शुक्रवार, 24 फ़रवरी 2012

आखिर किंगफिशर पर इतनी मेहरबानी क्यों?

डॉ. महेश परिमल
किंगफिशर एयरलाइंस लगातार बदनाम होती जा रही है। बिना बताए उसकी कई उड़ानें लगातार रद्द होती जा रही हैं। लोग परेशान हैं, यही नहीं उसके कई पायलट भी इस अव्यवस्था से परेशान होकर इस्तीफा दे चुके हैं। सभी जानते हैं कि यह एयरलाइंस कंपनी का दिवाला निकलने वाला है, फिर भी इसे अनजानी सहायता मिल ही रही है। इसमें भले ही सरकार प्रत्यक्ष रूप से न जुड़ी हो, नागरिक उड्डयन मंत्री अजित सिंह का बयान भी आ गया हो, पर जिस तरह से विजय माल्या व्यवहार कर रहे हैं, इससे लगता है कि किसी न किसी रूप में कहीं न कहीं से सरकार का उन पर वरदहस्त है। आखिर कुछ तो बात होगी, जिसके कारण किंगफिशर के 464 करोड़ रुपए के शेयर 750 करोड़ रुपए में राष्ट्रीयकृत बंकों ने खरीदे। इससे एयर लाइंस को तो लाभ ही हुआ, पर निवेशकों को हानि उठानी पड़ी।
किंगफिशर की माली हालत दिनों-दिन खराब होती जा रही है, इसे सभी जानते हैं, इसके बाद भी उद्योगपति विजय माल्या की बिगड़ी हुई संतान की तरह यह कंपनी करदाताओं के धन से ऐश करती रही, यह बहुत कम लोगों का पता है। कोई भी यात्री जब किंगफिशर में यात्रा करता है, तो उससे टिकट के उपरांत भी सर्विस टैक्स के नाम पर कुछ और राशि वसूल की जाती है। इस सर्विस टैक्स को उन्हें सरकारी तिजोरी में डालना चाहिए, पर कंपनी ऐसा नहीं करती। इस राशि को अनाप-शनाप रूप से खर्च कर दिया जाता था। इस बात की जानकारी जब सर्विस टैक्स विभाग को मिली, तब उन्होंने किंगफिशर के बैंक के सारे खातों को सील कर दिया। इस कारण कंपनी अपने पायलटों को वेतन नहीं दे पाई। इसलिए कई पायलट नौकरी छोड़कर जाने लगे। इस कारण किंगफिशर की कई उड़ानें रद्द करनी पड़ी, यह सिलसिला लगातार अब भी जारी है। हालत यह है कि ¨कंगफिशर में हजारों यात्रियों ने पहले से ही धन जमा करके अपनी सीट बुक करवा ली है, वे अब परेशान हैं। पिछले साल नवम्बर से ही यह जानकारी मिलने लगी थी कि किेंगफिशर की देनदारियाँ लगातार बढ़ रहीं हैं। इसके बाद भी किंगफिशर के मालिक विजय माल्या ने किसी तरह से तिकड़म करके एयरलाइंस को चलाए रखा। लेकिन अब लगता है कि वे भी इससे आजिज आ चुके हैं। किंगफिशर अब अपनी अंतिम साँसें ले रहा है।
आज की स्थिति में किंगफिशर देश के विभिन्न शहरों में रोज करीब 240 फ्लाइट चला रहा है। रविवार को उसकी 80 फ्लाइट रद्द हो गई थी, उसके बाद करीब 40 फ्लाइट रोज ही रद्द हो रही है। केंद्र के नागरिक उड्डयन मंत्रालय ने जब किंगफिशर को एयरलाइंस का लायसेंस दिया, तब यह शर्त रखी थी कि सरकार की अनुमति के बिना वह एक फ्लाइट भी रद्द नहीं कर सकती। अब उसकी फ्लाइट लगातार रद्द हो रही है, लेकिन इसकी जानकारी न तो सरकार को है और न ही यात्रियों को। उधर आइल कंपनियों ने किंगफिशर को फ्यूल देना बंद कर दिया, दूसरी ओर पायलट भी लगातार इस्तीफा देते जा रहे हैं। इसके बाद भी किंगफिशर पर सरकार ने अभी तक किसी तरह की कार्रवाई नहीं की है। इसकी जगह कोई दूसरी एयरलाइंस होती, तो उस पर कई बार कार्रवाई हो चुकी होती। इस समय किंगफिशर की देनदारी कुल 7 हजार करोड़ रुपए की है। इसमें से 1400 करोड़ रुपए माफ करने की खबर है। पिछले साल इसी तरह किंगफिशर ने 1027 करोड़ रुपए का नुकसान किया था। सन 2003 में जब इस एयरलाइंस की स्थापना की गई थी, तब से अब तक कंपनी ने कुल 5690 करोड़ रुपए का नुकसान किया है। इसके बजाए कोई दूसरी कंपनी होती, तो वह कब की बंद हो गई होती।
किंगफिशर ने आइल कंपनियों से 890 करोड़ रुपए का ईंधन खरीदा है। पर उसका भुगतान नहीं किया है। इस कारण बीपीसीएल और एचपीसीएल नामक कंपनियों ने किंगफिशर को ईंधन देना ही बंद कर दिया। अभी इंडियन आइल कंपनी किंगफिशर को धन प्राप्त करने के बाद ही ईंधन दे रही है। बीपीसीएल ने ईंधन की राशि चुकाने के लिए किंगफिशर के खिलाफ अदालत का दरवाजा खटखटाया है। किंगफिशर की अनियमितता केवल इस क्षेत्र में ही नहीं, बल्कि एयरपोर्ट अथारिटी के क्षेत्र में भी देखी गई। नियम यह है कि किसी भी एयरपोर्ट पर कोई भी निजी विमान को उतारना हो, तो उसके लिए एयरपोर्ट अथारिटी को एक निश्चित राशि चुकानी होती है। इस राशि को चुकाने के मामले में भी किंगफिशर लगातार अनियमितताएँ कर रही है। हाल ही में किंगफिशर ने एयरपोर्ट अथारिटी को जो 151 करोड़ का चेक दिया था, वह बाउंस हो गया। आज की तारीख में एयरपोर्ट को किंगफिशर से कितनी रकम लेनी है, यह किसी को पता नहीं है। किंगफिशर के पास ऐसी कोई सम्पत्ति नहीं है, जिसे गिरवी रखकर वह अपनी पूँजी बना सके। उसके पास जितने भी विमान हैं, वे सभी किराए से लिए हुए हैं। आश्चर्य इस बात का है कि किंगफिशर इन विमानों का किराया भी नहीं चुका पा रही है। कुछ दिनों पहले ही कंपनी ने किराए के 5 विमान वापस करने पड़े। 2009 के बाद अब तक कुल 19 विमान कंपनी वापस कर चुकी है। सरकार को इतना जंगी नुकसान पहुँचाने वाली यह कंपनी अब तक कैसे चल रही है, यह समझ से परे है। संभव है कि इसमें भी 2 जी स्पेक्ट्रम जैसा कोई कांड छिपा हो।
सन् 2003 में जब किंगफिशर एयरलाइंस की स्थापना हुई, तब से यह केवल नुकसान में ही अपना काम कर रही है। सन 2005-2006 में काफी बदनाम रही एयर इंडिया ने भी लाभ कमाया, पर किंगफिशर कभी फायदे में नहीं रही। किंगफिशर के प्रेसीडेंट विजय माल्या बार-बार कहते रहे हैं कि वे करदाताओं के धन से एयरलाइंस नहीं चलाना चाहते। पर सच्चई यही है कंपनी को उबारने के लिए जिन राष्ट्र्रीयकृत बैंकों ने पैकेज के रूप में करोड़ों का कर्ज दिया है, उन बैंकों के करोड़ों रुपए डूब चुके हैं। इसके अलावा जिन पूँजी निवेशकों ने यूबी समूह के शेयरों में निवेश किया है, उनका धन डूबत खाते में चला गया है। सन् 2010 में सकरारी बैंकों ने किंगफिशर को दिए गए धन को वसूलने के लिए जब सख्ती की, तब विजय माल्या ने सभी बैंकों के मैनेजरों की बैठक बुलाई। उसके बाद किंगफिशर को उबारने के लिए पैकेज की घोषणा की गई। उस समय किंगफिशर की देनदारियाँ कुल 8414 करोड़ रुपए थी। इस देनदारी को चुकाने के लिए कंपनी के 23 प्रतिशत शेयर बैंकों को देकर देनदारियों को चुकता करने का वादा किया गया। इन शेयरों की बाजार कीमत उस समय 750 करोड़ रुपए आंकी गई थी। इस तरह से किंगफिशर का एक शेयर बैंकों को 64.48 रुपए में पड़ा। मजे की बात यह है कि उस समय किंगफिशर के शेयरों के भाव बाजार में 39.90 रुपए थी। इस तरह से बैंकों ने किंगफिशर के 464 करोड़ रुपए के शेयरों को 750 करोड़ रुपए में खरीदे। सीधे शब्दों में कहा जाए, तो बैंकों ने किंगफिशर को 284 करोड़ रुपए की भेंट दे दी। इस सौदे से विजय माल्या की मानो लाटरी ही लग गई। बैंकों द्वारा इस तरह से किंगफिशर को उपकृत करने के बारे में पूछा गया, तो बैंकों का कहना था कि यह सच है कि हमने किंगफिशर के कम कीमत के शेयरों को अधिक दाम में खरीदा, पर हमें आशा थी कि उनके शेयरों के दाम शीघ्र ही बढ़ेंगे। पर ऐसा हो नहीं पाया, आज किंगफिशर के शेयरों की कीमत 25 रुपए है। इस तरह से राष्ट्रीयकृत बैंकों को कुल 3000 करोड़ रुपए का नुकसान हुआ। यही नहीं बैंकों ने कंपनी को लाभ पहुँचाने के लिए कर्ज की ब्याज दर भी दो से ढाई प्रतिशत कम कर दी। इससे बैंकों को अब हर वर्ष 150 से 180 करोड़ रुपए का नुकसान होगा। इस महीने में किंगफिशर कई बैंकों के करीब 450 करोड़ रुपए की पूँजी हजम कर चुकी है।
किंगफिशर को कई बार उनकी अनियमितताओं को ध्यान न देते हुए उसे तरजीह दी गई है। कंपनी को उबारने के लिए बैंकों के माध्यम से उसे 1000 करोड़ रुपए का लोन भी दिया गया। इसके बाद भी कंपनी उबर नहीं पाई। कंपनी को अभी भी यह आशा है कि सरकार की तरफ से उसे निश्चित रूप से और सहायता मिलेगी और कंपनी उबर जाएगी। पर उड्डयन मंत्री अजित सिंह ने जिस तरह से बयान दिया है, उससे नहीं लगता कि कंपनी को अब और राहत दी जाएगी। श्री सिंह ने किंगफिशर को और अधिक पैकेज देने से इंकार किया है। एक निजी एयरलाइंस कंपनी लगातार सरकार का नुकसान करे, तो क्या सरकार का कोई कर्तव्य नहीं है कि उस पर किसी तरह की कार्रवाई करे? आखिर किंगफिशर ने जो भी नुकसान किया है, उसका खामियाजा वह स्वयं ही भुगते। पर इस मामले में ऐसा नहीं है, उसका खामियाजा कंपनी के शेयरधारक भुगत रहे हैं। आखिर किसके आदेश से बैंकों ने भी किंगफिशर को इतनी अधिक प्राथमिकता दी कि जब उसके शेयरों के बाजार भाव 39 रुपए चल रहे हों, तब 64 रुपए में खरीदने की क्या आवश्यकता थी? कहीं बैंकों के उच्च पदस्थ अधिकारी किसी कांड में तो लिप्त नहीं हैं? जिससे किंगफिशर को लगातार सहूलियतें मिलती रही और कंपनी इसका बेजा लाभ उठाती रही? आखिर कहीं कुछ तो है, जिससे न केवल सरकार बल्कि बैंकें भी विजय माल्या के आगे नतमस्तक हो गई।
डॉ. महेश परिमल

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