डॉ. महेश परिमल
सचिन तेंदुलकर की सेवािनवृत्ति के बाद शायद पहली बार क्रिकेट की किसी खबर ने पूरे देश का ध्यान अपनी ओर खींचा है। सचिन जैसे सार्वकालिक महान खिलाड़ी को खेलता देखते हुए बड़ी हुई एक पूरी पीढ़ी को सचिन की निवृत्ति के बाद क्रिकेट की तरफ दिलचस्पी कम होने लगी थी। इस दौरान 13 नवम्बर को लोगों ने कोलकाता के ईडन गार्डन में रोिहत शर्मा को जब खेलते देखा, तो क्रिकेट में दिलचस्पी न रखने वाले भी टीवी के आगे नतमस्तक होकर उसका खेल देखने लगे। सन् 2010 के पहले तक वन डे क्रिकेट में दोहरा शतक लगाना एक सपने की तरह था। ऐसे में कोई खिलाड़ी एक वर्ष के अंदर ही वन डे में दो बार दोहरा शतक लगाए, तो इसे भारतीय क्रिकेट की एक उपलब्धि ही कहा जाएगा, विशेषकर उन परिस्थितियों में जब सामने आस्ट्रेलिया या श्रीलंका जैसी मजबूत टीम हो। दूसरी बार में 264 रन के स्कोर को पार कर जाए, तो इस घटना को एक चमत्कार ही कहा जाएगा।
5 साल पहले तक वन डे में डबल सेंचुरी एक दुष्कर काम माना जाता था। तब रोहित शर्मा ने एक ही वर्ष में दो बार दोहरा शतक लगाकर देश का नाम गौरवान्वित किया है। वन डे में कुल 300 गेंदें फेंकी जाती हैँ। उसमें से एक खिलाड़ी के िहस्से में अधिकतम 150 गंेद ही आती हैं। स्ट्राइक लेने के कारण एक जैसी सरलता रहती है, तब दूसरी 25 गेंदें भी मिल जाती हैं। अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट खेलने वाली प्रतिस्पर्धी टीम के धुआंधार बॉलर और फील्डर का सामना करते हुए प्रत्येक गेंद पर डेढ़ से दो रन का स्ट्राइक रेट रखना, ये कोई हंसी खेल नहीं है। इस तरह से रोहित शर्मा का रिकॉर्ड लम्बे समय तक अटूट रहेगा, ऐसा कहा जा सकता है।
रोहित शर्मा में शर्मा उपनाम से लोग यही अंदाजा लगाते हैं कि उनका परिवार उत्तर प्रदेश का होगा। पर उनका परिवार तेलुगु ब्राह्मण है। मुम्बई में ही रहकर वे बड़े हुए। इसलिए उन्हें पक्का मुम्बइया कहा जा सकता है। उनका परिवार आज भी तेलुगु वातावरण अधिक पसंद करता है। अभी पिछले महीने ही एक रियालिटी शो के दौरान उनसे यह पूछा गया कि आपको किस तरह की लड़कियां पसंद हैं, तब रोहित का कहना था कि आप यह पूछें कि किस तरह की लड़कियां अच्छी नहीं लगती, यह पूछा जाए, तो तुरंत ही कह दूंगा कि अनुष्का शर्मा जैसे लड़कियां मुझे बिल्कुल पसंद नहीं हैं। इस शो में रोहित ने न तो सचिन की तरह गोल-मोल बातें की और न ही धोनी की तरह अ... अ...कर कहीं अटके। उनके व्यक्तित्व में एक बेफिकरापन है, जो मैदान में भी साफ दिखाई देता है। विवियन रिचर्ड्स, सनत जयसूर्या, वीरेंद्र सहवाग की निजी जिंदगी में जो बेफिक्री और दूर तक न सोचने की झंझट से मुक्त होकर अपने तरीके से जीने का एक नैसर्गिक स्पर्श रोहित के खेल में दिखाई देता है। रोहित शर्मा में वे सभी विशेषताएं हैं, जो एक कुशल खिलाड़ी में होनी चाहिए। टीम के एक प्रतिभाशाली खिलाड़ी होने के बाद भी उनके फार्म को लेकर हमेशा ऊंगलियां उठती रही हैं। 2007 से वे वन-डे के एक्सपर्ट बेट़समेन की तरह अपना स्थान जमा चुकने के बाद भी उसने केवल 7 टेस्ट मेच ही खेले हैं। पिछले वर्ष नवम्बर में ही उन्होंने ईडन गार्डन में वेस्ट इंडिज के खिलाफ टेस्ट कैरियर की शुरुआत की। पहले दो टेस्ट में दोहरा शतक जमाया। इसके बाद, वन डे और टी-ट्वंटी का फार्मेट उन्हें अधिक रास आता है। ओपनर बेट्समेन के रूप में या तो नैसर्गिक खिलाड़ी चलते हैं या फिर टेक्निकल साउंड खिलाड़ी। क्रिकेट के ऐसे स्ट्रेटेजिक फार्मेट में ऐसा काम्बिनेशन किसी भी टीम के लिए अनिवार्य माना जाता है। सचिन-सहवाग, तयसूर्या-संगकारा, जार्ज मार्श-डेविड बून इस प्रकार के यादगार काम्बिनेशन माने जाते हैं।
एक खिलाड़ी के रूप में रोहित शर्मा नैसर्गिक हैं और यह नैसर्गिक निश्चितता के साथ खेलते हैं, तब बेहद आक्रामक हो जाते हैं। इस तरह से कोच डंकन फ्लेचर ने उन्हें परखा और वन डे की ओपनिंग में भेजना शुरू किया। तीसरे-चौथे क्रम में जब वे खेलने आते थे, तब 81 इनिंग में उनकी लोकप्रियता का क्रम 26 था, जो ओपनिंग में बढ़कर 37 तक पहुंच गई। भारतीय टीम में अपना स्थान बनाना रोहित के लिए कभी सरल नहीं रहा। मीडिल ऑर्डर मं उनकी स्पर्धा सुरेश रैना के साथ होती थी, तो वन डाउन में उन्हें विराट कोहली के साथ मैदान में उतरना पड़ता। परिणामस्वरूप उत्कृष्ट प्रदर्शन होने के बाद भी टीम में उनका चयन कभी स्थायी रूप से नहीं हुआ। 2007 में पाकिस्तान और ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ शानदार प्रदर्शन के बाद भी 2009 में तीव्र स्पर्धा के कारण उनका चयन नहीं हो पाया। उन्हें अनदेखा किया गया। एक तरह से उन्हें हाशिए पर ही धकेल दिया गया। 2010 में जिम्बाबवे और श्रीलंका के खिलाफ शतक जमाने के बाद भी 2011 के वर्ल्ड कप में उन्हें टीम में नहीं लिया गया। अंतत: 2011 के वेस्ट इंडिज के दौरे पर जाना उनके लिए शुभदायी रहा। जहां रोहित ने अपनी प्रतिभा का लोहा मनवा लिया। सचिन, सहवाग और धोनी जैसे धाकड़ महारथियों की अनुपस्थिति में सुरेश रैना की कप्तानी के तहत खेली गई सीरीज में उन्हें मेन ऑफ द सीरीज के खिताब से नवाजा गया। इसके बाद उन्हें प्रोक्सी के बदल स्थायी खिलाड़ी के रूप में स्वीकृति मिली। दाएं हाथ के बेट्समेन के रूप में कितने ही अंशों में रोहित सचिन की तरह स्टेमना दिखाते हैं। गेंद जब काफी करीब पहुंच जाती है, तभी वे बेट उठाकर अपनी स्टाइल से कवर ड्राइव पर डाल देते हैं। तब ऐसा लगता है कि कहीं ये सचिन ही तो नहीं खेल रहे हैं। उनका जुनून सहवाग की तरह है, पर सहवाग की तरह स्टम्प खोेलकर खेेलने की गलती वे टी-ट्वंटी में तो करते ही नहीं। गांगुली की तरह लोफ्टेड शॉट खेलने के लिए वे अवश्य ललचाते हैं, परंतु गंेद को पहचानने की काबिलियत उन्हें सफल खिलाड़ी बनाती है।
13 नवम्बर को ईडन गार्डन में खेले गए मैच में रोहित से हर तरह के शॉट्स खेलकर अपनी कुशलता जाहिर कर दी। साथ ही नैसर्गिक खेल खेलते हुए इतना बड़ा स्काेर खड़ा कर रोहित ने यह आशा बंधा दी कि वन डे में एक खिलाड़ी 300 रन भी बना सकता है। माना यह जाता है कि सहजता से खेलने वाला खिलाड़ी अक्सर पिच पर अधिक समय तक नहीं टिक सकता। यह तर्क देने वाले श्रीकांत और सहवाग का नाम बताते हैं, ये दोनों खिलाड़ी प्रत्येक गेंद को बाउंड्री में भेेजने के चक्कर में अपना विकेट खोया है। रोहित शर्मा की गिनती भी ऐसे ही खिलाड़ी के रूप में होने लगे, इसके पहले उसे वर्ल्ड क्लास और वर्ल्ड रिकॉर्ड में अपना नाम शामिल कर टीकाकारों के मुंह िसल दिए। 264 रन की उनकी इनिंग में रोहित ने कुल 173 बॉल पर 33 चौके और 9 छक्के लगाए। इसमें से केवल दो छक्के ही ऐसे थे, जिसमें उसने खतरा उठाया था। बाकी अधिकांश बाउंड्री तो उसने बहुत ही आराम से लगाई थी। फक्कड़ गिरधारी टाइप के बेट़समेन की छाप से अलग होकर विकेट बचाकर रन बनाने वाले परिपक्व खिलाड़ी के रूप में उनका यह खेल उन्हें एक नई पहचान देगा।
सचिन, द्रविड़, लक्ष्मण और गांगुली.... भारतीय क्रिकेट के फेब्यूलस फाेर के रूप पहचाने जाने वाले महान खिलािड़यों की निवृत्ति के बाद नई पीढ़ी की टीम आकार ले रही है। भविष्य के कप्तान के रूप में माने जाने वाले विराट कोहली 26 वर्ष के हैं, सुरेश रैना 27, शिखर धवन 28 और अजिंक्य रहाणे 26 वर्ष के हैं। 26-27 की यह ब्रिगेड में 26 वर्ष के रोहित शर्मा के लिए शुभदायी हो सकती है। एक बार बहुत अच्छा खेलकर दो वर्ष तक टीम में अपना स्थान सुरक्षित कर लेना ऐसा गावस्कर, कपिल या अजहर का जमाना अब नहीं रहा। आईपीएल टूर्नामेंट के कारण देश भर की प्रतिभाएं सामने आ रहीं हैं। ऐसे में प्रत्येक मेच में अपना स्थान बनाए रखना तलवार की धार पर चलने के समान है। रोहित शर्मा के रूप में भारतीय क्रिकेट टीम को एक ऐसा खिलाड़ी मिला है, जो आक्रामक होने के बाद भी लंबी इनिंग खेल सकते हैँ। ऐसे में यह आशा रखी जा सकती है कि रोहित शर्मा आगे के मेचों में अपनी प्रतिभा का इसी तरह प्रदर्शन करते रहेंगे। गुड लक इंडिया।
डॉ. महेश परिमल
सचिन तेंदुलकर की सेवािनवृत्ति के बाद शायद पहली बार क्रिकेट की किसी खबर ने पूरे देश का ध्यान अपनी ओर खींचा है। सचिन जैसे सार्वकालिक महान खिलाड़ी को खेलता देखते हुए बड़ी हुई एक पूरी पीढ़ी को सचिन की निवृत्ति के बाद क्रिकेट की तरफ दिलचस्पी कम होने लगी थी। इस दौरान 13 नवम्बर को लोगों ने कोलकाता के ईडन गार्डन में रोिहत शर्मा को जब खेलते देखा, तो क्रिकेट में दिलचस्पी न रखने वाले भी टीवी के आगे नतमस्तक होकर उसका खेल देखने लगे। सन् 2010 के पहले तक वन डे क्रिकेट में दोहरा शतक लगाना एक सपने की तरह था। ऐसे में कोई खिलाड़ी एक वर्ष के अंदर ही वन डे में दो बार दोहरा शतक लगाए, तो इसे भारतीय क्रिकेट की एक उपलब्धि ही कहा जाएगा, विशेषकर उन परिस्थितियों में जब सामने आस्ट्रेलिया या श्रीलंका जैसी मजबूत टीम हो। दूसरी बार में 264 रन के स्कोर को पार कर जाए, तो इस घटना को एक चमत्कार ही कहा जाएगा।
5 साल पहले तक वन डे में डबल सेंचुरी एक दुष्कर काम माना जाता था। तब रोहित शर्मा ने एक ही वर्ष में दो बार दोहरा शतक लगाकर देश का नाम गौरवान्वित किया है। वन डे में कुल 300 गेंदें फेंकी जाती हैँ। उसमें से एक खिलाड़ी के िहस्से में अधिकतम 150 गंेद ही आती हैं। स्ट्राइक लेने के कारण एक जैसी सरलता रहती है, तब दूसरी 25 गेंदें भी मिल जाती हैं। अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट खेलने वाली प्रतिस्पर्धी टीम के धुआंधार बॉलर और फील्डर का सामना करते हुए प्रत्येक गेंद पर डेढ़ से दो रन का स्ट्राइक रेट रखना, ये कोई हंसी खेल नहीं है। इस तरह से रोहित शर्मा का रिकॉर्ड लम्बे समय तक अटूट रहेगा, ऐसा कहा जा सकता है।
रोहित शर्मा में शर्मा उपनाम से लोग यही अंदाजा लगाते हैं कि उनका परिवार उत्तर प्रदेश का होगा। पर उनका परिवार तेलुगु ब्राह्मण है। मुम्बई में ही रहकर वे बड़े हुए। इसलिए उन्हें पक्का मुम्बइया कहा जा सकता है। उनका परिवार आज भी तेलुगु वातावरण अधिक पसंद करता है। अभी पिछले महीने ही एक रियालिटी शो के दौरान उनसे यह पूछा गया कि आपको किस तरह की लड़कियां पसंद हैं, तब रोहित का कहना था कि आप यह पूछें कि किस तरह की लड़कियां अच्छी नहीं लगती, यह पूछा जाए, तो तुरंत ही कह दूंगा कि अनुष्का शर्मा जैसे लड़कियां मुझे बिल्कुल पसंद नहीं हैं। इस शो में रोहित ने न तो सचिन की तरह गोल-मोल बातें की और न ही धोनी की तरह अ... अ...कर कहीं अटके। उनके व्यक्तित्व में एक बेफिकरापन है, जो मैदान में भी साफ दिखाई देता है। विवियन रिचर्ड्स, सनत जयसूर्या, वीरेंद्र सहवाग की निजी जिंदगी में जो बेफिक्री और दूर तक न सोचने की झंझट से मुक्त होकर अपने तरीके से जीने का एक नैसर्गिक स्पर्श रोहित के खेल में दिखाई देता है। रोहित शर्मा में वे सभी विशेषताएं हैं, जो एक कुशल खिलाड़ी में होनी चाहिए। टीम के एक प्रतिभाशाली खिलाड़ी होने के बाद भी उनके फार्म को लेकर हमेशा ऊंगलियां उठती रही हैं। 2007 से वे वन-डे के एक्सपर्ट बेट़समेन की तरह अपना स्थान जमा चुकने के बाद भी उसने केवल 7 टेस्ट मेच ही खेले हैं। पिछले वर्ष नवम्बर में ही उन्होंने ईडन गार्डन में वेस्ट इंडिज के खिलाफ टेस्ट कैरियर की शुरुआत की। पहले दो टेस्ट में दोहरा शतक जमाया। इसके बाद, वन डे और टी-ट्वंटी का फार्मेट उन्हें अधिक रास आता है। ओपनर बेट्समेन के रूप में या तो नैसर्गिक खिलाड़ी चलते हैं या फिर टेक्निकल साउंड खिलाड़ी। क्रिकेट के ऐसे स्ट्रेटेजिक फार्मेट में ऐसा काम्बिनेशन किसी भी टीम के लिए अनिवार्य माना जाता है। सचिन-सहवाग, तयसूर्या-संगकारा, जार्ज मार्श-डेविड बून इस प्रकार के यादगार काम्बिनेशन माने जाते हैं।
एक खिलाड़ी के रूप में रोहित शर्मा नैसर्गिक हैं और यह नैसर्गिक निश्चितता के साथ खेलते हैं, तब बेहद आक्रामक हो जाते हैं। इस तरह से कोच डंकन फ्लेचर ने उन्हें परखा और वन डे की ओपनिंग में भेजना शुरू किया। तीसरे-चौथे क्रम में जब वे खेलने आते थे, तब 81 इनिंग में उनकी लोकप्रियता का क्रम 26 था, जो ओपनिंग में बढ़कर 37 तक पहुंच गई। भारतीय टीम में अपना स्थान बनाना रोहित के लिए कभी सरल नहीं रहा। मीडिल ऑर्डर मं उनकी स्पर्धा सुरेश रैना के साथ होती थी, तो वन डाउन में उन्हें विराट कोहली के साथ मैदान में उतरना पड़ता। परिणामस्वरूप उत्कृष्ट प्रदर्शन होने के बाद भी टीम में उनका चयन कभी स्थायी रूप से नहीं हुआ। 2007 में पाकिस्तान और ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ शानदार प्रदर्शन के बाद भी 2009 में तीव्र स्पर्धा के कारण उनका चयन नहीं हो पाया। उन्हें अनदेखा किया गया। एक तरह से उन्हें हाशिए पर ही धकेल दिया गया। 2010 में जिम्बाबवे और श्रीलंका के खिलाफ शतक जमाने के बाद भी 2011 के वर्ल्ड कप में उन्हें टीम में नहीं लिया गया। अंतत: 2011 के वेस्ट इंडिज के दौरे पर जाना उनके लिए शुभदायी रहा। जहां रोहित ने अपनी प्रतिभा का लोहा मनवा लिया। सचिन, सहवाग और धोनी जैसे धाकड़ महारथियों की अनुपस्थिति में सुरेश रैना की कप्तानी के तहत खेली गई सीरीज में उन्हें मेन ऑफ द सीरीज के खिताब से नवाजा गया। इसके बाद उन्हें प्रोक्सी के बदल स्थायी खिलाड़ी के रूप में स्वीकृति मिली। दाएं हाथ के बेट्समेन के रूप में कितने ही अंशों में रोहित सचिन की तरह स्टेमना दिखाते हैं। गेंद जब काफी करीब पहुंच जाती है, तभी वे बेट उठाकर अपनी स्टाइल से कवर ड्राइव पर डाल देते हैं। तब ऐसा लगता है कि कहीं ये सचिन ही तो नहीं खेल रहे हैं। उनका जुनून सहवाग की तरह है, पर सहवाग की तरह स्टम्प खोेलकर खेेलने की गलती वे टी-ट्वंटी में तो करते ही नहीं। गांगुली की तरह लोफ्टेड शॉट खेलने के लिए वे अवश्य ललचाते हैं, परंतु गंेद को पहचानने की काबिलियत उन्हें सफल खिलाड़ी बनाती है।
13 नवम्बर को ईडन गार्डन में खेले गए मैच में रोहित से हर तरह के शॉट्स खेलकर अपनी कुशलता जाहिर कर दी। साथ ही नैसर्गिक खेल खेलते हुए इतना बड़ा स्काेर खड़ा कर रोहित ने यह आशा बंधा दी कि वन डे में एक खिलाड़ी 300 रन भी बना सकता है। माना यह जाता है कि सहजता से खेलने वाला खिलाड़ी अक्सर पिच पर अधिक समय तक नहीं टिक सकता। यह तर्क देने वाले श्रीकांत और सहवाग का नाम बताते हैं, ये दोनों खिलाड़ी प्रत्येक गेंद को बाउंड्री में भेेजने के चक्कर में अपना विकेट खोया है। रोहित शर्मा की गिनती भी ऐसे ही खिलाड़ी के रूप में होने लगे, इसके पहले उसे वर्ल्ड क्लास और वर्ल्ड रिकॉर्ड में अपना नाम शामिल कर टीकाकारों के मुंह िसल दिए। 264 रन की उनकी इनिंग में रोहित ने कुल 173 बॉल पर 33 चौके और 9 छक्के लगाए। इसमें से केवल दो छक्के ही ऐसे थे, जिसमें उसने खतरा उठाया था। बाकी अधिकांश बाउंड्री तो उसने बहुत ही आराम से लगाई थी। फक्कड़ गिरधारी टाइप के बेट़समेन की छाप से अलग होकर विकेट बचाकर रन बनाने वाले परिपक्व खिलाड़ी के रूप में उनका यह खेल उन्हें एक नई पहचान देगा।
सचिन, द्रविड़, लक्ष्मण और गांगुली.... भारतीय क्रिकेट के फेब्यूलस फाेर के रूप पहचाने जाने वाले महान खिलािड़यों की निवृत्ति के बाद नई पीढ़ी की टीम आकार ले रही है। भविष्य के कप्तान के रूप में माने जाने वाले विराट कोहली 26 वर्ष के हैं, सुरेश रैना 27, शिखर धवन 28 और अजिंक्य रहाणे 26 वर्ष के हैं। 26-27 की यह ब्रिगेड में 26 वर्ष के रोहित शर्मा के लिए शुभदायी हो सकती है। एक बार बहुत अच्छा खेलकर दो वर्ष तक टीम में अपना स्थान सुरक्षित कर लेना ऐसा गावस्कर, कपिल या अजहर का जमाना अब नहीं रहा। आईपीएल टूर्नामेंट के कारण देश भर की प्रतिभाएं सामने आ रहीं हैं। ऐसे में प्रत्येक मेच में अपना स्थान बनाए रखना तलवार की धार पर चलने के समान है। रोहित शर्मा के रूप में भारतीय क्रिकेट टीम को एक ऐसा खिलाड़ी मिला है, जो आक्रामक होने के बाद भी लंबी इनिंग खेल सकते हैँ। ऐसे में यह आशा रखी जा सकती है कि रोहित शर्मा आगे के मेचों में अपनी प्रतिभा का इसी तरह प्रदर्शन करते रहेंगे। गुड लक इंडिया।
डॉ. महेश परिमल
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