एक हॉट सेवा का आखिरी समय
डॉ. महेश परिमल
भारत में इंटरनेट जब शैशवस्था में था, तब सभी का ई-मेल एड्रेस हॉटमेल ही होता था। अभी जो स्थिति जीमेल की है, ठीक उसी पोजीशन में हॉटमेल था। तब तो इंटरनेट कनेक्शन भी बड़ी मुश्किल से मिलता था। अगर मिल भी जाए तो कब वह अदृश्य हो जाए, इसकी कोई गारंटी नहीं दे सकता था। इसके बाद भी हॉटमेल की अपनी आइडी बताना एक गर्व की बात थी। हॉटमेल की लोकप्रियता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि आज भी हॉटमेल का इस्तेमाल करने वाले सबसे अधिक लोग हैं। जीमेल दूसरे नंबर पर है और याहू तीसरे नंबर पर। लेकिन अब यह नंबर वन हॉटमेल कुछ समय बाद पूरी तरह से अदृश्य हो जाएगा। इंटरनेट के क्षेत्र में ई-मेल का उपयोग इतनी तेजी से हो रहा है कि इसने उसके पोस्टल सिस्टम की चूलों को हिलाकर रख दिया है। रही-सही कसर स्मार्ट फोन ने पूरी कर दी है। वह तो चलता-फिरता डाकघर ही बन गया है। एक समय ऐसा भी था, जब ई-मेल पर एक तस्वीर अटैच कर उसे कहीं भेजने में काफी समय लगता था। अब तो स्थिति यह आ गई है कि पूरे अखबार के 24 पन्नों को एक साथ कहीं भी चुटकियों में भेजा जा सकता है। यह सब लिखने का कारण यह है कि इन सभी के मूल में हॉटमेल ही है। इसी हॉटमेल ने सबीर भाटिया का नाम रौशन किया। आज भले ही यह नाम कम जाना-पहचाना हो, पर एक समय ऐसा भी था, जब आइटी क्षेत्र में सबीर भाटिया की तूती बोलती थी। पहले-पहल जब ई-मेल की सुविधाओं की बात चली तो इसमें लोगों को अधिक से अधिक स्पेस देने की एक होड़-सी मच गई थी। पहले ई-मेल खोलन वालों को एक निश्चित स्थान ही मिलता था। जैसे, 2जीबी या 4जीबी। जब यह स्थान ई-मेल से भर जाता, तब उपभोक्ता को यह सूचना दी जाती थी कि आप अपने एकाउंट से अनुपयोगी ई-मेल को डिलीट कर दें, ताकि आपको नए ई-मेल प्राप्त हो सकें। इसे लेकर कुछ प्रोवाइडरों ने कई स्कीम चलाई, जो पांच से 25 डॉलर लेकर अधिक स्थान देती थीं। जैसे-जैसे ई-मेल के प्रोवाइडर बढ़े, वैसे-वैसे इनके बीच प्रतिस्पर्धा बढ़ती गई। इसकी सीधा लाभ उपयोक्ताओं को मिला। अब ई-मेल का उपयोग करने वालों को स्पेस की झंझट से मुक्ति मिल गई है। अब अनलिमिटेड स्पेस मिलने लगा है। अब तो हाल यह है कि उपयोक्ता के ई-मेल बॉक्स में पांच से दस हजार मेल रखे भी हों तो कोई फर्क नहीं पड़ता। हॉटमेल ने 4 जुलाई 1996 से ई-मेल सर्विस शुरू की थी। 1997 तक 90 लाख और उपयोक्ताओं को शामिल कर लिया। इस दौरान माइक्रोसॉफ्ट कंपनी इंटरनेट स्ट्रेटेजी में व्यस्त थी। माइक्रोसॉफ्ट ने द्वश्र
.ष्श्रद्व और ट्रैवल पोर्टल श्र्व3श्चद्गस्त्रद्बड्ड के माध्यम से ट्रैफिक लेना शुरू किया। अक्टूबर 1997 में याहू के साथ मिलकर एक कंपनी शुरू की, जिसका नाम था रॉकेट मेल। बाद में इसे पूरी तरह से याहू में ही विलीन कर दिया गया। इंटरनेट जाइंट माइक्रोसॉफ्ट ने जब हॉटमेल को 400 मिलियन डॉलर में खरीदा, तब एक्वीफीशन के क्षेत्र में यह सबसे बड़ा सौदा था। वर्ष 1997 के अंतिम महीने में जब इस डीलिंग की चर्चा शुरू हुई, तब कहीं जाकर एक वर्ष बाद यह सौदा हो पाया था। हालांकि तब भी हॉटमेल का नाम चल रहा था, लेकिन उसके मालिक बदल गए थे। हॉटमेल को खरीदने के पीछे उसे मिलने वाला ट्रैफिक था। इसे ही प्राप्त करने के लिए यह सौदा किया गया, ताकि भविष्य में इससे कमाई की जा सके। जब हॉटमेल का माइक्रोसॉफ्ट के साथ सौदा हुआ, तब सबीर भाटिया भारत में हीरो बन गए थे। सबीर भाटिया ने 400 मिलियन डॉलर का सौदा किया, तब देश की सर्वोच्च आइटी कंपनी इंफोसिस का मुनाफा 68.33 मिलियन डॉलर था। तब भी हॉटमेल ने माइक्रोसॉफ्ट की छत्रछाया में अपने विकास की गति जारी रखी। वर्ष 2005 में हॉटमेल के 200 मिलियन यूजर्स थे। इस दौरान यूजर्स स्पैम मेल की शिकायत करने लगे। हॉटमेल के सामने सिक्युरिटी की समस्या भी थी। इससे हॉटमेल को आसानी से हैक किया जाने लगा। जिन उपयोक्ताओं ने लंबे समय से हॉटमेल का उपयोग नहीं किया, वे बाद में भी अपना हॉटमेल नहीं खोल पा रहे थे। हद तो तब हो गई, जब उपयोक्ता अपने पुराने मेल भी देखने से वंचित रह गए। दूसरी तरफ अन्य प्रोवाइडर प्रतिस्पर्धा में आ गए। इन्होंने उपयोक्ताओं को कई तरह की सुविधाएं देनी शुरू कर दी। लोगों का रुझान हॉटमेल से हटकर याहू या फिर जीमेल की ओर होने लगा। आज भले ही हॉटमेल के यूजर्स 325 मिलियन हों, पर सच तो यह है कि अब लोग उससे ऊबने लगे हैं। उसमें कोई नया प्रयोग नहीं हो रहा है। आज जीमेल में नित नए प्रयोग हो रहे हैं। लोग बदलाव चाहते हैं, जिसकी पूर्ति जीमेल से हो रही है। आज जीमेल के यूजर्स 298.2 मिलियन और याहू के 298 मिलियन यूजर्स हैं। अब कहा यह जा रहा है कि हॉटमेल की सुविधाएं आउटलुक पर शिफ्ट हो जाएंगी यानी वे अकाउंट आउटलुक द्वारा ऑपरेट हो सकेंगे। इंटरनेट की दुनिया में हॉटमेल का इतिहास गौरवपूर्ण रहा है। आज माइक्रोसॉफ्ट ने उसे परदे के पीछे धकेल दिया है। समय बदलता रहता है। जो समय के साथ बदलते हैं, लोग उसे हाथोंहाथ लेते हैं। जिस तरह से नोकिया कंपनी ने अपने मॉडल को सुधारने की जो कोशिशें की, उससे उपभोक्ता संतुष्ट नहीं हो पाए। दूसरी ओर सैमसंग ने ग्राहकों की जरूरतों को ध्यान में रखकर ही अपने उत्पाद तैयार किए, जिसे उपभोक्ताओं ने सहजता के साथ स्वीकारा। उसके बाद एप्पल ने मानो दुनिया ही बदल दी। उसने अपने उत्पाद को मानो ग्राहकों से पूछकर ही तैयार किया। आज लोग उसे हाथोंहाथ ले रहे हैं। अपनी तमाम खूबियों के साथ एप्पल के उत्पाद आज सबसे अधिक बिकने वाले उत्पाद हैं। नोकिया और सैमसंग को पछाड़ना मामूली बात नहीं थी, पर एप्पल ने एक आम उपभोक्ता की जरूरत का ध्यान रखा और अपने उत्पाद को उसके सामने रखा। आज एप्पल के लगातार बढ़ते जाने के पीछे यही कारण है। नोकिया को घमंड था कि हमारा उत्पाद सबसे बढि़या है, इसमें किसी तरह के सुधार की गुंजाइश ही नहीं है। उसके इस घमंड का लाभ सैमसंग ने उठाया। इन दोनों की कमजोरियों का लाभ पूरी तरह से एप्पल ने उठाया। आज हॉट मेल अतीत का हिस्सा बनने जा रहा है। उसके पीछे भी यही कहानी है। इसलिए समय की चाल को पहचानो और उससे कदमताल करो, सफलता आपके पांव चूमेगी।
डॉ. महेश परिमल
भारत में इंटरनेट जब शैशवस्था में था, तब सभी का ई-मेल एड्रेस हॉटमेल ही होता था। अभी जो स्थिति जीमेल की है, ठीक उसी पोजीशन में हॉटमेल था। तब तो इंटरनेट कनेक्शन भी बड़ी मुश्किल से मिलता था। अगर मिल भी जाए तो कब वह अदृश्य हो जाए, इसकी कोई गारंटी नहीं दे सकता था। इसके बाद भी हॉटमेल की अपनी आइडी बताना एक गर्व की बात थी। हॉटमेल की लोकप्रियता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि आज भी हॉटमेल का इस्तेमाल करने वाले सबसे अधिक लोग हैं। जीमेल दूसरे नंबर पर है और याहू तीसरे नंबर पर। लेकिन अब यह नंबर वन हॉटमेल कुछ समय बाद पूरी तरह से अदृश्य हो जाएगा। इंटरनेट के क्षेत्र में ई-मेल का उपयोग इतनी तेजी से हो रहा है कि इसने उसके पोस्टल सिस्टम की चूलों को हिलाकर रख दिया है। रही-सही कसर स्मार्ट फोन ने पूरी कर दी है। वह तो चलता-फिरता डाकघर ही बन गया है। एक समय ऐसा भी था, जब ई-मेल पर एक तस्वीर अटैच कर उसे कहीं भेजने में काफी समय लगता था। अब तो स्थिति यह आ गई है कि पूरे अखबार के 24 पन्नों को एक साथ कहीं भी चुटकियों में भेजा जा सकता है। यह सब लिखने का कारण यह है कि इन सभी के मूल में हॉटमेल ही है। इसी हॉटमेल ने सबीर भाटिया का नाम रौशन किया। आज भले ही यह नाम कम जाना-पहचाना हो, पर एक समय ऐसा भी था, जब आइटी क्षेत्र में सबीर भाटिया की तूती बोलती थी। पहले-पहल जब ई-मेल की सुविधाओं की बात चली तो इसमें लोगों को अधिक से अधिक स्पेस देने की एक होड़-सी मच गई थी। पहले ई-मेल खोलन वालों को एक निश्चित स्थान ही मिलता था। जैसे, 2जीबी या 4जीबी। जब यह स्थान ई-मेल से भर जाता, तब उपभोक्ता को यह सूचना दी जाती थी कि आप अपने एकाउंट से अनुपयोगी ई-मेल को डिलीट कर दें, ताकि आपको नए ई-मेल प्राप्त हो सकें। इसे लेकर कुछ प्रोवाइडरों ने कई स्कीम चलाई, जो पांच से 25 डॉलर लेकर अधिक स्थान देती थीं। जैसे-जैसे ई-मेल के प्रोवाइडर बढ़े, वैसे-वैसे इनके बीच प्रतिस्पर्धा बढ़ती गई। इसकी सीधा लाभ उपयोक्ताओं को मिला। अब ई-मेल का उपयोग करने वालों को स्पेस की झंझट से मुक्ति मिल गई है। अब अनलिमिटेड स्पेस मिलने लगा है। अब तो हाल यह है कि उपयोक्ता के ई-मेल बॉक्स में पांच से दस हजार मेल रखे भी हों तो कोई फर्क नहीं पड़ता। हॉटमेल ने 4 जुलाई 1996 से ई-मेल सर्विस शुरू की थी। 1997 तक 90 लाख और उपयोक्ताओं को शामिल कर लिया। इस दौरान माइक्रोसॉफ्ट कंपनी इंटरनेट स्ट्रेटेजी में व्यस्त थी। माइक्रोसॉफ्ट ने द्वश्र
.ष्श्रद्व और ट्रैवल पोर्टल श्र्व3श्चद्गस्त्रद्बड्ड के माध्यम से ट्रैफिक लेना शुरू किया। अक्टूबर 1997 में याहू के साथ मिलकर एक कंपनी शुरू की, जिसका नाम था रॉकेट मेल। बाद में इसे पूरी तरह से याहू में ही विलीन कर दिया गया। इंटरनेट जाइंट माइक्रोसॉफ्ट ने जब हॉटमेल को 400 मिलियन डॉलर में खरीदा, तब एक्वीफीशन के क्षेत्र में यह सबसे बड़ा सौदा था। वर्ष 1997 के अंतिम महीने में जब इस डीलिंग की चर्चा शुरू हुई, तब कहीं जाकर एक वर्ष बाद यह सौदा हो पाया था। हालांकि तब भी हॉटमेल का नाम चल रहा था, लेकिन उसके मालिक बदल गए थे। हॉटमेल को खरीदने के पीछे उसे मिलने वाला ट्रैफिक था। इसे ही प्राप्त करने के लिए यह सौदा किया गया, ताकि भविष्य में इससे कमाई की जा सके। जब हॉटमेल का माइक्रोसॉफ्ट के साथ सौदा हुआ, तब सबीर भाटिया भारत में हीरो बन गए थे। सबीर भाटिया ने 400 मिलियन डॉलर का सौदा किया, तब देश की सर्वोच्च आइटी कंपनी इंफोसिस का मुनाफा 68.33 मिलियन डॉलर था। तब भी हॉटमेल ने माइक्रोसॉफ्ट की छत्रछाया में अपने विकास की गति जारी रखी। वर्ष 2005 में हॉटमेल के 200 मिलियन यूजर्स थे। इस दौरान यूजर्स स्पैम मेल की शिकायत करने लगे। हॉटमेल के सामने सिक्युरिटी की समस्या भी थी। इससे हॉटमेल को आसानी से हैक किया जाने लगा। जिन उपयोक्ताओं ने लंबे समय से हॉटमेल का उपयोग नहीं किया, वे बाद में भी अपना हॉटमेल नहीं खोल पा रहे थे। हद तो तब हो गई, जब उपयोक्ता अपने पुराने मेल भी देखने से वंचित रह गए। दूसरी तरफ अन्य प्रोवाइडर प्रतिस्पर्धा में आ गए। इन्होंने उपयोक्ताओं को कई तरह की सुविधाएं देनी शुरू कर दी। लोगों का रुझान हॉटमेल से हटकर याहू या फिर जीमेल की ओर होने लगा। आज भले ही हॉटमेल के यूजर्स 325 मिलियन हों, पर सच तो यह है कि अब लोग उससे ऊबने लगे हैं। उसमें कोई नया प्रयोग नहीं हो रहा है। आज जीमेल में नित नए प्रयोग हो रहे हैं। लोग बदलाव चाहते हैं, जिसकी पूर्ति जीमेल से हो रही है। आज जीमेल के यूजर्स 298.2 मिलियन और याहू के 298 मिलियन यूजर्स हैं। अब कहा यह जा रहा है कि हॉटमेल की सुविधाएं आउटलुक पर शिफ्ट हो जाएंगी यानी वे अकाउंट आउटलुक द्वारा ऑपरेट हो सकेंगे। इंटरनेट की दुनिया में हॉटमेल का इतिहास गौरवपूर्ण रहा है। आज माइक्रोसॉफ्ट ने उसे परदे के पीछे धकेल दिया है। समय बदलता रहता है। जो समय के साथ बदलते हैं, लोग उसे हाथोंहाथ लेते हैं। जिस तरह से नोकिया कंपनी ने अपने मॉडल को सुधारने की जो कोशिशें की, उससे उपभोक्ता संतुष्ट नहीं हो पाए। दूसरी ओर सैमसंग ने ग्राहकों की जरूरतों को ध्यान में रखकर ही अपने उत्पाद तैयार किए, जिसे उपभोक्ताओं ने सहजता के साथ स्वीकारा। उसके बाद एप्पल ने मानो दुनिया ही बदल दी। उसने अपने उत्पाद को मानो ग्राहकों से पूछकर ही तैयार किया। आज लोग उसे हाथोंहाथ ले रहे हैं। अपनी तमाम खूबियों के साथ एप्पल के उत्पाद आज सबसे अधिक बिकने वाले उत्पाद हैं। नोकिया और सैमसंग को पछाड़ना मामूली बात नहीं थी, पर एप्पल ने एक आम उपभोक्ता की जरूरत का ध्यान रखा और अपने उत्पाद को उसके सामने रखा। आज एप्पल के लगातार बढ़ते जाने के पीछे यही कारण है। नोकिया को घमंड था कि हमारा उत्पाद सबसे बढि़या है, इसमें किसी तरह के सुधार की गुंजाइश ही नहीं है। उसके इस घमंड का लाभ सैमसंग ने उठाया। इन दोनों की कमजोरियों का लाभ पूरी तरह से एप्पल ने उठाया। आज हॉट मेल अतीत का हिस्सा बनने जा रहा है। उसके पीछे भी यही कहानी है। इसलिए समय की चाल को पहचानो और उससे कदमताल करो, सफलता आपके पांव चूमेगी।