गुरुवार, 28 अप्रैल 2011

दूसरा नंदीग्राम बनता जैतापुर



डॉ. महेश परिमल

पिछले बीस वर्षो में जैतापुर ने भूकम्प के 92 झटके झेले हैं। देश को इस एटामिक पॉवर प्लांट के कारण करीब दो लाख करोड़ रुपए का नुकसान हो सकता है। महाराष्ट्र के रत्नागिरी जिले में बनाए जा रहे 9,900 मेगावाट की उत्पादन क्षमता वाले इस प्रस्तावित प्लांट को लेकर महाराष्ट्र के रत्नागिरी में तनाव की स्थिति है। पुलिस फायरिंग में अभी तक एक युवक की मौत हो चुकी है। बंद के दौरान प्रदर्शनकारियों ने एक बस में आग लगा दी और अस्पताल में तोड़फोड़ की। महाराष्ट्र विधानसभा में भी यह मामला गूंजा। सरकार यदि इसी तरह अपना दमन चक्र चलाती रही, तो जैतापुर को दूसरा नंदीग्राम बनते देर नहीं लगेगी।
जापान में सुनामी और भूकंप के बाद पॉवर प्लांट फुकुशिमा की जो हालत हुई और उससे जो बरबादी हुई, उससे भारतीयों ने सबक लिया है। अब जैतापुर में प्रस्तावित पॉवर प्लांट का विरोध हो रहा है। लोग आंदोलन कर रहे हैं। सरकार है कि झुकना नहीं चाहती, आंदोलनकारी अड़े रहना चाहते हैं। इस पाँवर प्लांट का विरोध करने वाले पर्यावरणविद कहते हैं कि यह प्लांट जिस स्थान पर बनाया जाना है, वह स्थल तीन नम्बर भूकम्पग्रस्त क्षेत्र में आता है। जियोलोजिकल सर्वे ऑफ इंडिया द्वारा इकट्ठे किए गए आँकड़ों के अनुसार इस स्थल पर 1985 से 2005 तक भूकम्प के 92 झटके आ चुके हैं। इसमें से अधिकांश झटके तो 1993 में लगे थे। इसकी तीव्रता रिक्टर पैमाने पर 6.2 थी। जापान से सबक लेते हुए सरकार ने जैतापुर के पॉवर प्लांट की डिजाइन में बदलाव करते हुए ऊँचा प्लेटफार्म बनाने का निर्णय लिया है। इस पर पर्यावरणविद कहते हैं कि जैतापुर परमाणु संयंत्र को भूकम्प से कोई नुकसान नहीं होगा, यह समझना मूर्खता होगी। यदि जैतापुर में भूकम्प का झटका लगेगा, तो संभव है, यह पूरा इलाका ही मैदान बन जाए। यही नहीं, इसका असर मायानगरी मुम्बई तक हो सकता है।
जैतापुर में जो परमाणु संयंत्र बनाया जा रहा है, वह भारत का ही नहीं, बल्कि विश्व का सबसे बड़ा एटामिक पॉवर स्टेशन होगा। इसकी कुल क्षमता 9900 मेगावॉट बिजली पैदा करने की होगी। मुख्यमंत्री पद सँभालते ही अशोक चौहान ने यह तय कर लिया कि इस पॉवर प्लांट के विरोध को हमेशा-हमेशा के लिए कुचल दिया जाए। सरकार ने हरसंभव कोशिश की, पर विरोध बढ़ता ही रहा। पॉवर प्लांट के लिए किसानों की जमीन हस्तगत की जाने लगी। परिणामस्वरूप आंदोलनकारी किसानों पर पुलिस ने फायरिंग शुरू कर दी। इसके खिलाफ किसानों ने भी थाना जला दिया। इस घटना ने 90 साल पहले की चौरा-चोरी की याद दिला दी। इसके बाद भी किसानों की जमीन को जबर्दस्ती हथियाने की प्रवृत्ति में कोई तब्दीली नहीं आई।
जब जापान में फुकुशिमा पॉवर प्लांट की हालत खराब हुई, तब हमारे केंद्रीय पर्यावरण मंत्री जयराम रमेश ने कहा था कि अब समय आ गया है कि हम भी जैतापुर पॉवर प्लांट के बारे में पुनर्विचार करें। इसके बाद उन पर केंद्र से दबाव आ गया। इसलिए उन्हें अपने बयान में तब्दीली करनी पड़ी। एक सप्ताह बाद ही पर्यावरण मंत्री के सुर बदल गए। अब वे कहने लगे कि उक्त प्लांट की चिंता पर्यावरण मंत्रालय की नहीं, बल्कि न्यूक्लियर पॉवर कापरेरेशन की है। न्यूक्लियर पॉवर कापरेरेशन के अध्यक्ष श्रेयांस कुमार जैन ने पत्रकारों के सामने यह कह दिया कि यह पॉवर प्लांट सुनाम और भूकम्प के झटके आसानी से सह लेगा। लेकिन जब उनसे यह पूछा गया कि क्या यह संयंत्र 9 की तीव्रता वाले भूकम्प को सह सकता है, तब उन्होंने इस गंभीर प्रoA का मखोल् उड़ाते हुए कहा कि भारत में 9 की तीव्रता की भूकम्प आ ही नहीं सकता।
पूरे विश्व में अभी तक तीन प्रकार के परमाणु ऊज्र संयंत्र तैयार हो रहे हैं। जापान का फुकुशिमा रियेक्टर लाइट वॉटर टेक्नालॉजी पर आधारित है। उसमें परमाणु ईंधन को ठंडा करने के लिए सामान्य पानी का उपयोग किया जाता है। हमारे देश में काकरापार, तारापुर आदि स्थानों पर जो एटामिक रियेक्टर तैयार किए गए हैं, वे हेवी वॉटर की टेक्नालॉजी पर आधारित है। इसमें जिस पानी का इस्तेमाल किया जाता है, उसमें शामिल ऑक्सीजन का परमाणु सामान्य परमाणु की अपेक्षा अधिक भारी होता है। जैतापुर में जो परमाणु संयंत्र स्थापित किया जा रहा है वह प्रेशराइज्ड वॉटर की टेक्नालॉजी पर आधारित है। यह टेक्नालॉजी एकदम आधुनिक है। अभी इसे सुरक्षा की कसौटी में कसना बाकी है। पूरी दुनिया में इस प्रकार की तकनीक का इस्तेमाल करने वाला यह पहला संयंत्र है। इस तरह का परमाणु रियेक्टर अभी तक किसी भी देश में काम नहीं कर रहा है। फ्रांस की कंपनी ‘अरेवा’ भारत में इस तकनीक का इस्तेमाल कर एक प्रयोग करना चाहती है। जैतापुर में जिस एटामिक रियेक्टर का का निर्माण किया जा रहा है, उसके खर्च के बारे में सरकार ने अभी तक अधिकृत जानकारी नहीं दी है। फिनलैंड में जो 1650 मेगावॉट क्षमता का रियेक्टर बनने को है, उस पर 5.7 अरब यूरो के खर्च की संभावना है। चीन जो रियेक्टर खरीदने वाला है, वह 5 अरब यूरो का है। हम यदि इन दोनों की तुलना करें, तो 1650 मेगावॉट के एक रियेक्टर का खर्च 5.3 अरब यूरो होता है। जैतापुर में ऐसे 6 रियेक्टर तैयार किए जा रहे हैं, जिसकी लागत 193 लाख करोड़ रुपए हो सकती है।
फ्रांस के सहयोग से जैतापुर में बनाए जाने वाले परमाणु बिजली संयंत्र के पक्ष में जो सबसे मजबूत दलील दी जा रही है वह यह है कि इस प्रोजेक्ट के अस्तित्व में आ जाने से 10 हजार मेगावाट बिजली पैदा की जा सकेगी। महाराष्ट्र में इस वक्त 16 हजार मेगावाट बिजली की खपत है जिसमें 13,500 मेगावाट बिजली अन्य स्रोतों से हासिल की जाती है। इसमें राज्य सरकार की इकाई महाजेनको का योगदान रहता है और करीब 1500 मेगावाट बिजली बाहर से खरीदी जाती है। इसका नतीजा होता है कि महाराष्ट्र के अधिकतर इलाकों में रोज छह से आठ घंटे तक बिजली की कटौती की जाती है। कुछ वषों पहले तो स्थिति और भी खराब थी जब राज्य में हर दिन 18 घंटे बिजली की कटौती होती थी। जैतापुर परमाणु बिजली संयंत्र यदि काम करना शुरू कर दे तो बिजली की कमी झेल रहे राज्य को बड़ी राहत मिलेगी।पर जापान में आए भूकंप और सुनामी के बाद फुकुशिमा न्यूक्लियर प्लांट से रेडिएशन लीक के बढ़ते खतरे के बीच जैतापुर परमाणु बिजली संयंत्र को लेकर जो डर बढ़ रहा है, उसे दूर करने की पुख्ता व्यवस्था कहीं दिखाई नहीं दे रही है।
भारत के न्यूक्लियर प्लांट तीसरी पीढ़ी के रिएक्टरों और तकनीकी से लैस हैं जो सुनामी और भूकंप जैसे प्राकृतिक हादसों की स्थिति से निपटने में कारगर हैं। तमिलनाडु में कलपक्कम प्लांट सुनामी प्रभावित क्षेत्र में आता है। यहां 260 टन और 625 टन पानी की क्षमता वाले मजबूत कूलिंग सिस्टम हैं। यदि कोई अनहोनी होती है तो इससे निपटने के लिए पूरा वक्त (48 घंटे) मिलता है। जापान में न्यूक्लियर पावर प्लांट्स की सुरक्षा के लिए कई उपाय किए गए हैं। ये प्लांट इस तरह सुरक्षित बनाए जाते हैं कि किसी दुर्घटना की स्थिति में आसपास रहने वाले लोगों के स्वास्थ्य पर खराब असर नहीं पड़े। यहां के परमाणु रिएक्टर इस तरीके से बनाए जाते हैं कि भूकंप आने की स्थिति में ये खुद बंद हो जाते हैं जिससे किसी तरह की दुर्घटना की कोई संभावना ही न रहे।
डॉ. महेश परिमल

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