डॉ. महेश परिमल
आतंकवाद आज हर देश की बड़ी समस्या बन गया है। इस पर नियंत्रण के सारे प्रयास विफल सिद्ध हो रहे हैं। हाल ही में पेशावर और नैरोबी में हुई घटनाएं इस बात की पुष्टि करती हैं कि आतंकवाद से मुकाबले के लिए अब सभी देशों को मिलकर काम करना होगा। एक संयुक्त मुहिम के तहत ही इस पर काबू पाया जा सकता है। पेशावर और नैरोबी की घटना से पूरा विश्व चौंक उठा है। आतंकवाद के निशाने पर अब कौन सा देश है? सभी तरफ से यह सवाल दागा जा रहा है। नैरोबी की घटना से यह जाहिर होता है कि वहां गुजराती ही आतंकियों के निशाने पर हैं। क्योंकि वहां की 80 प्रतिशत आबादी गुजरातियों की ही है। सरकार इसका कितना भी खंडन करे, पर जिस तरह से चुन-चुनकर लोगों को मारा गया है, उससे यही सिद्ध होता है कि गुजराती ही आतंकियों के निशाने पर थे।
विश्व के सभी देश आतंकियों के खिलाफ अपनी तरफ से कार्रवाई कर रहे हैं। ये आतंकी कहीं तो सरकार के ढीलेपन, कहंी केवल दहशत फैलाने के लिए, तो कहीं सामाजिक कमजोरियों को देखते हुए अपनी आतंकी कार्रवाई को अंजाम देते हैं। नफरत के खेतों में उगे आतंकवाद की बेल को पोषित करने वाला पाकिस्तान आज भी अपनी हरकतों से बाज नहीं आ रहा है। अमेरिका की दोहरी नीति के कारण ऐसे देश पल रहे हैं। आज अमेरिका को पाकिस्तान की आवश्यकता है, इसलिए वह उसकी हरकतों को नजरअंदाज भी कर रहा है। आतंकवाद की घटनाएं अब किसी भी देश को झकझोरती नहीं। अब इन्हें उसकी आदत होने लगी है। अल कायदा का नेटवर्क इतना तगड़ा है कि कई देश उसके सामने लाचार हैं। आज आतंकियों के पास स्लीवर यूनिट की पूरी फौज है। उनका तंत्र बहुत ही शक्तिशाली है। नैरोबी से आने वाली खबरों में बताया गया है कि आतंकियों का निशाना केवल हिंदू लोग ही थे। जिन्हें उर्दू आती थी, उन्हें नहीं मारा गया, जिन्हें उर्दू नहीं आती थी, उनके चीथड़्रे उड़ा दिए गए। मां-बाप के सामने उनकी इकलौती संतान को मारने में भी आतंकियों के हाथ नहीं कांपे। यही नहीं उन्होंने गर्भवती महिलाओं को भी नहीं छोड़ा। इस तरह से दहशत फैलाने के लिए आतंकी अब उन स्थानों को निशाना बनाने में लगे हैं, जहां आम आदमी की आमदरफ्त होते रहती है। नैरोबी में फंसे हुए एक भुक्तभोगी के अनुसार मॉल में जगह-जगह पर लाशें बिछी पड़ी हैं। इससे ही अंदाजा लग जाता हे कि आतंकियों के मंसूबे कितने खतरनाक थे। इन आतंकियों के खिलाफ अभी तक संयुक्त मुहिम शुरू नहीं हुई है। हर देश अपनी तरह से आतंकवाद का मुकाबला कर रहा है। अपनी दोहरी नीति के कारण अमेरिका पाकिस्तान का बाल भी बांका नहीं कर पा रहा है। सभी जानते हैं कि आतंकवादियों को पनाह देने में पाकिस्तान सबसे ऊपर है। फिर भी उस पर काईवाई नहीं हो पा रही है। मुश्किल तब आ रही है, जब आतंकवाद की इस अग्नि में बुद्धिजीवियों का दबदबा बढ़ने लगा है। ये कथित बुद्धिजीवी आतंकवाद को फैलाने के लिए इंटरनेट का इस्तेमाल करने लगे हैं।
आतंकवादियों के पास आज मानव बम की पूरी फौज है। ये मानव बम अपनी विचारधारा के कारण आतंकवाद से जुड़ जाते हैं। उनका इस तरह से ब्रेन वॉश किया जाता है कि किसी की हत्या करना उन्हें अब गुनाह नहीं लगता। मानव बम बनकर जो जितनी अधिक जानें लेता है, उसे संगठन में उतना अधिक सम्मान मिलता है। छोटी उमर के ये मानव बम ये नहीं जानते कि वे क्या कर रहे हैं? बचपन से ही उन्हें इस तरह से तैयार किया जा रहा है कि वे अपने धर्म को सबसे ऊपर समझते हैं। बाकी धर्म उनके लिए कोई अर्थ नहीं रखते। समृद्ध देश हमारा शोषण कर रहे हैं, यह कहकर वे उन देशों में हमला करने के लिए उन्हें मानसिक रूप् से तैयार कर रहे हैं। किसी भी जगह जब आतंक घटना हो जाती है, तब आतंकवाद का कोई धर्म नहीं होता, इस नारे के साथ कई संगठन आगे आ जाते हैं। एक तरह से सूफियानी फौज सामने आ जाती है। पर ये संगठन भूल जाते हैं कि आतंकवाद को जहाँ पनाह मिल रही है, जहां आतंकवाद की बेल फल-फूल रही है, वह स्थान है पाकिस्तान और सोमालिया जेसे देश। अपनी दोहरी नीति के कारण अमेरिका पाकिस्तान के खिलाफ कोई कार्रवाई न करने के लिए मजबूर है। आतंकवाद के खिलाफ अपनी सक्रियता दिखाते हुए पाकिस्तान भी कई बार कतिपय आतंकी संगठनों पर प्रतिबंध लगाने की घोषणा करता है, पर कुछ दिनों बाद वही आतंकी दूसरे नाम से अपना संगठन बना लेते हैं। आज आतंकवाद का यह धंधा खूब फल-फूल रहा है। आज उनके पास अत्याधुनिक अस्त्र-शस्त्र हैं। वे बम बना सकते हैं, राकेट लांचर बना सकते हैं, आश्चर्य यह होता है कि आखिर इसका प्रशिक्षण उन्हें देता कौन है? दूसरी बात यह है कि आखिर इनके पास इतने अधिक अत्याधुनिक हथियार कैसे आते हैं। इन कामों के लिए आखिर इन्हें धन कहाँ से मिलता है। ऐस कई सवाल हैं, जिनका जवाब लोग नहीं जानते। कई सरकारें में नहीं जानतीं। आतंकवाद आखिर पनपता कैसे है? आखिर इसके लिए कौन है जिम्मेदार? एक अकेला आतंकी कभी कुछ नहीं कर सकता, ये जब संगठित होते हैं, तभी किसी कार्रवाई को अंजाम देते हैं। नैरोबी की घटना एक सुनियोजित षड्यंत्र का परिणाम है। इसे सभी जानते-समझते हैं। आतंकवाद आज एक ऐसा रिसता घाव बन गया है, जो ठीक होने का नाम ही नहीं ले रहा है। इस आतंकवाद को कुचलने के लिए सामूहिक प्रयास की आवश्यकता है। सभी देश मिलकर यदि इस दिशा में समवेत प्रयास करें, तो सचमुच इस पर काबू पाया जा सकता है?
आखिर कौन है यह व्हाइट विंडो
बताया गया है कि इस हमले के पीछे व्हाइट विडो का हाथ था। व्हाइट विडो के मान से मशहूर ये आतंकी महिला उसी आत्मघाती हमलावर की बीवी है, जिसने 2005 में लंदन के ट्यूब में आतंकी धमाका किया था. बताया जा रहा है सामंथा ल्यूथवेट यानी व्हाइट विडो की अगुवाई में मॉल पर हमला हुआ। केन्या के अधिकारियों के मुताबिक नैरोबी के मॉल में आतंकी हमले की साजिश के पीछे व्हाइट विडो थी। वहीं नैरोबी हमले की जिम्मेदारी लेने वाले आतंकी संगठन अल शबाब ने ट्वीट किया कि शेरफिया ल्यूथवेट एक बहादुर महिला है और हमें गर्व है कि वो हमारे साथ है.
व्हाइट विंडो यानी सामंथा ल्यूथवेट 7/7 के हमलावर जर्मेन लिंडसे की विधवा है. 7/7 हमले के कुछ ही दिनों बाद वो पूरे परिवार के साथ लंदन से गायब हो गई थी। बाद में वो सोमालिया के आतंकी संगठन अल शबाब से जुड़े गई और फिर वो व्हाइट विडो के नाम से मशहूर हो गई।
डॉ. महेश परिमल
आतंकवाद आज हर देश की बड़ी समस्या बन गया है। इस पर नियंत्रण के सारे प्रयास विफल सिद्ध हो रहे हैं। हाल ही में पेशावर और नैरोबी में हुई घटनाएं इस बात की पुष्टि करती हैं कि आतंकवाद से मुकाबले के लिए अब सभी देशों को मिलकर काम करना होगा। एक संयुक्त मुहिम के तहत ही इस पर काबू पाया जा सकता है। पेशावर और नैरोबी की घटना से पूरा विश्व चौंक उठा है। आतंकवाद के निशाने पर अब कौन सा देश है? सभी तरफ से यह सवाल दागा जा रहा है। नैरोबी की घटना से यह जाहिर होता है कि वहां गुजराती ही आतंकियों के निशाने पर हैं। क्योंकि वहां की 80 प्रतिशत आबादी गुजरातियों की ही है। सरकार इसका कितना भी खंडन करे, पर जिस तरह से चुन-चुनकर लोगों को मारा गया है, उससे यही सिद्ध होता है कि गुजराती ही आतंकियों के निशाने पर थे।
विश्व के सभी देश आतंकियों के खिलाफ अपनी तरफ से कार्रवाई कर रहे हैं। ये आतंकी कहीं तो सरकार के ढीलेपन, कहंी केवल दहशत फैलाने के लिए, तो कहीं सामाजिक कमजोरियों को देखते हुए अपनी आतंकी कार्रवाई को अंजाम देते हैं। नफरत के खेतों में उगे आतंकवाद की बेल को पोषित करने वाला पाकिस्तान आज भी अपनी हरकतों से बाज नहीं आ रहा है। अमेरिका की दोहरी नीति के कारण ऐसे देश पल रहे हैं। आज अमेरिका को पाकिस्तान की आवश्यकता है, इसलिए वह उसकी हरकतों को नजरअंदाज भी कर रहा है। आतंकवाद की घटनाएं अब किसी भी देश को झकझोरती नहीं। अब इन्हें उसकी आदत होने लगी है। अल कायदा का नेटवर्क इतना तगड़ा है कि कई देश उसके सामने लाचार हैं। आज आतंकियों के पास स्लीवर यूनिट की पूरी फौज है। उनका तंत्र बहुत ही शक्तिशाली है। नैरोबी से आने वाली खबरों में बताया गया है कि आतंकियों का निशाना केवल हिंदू लोग ही थे। जिन्हें उर्दू आती थी, उन्हें नहीं मारा गया, जिन्हें उर्दू नहीं आती थी, उनके चीथड़्रे उड़ा दिए गए। मां-बाप के सामने उनकी इकलौती संतान को मारने में भी आतंकियों के हाथ नहीं कांपे। यही नहीं उन्होंने गर्भवती महिलाओं को भी नहीं छोड़ा। इस तरह से दहशत फैलाने के लिए आतंकी अब उन स्थानों को निशाना बनाने में लगे हैं, जहां आम आदमी की आमदरफ्त होते रहती है। नैरोबी में फंसे हुए एक भुक्तभोगी के अनुसार मॉल में जगह-जगह पर लाशें बिछी पड़ी हैं। इससे ही अंदाजा लग जाता हे कि आतंकियों के मंसूबे कितने खतरनाक थे। इन आतंकियों के खिलाफ अभी तक संयुक्त मुहिम शुरू नहीं हुई है। हर देश अपनी तरह से आतंकवाद का मुकाबला कर रहा है। अपनी दोहरी नीति के कारण अमेरिका पाकिस्तान का बाल भी बांका नहीं कर पा रहा है। सभी जानते हैं कि आतंकवादियों को पनाह देने में पाकिस्तान सबसे ऊपर है। फिर भी उस पर काईवाई नहीं हो पा रही है। मुश्किल तब आ रही है, जब आतंकवाद की इस अग्नि में बुद्धिजीवियों का दबदबा बढ़ने लगा है। ये कथित बुद्धिजीवी आतंकवाद को फैलाने के लिए इंटरनेट का इस्तेमाल करने लगे हैं।
आतंकवादियों के पास आज मानव बम की पूरी फौज है। ये मानव बम अपनी विचारधारा के कारण आतंकवाद से जुड़ जाते हैं। उनका इस तरह से ब्रेन वॉश किया जाता है कि किसी की हत्या करना उन्हें अब गुनाह नहीं लगता। मानव बम बनकर जो जितनी अधिक जानें लेता है, उसे संगठन में उतना अधिक सम्मान मिलता है। छोटी उमर के ये मानव बम ये नहीं जानते कि वे क्या कर रहे हैं? बचपन से ही उन्हें इस तरह से तैयार किया जा रहा है कि वे अपने धर्म को सबसे ऊपर समझते हैं। बाकी धर्म उनके लिए कोई अर्थ नहीं रखते। समृद्ध देश हमारा शोषण कर रहे हैं, यह कहकर वे उन देशों में हमला करने के लिए उन्हें मानसिक रूप् से तैयार कर रहे हैं। किसी भी जगह जब आतंक घटना हो जाती है, तब आतंकवाद का कोई धर्म नहीं होता, इस नारे के साथ कई संगठन आगे आ जाते हैं। एक तरह से सूफियानी फौज सामने आ जाती है। पर ये संगठन भूल जाते हैं कि आतंकवाद को जहाँ पनाह मिल रही है, जहां आतंकवाद की बेल फल-फूल रही है, वह स्थान है पाकिस्तान और सोमालिया जेसे देश। अपनी दोहरी नीति के कारण अमेरिका पाकिस्तान के खिलाफ कोई कार्रवाई न करने के लिए मजबूर है। आतंकवाद के खिलाफ अपनी सक्रियता दिखाते हुए पाकिस्तान भी कई बार कतिपय आतंकी संगठनों पर प्रतिबंध लगाने की घोषणा करता है, पर कुछ दिनों बाद वही आतंकी दूसरे नाम से अपना संगठन बना लेते हैं। आज आतंकवाद का यह धंधा खूब फल-फूल रहा है। आज उनके पास अत्याधुनिक अस्त्र-शस्त्र हैं। वे बम बना सकते हैं, राकेट लांचर बना सकते हैं, आश्चर्य यह होता है कि आखिर इसका प्रशिक्षण उन्हें देता कौन है? दूसरी बात यह है कि आखिर इनके पास इतने अधिक अत्याधुनिक हथियार कैसे आते हैं। इन कामों के लिए आखिर इन्हें धन कहाँ से मिलता है। ऐस कई सवाल हैं, जिनका जवाब लोग नहीं जानते। कई सरकारें में नहीं जानतीं। आतंकवाद आखिर पनपता कैसे है? आखिर इसके लिए कौन है जिम्मेदार? एक अकेला आतंकी कभी कुछ नहीं कर सकता, ये जब संगठित होते हैं, तभी किसी कार्रवाई को अंजाम देते हैं। नैरोबी की घटना एक सुनियोजित षड्यंत्र का परिणाम है। इसे सभी जानते-समझते हैं। आतंकवाद आज एक ऐसा रिसता घाव बन गया है, जो ठीक होने का नाम ही नहीं ले रहा है। इस आतंकवाद को कुचलने के लिए सामूहिक प्रयास की आवश्यकता है। सभी देश मिलकर यदि इस दिशा में समवेत प्रयास करें, तो सचमुच इस पर काबू पाया जा सकता है?
आखिर कौन है यह व्हाइट विंडो
बताया गया है कि इस हमले के पीछे व्हाइट विडो का हाथ था। व्हाइट विडो के मान से मशहूर ये आतंकी महिला उसी आत्मघाती हमलावर की बीवी है, जिसने 2005 में लंदन के ट्यूब में आतंकी धमाका किया था. बताया जा रहा है सामंथा ल्यूथवेट यानी व्हाइट विडो की अगुवाई में मॉल पर हमला हुआ। केन्या के अधिकारियों के मुताबिक नैरोबी के मॉल में आतंकी हमले की साजिश के पीछे व्हाइट विडो थी। वहीं नैरोबी हमले की जिम्मेदारी लेने वाले आतंकी संगठन अल शबाब ने ट्वीट किया कि शेरफिया ल्यूथवेट एक बहादुर महिला है और हमें गर्व है कि वो हमारे साथ है.
व्हाइट विंडो यानी सामंथा ल्यूथवेट 7/7 के हमलावर जर्मेन लिंडसे की विधवा है. 7/7 हमले के कुछ ही दिनों बाद वो पूरे परिवार के साथ लंदन से गायब हो गई थी। बाद में वो सोमालिया के आतंकी संगठन अल शबाब से जुड़े गई और फिर वो व्हाइट विडो के नाम से मशहूर हो गई।
डॉ. महेश परिमल
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