बुधवार, 3 अप्रैल 2013

मालामाल करने वाला आईपीएल का तमाशा


डॉ. महेश परिमल
आईपीएल का तमाशा शुरू हो गया है। अब होगी चौकों-छक्कों की बरसात। लोगों में होगा जोश और रोमांच। पूरे डेढ़ महीने तक जारी रहेगा कमाल, धमाल और मालामाल का सिलसिला। वैसे देखा जाए, तो क्रिकेट अब जेंटलमेन गेम नहीं रहा। आईपीएल भी एक खेल नहीं, बल्कि बिजनेस है। लोगों को क्या अच्छा लग रहा है, यह देखना आवश्यक नहीं है। आवश्यक यह है कि इससे किसको कितना फायदा होगा। फिर चाहे खिलाड़ी हो, आयोजक हो, या फिर कोई खेल हो। सभी को लाभ की दृष्टि से देखा जा रहा है। सिर्फ देखने का नहीं.. इंडियन प्रीमियर लीग के टीवी पर एक विज्ञापन में कोरियाग्राफर फराह खान कहती है कि केवल मैच देखना ही नहीं, नाचने का भी है। छक्का लगे, तो किस स्टाइल में नाचना और चौका लगे तो किस तरह के स्टेप्स लेना, विकेट गिरे, तो किस तरह से उछलना। यह सब आजकल सिखा रही है, फराह खान। इस विज्ञापन में एक और लाइन जोड़ देनी चाहिए कि यह सिर्फ देखने का नहीं और सोचने का भी नहीं। जस्ट हेव फन, ऐश करो।
आईपीएल का जश्न शुरू हो गया है। जश्न के बजाए इसे तमाशा कहना ठीक होगा। वन डे में घायल हुए सभी खिलाड़ी एकदम तरोताजा हो गए हैं। अब किसी को किसी से परेशानी नहीं है। क्योंकि मैच से अपार धन मिलने की संभावना है। आईपीएल के संबंध में एक क्रिकेटर का कहना है कि बीसीसीआई का मैच सरकार नौकरी की तरह है, इसमें कुछ भी चल सकता है। पर आईपीएल प्राइवेट जॉब की तरह है, इसके लिए परिश्रम करना पड़ता है, इसमें कुछ भी नहीं चल सकता। अपना श्रेष्ठ प्रदर्शन देना होता है। इसमें लक्ष्य होता है, एक-एक बॉल की गिनती होती है। आप कह सकते हैं कि सभी का ‘भाव’ है। अगर आपने बेहतर प्रदर्शन नहीं किया, तो आपका भाव गिर जाएगा। हां एक बात और गेम के साथ फन होता है, जहां सब केवल फन के लिए ही होता हो, वहां जोरदार हाइप और कंट्रोवर्सी तो होनी ही है। 2008 से शुरू होने वाली आईपीएल की यह छठी कड़ी है। दो महीने में 76 मैच, यानी दे दनादन। इस दौरान वाद विवाद होते रहेंगे। कितने ही विवाद तो बनेंगे और कितने बनाए जाएंगे। कितने ही मीडिया में छा जाएंगे। आईपीएल के पास अभी तो यही एक नियम है कि जो दिखता है, वही बिकता है। आईपीएल के प्रणोता ललित मोदी को अब कोई याद नहीं करता। पर इस खेल को पूरी तरह से धंधे को बदलने का यश या अपयश उन्हीं को जाता है। आपको याद होगा कि वे हेलीकाप्टर से मैदान पर उतरकर उद्घाटन समारोह में आए थे। कम कपड़ों वाली चीयर्स लीडर्स और मैच के बाद आयोजित होने वाली कॉकटेल पार्टिज बॉलीवुड के दबदबे को भी फीका कर देती थी। इसके बाद इसमें कुछ नियंत्रण दिखाई दिया। पर इस खेल में कहीं न कहीं तो ग्लैमर उभरकर आया। यदि यह न होता, तो लोगों को मजा कैसे आता?
आईपीएल के दौरान दो तरह के खेल होते हैं, एक मैदान पर और दूसरा स्टेडियम में। सट्टेबाजों की इमसें गिनती ही नहीं है। बाकी बात तो यह है कि आयोजन के कुल खर्च से अधिक राशि तो सट्टे में ही लग जाती है। भूतकाल में जो भी विवाद हुए हैं, वे क्रिकेट में अतिरेक हो गए हैं। इसे देखकर पहले तो यही लगा था कि कुछ समय बाद आईपीएल का जादू खत्म हो जाएगा। आईपीएल का यह बुखार जल्द ही उतर जाएगा, देख लेना, कहने वाले आज खामोश हैं। उन्हें यह समझ में आ गया है कि यह आईपीएल एक नशा बनकर युवाओं में छा रहा है। इसीलिए फिल्म वाले भी इससे अब नहीं डरते, इस दौरान काफी फिल्में भी रिलीज होंगी। शायद किसी को पता नहीं होगा कि पिछले साल जो आईपीएल खेला गया था, उसमें कितने का फायदा हुआ था। पूरे दस हजार 790 करोड़ रुपए। अब आप ही बताएं कि दुनिया का ऐसा कौन सा धंधा है, जिसमें केवल दो महीने में ही इतने रुपए कमाए जा सकते हैं? हर मैच में 40 हजार दर्शक तो आते ही थे, इसके अलावा टीवी के माध्यम से विज्ञापनों का जो धंधा हुआ, वह अलग। इसी से पैदा हुए ब्रांड प्रमोशन करने वाले ब्रांड एम्बेसेडर।
आईपीएल के मजे को दोगुना बनाने के लिए बॉलीवुड ने भी कमर कस ली है। अभी से ही यह चर्चा शुरू हो गई है कि शाहरुख की टीम जब वानखेड़े स्टेडियम में खेल रही होगी, तब उन्हें अंदर जाने दिया जाएगा या नहीं? आपको शायद याद होगा, शाहरुख ने वानखेड़े स्टेडियम में धमाल मचाया था। इस विवाद के बाद शाहरुख ने कहा था कि अब वर्ष में एक विवाद करना है और दो फिल्में। अभी तक इस वर्ष शाहरुख ने कोई विवाद खड़ा नहीं किया है, शायद उसने आईपीएल के लिए बचा रखा हो। हमारे यहां फुटबॉल का यूरोप-अफ्रीका देशों जैसा बोलबाला नहीं है। राष्ट्रीय खेल हॉकी में कोई दम नहीं दिखता। जो कुछ यदि है, तो वह है क्रिकेट। फुटबॉल के इंग्लिश प्रीमियर लीग की तर्ज पर इंडियन प्रीमियर लीग की रचना की गई। इससे खेल को भी एक धंधा बना लिया गया। आज आईपीएल की ब्रांड वेल्यू 3.67 बिलियन डॉलर हो गई है। भारत के बाद श्रीलंका और अन्य देशों के मुंह पर भी इस धंधे को देखकर लार टपकने लगी है। इसकी तगड़ी कमाई ने सभी को आकर्षित किया है। यही हाल रहा, तो क्रिकेट का निजीकरण हो जाएगा। क्रिकेटर ही बाजार में खड़े होकर अपनी कीमत लगाएंगे और कहेंगे कि हमें खरीद लो।
वैसे भी अब क्रिकेट जेंटलमेन गेम नहीं रहा। वैसे भी संस्कृति या फिर परंपरा भी कहां बची है, जो क्रिकेट बचता। अब खेलों से स्पोर्ट्समेन स्पीरिट ही खो गई है। अब तो केवल स्पीरिट ही रह गया है। थ्री चीयर्स टू आईपीएल सिंक्स! देख तमाशा क्रिकेट का। अब से डेढ़ महीने तक लोगों पर क्रिकेट का बुखार चढ़ता रहेगा। इससे दूर होना युवाओं के बस की बात नहीं। खूब चौके, खूब छक्के और खूब सारा पैसा। चीयर्स लेडी का आकर्षण, तेज लाइट की चकाचौंध के बीच होगा क्रिकेट का तमाशा।
 डॉ. महेश परिमल

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