डॉ. महेश परिमल
सोने के दाम लगातार गिर रहे हैं। इसका आशय यही है कि अब पीली धातु का स्वर्णयुग समाप्त हो रहा है। जानकार लोगों से यही कह रहे हैं कि वे अब सोने की कीमतों को देखते हुए न तो सोना खरीदें और न ही बेचने में उतावले हों। अब सवाल यह उठता है कि आखिर किया क्या जाए? सोना यदि आवश्यक है, तो हीे खरीदें। सम्पत्ति के नाम पर सोना खरीदने का अब समय नहीं रहा। जिन्होंने निवेश के लिए सोना खरीदा है, वे क्या करें? उन्हें यही सलाह दी जाती है कि वे उतावले न हों। उत्तर कोरिया के दिन फिर जाएं और संभव है सोने में तेजी आ जाए। सोने की कीमतों में आने वाले उतार-चढ़ाव के संबंध में एक ही भविष्यवाणी की जा सकती है कि इसकी कोई भविष्यवाणी नहीं की जा सकती। निवेशकों को अभी हालात देखते हुए ही सोने पर कोई नीति अपनानी चाहिए।
प्रकृति का नियम है कि जो चढ़ता है, वह उतरता भी है। अब तक हम सब यही मानते आए हैं कि सोने पर यह कानून लागू नहीं होता। यह मान्यता अब झूठी साबित हो रही है। पिछले दो दशक में हमारे देश में सोने के भावों में 6 गुना वृद्धि हो चुकी है। सन् 2001 में जो सोना 5 हजार रुपए तोला बिक रहा था, वही सोना 2011 तक 33 हजार रुपए तोला तक पहुंच गया। सटोरिये तो यही सोच रहे थे कि सोना 50 हजार की ऊंचाई का पार कर लेगा। पर उनकी योजनाओं पर तुषारापात हो गया। विशेषज्ञ कहते हैं कि सोने में मंदी का दौर शुरू हो गया है, यह अभी और लंबा चलेगा। हमें अभी तक यही कहा जाता रहा है कि सोने के भावों में हमेशा तेजी आती रहती है। इसलिए पूंजी निवेश के लिए सोने से सुरक्षितऔर कोई धातु नहीं है। किंतु सोने का अंतरराष्ट्रीय इतिहास कुछ और ही बयां करता है। सन् 1971 में जब अमेरिका ने गोल्ड स्टैंडर्ड को तिलांजलि दी, तब उसके एक औंस का भाव 35 डॉलर था। उसके बाद यह भाव लगातार बढ़कर 1989 में 834 डॉलर हो गया। इसके बाद सोने ने पीछे मुड़कर नहीं देखा। इन दो दशकों में सोने पर अपना धन लगाने वाले कई लोग दीवालिया घोषित हो गए। जो यह कहते हैं कि सोने के दाम हमेशा बढ़ते ही रहते हैं, वे जरा सोने के 1980 से 2000 तक के अंतरराष्ट्रीय भावों पर एक नजर डाल लें।
सोने के भाव में तेजी सन् 2003 से शुरू हुआ। हाल ही में 33 हजार रुपए प्रति दस ग्राम बिकने वाला सोना आज 27 हजार हो चुका है। विशेषज्ञ कहते हैं कि बहुत ही जल्द सोना 1300 डॉलर प्रति ग्राम बिकने लगेगा। यानी उसके दाम अभी और गिरेंगे और वह 25 हजार रुपए प्रति दस ग्राम में मिलेगा। सोने के दाम बढ़ने का एक कारण यह था कि दुनिया में जब आर्थिक मंदी के हालात पैदा होते हैं, तब लोगों का सरकारी करेंसी पर विश्वास कम होने लगता है। इन हालात में वे सोना खरीदना शुरू कर देते हैं। वर्तमान में उत्तर कोरिया की दखलंदाजी के कारण अणुयद्ध की स्थिति पैदा हो गई है, जापान अपनी धनराशि की आपूर्ति दोगुनी करना चाहता है, इधर साइप्रस की बैंकों में रखा गया काला धन जब्त करने की सुगबुगाहट शुरू हो गई है। इन कारणों से सोने की कीमत बढ़नी चाहिए, पर ऐसा क्या हुआ, जिससे सोना लुढक रहा है। सन् 2011 में सोने की कीमतों में जो उछाल आया, उसका मुख्य कारण यह था कि तब यूरोजोन के टूटने का भय था। इस कारण निवेशकों से सोना खरीदना शुरू कर दिया। अब यह भय कुछ अंशों तक खत्म हुआ, तो दूसरा पांच वर्ष बाद अमेरिका ने घोषित किया कि वह अर्थतंत्र में धन की आपूर्ति घटा रहा है, इस कारण मुद्रास्फीति दर घटेगी। तीसरा साइप्रस अपनी माली हालत को सुधारने के लिए 40 करोड़ यूरो का सोना बेचने के लिए निकालेगा, ऐसी संभावना है। इटली के पास 94 अरब डॉलर की कीमत का 2,452 टन सोने का जखीरा है। इटली का अर्थतंत्र भी डांवाडोल है। साइप्रस की तरह इटली भी अपना सोना बाजार में लाना चाहे, तो काफी अफरा-तफरी मच सकती है।
पिछले एक दशक में सोने की कीमतों में जो उछाल आया है, उसकी वजह वास्तव में उसके उपयोगकर्ता नहीं, बल्कि सटोरिए हैं। दुनियाभर के शेयरबाजारों में मंदी के आने से सटोरिए शेयर से राशि निकालकर सोने और खनिज तेलों में लगाया था। सन् 2010 और 2011 के दौरान निवेशकों ने सोने के साथ जुड़ी सिक्योरिटी में 25 अरब डॉलर का निवेश किया। इसके पीछे उनकी धारणा यह थी कि यूरोजोन की मंदी गहरी होगी, तो सोने की कीमतों में भारी इजाफा होगा। सोना उड़ने लगेगा, पर ऐसा हुआ नहीं, इसलिए सटोरिए सोने की चमक से बाहर आने लगे। एसपीडीआर नामक कंपनी ने सोने में किया गया 7.7 अरब डॉलर का निवेश पीछे खींच लिया है, इस कारण सोने के भावों का अध:पतन शुरू हो गया है। हमारे देश में सोने पर आयात कर में लगातार वृद्धि हो रही है, इसके कारण सोने के भावों में कामचलाऊ उछाल देखने को मिला था, इससे तस्करी को बल मिल रहा है। अभी विश्वबाजार में होने वाली मंदी के कारण यह कामचलाऊ बढ़ोत्तरी एक तरह से पचा ली गई है। भारत के अनेक सटोरिओं ने भी अपना सोना बेचने के लिए बाजार में ला दिया है। इस कारण भी भाव घट रहे हैं। सोने में तेजी के कारण ही सन 2013 के पहले दस महीने में 42 अरब डॉलर के सोने का आयात हुआ था। इस कारण आयात-निर्यात के बीच की खाई चौड़ी होती गई, इससे सरकार चिंतित हो गई। अब सोने की कीमतें नीचे आने से आयात में भी कटौती होने की संभावना है।
वेसे यह भी कहा जाता है कि सोने का मिलना और सोने का खोना दोनों ही अच्छा नहीं है। जिसे मिलता है, उसे चिंतित कर देता है, जिसका खोता है, वह जिंदगी से ही निराश हो जाता है। खुशी किसी को नहीं होती। इसलिए सोने को लेकर इतना गंभीर नहीं होना चाहिए। इसे भी एक धातु ही माना जाए। अब तो वैज्ञानिक सोने को खेतों में उगाएंगे, ऐसी भी खबरें हैं। तब तो फसल सोने की नहीं, बल्कि सोना ही एक फसल होगा। अब देखते हैं कि इस फसल को खेतों तक लाने में हमारे वैज्ञानिक कितने सफल हो पाते हैं?
डॉ. महेश परिमल
सोने के दाम लगातार गिर रहे हैं। इसका आशय यही है कि अब पीली धातु का स्वर्णयुग समाप्त हो रहा है। जानकार लोगों से यही कह रहे हैं कि वे अब सोने की कीमतों को देखते हुए न तो सोना खरीदें और न ही बेचने में उतावले हों। अब सवाल यह उठता है कि आखिर किया क्या जाए? सोना यदि आवश्यक है, तो हीे खरीदें। सम्पत्ति के नाम पर सोना खरीदने का अब समय नहीं रहा। जिन्होंने निवेश के लिए सोना खरीदा है, वे क्या करें? उन्हें यही सलाह दी जाती है कि वे उतावले न हों। उत्तर कोरिया के दिन फिर जाएं और संभव है सोने में तेजी आ जाए। सोने की कीमतों में आने वाले उतार-चढ़ाव के संबंध में एक ही भविष्यवाणी की जा सकती है कि इसकी कोई भविष्यवाणी नहीं की जा सकती। निवेशकों को अभी हालात देखते हुए ही सोने पर कोई नीति अपनानी चाहिए।
प्रकृति का नियम है कि जो चढ़ता है, वह उतरता भी है। अब तक हम सब यही मानते आए हैं कि सोने पर यह कानून लागू नहीं होता। यह मान्यता अब झूठी साबित हो रही है। पिछले दो दशक में हमारे देश में सोने के भावों में 6 गुना वृद्धि हो चुकी है। सन् 2001 में जो सोना 5 हजार रुपए तोला बिक रहा था, वही सोना 2011 तक 33 हजार रुपए तोला तक पहुंच गया। सटोरिये तो यही सोच रहे थे कि सोना 50 हजार की ऊंचाई का पार कर लेगा। पर उनकी योजनाओं पर तुषारापात हो गया। विशेषज्ञ कहते हैं कि सोने में मंदी का दौर शुरू हो गया है, यह अभी और लंबा चलेगा। हमें अभी तक यही कहा जाता रहा है कि सोने के भावों में हमेशा तेजी आती रहती है। इसलिए पूंजी निवेश के लिए सोने से सुरक्षितऔर कोई धातु नहीं है। किंतु सोने का अंतरराष्ट्रीय इतिहास कुछ और ही बयां करता है। सन् 1971 में जब अमेरिका ने गोल्ड स्टैंडर्ड को तिलांजलि दी, तब उसके एक औंस का भाव 35 डॉलर था। उसके बाद यह भाव लगातार बढ़कर 1989 में 834 डॉलर हो गया। इसके बाद सोने ने पीछे मुड़कर नहीं देखा। इन दो दशकों में सोने पर अपना धन लगाने वाले कई लोग दीवालिया घोषित हो गए। जो यह कहते हैं कि सोने के दाम हमेशा बढ़ते ही रहते हैं, वे जरा सोने के 1980 से 2000 तक के अंतरराष्ट्रीय भावों पर एक नजर डाल लें।
सोने के भाव में तेजी सन् 2003 से शुरू हुआ। हाल ही में 33 हजार रुपए प्रति दस ग्राम बिकने वाला सोना आज 27 हजार हो चुका है। विशेषज्ञ कहते हैं कि बहुत ही जल्द सोना 1300 डॉलर प्रति ग्राम बिकने लगेगा। यानी उसके दाम अभी और गिरेंगे और वह 25 हजार रुपए प्रति दस ग्राम में मिलेगा। सोने के दाम बढ़ने का एक कारण यह था कि दुनिया में जब आर्थिक मंदी के हालात पैदा होते हैं, तब लोगों का सरकारी करेंसी पर विश्वास कम होने लगता है। इन हालात में वे सोना खरीदना शुरू कर देते हैं। वर्तमान में उत्तर कोरिया की दखलंदाजी के कारण अणुयद्ध की स्थिति पैदा हो गई है, जापान अपनी धनराशि की आपूर्ति दोगुनी करना चाहता है, इधर साइप्रस की बैंकों में रखा गया काला धन जब्त करने की सुगबुगाहट शुरू हो गई है। इन कारणों से सोने की कीमत बढ़नी चाहिए, पर ऐसा क्या हुआ, जिससे सोना लुढक रहा है। सन् 2011 में सोने की कीमतों में जो उछाल आया, उसका मुख्य कारण यह था कि तब यूरोजोन के टूटने का भय था। इस कारण निवेशकों से सोना खरीदना शुरू कर दिया। अब यह भय कुछ अंशों तक खत्म हुआ, तो दूसरा पांच वर्ष बाद अमेरिका ने घोषित किया कि वह अर्थतंत्र में धन की आपूर्ति घटा रहा है, इस कारण मुद्रास्फीति दर घटेगी। तीसरा साइप्रस अपनी माली हालत को सुधारने के लिए 40 करोड़ यूरो का सोना बेचने के लिए निकालेगा, ऐसी संभावना है। इटली के पास 94 अरब डॉलर की कीमत का 2,452 टन सोने का जखीरा है। इटली का अर्थतंत्र भी डांवाडोल है। साइप्रस की तरह इटली भी अपना सोना बाजार में लाना चाहे, तो काफी अफरा-तफरी मच सकती है।
पिछले एक दशक में सोने की कीमतों में जो उछाल आया है, उसकी वजह वास्तव में उसके उपयोगकर्ता नहीं, बल्कि सटोरिए हैं। दुनियाभर के शेयरबाजारों में मंदी के आने से सटोरिए शेयर से राशि निकालकर सोने और खनिज तेलों में लगाया था। सन् 2010 और 2011 के दौरान निवेशकों ने सोने के साथ जुड़ी सिक्योरिटी में 25 अरब डॉलर का निवेश किया। इसके पीछे उनकी धारणा यह थी कि यूरोजोन की मंदी गहरी होगी, तो सोने की कीमतों में भारी इजाफा होगा। सोना उड़ने लगेगा, पर ऐसा हुआ नहीं, इसलिए सटोरिए सोने की चमक से बाहर आने लगे। एसपीडीआर नामक कंपनी ने सोने में किया गया 7.7 अरब डॉलर का निवेश पीछे खींच लिया है, इस कारण सोने के भावों का अध:पतन शुरू हो गया है। हमारे देश में सोने पर आयात कर में लगातार वृद्धि हो रही है, इसके कारण सोने के भावों में कामचलाऊ उछाल देखने को मिला था, इससे तस्करी को बल मिल रहा है। अभी विश्वबाजार में होने वाली मंदी के कारण यह कामचलाऊ बढ़ोत्तरी एक तरह से पचा ली गई है। भारत के अनेक सटोरिओं ने भी अपना सोना बेचने के लिए बाजार में ला दिया है। इस कारण भी भाव घट रहे हैं। सोने में तेजी के कारण ही सन 2013 के पहले दस महीने में 42 अरब डॉलर के सोने का आयात हुआ था। इस कारण आयात-निर्यात के बीच की खाई चौड़ी होती गई, इससे सरकार चिंतित हो गई। अब सोने की कीमतें नीचे आने से आयात में भी कटौती होने की संभावना है।
वेसे यह भी कहा जाता है कि सोने का मिलना और सोने का खोना दोनों ही अच्छा नहीं है। जिसे मिलता है, उसे चिंतित कर देता है, जिसका खोता है, वह जिंदगी से ही निराश हो जाता है। खुशी किसी को नहीं होती। इसलिए सोने को लेकर इतना गंभीर नहीं होना चाहिए। इसे भी एक धातु ही माना जाए। अब तो वैज्ञानिक सोने को खेतों में उगाएंगे, ऐसी भी खबरें हैं। तब तो फसल सोने की नहीं, बल्कि सोना ही एक फसल होगा। अब देखते हैं कि इस फसल को खेतों तक लाने में हमारे वैज्ञानिक कितने सफल हो पाते हैं?
डॉ. महेश परिमल