डॉ. महेश परिमल
इन दिनों सभी चिंतित हैं कि संजय दत्त को जेल की सजा न हो। सजा न होने के लिए अजीबो-गरीब बहाने बताए जा रहे हैं। कोई कहता है कि उन्होंने जो अपराध किया है, वह जवानी में किया है। अब वे सुधर गए हैं। संजय दत्त स्वयं कहते हैं कि सजा केवल मुझे ही नहीं, मेरे बच्चों को भी होगी। मेरे लिए दुआ करो। कई लोग इसके विरोध में भी हैं। उनका कहना है कि आखिर उन्हें माफी क्यों दी जाए? केवल इसलिए कि वे एक भूतपूर्व कांग्रेसी मंत्री और बेहतरीन अदाकारा के बेटे हैं। यही नहीं वे स्वयं भी एक अच्छे कलाकार हैं। क्या केवल इस बात के लिए उन्हें जेल की सजा न दी जाए? ये कहां का तर्क है? यह सच है कि वे आतंकवादी नहीं है। पर उनकी हरकते किसी आतंकवादी से कम नहीं रहीं। कम से कम जवानी के दिनों में। उनका बचपन गलत सोहबत के बीच नशे की लत में बीता। स्कूली जीवन में ही उन्हें नशे की लत लग गई थी। उनकी पृष्ठभूमि फिल्मी थी, इसलिए अनायास ही वे फिल्मों में आ गए। अन्यथा उनका गलत रास्ते पर जाना तय था। सुप्रीम कोर्ट ने कुछ सोच-समझकर ही उन्हें सजा सुनाई होगी। कोर्ट के आदेश की अवमानना नहीं होनी चाहिए। उनकी सजा माफ हो जाती है, तो एक गलत संदेश पूरे देश में जाएगा। फिर इस पर भी बहस छिड़ सकती है कि क्या केवल अच्छे परिवार से होना ही सजा माफी के लिए पर्याप्त कारण हो सकते हैं। अपराध किया है, तो सजा होगी ही, उन्हें यह नहीं भूलना चाहिए।
कुछ लोग समय के साथ बदल जाते हैं। कुछ को समय ही बदल देता है। पर संजय दत्त उन लोगों में से हैं, जो कभी नहीं बदल सकते। वे कभी भी गंभीर नहीं रहे। हां गंभीर होने का अभिनय उन्होंने बहुत ही अच्छे तरीके से अवश्य किया है। एक योजना के तहत उनके अच्छे कार्यो की जानकारी मीडिया को मिलती रही है। उन्होंने किसी की सहायता की, इस आशय की बात कई बार मीडिया के माध्यम से बाहर आई। आज अपनी अच्छी आदतों या फिर दिखावे के लिए किए गए कार्यो को हाइलाइट करने का धंधा ही चल पड़ा है। करों का पहले से भुगतान करना, मेहनताने की राशि चेरिटी में देना, झोपड़पट्टी पर जाकर बच्चों के बीच रहना आदि कई तरह के नखरे सेलिब्रिटियों के देखे जा रहे हैं। सीधी सी बात है कि वे जब ऐसा करने जा रहे हैं, तो मीडिया को बताने की क्या आवश्यकता? ये काम वे चुपचाप भी तो कर सकते थे। आखिर इस तरह के कार्यो से वे बताना क्या चाहते हैं? संजय दत्त के बारे में भी इस तरह की कई बातें मी¨डया के माध्यम से बाहर आई हैं। पर जिस तरह से उन्होंने तीन शादियां की हैं, बेटी के लिए वे अच्छे पिता नहीं हैं, इसे भी तो सभी जानते हैं। इस तरह की बातें भी मीडिया के माध्यम से बाहर आई हैंे। कल यदि सलमान खान को भी सजा होनी हो, तो क्या वे भी अपने अच्छे संस्कारवान परिवार का रोना रोएंगे या फिर अपनी गलती मानकर सजा भुगतेंगे?
संजय दत्त को सजा सुनाकर अदालत ने कोई गुनाह नहीं किया है। सजा सुनाना अदालत का काम है। इसके पहले न जाने कितने निर्दोषों को सजा हुई, तब कहां से ये सब कानून के रखवाले? किसी निर्दोष को सजा न हो, यह सभी चाहते हैं, फिर भी उन्हें सजा हो ही जाती है। पर न जाने कितने गुनाहगार ऐसे हें, जो खुले आम घूम रहे हैं। जिनके लिए कानून मात्र एक खिलौना है। ऐसे कई मंत्रीपुत्र आज भी अपराध करने के बाद भी सलाखों की पीछे नहीं जा पाए हैं, उसकी वजह यही है कि उन पर कानून के रखवालों का वरदहस्त है। हर राज्य में न जाने कितने राजा भैया हैं, जो खुलकर कानून का मजाक उड़ाते हैं। अपना कानून बनाते हैं, न्याय के नाम पर अन्याय करते हैं। फिर भी वे कानून की पहुंच से बहुत दूर हैं। आखिर इन्हें संरक्षण कौन देता है? कानून को लेकर मनमानी हर तरफ है। पर कोई कुछ कर नहीं पाता। बीस साल बाद सजा सुनाने वाली सरकार अभी तक न तो दाऊद को पकड़ पाई, न ही उसके साथियों को। सभी जानते हैं कि वह कहां है, क्या कर रहा है? पर पाकिस्तान को लेकर हमारा देश कभी सख्त हुआ ही नहीं। इसी का फायदा उठाकर वह अपनी करतूतों को अंजाम देता रहा है। जिस तरह से ओबामा ने ओसामा बिन लादेन का खात्मा पाकिस्तान में ही कर दिया, कुछ ऐसे ही उपाय करने के लिए भारत सरकार में इच्छाशक्ति होनी चाहिए। यह इच्छाशक्ति अभी तक हमारे देश के नेताओं में नही आई है।
रही बात संजय दत्त को माफी की। उसे किसी भी रूप में माफी नहीं मिलनी चाहिए। उनकी हरकतें कभी भी समाज के लिए प्रेरणादायी नहीं रहीं। वे कलाकार हैं, तो उन्हें अपनी कलाकारी दिखाने पर खूब धन भी तो मिलता है। कोई मुफ्त में तो नहीं करते, फिल्मों में काम? अपनी कमाई का एक हिस्सा दान भी तो नहंी करते। आखिर क्या सोचकर उन्हें माफी दी जाए? ऐसे अनेक लोग हैं, जिन्होंने अपराध किया, उनका भी परिवार है, भले ही अपराध किसी विवशतावश किया गया हो, पर वे सजा तो भुगत ही रहे हैं। कई लोग तो जेल में ही अपने अच्छे आचरण के लिए समय से पहले ही छूट जाते हैं। संजय दत्त भी कुछ ऐसा ही करें, जिससे उनकी सजा कम से कम हो जाए। वे संस्कारवान हैं,अच्छे परिवार से हैं, यह सब उन्हें जेल के भीतर बताने की आवश्यकता है, जेल के बाहर नहीं। यह तर्क पूरी तरह से गलत है कि वे अब सुधर गए हैं। अब इसकी कौन गारंटी देगा कि वे अब कभी नहीं बिगड़ेंगे? उन्हें माफी देने की वकालत करने वालों में से एक भी ऐसा नहीं है, जो यह गारंटी ले कि वे अब कभी कानून अपने हाथ में नहीं लेंगे। भला ऐसे व्यक्ेित को कौन गारंटी लेगा, जो कभी बौद्धिक रूप से वयस्क हुआ ही नहीं। यदि माता-पिता ने अच्छे संस्कार दिए हैं, तो उसे अच्छा इंसान बनने से कोई रोक नहीं सकता। अच्छे संस्कार मिलने केदौरान ही उन्होंने नशे को अपना साथी बनाया, इसमें दोष किसका? उनकी हरकतों को देखते हुए उनकी बेटी त्रिशला का लालन-पालन संजय दत्त को न देकर उसकी नाना-नानी ने किया। आज वह विदेश में पढ़ रही है। अपने पिता को वह केवल एक कलाकार के रूप में ही जानती है। बस इतना ही संबंध है उसका अपने पिता से। रही बात उन पर लगाए गए धन से। तो उन निर्माताओं को सोचना चाहिए कि वे उस व्यक्ति पर अपना धन लगा रहे हैं, जिस पर अवैध रूप से हथियार रखने का आरोप है और उस पर मुकदमा चल रहा है। आखिर वे एक गैरजिम्मेदार व्यक्ैित पर इतना धन कैसे लगा सकते हैं? यदि लगाया है, तो वे स्वयं भुगतें। उन्हें माफी मिल जाने से उनकी फिल्में तो पूरी हो जाएंगी, पर इसका लाभ आखिर किसको होगा? आम आदमी को यही संदेश जाएगा कि फिल्मी लाइन में होने से सजा से भी माफी मिल सकती है।
अंत में संजय दत्त के बारे में यही बात कि जब उनकी मां नरगिस को कैंसर था, तब उनकी आयु 18 वर्ष थी, पत्नी ऋचा जब इलाज के दौरान जिंदगी और मौत से जूझ रही थी, तब फिल्मों की जूनियर आर्टिस्ट के साथ गुलर्छे उड़ाने वाले संजू बाबा की उम्र 26 वर्ष थी, ए के 47 रखते समय उनकी उम्र 33 वर्ष थी। समाजवादी पार्टी की टोपी पहनकर चुनाव प्रचार में निकलते समय उनकी उम्र 48 साल थी। इन सारी उम्रों के साथ उन्होंने कब अपनी संजीदगी का परिचय दिया। आज जब उन्हें सजा सुना दी गई है, तब उनके लिए कई तरह की मनोहर कहानियां सामने आ रही हैं। अच्छा होगा कि वे सजा भुगतकर बाहर आएं और एक अच्छे इंसानऔर देशभक्त होने का परिचय दें।
डॉ. महेश परिमल
इन दिनों सभी चिंतित हैं कि संजय दत्त को जेल की सजा न हो। सजा न होने के लिए अजीबो-गरीब बहाने बताए जा रहे हैं। कोई कहता है कि उन्होंने जो अपराध किया है, वह जवानी में किया है। अब वे सुधर गए हैं। संजय दत्त स्वयं कहते हैं कि सजा केवल मुझे ही नहीं, मेरे बच्चों को भी होगी। मेरे लिए दुआ करो। कई लोग इसके विरोध में भी हैं। उनका कहना है कि आखिर उन्हें माफी क्यों दी जाए? केवल इसलिए कि वे एक भूतपूर्व कांग्रेसी मंत्री और बेहतरीन अदाकारा के बेटे हैं। यही नहीं वे स्वयं भी एक अच्छे कलाकार हैं। क्या केवल इस बात के लिए उन्हें जेल की सजा न दी जाए? ये कहां का तर्क है? यह सच है कि वे आतंकवादी नहीं है। पर उनकी हरकते किसी आतंकवादी से कम नहीं रहीं। कम से कम जवानी के दिनों में। उनका बचपन गलत सोहबत के बीच नशे की लत में बीता। स्कूली जीवन में ही उन्हें नशे की लत लग गई थी। उनकी पृष्ठभूमि फिल्मी थी, इसलिए अनायास ही वे फिल्मों में आ गए। अन्यथा उनका गलत रास्ते पर जाना तय था। सुप्रीम कोर्ट ने कुछ सोच-समझकर ही उन्हें सजा सुनाई होगी। कोर्ट के आदेश की अवमानना नहीं होनी चाहिए। उनकी सजा माफ हो जाती है, तो एक गलत संदेश पूरे देश में जाएगा। फिर इस पर भी बहस छिड़ सकती है कि क्या केवल अच्छे परिवार से होना ही सजा माफी के लिए पर्याप्त कारण हो सकते हैं। अपराध किया है, तो सजा होगी ही, उन्हें यह नहीं भूलना चाहिए।
कुछ लोग समय के साथ बदल जाते हैं। कुछ को समय ही बदल देता है। पर संजय दत्त उन लोगों में से हैं, जो कभी नहीं बदल सकते। वे कभी भी गंभीर नहीं रहे। हां गंभीर होने का अभिनय उन्होंने बहुत ही अच्छे तरीके से अवश्य किया है। एक योजना के तहत उनके अच्छे कार्यो की जानकारी मीडिया को मिलती रही है। उन्होंने किसी की सहायता की, इस आशय की बात कई बार मीडिया के माध्यम से बाहर आई। आज अपनी अच्छी आदतों या फिर दिखावे के लिए किए गए कार्यो को हाइलाइट करने का धंधा ही चल पड़ा है। करों का पहले से भुगतान करना, मेहनताने की राशि चेरिटी में देना, झोपड़पट्टी पर जाकर बच्चों के बीच रहना आदि कई तरह के नखरे सेलिब्रिटियों के देखे जा रहे हैं। सीधी सी बात है कि वे जब ऐसा करने जा रहे हैं, तो मीडिया को बताने की क्या आवश्यकता? ये काम वे चुपचाप भी तो कर सकते थे। आखिर इस तरह के कार्यो से वे बताना क्या चाहते हैं? संजय दत्त के बारे में भी इस तरह की कई बातें मी¨डया के माध्यम से बाहर आई हैं। पर जिस तरह से उन्होंने तीन शादियां की हैं, बेटी के लिए वे अच्छे पिता नहीं हैं, इसे भी तो सभी जानते हैं। इस तरह की बातें भी मीडिया के माध्यम से बाहर आई हैंे। कल यदि सलमान खान को भी सजा होनी हो, तो क्या वे भी अपने अच्छे संस्कारवान परिवार का रोना रोएंगे या फिर अपनी गलती मानकर सजा भुगतेंगे?
संजय दत्त को सजा सुनाकर अदालत ने कोई गुनाह नहीं किया है। सजा सुनाना अदालत का काम है। इसके पहले न जाने कितने निर्दोषों को सजा हुई, तब कहां से ये सब कानून के रखवाले? किसी निर्दोष को सजा न हो, यह सभी चाहते हैं, फिर भी उन्हें सजा हो ही जाती है। पर न जाने कितने गुनाहगार ऐसे हें, जो खुले आम घूम रहे हैं। जिनके लिए कानून मात्र एक खिलौना है। ऐसे कई मंत्रीपुत्र आज भी अपराध करने के बाद भी सलाखों की पीछे नहीं जा पाए हैं, उसकी वजह यही है कि उन पर कानून के रखवालों का वरदहस्त है। हर राज्य में न जाने कितने राजा भैया हैं, जो खुलकर कानून का मजाक उड़ाते हैं। अपना कानून बनाते हैं, न्याय के नाम पर अन्याय करते हैं। फिर भी वे कानून की पहुंच से बहुत दूर हैं। आखिर इन्हें संरक्षण कौन देता है? कानून को लेकर मनमानी हर तरफ है। पर कोई कुछ कर नहीं पाता। बीस साल बाद सजा सुनाने वाली सरकार अभी तक न तो दाऊद को पकड़ पाई, न ही उसके साथियों को। सभी जानते हैं कि वह कहां है, क्या कर रहा है? पर पाकिस्तान को लेकर हमारा देश कभी सख्त हुआ ही नहीं। इसी का फायदा उठाकर वह अपनी करतूतों को अंजाम देता रहा है। जिस तरह से ओबामा ने ओसामा बिन लादेन का खात्मा पाकिस्तान में ही कर दिया, कुछ ऐसे ही उपाय करने के लिए भारत सरकार में इच्छाशक्ति होनी चाहिए। यह इच्छाशक्ति अभी तक हमारे देश के नेताओं में नही आई है।
रही बात संजय दत्त को माफी की। उसे किसी भी रूप में माफी नहीं मिलनी चाहिए। उनकी हरकतें कभी भी समाज के लिए प्रेरणादायी नहीं रहीं। वे कलाकार हैं, तो उन्हें अपनी कलाकारी दिखाने पर खूब धन भी तो मिलता है। कोई मुफ्त में तो नहीं करते, फिल्मों में काम? अपनी कमाई का एक हिस्सा दान भी तो नहंी करते। आखिर क्या सोचकर उन्हें माफी दी जाए? ऐसे अनेक लोग हैं, जिन्होंने अपराध किया, उनका भी परिवार है, भले ही अपराध किसी विवशतावश किया गया हो, पर वे सजा तो भुगत ही रहे हैं। कई लोग तो जेल में ही अपने अच्छे आचरण के लिए समय से पहले ही छूट जाते हैं। संजय दत्त भी कुछ ऐसा ही करें, जिससे उनकी सजा कम से कम हो जाए। वे संस्कारवान हैं,अच्छे परिवार से हैं, यह सब उन्हें जेल के भीतर बताने की आवश्यकता है, जेल के बाहर नहीं। यह तर्क पूरी तरह से गलत है कि वे अब सुधर गए हैं। अब इसकी कौन गारंटी देगा कि वे अब कभी नहीं बिगड़ेंगे? उन्हें माफी देने की वकालत करने वालों में से एक भी ऐसा नहीं है, जो यह गारंटी ले कि वे अब कभी कानून अपने हाथ में नहीं लेंगे। भला ऐसे व्यक्ेित को कौन गारंटी लेगा, जो कभी बौद्धिक रूप से वयस्क हुआ ही नहीं। यदि माता-पिता ने अच्छे संस्कार दिए हैं, तो उसे अच्छा इंसान बनने से कोई रोक नहीं सकता। अच्छे संस्कार मिलने केदौरान ही उन्होंने नशे को अपना साथी बनाया, इसमें दोष किसका? उनकी हरकतों को देखते हुए उनकी बेटी त्रिशला का लालन-पालन संजय दत्त को न देकर उसकी नाना-नानी ने किया। आज वह विदेश में पढ़ रही है। अपने पिता को वह केवल एक कलाकार के रूप में ही जानती है। बस इतना ही संबंध है उसका अपने पिता से। रही बात उन पर लगाए गए धन से। तो उन निर्माताओं को सोचना चाहिए कि वे उस व्यक्ति पर अपना धन लगा रहे हैं, जिस पर अवैध रूप से हथियार रखने का आरोप है और उस पर मुकदमा चल रहा है। आखिर वे एक गैरजिम्मेदार व्यक्ैित पर इतना धन कैसे लगा सकते हैं? यदि लगाया है, तो वे स्वयं भुगतें। उन्हें माफी मिल जाने से उनकी फिल्में तो पूरी हो जाएंगी, पर इसका लाभ आखिर किसको होगा? आम आदमी को यही संदेश जाएगा कि फिल्मी लाइन में होने से सजा से भी माफी मिल सकती है।
अंत में संजय दत्त के बारे में यही बात कि जब उनकी मां नरगिस को कैंसर था, तब उनकी आयु 18 वर्ष थी, पत्नी ऋचा जब इलाज के दौरान जिंदगी और मौत से जूझ रही थी, तब फिल्मों की जूनियर आर्टिस्ट के साथ गुलर्छे उड़ाने वाले संजू बाबा की उम्र 26 वर्ष थी, ए के 47 रखते समय उनकी उम्र 33 वर्ष थी। समाजवादी पार्टी की टोपी पहनकर चुनाव प्रचार में निकलते समय उनकी उम्र 48 साल थी। इन सारी उम्रों के साथ उन्होंने कब अपनी संजीदगी का परिचय दिया। आज जब उन्हें सजा सुना दी गई है, तब उनके लिए कई तरह की मनोहर कहानियां सामने आ रही हैं। अच्छा होगा कि वे सजा भुगतकर बाहर आएं और एक अच्छे इंसानऔर देशभक्त होने का परिचय दें।
डॉ. महेश परिमल