बुधवार, 15 मई 2013

आंध्र प्रदेश से बही बयार


आज दैनिक जागरण के राष्‍ट्रीय संस्‍करण में प्रकाशित मेरा आलेख


आंध्र प्रदेश से बही बयार
डॉ. महेश परिमल
 फिल्म ‘सिंघम’ का वह दृश्य याद होगा, जिसमें सारे पुलिस कर्मचारी यह तय करते हैं कि अब हम जो भी काम करेंगे, अपने अधिकारियों के कहने पर ही करेंगे। पुलिस स्टेशन के सारे फोन बंद कर दिए जाते हैं। ताकि किसी मंत्री या नेता का फोन न आने पाए। कुछ ऐसा ही हाल ही में हुआ है। जब आंध्र के डीजीपी ने साहस पूर्वक पुलिस की बदली में किसी मंत्री या नेता का कहना नहीं माना। पुलिसकर्मियों के मनचाही पोस्टिंग के लिए मंत्री एवं विधायकों की सिफारिशों को डीजीपी ने रद्दी की टोकरी में डाल दिया। डीजीपी की इस कार्रवाई से मंत्रियों एवं नेताओं में खलबली है। एक और मामले में शिक्षकों के तबादले एवं नियुक्ति में भी शिक्षा विभाग के प्रमुख राजेश्वर तिवारी ने भी मंत्रियों, सांसदों एवं विधायकों की सिफारिशों को अमान्य करते हुए अपने विवेक से काम लिया है। इसे आज की लिजलिजी व्यवस्था के खिलाफ एक छोटी सी चिंगारी ही कहा जाएगा, पर सच यही है कि यही चिंगारी भविष्य में दावानल का रूप ले सकती है।
आंध्र प्रदेश में एक अनापेक्षित घटना में राज्य के डीजीपी दिनेश रेड्डी ने राज्य भर में 50 से अधिक उेप्युटी सुप्रीन्टेडेंट का एक साथ तबादला कर दिया गया है। वैसे डीजीपी को यह अधिकार भी है कि वे जिसे चाहें, जहां चाहें तबादला कर सकते हैं। लेकिन ऐसा वहां पहली बार हुआ है कि पुलिस तबादलों के पहले उनके पास आई तमाम मंत्रियों एवं विधायकों की सिफारिशों को अमान्य कर दिया। अभी तक गृहमंत्री सविता रेड्डी, वित्त मंत्री रामनरायण रेड्डी, पर्यटन मंत्री वसंत कुमार और एवं अन्य मंत्रियों और रसूखदार सांसद अपने हिसाब से अपनों को मनचाही जगह पर पोस्टिंग करवा देते थे। पर इस बार ऐसा नहीं हो पाया। जिससे पूरे राज्य में एक तरह से सन्नाटा छा गया है। डीजीपी यह अच्छी तरह से जानते हैं कि राज्य के तमाम मंत्री, सांसद एवं विधायक भ्रष्टाचार के आरोपों से घिरे हुए हैं। ऐसे में यदि उनके हिसाब से पुलिस अधिकारियों की पोस्टिंग की जाती, तो भ्रष्टाचार को और अधिक बढवा मिलता। इसलिए इस बार उन्होंने स्वयं को प्राप्त अधिकारों का उपयोग करते हुए तमाम रसूखदारों की सिफारिशों को अमान्य करते हुए अपने विवेक का इस्तेमाल किया।
इस संबंध में एक आईएएस अधिकारी ने बताया कि अब हम बिना कानून के नियमों का अमल कर पाप के भागीदार नहीं बनना चाहते। रसूखदारों के कहने पर हमें काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ता रहा है। इस बार हमने वही किया, जो नैतिक दृष्टि से सही है। इसी तरह शिक्षकों के तबादले को लेकर शिक्षा विभाग के प्रमुख राजेश्वर तिवारी ने भी तमाम रसूखदारों की सिफारिशों को ताक पर रखकर अपने विवेक का इस्तेमाल किया। आंध्र में चली बदलाव की यह बयार भ्रष्टाचार के खिलाफ एक छोटी से जंग है। जंग भले ही छोटी हो, पर यदि ऐसा सभी राज्यों में हो, तो निश्चित रूप से एक क्रांति का जन्म हो सकता है। आज देश का कोई भी विभाग राजनीति के दखल से नहीं बच पाया है। हर जगह सिफारिशों का दौर जारी है। लोग अपनी मनचाही जगह पर जाने के लिए अपार धन भी लुटाने को तैयार रहते हैं। ऐसे में जनता के प्रतिनिधि आगे आकर अपने रसूख का इस्तेमाल कर काफी कमा लेते हैं। इनके द्वारा इस तरह के अनैतिक कार्य कराने की पूरी श्रंखला होती है। जिसके तहत से अपना काम करा ले जाते हैं। साधारण से तबादले में भी हमारे जनप्रतिनिधियों की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। इसे अब तक अनदेखा किया जा रहा था। जबकि इससे हर कोई अच्छी तरह से वाकिफ था। आंध्र में जो कुछ हुआ, उसका असर यदि अन्य राज्यों में भी हो,तो बहुत अच्छी बात होगी। पर यदि आंध्र के डीजीपी का ही तबादला कर दिया जाए, तो इसे उच्च स्तर का भ्रष्टाचार ही कहा जाएगा। वैसे यह तय है कि डीजीपी ने यह ऐतिहासिक कदम बिना मुख्यमंत्री एन. किरण कुमार रेड्डी से बिना पूछे नहीं उठाया होगा। एक तरह से इस काम के लिए उन्हें मुख्यमंत्री की स्वीकृति थी।
उधर भले ही आंध्र के मंत्री मुख्यमंत्री से नाराज चल रहे हों। संभवत: उनकी न चलने के कारण अब नाराज मंत्रियों ने केंद्रीय पर्यटन मंत्री चिरंजीवी का नाम मुख्यमंत्री पद के लिए उछाला है। आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री एन. किरण कुमार रेड्डी से नाराज आंध्र प्रदेश के मंत्रियों ने वर्ष 2014 के चुनावों में कांग्रेस के मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार के रूप में अब केंद्रीय पर्यटन राज्यमंत्री के. चिरंजीवी के नाम को उछालना शुरू किया है। चिरंजीवी खुद भी मुख्यमंत्री द्वारा लिए गए कुछ फैसले से खुश नहीं हैं और बिजली की दरों में बढ़ोतरी जैसे मुद्दों पर वह सार्वजनिक रूप से विरोध कर चुके हैं। यह घटनाRम ऐसे समय पर हो रहा है जब कांग्रेस के आलाकमान को विभिन्न मुद्दों पर कई तरफ से मुख्यमंत्री के खिलाफ शिकायतें मिली हैं।
कुछ भी कहो, पर सच तो यही है कि अब आंध्र में परिवर्तन की हवा बहनी शुरू हो गई है। मुख्यमंत्री को हटाने की पुरजोर कोशिशें हो रही हैं। ऐसे में डीजीपी का भी वहीं जमे रहना मुश्किल लगता है। पर यदि उन्होंने यह तय कर लिया है कि अब किसी भी तबदलों में रसूखदारों की सिफारिशें नहीं चलेंगी, तो इसे राज्य के लिए बेहतर शुरुआत कहा जा सकता है। पर जैसा कि हमेशा से होता आया है कि अच्छी शुरुआत किसी को भी भली नहीं लगती। जब रसूखदारों की सिफारिशें अमान्य होने लगेंगी, तब तो उनके होने का अर्थ ही क्या रह जाएगा? उनकी पूछ-परख खत्म हो जाएगी, उनके अस्तित्व पर ही संकट छा जाएगा। देश की लिजलिजी व्यवस्था पर चोट करने के लिए इस तरह के प्रयास आवश्यक हैं। तभी लोकतंत्र बचा रह पाएगा, अन्यथा आज तो गली-गली में लोकतंत्र की धज्जियां ही उड़ रही हैं। केंद्रीय सत्ता इसलिए बार-बार बदनाम हो रही है। ऐसे में आंध्र के डीजीपी दिनेश रेड्डी और शिक्षा विभाग के अध्यक्ष ने जो कदम उठाया है, उसका स्वागत ही किया जाना चाहिए। रोम्या रोलां ने कहा है कि यदि कोई चीज आराम से अपना काम कर रही हो, तो उसे बरबाद करने के लिए उसमें थोड़ा सा राजनीति का समावेश कर दो, वह बरबाद हो जाएगी। आज वही हो रहा है, जिसमें भी राजनीति ने अपना दखल दिया है, वह बरबाद हो गया है। राजनीति के इस कीड़े से देश को बचाया जाना आवश्यक हो गया है।
    डॉ. महेश परिमल

Post Labels