शुक्रवार, 29 अप्रैल 2011

सीबीआई के मिल गया बलि का बकरा!




डॉ. महेश परिमल

मनमोहन सिंह सरकार के साथ यह मुश्किल है कि जिस बात को देश का बच्च जानता है, उसे प्रधानमंत्री नहीं जानते। सभी जानते हैं कि कॉमनवेल्थ गेम्स की तैयारियों में सुरेश कलमाड़ी शुरू से संदिग्ध थे। कभी पूणो के काफी हाउस के कैश काउंटर पर बैठने वाले सुरेश कलमाड़ी पर 80 हजार करोड़ रुपए के घोटाले का आरोप है। यह आम आदमी की समझ से परे है कि सुरेश कलमाड़ी को आखिर इतने लम्बे समय बाद क्यों गिरफ्तार किया गया। इस विलम्ब पर अभी भी रहस्य का परदा है। वैसे कलमाड़ी पहले भी कह चुके हैं कि इस घोटाले में मैं अकेला नहीं हूँ। अगर मैंने मुँह खोला, तो कई सफेदपोश सामने आ सकते हैं। अक्टूबर के बाद सीबीआई ने कलमाड़ी से तीन बार पूछताछ की है। इस पूछताछ से ऐसा कुछ भी नहीं मिला, जिससे उनकी गिरफ्तारी हो सके। आखिर जब उनकी गिरफ्तारी की गई, तब भी सीबीआई उसका खुलासा करने के लिए तैयार नहीं थी। गिरफ्तारी के करीब तीन घंटे बाद अधिकृत रूप से घोषणा की गई। आखिर इसके पीछे क्या राज है?
संभवत: सीबीआई को यह डर है कि कलमाड़ी के पास ऐसे सुबूत हैं, जिससे कई लोगों के चेहरे बेनकाब हो सकते हैं। वैसे शुंगलू कमेटी ने सुरेश कलमाड़ी के बाद यदि किसी को दोषी माना है, तो वह है दिल्ली की मुख्यमंत्री शीला दीक्षित, खेल मंत्री के.पी.एस. गिल, शहरी विकास मंत्री जयपाल रेड्डी। कलमाड़ी की इस गिरफ्तारी के बाद विपक्ष उक्त तीनों की गिरफ्तारी की माँग कर रहा है। वैसे सीबीआई सुरेश कलमाड़ी को केंद्र में रखकर जाँच कर रही है। अभी तक उन लोगों को तो छुआ तक नहीं गया है, जो कलमाड़ी के पीछे हैं। इस घोटाले की नैतिक जिम्मेदारी आखिर प्रधानमंत्री पर ही आने वाली है। इसलिए सीबीआई ने कलमाड़ी को बलि का बकरा बनाकर गिरफ्तार तो कर लिया है, पर यही कलमाड़ी जब अपना मुँह खोलेंगे, तब जो नाम उजागर होंगे, उससे केंद्र सरकार कैसे बच पाएगी?
पिछले साल अक्टूबर में जब राष्ट्रमंडल खेल शुरू हुए थे, तभी सबको पता चल गया था कि इस खेल के लिए की गई तैयारियों के लिए जो ठेके दिए गए हैं, उसमें अरबों रुपए का गोलमाल किया गया है। इस घोटाले के लिए उसी समय राष्ट्रमंडल खेल की आयोजन समिति के अध्यक्ष सुरेश कलमाड़ी को जवाबदार माना गया था। उसके बाद भी उन्हें आयोजन समिति से हटाया नहीं गया। यही नहीं, उनकी गिरफ्तारी न करते हुए उन्हें उक्त पद पर बरकरार रखा गया। राष्ट्रमंडल खेलों की समाप्ति के बाद जब तमाम घोटालों की जाँच के लिए कमेटी तैयार की गई, तब भी कलमाड़ी आयोजन समिति के अध्यक्ष पद पर विराजमान थे। इस पर जब सरकार पर दबाव बढ़ा, तब आयोजन समिति से उन्हें हटाया गया। इके बाद भी आज तक सुरेश कलमाड़ी इंडियन ओलंपिक्स ऐसोसिएशन के अध्यक्ष के रूप में विराजमान हैं। कलमाड़ी के दो साथियों ललित भणोत और वी. के. वर्मा ने उनके खिलाफ कई बयान दिए, उसके बाद भी कलमाड़ी को गिरफ्तार नहीं किया गया। फिर सीबीआई ने कलमाड़ी से तीन बार पूछताछ की, उसके बाद भी उनकी धरपकड़ के बजाए सबूत खत्म करने की पूरी छूट दी गई। अचानक राजनीति में ऐसा क्या उलटफेर हो गया, जिससे कलमाड़ी को गिरफ्तारी की गई।
अभी सीबीआई ने सुरेश कलमाड़ी को जिस आधार पर गिरफ्तार किया है, उसके पीछे वह रिकॉर्डिग है, जिसमें दिल्ली में आयोजित आयोजन समिति की बैठक में उन्हें स्कोर बोर्ड आदि के यंत्रों के ठेके स्विस टाइमिंग कंपनी को देने की घोषणा करते हुए बताया गया है। सीबीआई को यह शक है कि स्विस टाइमिंग कंपनी के भारतीय प्रतिनिधि ने इस सौदे में सुरेश कलमाड़ी को रिश्वत देने में बिचौलिए की भूमिका निभाई। इस प्रतिनिधि को जब कलमाड़ी के सामने उपस्थित किया गया, तब उनके पास रिश्वत लेना स्वीकारने के अलावा कोई चारा नहीं था। वैसे कलमाड़ी पर यह भी आरोप है कि उन्होंने सितम्बर 2010 में लंदन मंे आयोजित क्विंस बेटेन रिले के भव्य आयोजन के प्रचार-प्रसार के लिए जिस ए.एम. फिल्म्स को ठेका दिया था, इसके साथ बिना किसी लिखित समझौते के करोड़ों रुपए की अदायगी की गई। इस कंपनी का मालिक आशीष पटेल गुजराती है। इस कंपनी का रिकार्ड खराब था। कंपनी ने अपनी सेवाओं के बदले में काफी मोटी राशि वसूली थी। सीबीआई को वे ई-मेल भी हाथ लग गए हैं, जिसमें कलमाड़ी के साथियों ने आशीष पटेल को कब कितनी राशि देने की जानकारी है।
कलमाड़ी के साथियों द्वारा पहले यह कहा गया था कि ए.एम. फिल्म्स कंपनी को ठेका देने के लिए लंदन स्थित भारत के हाई कमिश्नर की तरफ से सिफारिश की गई थी। इसका सुबूत भी ई-मेल से मिल गया है। इसके बाद आयोजन समिति की तरफ से क्विंस बेटेन रैली के ठेके के लिए ब्रिटेन की तीन अन्य कंपनियों के टेंडर जारी किए गए। ये तीनों टेंडर बनावटी थे। इन बनावटी टेंडरों से यह साबित करने की कोशिश की गई कि ए.एम. फिल्म्स को ठेका देने के पहले पूरी तरह से सावधानी बरती गई। सीबीआई के अधिकारियों ने लंदन जाकर आशीष पटेल से भेंट की, वहाँ उन्होंने आशीष पटेल को इस बात के लिए मना लिया कि वे कलमाड़ी के खिलाफ सुबूत देंगे। वैसे सीबीआई को आशीष पटेल के पास कलमाड़ी के खिलाफ कुछ सुबूत भी मिले हैं। राष्ट्रमंडल खेलों के लिए स्कोर, टाइमिंग और परिणाम के संसाधनों की आपूर्ति के लिए 107 करोड़ रुपए का ठेका स्विस कंपनी को गलत तरीके से दिया गया था। इसी काम के लिए स्पेन की कंपनी 48 करोड़ रुपए में करने के लिए तैयार थी। इसके बाद भी स्पेन की कंपनी का टेंडर रिजेक्ट कर दिया गया। इस मामले में कलमाड़ी के साथी ललित भनोट और वी.के.वर्मा से जब सीबीआई ने पूछताछ की, तब इन्होंने बताया था कि कलमाड़ी के कहने पर ही स्पेन की कंपनी का टेंडर रिजेक्ट कर स्विस कंपनी को ठेका दिया गया था। इस चौंकाने वाले बयान के बाद भी सीबीआई ने कलमाड़ी की गिरफ्तारी में इतनी देर क्यों की, यह एक रहस्य है।
स्विस कंपनी को 107 करोड़ रुपए का ठेका देने के लिए कलमाड़ी के दोनों साथियों ने चालाकी से काम लिया। टेंडर की घोषणा 1 अक्टूबर 2009 में की गई थी, इसकी शर्ते ऐसी थी कि स्विस कंपनी के अलावा दूसरी कोई कंपनी उसे पूरा नहीं कर पाती। इसके बाद 4 अक्टूबर को टेंडर में संशोधन कर ऐसा माहौल तैयार किया गया, जिसमें कोई दूसरी कंपनी टेंडर भरने के लिए तैयार ही न हो। इसके बाद भी स्पेन की कंपनी ने टेंडर भर दिया। उक्त काम 48 करोड़ रुपए में करने के लिए तैयार थी। राष्ट्रमंडल खेल में देश की तिजोरी में से 80 हजार करोड़ रुपए उड़ाए गए। ये राशि निर्थक खर्च की गई। इस घोटाले में सुरेश कलमाड़ी अकेले नहीं थे। इस घोटाले की जानकारी केंद्र सरकार के पास थी। इसके बाद भी सारी सूचनाओं की उपेक्षा की गई। खेल खत्म हो जाने के बाद जब पूरी राशि हजम हो गई, तब उसकी जाँच शुरू हुई। इसी जाँच में पहला बलिदान सुरेश कलमाड़ी के रूप में सामने आया है। अब कितने सफेदपोश सामने आते हैं, यही जानना बाकी है।
डॉ. महेश परिमल

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