नया साल: वे यहां, हम वहां
कदम दर कदम हम नए साल की ओर बढ़ रहे हैं। इसके लिए हम सब मानसिक रूप से तैयार भी हैं। हमारे देश में तो यह वर्ष में 5 बार मनाया जाता है। पर हमने उन्हें अभी तक भीतर से नहीं स्वीकारा है। हमारे लिए तो नया साल यानी 31 दिसम्बर की रात को मनाया जाने वाले जश्न ही है। इस जश्न को मनाने के लिए हम अनजाने में ही सारी स्वीकृतियां प्राप्त कर लेते हैं, जो हमें साल भर नहीं मिलती। इसे मनाने के लिए हम सारी हिदायतों को ताक पर रख देते हैं। पर हमसे सात समुंदर दूर बहुत से ऐसे लोग हैं, जिन्हें भारतीय संस्कृति से प्यार है। वे भले ही वहां रहते हो, पर उनका दिल भारत में ही धड़कता है। इसलिए वे अपनी संस्कृति और परंपरा को बचाए रखने के लिए ऐसा कुछ करते हैं, जो हम नहीं कर पाते हैं।
नए साल को हर कोई इसे अपने तरीके से मनाना चाहता है। कोई शपथ के साथ, कोई संकल्प के साथ, तो कोई वाणी के अनुसार। इसका कोई लाभ होता है, यह कभी वास्तविक जीवन में देखा नहीं गया। वास्तव में यह हमारा नया साल है ही नहीं। यह तो पाश्चात्य देशों के लिए नया साल हो सकता है। पर हमारे लिए न होते हुए भी यह बहुत कुछ है। इसके लिए हम साल भर इंतजार रहता है। हम दोगुने उत्साह से इसमें भाग लेते हैं। क्या कोई मान सकता है कि न कोई मूर्ति, न कोई आरती, न कोई गीत, न कोई तस्वीर, न कोई सरकारी छुट्टी, इसके बाद भी 31 दिसम्बर की रात लोग झूम पड़ते हैं। डांस करते हैं, अपने उत्साह को दोगुना करते हैं। आखिर इस 31 दिसम्बर की रात में ऐसा क्या है, जिसने युवाओं को इतना अधिक दीवाना बना रखा है। इस तरह से देखा जाए, आगामी वर्षों में 31 दिसम्बर की रात और भी ज्यादा रंगीन होती जाएगी। समाज सुधारकों के लिए यह एक खतरे की घंटी हो सकती है। इतना छलकता उत्साह तो हमारे धार्मिक त्योहारों में भी नहीं देखा जाता। इस रात को होने वाले आयोजनों में भी अब लगातार वृद्धि होती जा रही है। युवाओं को डांस करने का बहाना चाहिए, तो 31 दिसम्बर की रात को यह बहाना मिल जाता है। इस दौरान ऐसा बहुत कुछ हो जाता है, जिसे रेखांकित किया जाए, तो समाज की एक दूसरी ही तस्वीर सामने आएगी।
पर हमें निराश होने की आवश्यकता नहीं है। 31 दिसम्बर की रात को बहुत कुछ ऐसा भी होने जा रहा है, जिसे हम उल्लेखनीय कह सकते हैं। हम यहां रहकर वहां की संस्कृति को अपनाते हुए वे सब कुछ करेंगे, जो हम करते आ रहे हैं, पर हमसे सात समुंदर दूर बहुत से लोग ऐसे भी हैं, जो वहां रहकर यहां की संस्कृति को जीवित रखने का पुरजोर प्रयास करेंगे। इसीलिए कहा गया है कि जो यहां हैं, वे वहां की संस्कृति को अपना रहे हैं और जो यहां हैं, वे यहां की संस्कृति को अक्षुण्ण बनाए रखने के लिए अपनी ओर से कोशिशें कर रहे हैं।
यहां के वे लोग जो वहां हैं, वे अपनी समानांतर संस्कृति को बचाने के लिए 31 दिसम्बर को हिंदू संस्कृति के कार्यक्रम करने जा रहे हैं। इस तरह का प्रचलन वहां अब बढ़ने लगा है। अमेरिका में क्रिसमस का आयोजन बड़े जोर-शोर से होता है। पर वहां जो हिंदू हैं, चूंकि उनकी जड़ें भारत में हैं, इसलिए वे इस दिन वहां के अनेक मंदिरों में 31 दिसम्बर की रात को बारह बजने के आधे घंटे पहले ही हनुमान चालीसा पढ़ना शुरू कर देंगे। इस तरह से वे हनुमान चालीसा की पंक्तियों के साथ नए वर्ष में प्रवेश करेंगे। इसके लिए सभी ने अपनों को बुलाया है। वे जो अपने हैं, जिनकी जड़ों में भारत बसता है। भले ही उनका दिल वहां धड़कता हो, पर आत्मा से वे सभी यहीं हैं, यहां की माटी को प्यार करते हैं। आज भी बड़े गर्व से वे अपनी माटी को माथे पर लगाते हैं। अपनों को बुलाने के लिए उनका आमंत्रण भी विशेष है। जहां क्लब कल्चर का बोलबाला हो, वहां यदि भारतीय अपनी पहचान को कायम रखने के लिए संस्कृति को जीवंत रखने का प्रयास करते हैं, तो इस सराहनीय ही कहा जाएगा।
हर वर्ष की तरह इस वर्ष भी वाशिंगटन के वेलेव्यू हनुमान मंदिर में 31 दिसम्बर की रात सुंदर कांड का पाठ रखा गया है। रात 11.45 से 12 बजे तक हनुमान चालीसा का पाठ होगा। वर्जीनिया की श्री सत्यनारायण स्वामी सेवा सन्निधी में 31 दिसम्बर की रात 8 बजे से अखंड हनुमान चालीसा शुरू होगा। इसमें हजारों लोग शामिल होंगे। बारह बजे के बाद कोई खाना-पीना नहीं, पर काजू-बादाम का हलुआ प्रसाद के रूप में दिया जाएगा। ऑस्टिन(टेक्सास) में सांईबाबा टेम्पल में 12 बजे तक भजनों का कार्यक्रम है। नॉर्थ अमेरिका की श्री महावल्लभ गणपति मंदिर में 1000 दीये जलाए जाएंगे। इसे सभी ने अलंकारम का नाम दिया है।
अमेरिका में ओमिक्रोन के मामले में तेजी से बढ़ोतरी हुई, जिसके बाद प्रशासन ने नए साल पर होने वाली पार्टियों पर आंशिक रूप से प्रतिबंध लगाए हैं। नए वर्ष के स्वागत में हम लोग घर भी ही घुसे रहते हैं या फिर सड़कों पर मस्ती करते हैं। लोग इसे वेस्टर्न वे ऑफ लिविंग कहते हैं। हमारा नव वर्ष तो गुड़ी-पड़वा है। जिसे हम सब भूलने लगे हैं। वास्तव में गुड़ी-पड़वा में उपवास का भी प्रावधान है, जो हमें नागवार गुजरता है। हमें बहाना चाहिए, मस्ती करने का, जो वेस्टर्न कल्चर में बिंदास है। ऐसा नहीं है कि हमारे देश में नए साल में कई मंदिरों में भजन कार्यक्रम होंगे, पर उसमें कितने लोग कितनी श्रद्धा से शामिल होते हैं, इसे तो वहीं जाकर देखा जा सकता है। उन्माद की मूर्खता में हम यह भूल गए हैं कि हमारी भी कोई संस्कृति है। हम विदेशी संस्कृति के विकृत रूप को अपनाने में जरा भी देर नहीं करते, पर उस संस्कृति की कई चीजें हम नकार देते हैं। काम के प्रति जुनून, समय की पाबंदी, सफाई के प्रति संवेदनशील आदि कई ऐसी आदतें हैं, जो विदेशियों की हैं, जिसे हम अपनाना नहीं चाहते।
31 दिसम्बर की रात को थिरकते युवाओं को देखकर ऐसा लगता है कि आखिर ये किसकी खुशी मना रहे हैं। कैलेंडर का एक पेज ही तो बदला है। बीते हुए साल से क्या सीखा और आने वाले साल से क्या सीखना है, उसकी क्या योजना है, इस पर कोई नहीं सोचता। दिन-रात तो एक ही तरह से होते हैं, इसमें कैसा आयोजन और कैसी मस्ती? यही एक ऐसी रात होती है, जिसमें हर कोई नाचता ही दिखाई देता है। स्थान सड़क हो या फिर कोई क्लब, होटल, पार्टी। कड़कड़ाती ठंड भी इन युवाओं को रोक नहीं पाती। यह एक ऐसा स्वयंभू उत्सव है, जिसमें किसी भी तरह से किसी को आमंत्रित नहीं किया जाता। लोग खुद होकर इसमें शामिल होते हैं। नाचते-गाते हैं। ऐसा क्या है इस रात में कि युवा खो जाते हैं, नए साल के स्वागत में। देेखा जाए, तो ये युवा इसलिए उत्सव मनाते हैं, क्योंकि साल भर की दुश्वारियों के बीच वे जीवित हैं। उनके बेहद करीब साथी दुनिया छोड़ गए। उनमें अभी भी दम-खम है, संघर्ष का, इसलिए वे जिंदा रहने की खुशी में नए साल को उत्सव के रूप में देख रहे हैं। दूसरी ओर इसके पीछे वह गुप्त मार्केटिंग भी है, जो युवाओं को विदेशी कल्चर की तरफ आकर्षित करता है। हमें विदेश की बनी हर चीज से आकर्षित होते आए हैं, बस इसी का फायदा उठाया रहा है। युवाओं के अंतर्मन में यही बात है, जो उसे उत्सव प्रिय तो बनाती है, पर केवल विदेशी उत्सव के प्रति ही उसका लगाव दिखता है।
डॉ. महेश परिमल
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