बुधवार, 29 फ़रवरी 2012

देश में कई हैं छोटे-छोटे औरंगाबाद!


डॉ. महेश परिमल
भारत एक गरीब देश है, यह बात अब सच दिखाई नहीं देती। पर यह भी सच है कि भारत देश में गरीब लोग रहते हैं। हर देश की तरह हमारे देश में गरीबों की संख्या अमीरों से बहुत अधिक है। पर अमीर इस तरह से समाज में छा गए हैं कि उन्हें न तो गरीब दिखाई देते हैं और न ही गरीबी। इंडिया और भारत की विभाजन रेखा यहीं से शुरू होती है। हाल ही में यह पता चला कि औरंगाबाद में 151 मर्सीडीज कारों का ऑर्डर मिला है। यूं तो बेशकीमती गाड़ियों के शो रूम केवल मेट्रोपोलिटन सिटी में ही होते हैं। जैसे दिल्ली, मुम्बई, बेंगलोर आदि में, पर अब औरंगाबाद जैसे विकसित शहर में भी इस तरह के शो-रूम दिखाई देने लगे हैं। इस तरह से देश में कई और औरंगाबाद हो गए हैं। इन लक्जरी गाड़ियों के कारण छोटे-छोटे शहरों से भी बड़ी गाड़ियों की माँग बढ़ने लगी है।
देश में अमीरों की संख्या तेजी से बढ़ रही है। 24 करोड़ की सम्पत्ति के मालिकों की संख्या अगले दो साल के अंदर तीेगुनी होने वाली है। लक्जरी और ब्रांडेड चीजों का क्रेज लगातार बढ़ रहा है। अब मध्यमवर्गीय परिवार भी मारुति कार खरीदने की कूब्बत रखता है। देश में एक करोड़ मारुति कार है, इससे ही अंदाजा लगाया जा सकता है कि देश में अमीरों की संख्या कितनी तेजी से बढ़ रही है। देश में केवल मारुति ही नहीं, बल्कि अन्य कारों के मॉडलों की बिक्री लगातार बढ़ रही है। देश में फरारी, पोत्र्श, बीएमडब्ल्यू आदि कारों की बिक्री बेतहाशा बढ़ी है। उच्च मध्यमवर्ग और धनकुबेरों में लक्जरी कार खरीदने का क्रेज बढ़ा है। महँगाई की मार से भले ही आम आदमी कराहता हो, पर जिस तरह से लक्जरी चीजों का बाजार फैल रहा है, इससे लगता है कि इसी विरोधाभास के कारण समाज दो भागों में विभाजित हो गया है। इसमें से एक वर्ग ऐसा है, जो केवल सौ रुपए के बूट पहनता है, दूसरा वगअपने बूट के लिए दस हजार रुपए खर्च कर सकता है।
देश में समृद्धि बढ़ने के साथ-साथ लक्जरी चीजों की खरीदी में भी वृद्धि हुई है। इंटरनेशनल ब्रांडेड आइटमों को खरीदने में लोग अधिक रुचि लेने लगे हैं। ये केवल बड़े शहरों की ही बात नहीं है, छोटे शहरों में भी इस तरह की चीजों की माँग बढ़ने लगी है। इसमें विशेष रूप से यंग जनरेशन में इस तरह की चीजों के प्रति विशेष रूप से आकर्षित है। हाल का सर्वेक्षण बताता है कि भारत की औसतन आय 50 हजार रुपए है। एक तरफ देश में रिटेल क्षेत्र में एफडीआई पर संसद की मंजूरी नहीं मिली है। यह विवाद जारी है। दूसरी तरफ ब्रांडेड आइटम्स के लिए लोग मुँहमाँगा दाम देने को तैयार हैं। रिटेल क्षेत्र में एफडीआई को लेकर यह कहा जा रहा था कि इससे स्थानीय स्तर के छोटे व्यापारियों को नुकसान होगा, पर लक्जरी आइटम खरीदने के लिए और उसके सेंटर की स्थापना करने की स्पर्धा जारी है। जो नए-नए करोड़पति हुए हैं, उनमें ब्रांडेड चीजों के प्रति विशेष लगाव देखा जा रहा है। ऐसे बाजार को इन्हीं लोगों से प्रोत्साहन मिला है। एक अंदाज के अनुसार भारत में लक्जरी मार्केट हर साल 20 प्रतिशत की दर से बढ़ रहा है। 2012 में इस मार्केट ने 8 अरब डॉलर को छू देगा, ऐसा विश्वास किया जा रहा है। देश में ब्रांडेड आइटम्स की चीजों का बाजार पिछले 5 वर्ष में अधिक बढ़ा है। युवाओं में ही इस तरह की चीजों का रुझान बढ़ा है। वे भी ब्रांडेड चीजों को खरीदने का आग्रह रखते हैं।
देश में लक्जरी चीजों की खूब बिक्री हो रही है। पिछले 5 महीनों में 20 फरारी, एक वर्ष में 300 पोत्र्श और 151 मर्सीडीज गाड़ियों की बिक्री हुई है। प्राइवेट लक्जरी प्लेन भी हमें आकाशीय मार्ग में देखने को मिल जाएँगे। केवल कानपुर जैसे शहर में ही दस पोत्र्श गाड़ियों की खरीदी हुई है। अब ब्रांडेड चीजों के शो रूम मुम्बई, दिल्ली और बेंगलोर ही हो, ऐसी बात नहीं है। अब तो छोटे शहर भी इसमें शामिल होने लगे हैं। औरंगाबाद में एक व्यापारी ने अपने मित्रों के साथ एक वर्ष पहले 151 मर्सीडीज बेंज का ऑर्डर दिया, तो सभी को आश्चर्य हुआ। आजकल लक्जरी चीजों के खरीदने वाले बड़े शहरों में ही नहीं होते। महँगी चीजें खरीदने वाले 50 प्रतिशत लोग छोटे शहरों में ही रहते हैं। देश में छोटे-छोटे औरंगाबाद बनने लगे हैं। ऐसे ही एक छोटे शहर के बड़े उद्योगपति के पास महँगी कारों का काफिला है। वे सोमवार से रविवार तब अलग-अलग गाड़ियों का इस्तेमाल करते हैं। उनके काफिले में पोत्र्श, मर्सीडीस, एस एंड सी क्लास, ओडी आदि का समावेश होता है। कार के ऐसे शौकीन अहमदाबाद और लुधियाना जैसे शहरों में भी रहते हैं।
यहाँ केवल लक्जरी कारों की ही बात नहीं की जा रही है। घड़ी से लेकर शूज तक और बाइक से लेकर आधुनिक सुविधाओं से युक्त चीजों का समावेश किया जा रहा है। ईश्वर की मूर्ति से लेर बूट-चप्पल तक की खरीदी के लिए लोग ऊँची रकम देने में नहीं हिचकते। एक बार चीज भा गई, फिर उसे खरीदने का जो जुनून आज दिखाई देता है, वह पहले दिखाई नहीं देता था। इसी जुनून के कारण लक्जरी आइटम का बाजार दिनों-दिन प्रगति कर रहा है। हमारे यहाँ एक बंगला बने न्यारा का सपना हर कोई देखता है, पर पुणो, बेंगलोर, हैदराबाद, दिल्ली जैसे शहरों में अब महल जैसे बंगले बन रहे हैं और उसे खरीदने के लिए लोगों की लाइन लगती है। यही स्थिति होटल उद्योग की है। इसी तरह घड़ी, वोल पेपर, टेबल लैम्प आदि चीजों के भी इंटरनेशनल ब्रांड हैं। इन चीजों का एक विशेष वर्ग है। इंटरनेशनल ब्रांड में बेलेंसीगा (चश्मा), लोजीनीस (वॉच), लाड्रो (हेप्पीनेसपीस), चेनली (व्हाइज नवाज कलेक्शन), क्रिश्चयन लोबुटीन (लेग्ज सेंडल), बरबेरी (बूट) आदि का समावेश होता है। एक अंदाज के मुताबिक देश में 25 करोड़ की सम्पत्ति के मालिकों की संख्या 2014 तक तीगुनी हो जाएगी। जो यह बताता है कि देश में लक्जरी मार्केट का बाजार बहुत ही तेजी से बढ़ेगा। इंटरनेशनल लक्जरी ब्रांड की एफडीआई 51 प्रतिशत होने के कारण इंटरनेशनल ब्रांड के लिए ग्राहक को देश से बाहर नहीं जाना पड़ता। एक तरपु बेल्ट, वोलेट, परफ्यूम, बेग्स, वॉच आदि की माँग है, तो ढाई लाख से साढ़े चार लाख रुपए की पेन की भी माँग है। इसके चलते यह कहा जा सकता है कि हमारा देश अब कतई गरीब नहीं रहा। लोगों के पास धन अथाह है, जो अपनी गति से आ रहा है। यह धन कब, कहाँ, कैसे, किस तरह से लोगों तक पहँुच रहा है, यह भले ही शोध का विषय हो, पर यह सच है कि हमारे देश में आज एक आफिस का चपरासी भी दस करोड़ और एक क्लर्क 40 करोड़ की सम्पत्ति का मालिक होता है।
 डॉ. महेश परिमल

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