डॉ. महेश परिमल
अच्छे दिन आएंगे, के बुलंद नारे के साथ भाजपा ने केंद्र में सरकार तो बना ली। पर अब यह स्लोगन भाजपा वालों के लिए ही गले की हड्डी बन गया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने विश्व फलक पर भले ही अपनी छवि को बहुत ही उज्जवल बना दिया हो, पर सच तो यह है कि देश के भीतर ही उनकी छवि लगातार बिगड़ती जा रही है। अब तो हालत यह है कि केवल विपक्ष ही नहीं, बल्कि आरएसएस के वरिष्ठ नेता भी सरकार की आलोचना करने में पीछे नहीं है। अब तो अच्छे दिन के स्लोगन पर लोग जोक्स तैयार करने लगे हैं। इस स्लोगन का गुणगान करने वाले ही अब इसका जवाब मांगने लगे हैं कि आखिर कब आएंगे अच्छे दिन? दिनों दिन नरेंद्र मोदी पर दबाव बढ़ता जा रहा है कि वे ही बताएं कि अच्छे दिनों की राह आखिर कब तक देखी जाए? कभी प्रधानमंत्री के समर्थक कहे जाने वाले राम जेठमलानी, सुब्रमण्यम स्वामी और अरुण शौरी जैसे लोगों के आक्रामक बयान आने लगे हैं। भू-अधिग्रहण विधेयक के मामले में समर्थक दलों का विश्वास प्राप्त करने में विफल रही सरकार ने कांग्रेस को बैठे-बिठाए एक मुद्दा दे दिया है।
चुनाव के पहले किए गए वादों को पूरा करने या उस दिशा में आगे बढ़ने के लिए कोई प्रयास नहीं किया गया, ऐसी बातें सरकार के खिलाफ जमकर की जा रही हैं। हाल ही में पेट्रोेल-डीजल के दामों में की गई वृद्धि के बाद लोगों में यह बात घर कर गई है कि यह सरकार पूंजीपतियों की सरकार है। जिसे मात्र कुछ लोग ही चला रहे हैं। अच्छे दिनों के बारे में कोई मंत्री कुछ भी कहना नहीं चाहता। मोदी सरकार का यही कहना है कि हमारी सरकार अभी पिछली सरकार द्वारा किए गए कार्यों का खामियाजा भुगत रही है। खामियाजे की यह बात यदि एक वर्ष बाद की जाए, तो समझ में नहीं आता। अब तो लोग सीधे जवाब चाहते हैं। अब उनके सब्र का बांध टूटने लगा है। सरकार ने वृद्धि दर बढ़ाने के लिए मेक इन इंडिया, डीजिटल इंडिया आदि के माध्यम से रोजगारी बढ़ाने की बात कर रहीे है, पर रोजगारी की दिशा में किसी तरह का सुधार दिखाई नहीं दे रहा है। भाजपा के पास आरएसएस जैसा शक्तिशाली संगठन होने के बाद भी वह किसानों की समस्याओं को पूरी तरह से समझने में विफल साबित हुई। जब वरिष्ठ नेता अरुण शौरी ने कहा कि भाजपा सरकार को केवल तीन लोग ही चला रहे हैं, इससे सरकार को सचेत हो जाना चाहिए। ऐसा भी नहीं है कि इस तरह के आरोप पहले कांग्रेस सरकार पर नहीं लगे हैं। उस सरकार पर भी यही आरोप था कि पूरी सरकार को केवल तीन लोग ही चला रहे हैं, मनमोहन सिंह, सोनिया गांधी और राहुल गांधी। पहले नरेंद्र मोदी इसी बात को लेकर कांग्रेस का मजाक उड़ाया करते थे, अब वही बात उनकी ही पार्टी के लोग कहने लगे हैं और उनका ही मजाक उड़ाने में लगे हैं।
शायद एनडीए सरकार को यह पता नहीं है कि पांच वर्ष तो कुछ समय बाद ही गुजर जाएगा। आखिर उन्हें जाना तो प्रजा के बीच ही है। स्पष्ट बहुमत मिलने के बाद भी यदि सरकार अपने मन-माफिक काम न कर पाए, तो यह प्रजा के लिए आघातजनक ही है। भू-अधिग्रहण का मामला सरकार के लिए प्रतिष्ठा का प्रश्न बन गया है। पर जब भी भाजपा सरकार ने अपने अभिमान का प्रदर्शन किया है, तब उसे मुँह की खानी पड़ी है। अब तो मीडिया 24 घंटे सरकार की तमाम हरकतों पर नजर रखने लगा है। हालत यह हो गई कि सरकार अपनी उपलब्धियों का बखान भी नहीं कर पा रही है। एक न एक एेसा मामला सामने आता जा रहा है, जिससे सरकार की फजीहत हो रही है। कभी अपने ही नेताओं की बदजुबानी ही सरकार को सवालों के घेरे में खड़े कर देती है। सरकार के पास दूरंदेशी योजनाएँ हैं। किंतु वर्तमान को सुधारने के लिए उसके पास ऐसी कोई योजना नहीं है, जिससे लोगों को थोड़ी-बहुत राहत मिले। प्रजा तमाशा देख रही है। किसानों का मामला सामने आते ही रातों-रात सभी किसान प्रेमी होने लगे हैं। प्रजा मानती है कि सरकार के सामने अरबों रुपए के घोटाले के मामले सामने आए हैं। फिर भी सरकार इस दिशा में सख्त कदम नहीं उठा पा रही है। यह सवाल हर सांसद को मुिश्कल में डाल सकता है। वह उद्योगों और निवेशकों से आगे देख ही नहीं पा रही है। प्रजा की तात्कालिक समस्याओं को ताक पर रखकर सरकार उसे देश के 100 स्मार्ट सिटी का सपना दिखा रही है। जनता अभी सुविधा चाहती है। भविष्य की बात नहीं करना चाहती, पता नहीं सरकार को यह बात कौन बताएगा? एक तरफ सरकार विदेशी निवेशकों के लिए लाल-जाजम बिछा रही है, तो दूसरी तरफ स्थानीय उद्योगों को किसी तरह का प्रोत्साहन देने को तैयार नहीं है।
प्रधानमंंत्री नरेंद्र मोदी का जादू अब टूटने लगा है। कांग्रेस उनकी आलोचना करे, यह संभव है, पर जब उनकी आलोचना आरएसएस ही करने लगे, तो बात गंभीर हो जाती है। प्रधानमंत्री अपने पर लगे आरोपों का जवाब नहीं देते, इससे लगता है कि वे गुजरात के मुख्यमंत्री के रूप में स्वयं को स्थापित कर रहे हैं। लोग उनके व्यवहार में तानाशाही का अंश देखने लगे हैं। आर्थिक मामलों में मोदी सरकार बुरी तरह से फंसी हुई है। ऐसे में वह फारेन डायरेक्ट इन्वेस्टमेंट प्राप्त करने के लिए हाथ-पैर मार रही है। अभी तक सरकार ने निवेशकों का विश्वास नहीं जीता है। इसका निवारण करने के बजाए वह पिछली सरकार की खामियों को उजागर करने में लगी है। प्रजा की अपेक्षाएं लगातार बढ़ रही हैं। प्रधानमंत्री संगठन और राज्य स्तर की प्रशासनिक सेवाओं को बेहतर समझते हैं। लेकिन देश की सरकार चलाना जरा मुश्किल है। सभी देख रहे हैं कि रोज एक नई समस्या मुंह बाय खड़ी रहती है। सरकार इस समस्या का समाधान खोजने के बजाए यूपीए सरकार की गलती बताकर अपना पल्ला झाड़ रही है। मोदी सरकार यह मानकर चल रही है कि उनके मंत्री काम तो कर रहे हैं, पर वे काम दिखाई नहीं दे रहे हैं। या फिर सरकार के काम का प्रचार मंत्री कर नहीं पा रहे हैं। प्रजा तो एक ही रट लगा रही है कि बाकी सब कुछ छोड़ो, हमें अच्छे दिन दिखाओ। पर अब जनता के सब्र का बांध टूट रहा है। मोदी सरकार पर की गई अपेक्षाएं अब पूरी नहीं हो पा रही है। उनके वादों का गुब्बारा अब फूट चुका है। अब कुछ नहीं होने वाला। दुख इस बात का है कि जिस प्रधानमंत्री पर पूरा भरोसा कर उन्हें सत्ता सौंपी, उन पर ही विश्वास नहीं रहा।
डॉ. महेश परिमलशायद एनडीए सरकार को यह पता नहीं है कि पांच वर्ष तो कुछ समय बाद ही गुजर जाएगा। आखिर उन्हें जाना तो प्रजा के बीच ही है। स्पष्ट बहुमत मिलने के बाद भी यदि सरकार अपने मन-माफिक काम न कर पाए, तो यह प्रजा के लिए आघातजनक ही है। भू-अधिग्रहण का मामला सरकार के लिए प्रतिष्ठा का प्रश्न बन गया है। पर जब भी भाजपा सरकार ने अपने अभिमान का प्रदर्शन किया है, तब उसे मुँह की खानी पड़ी है। अब तो मीडिया 24 घंटे सरकार की तमाम हरकतों पर नजर रखने लगा है। हालत यह हो गई कि सरकार अपनी उपलब्धियों का बखान भी नहीं कर पा रही है। एक न एक एेसा मामला सामने आता जा रहा है, जिससे सरकार की फजीहत हो रही है। कभी अपने ही नेताओं की बदजुबानी ही सरकार को सवालों के घेरे में खड़े कर देती है। सरकार के पास दूरंदेशी योजनाएँ हैं। किंतु वर्तमान को सुधारने के लिए उसके पास ऐसी कोई योजना नहीं है, जिससे लोगों को थोड़ी-बहुत राहत मिले। प्रजा तमाशा देख रही है। किसानों का मामला सामने आते ही रातों-रात सभी किसान प्रेमी होने लगे हैं। प्रजा मानती है कि सरकार के सामने अरबों रुपए के घोटाले के मामले सामने आए हैं। फिर भी सरकार इस दिशा में सख्त कदम नहीं उठा पा रही है। यह सवाल हर सांसद को मुिश्कल में डाल सकता है। वह उद्योगों और निवेशकों से आगे देख ही नहीं पा रही है। प्रजा की तात्कालिक समस्याओं को ताक पर रखकर सरकार उसे देश के 100 स्मार्ट सिटी का सपना दिखा रही है। जनता अभी सुविधा चाहती है। भविष्य की बात नहीं करना चाहती, पता नहीं सरकार को यह बात कौन बताएगा? एक तरफ सरकार विदेशी निवेशकों के लिए लाल-जाजम बिछा रही है, तो दूसरी तरफ स्थानीय उद्योगों को किसी तरह का प्रोत्साहन देने को तैयार नहीं है।
प्रधानमंंत्री नरेंद्र मोदी का जादू अब टूटने लगा है। कांग्रेस उनकी आलोचना करे, यह संभव है, पर जब उनकी आलोचना आरएसएस ही करने लगे, तो बात गंभीर हो जाती है। प्रधानमंत्री अपने पर लगे आरोपों का जवाब नहीं देते, इससे लगता है कि वे गुजरात के मुख्यमंत्री के रूप में स्वयं को स्थापित कर रहे हैं। लोग उनके व्यवहार में तानाशाही का अंश देखने लगे हैं। आर्थिक मामलों में मोदी सरकार बुरी तरह से फंसी हुई है। ऐसे में वह फारेन डायरेक्ट इन्वेस्टमेंट प्राप्त करने के लिए हाथ-पैर मार रही है। अभी तक सरकार ने निवेशकों का विश्वास नहीं जीता है। इसका निवारण करने के बजाए वह पिछली सरकार की खामियों को उजागर करने में लगी है। प्रजा की अपेक्षाएं लगातार बढ़ रही हैं। प्रधानमंत्री संगठन और राज्य स्तर की प्रशासनिक सेवाओं को बेहतर समझते हैं। लेकिन देश की सरकार चलाना जरा मुश्किल है। सभी देख रहे हैं कि रोज एक नई समस्या मुंह बाय खड़ी रहती है। सरकार इस समस्या का समाधान खोजने के बजाए यूपीए सरकार की गलती बताकर अपना पल्ला झाड़ रही है। मोदी सरकार यह मानकर चल रही है कि उनके मंत्री काम तो कर रहे हैं, पर वे काम दिखाई नहीं दे रहे हैं। या फिर सरकार के काम का प्रचार मंत्री कर नहीं पा रहे हैं। प्रजा तो एक ही रट लगा रही है कि बाकी सब कुछ छोड़ो, हमें अच्छे दिन दिखाओ। पर अब जनता के सब्र का बांध टूट रहा है। मोदी सरकार पर की गई अपेक्षाएं अब पूरी नहीं हो पा रही है। उनके वादों का गुब्बारा अब फूट चुका है। अब कुछ नहीं होने वाला। दुख इस बात का है कि जिस प्रधानमंत्री पर पूरा भरोसा कर उन्हें सत्ता सौंपी, उन पर ही विश्वास नहीं रहा।
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