादों की सूची बड़ी न होकर छोटी करो, पर उन्हें पूरा करने में जी-जान लगा दो।
घोषणा पत्र जारी करना आसान है, पर उस पर अमल लाने के बजाए नागरिकों के सामने अपनी डींगें बताई जाती हैं। आíथक तंत्र की बात की जाए, तो पिछले दशकों में सबसे कम आíथक विकास दर 4.5 प्रतिशत है। मेन्युफैक्चरिंग क्षेत्र में सराहनीय प्रयासों की कमी देखी गई है। बजट घाटा निराशाजनक है। कांग्रेस अपने घोषणा पत्र में कह रही है कि 2015-16 में हम बजट घाटा कम करेंगे। उत्पादन क्षेत्र को मजबूत कर विभिन्न राहतें देंगे। अटकी हुई परियोजनाओं को शुरू करेंगे। इस पर भाजपा कहती है कि सीनियर सिटीजन को कर राहत दी जाएगी। उन्हें अधिक ब्याजदर दी जाएगी। इसी तरह अन्य दल भी आथिर्क तंत्र को मजबूत बनाने का दावा कर रहे हैं। विदेश नीति की बात की जाए, तो परमाणु ऊर्जा समझौता और देवयानी खोब्रागड़े के मामले में अमेरिका से संबंध थोड़े बिगड़े थे। पाकिस्तान के साथ भी संबंध अच्छे नहीं है। एफडीआई के मामले में भी विदेश नीति के खिलाफ सवाल खड़े हुए थे। कांग्रेस अपने घोषणा पत्र में कहती है कि पाकिस्तान के साथ संबंध सुधारने के प्रयास किए जाएंगे। इसी तरह श्रीलंका के तमिलों के पुनर्वास के लिए प्रयास करेंगे। भाजपा ने पड़ोसी देशों के साथ संबंध सुधारने की दिशा में मजबूत कदम उठाने पर बल दिया है। वामपंथी दलों ने भी कहा है कि पाकिस्तान के साथ संबंध सुधारने का पूरा प्रयास किया जाएगा। कई राजनीतिक दलों ने विदेशी नीति को छेड़ा नहीं है। अधिकांश ने पड़ोसी देशों से संबंध सुधारने की बात की है।
स्वास्थ्य के क्षेत्र में भारत की स्थिति अच्छी नहीं है। विश्व में पोषणयुक्त आहार से पीड़ित एक तिहाई लोग भारत में हैं। स्वास्थ्य को लेकर जीडीपी की 12 प्रतिशत राशि खर्च होती है। कांग्रेस ने अपने घोषणापत्र में कहा है कि अब जीडीपी की तीन प्रतिशत राशि स्वास्थ्य पर खर्च होंगे। 2020 तक स्वास्थ्य के क्षेत्र में 60 लाख रोजगार के नए आयाम खोले जाएंगे। भाजपा के अनुसार वह नेशनल हेल्थ इंश्योरेंसमिशन लाएगी। इससे नई स्वास्थ्य नीतियां आएंगी। वामपंथी दल सीपीआई(एम)स्वास्थ्य पर 5 प्रतिशत खर्च करना चाहती है। स्वस्थ प्रशासन देने में मनमोहन सरकार पूरी तरह से निष्फल साबित हुई है। 2 जी स्पेक्ट्रम के आवंटन, कोल ब्लॉक और कॉमनवेल्थ गेम आदि में बड़े घपले सामने आए हैं। कांग्रेस ने अपने घोषणा पत्र में लिखा है कि तय समयसीमा में सरकारी कार्यालयों में काम हो, इसके लिए ग्रीवान्सिस बिल-2011 लाया जाएगा। भाजपा ने लिखा है कि लोकपाल का असरकारक रूप से उपयोग किया जाएगा। नेशनल ई गवर्नस प्लान भी तैयार किया जाएगा। सीपीआई(एम) कहती है कि वह लोकपाल एक्ट और व्हीसल ब्लोअर एक्ट की समीक्षा करेगी।
सबसे महत्वपूर्ण मुद्दा शिक्षा का है। हाल में सरकार जीडीपी की 3 प्रतिशत राशि शिक्षा पर खर्च कर रही है। पढ़ाई बीच में छोड़ने वालों का प्रतिशत बहुत ही अधिक है। कांग्रेस इस मुद्दे पर कहती है कि पढ़ाई बीच में छोड़ने वालों की संख्या कम करने की कोशिश करेगी। भाजपा कहती है कि सर्व शिक्षा अभियान के तहत पढ़ाई का भारमुक्त बनाया जाएगा। इसके अलावा युवाओं को ऐसी शिक्षा दी जाएगी, जिससे पढ़ाई के साथ-साथ उनकी आवक भी हो। सीपीआई (एम) कहती हैकि वह जीडीपी की 5 प्रतिशत राशि शिक्षा पर व्यय करेगी। डीएमके भी शिक्षा पर 7 प्रतिशत राशि खर्च करना चाहती है। इस तरह से तमाम राजनीतिक दलों ने अपनी-अपनी तरफ से वादे किए हैं। पर इन्हें बाद में अपने ये वादे याद ही रहते। इसका पूरा दोष वे सहयोगी दलों पर डाल देते हैं। अब प्रजा समझ गई है कि हमारे नेता वादे करने में शूरवीर हैं, पर उसे अमल में लाने के नाम पर बिलकुल शून्य। वादे पूरे करना उन्हें आता ही नहीं है। इसलिए अब इनके वादों पर न जाकर उनके काम को देखा जाए। यदि कोई दल अपने अस्तित्व को बचाए रखने के लिए बड़े दलों से जा मिलता है, तो ऐसे क्षेत्रीय दलों के प्रत्याशियों को पहली नजर में ही नकार दिया जाना चाहिए। अजित सिंह जैसे लोग सत्तारूढ़ दल के ही साथ रहे हैं। इनकी अपनी कोई पहचान नहीं है। इसलिए ऐसे दलों पर कभी भरोसा नहीं किया जाना चाहिए। वास्तव में क्षेत्रीय दल ही मुख्य दल को गलत रास्ते पर ले जाने के लिए तैयार रहते हैं। कई बार मुख्य दलों की परेशानी सामने आई हैं। इसे हमारे प्रधानमंत्री ने टीवी पर सबके सामने स्वीकार भी किया है। इसलिए जनता को सचेत होकर ऐसे दलों को वोट देना चाहिए, जो अपने वादे पूरा करना जानते हों।
डॉ. महेश परिमल
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