डॉ. महेश परिमल
देश भर ही नहीं, अपितु सात समंदर पार भी गणोश जी विराज गए हैं। लोग भक्तिभाव में डूब गए हैं। हमारे देश में तो गणोश जी को लेकर विशेष आग्रह रहता है। आखिर इन्हें विघ्न विनाशक जो कहा जाता है। पर आजकल यह उत्सव पूरी तरह से व्यावसायिक रूप लेत जा रहा है। मुम्बई के पंडालों का भी अब करोड़ों में बीमा होने लगा है। जिस भावना के साथ इसे लोकमान्य तिलक ने इसे शुरू किया था, आज वह भावना कहीं दिखाई नहीं दे रही है। चंदे के बल पर मनाए जाने वाले इस उत्सव पर भी ऊंगलियां उठ रही है। शोर का पर्याय बन चुके इस उत्सव में भक्ति कम ही देखने को मिल रही है। भक्ति के नाम पर प्रतिस्पर्धा ही अधिक दिखाई दे रही है। भला उनके गणोश से हमारे गणोश जी छोटे क्यों? इस तरह की भावना ने आज इस उत्सव के स्वरूप को ही बिगाड़कर रख दिया है। मीडिया ने अपनी तरह से यह संदेश देने की कोशिश की है कि लोग माटी की ही मूर्ति को ही घर में जगह दें और उसे एक बरतन में विसर्जित कर दें, ताकि उसके पानी से घर में छिड़काव कर या फिर पौधों में डाल दिया जाए। इससे हमें लगेगा कि गणोश जी ने हमारे ही घर में शरण ली है। इसके बाद भी कई घरों एवं सार्वजनिक स्थानों पर प्लास्टर ऑफ पेरिस की मूर्तियों को स्थापना की गई है।
गणोश जी की बात करें, तो यह प्रथम आराध्य देवता हैं। इसके अलावा इन्हें तत्वज्ञान का देवता भी माना जाता है। उन्हें गणनायक भी कहा जाता है। महाराष्ट्र के कई शहरों में गणोश जी के दर्शन के लिए लम्बी कतारें लगी होती हैं। लोग घंटों तक प्रतीक्षा करते हैं दर्शन के लिए। कहा जाता है कि गणपति जी के एक-एक अंग का महत्व है। ये एक प्रामाणिक देवता हैं। रिद्धी-सिद्घी के दाता हैं। बॉलीवुड के कलाकारों में गणपति की स्थापना को लेकर विशेष रूप से दिलचस्पी होती है। सलमान खान के घर भी गणपति की स्थापना होती है। नाना पाटेकर अपना सारा काम छोड़कर इन दस दिनों में स्वयं को पूरी तरह से गणपति की भक्ति के लिए समर्पित कर देते हैं। उनके यहां बहुत सी हस्तियां गणपति दर्शन के लिए आती हैं। दन दिनों श्रद्धा-भक्ति बढ़ाने वाले कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है। कुछ लोग इसी जुगत में होते हैं कि किस तरह से प्रजा उनके गणपति दर्शन के लिए आएं। कई स्थानों पर प्रतियोगिताएं रखी जाती हैं। ताकि लोग उसमें शामिल होने के बहाने भीड़ बढ़ाएं।
गणोश जी के सभी अंगों का विशेष महत्व है। उनका मस्तक हाथी का है, अन्य किसी प्राणी का मस्तक उनके घड़ के साथ लगाया गया है। इसमें एक विशेषता यह है कि सभी प्राणियों में सबसे बुद्धिमान हाथी को माना गया है। बुद्धिहीन मानव यदि समाज का पथप्रदर्शक बनने की चेष्टा करता है, तो अव्यवस्थाएं फैलने लगती हैं। इसलिए लीडर को हमेशा बुद्धिमान और तेजस्वी होना चाहिए। हाथी के कान सूपे की तरह होते हैं। सूपे का काम है कि अनाज को कचरे से अलग करना। यही नहीं वह अनाज को अपने पास रखता है और कचरे को फेंक देता है। इसका आशय यही है सभी की बातों को सुनकर उसका सारांश ही ग्रहण किया जाए। बाकी बातों को कचरा समझकर उसे उड़ाकर फेंक दिया जाए। बड़ा कान प्रतीक है श्रवण शक्ति का। गणपति के हाथी जैसी छोटी आंखें मानव जीवन की सूक्ष्म दृष्टि रखने की प्रेरणा देती है। जमीन पर पड़ी छोटी से छोटी चीज भी देख सके और उसे उठा लेने की क्षमता हाथी में होती है। मानव को अपनी दृष्टि ऐसी ही सूक्ष्म रखनी चाहिए। इससे मावन कई दोषों से बचा रह सकता है। हाथी की बड़ी नाक दूर तक सूंघने की शक्ति रखती है। यह दूरदर्शी होने का प्रतीक है। लीडर को हमेशा दूरद्रष्टा होना चाहिए। प्रत्येक गतिविधि की गंध उसे मिलती रहे, ताकि वह सतर्क हो सके। गणोश जी के दो दांत में से एक पूरा है और एक आधा। पूरा दांत श्रद्धा का है और आधा दांत मेधा का है। जीवन में विकास के लिए श्रद्धा की आवश्यकता होती है, ईश्वर के प्रति अगाध श्रद्धा। ईश्वर के प्रति आपका समर्पण कम होगा, तो चलेगा, पर श्रद्धा कम नहीं होनी चाहिए। बुद्धि और श्रद्धा एक साथ चलते हैं। श्रद्धा का सहारा लेकर मानव बौद्धिक निर्णय लेता है। आधा दांत बुद्धि की मर्यादा का सूचक है, तो दूसरा दांत अटूट श्रद्धा का प्रतीक है।
गणपति जी के चार हाथ हैं। एक हाथ में अंकुश, दूसरे में पाश, तीसरे में मोदक और चौधे हाथ आशीर्वाद से परिपूर्ण है। वासना एवं विकारों पर अंकुश आवश्यक है। पाश का काम इंद्रियों को शिक्षित करना है। मोदक आनंद का प्रतीक है, वह सात्विक आहार का सूचक है। चौथा हाथ श्रद्धालुओं को आशीर्वाद देने के लिए तत्पर है। गणोश जी को लंबोदर शायद इसीलिए कहा गया है कि वे सारी बातों सुनकर को अपने पेट में पचा लेते हैं। जो भी श्रद्धालु उनके पास जाता हे, अपनी दुखभरी कहानी सुनाता है। गणोश जी उनकी बातों को सुनकर अपने पेट में रख लेते हैं। भगवान के पाँव छोटे हैं। वे दौड़ नहीं सकते। उनका न दौड़ पाना यह दर्शाता है कि किसी भी कार्य को संपादित करने में जल्दबाजी न करें। ये छोटे पैर बुद्धिमत्ता के सूचक हैं। पृथ्वी की परिक्रमा की शर्त में अपने भाई कार्तिकेय को गणपति ने अपनी बुद्धि से हरा दिया। उनका वाहन चूहा है। विष्णु का वाहन गरुड़ और शंकर का वाहन नंदी है। विष्णु और शंकर के वाहन इतने बड़े हैं कि वे किसी के दरवाजे पर प्रवेश नहीं कर सकते। जबकि गणपति के वाहन किसी के भी घर आसानी से प्रवेश कर सकते हैं। उनसे सीखने वाली बात यह है कि चूहा जब किसी को काटता है, तो वह फूंक मारता है। अर्थात पहले चेतावनी देता है। उसके काटने के पहले इस फूंक की जानकारी किसी को नहीं होती। अंतिम बात गणपति जी को दूर्वा बहुत प्रिय है। दूर्वा यानी दूब या घास। इसकी कोई कीमत नहीं होती। ये जहां ऊगती है, वहां कोई नहीं जाता। यानी इसे कोई भाव नहीं देता, जिसे कोई भाव नहीं देता, उसे गणपति भाव देते हैं। इसमें कोई सुगंध भी नहीं है। गणपति को गंधहीन चीज पसंद है।
गणोश जी की स्थापना कर उन्हें पूजने की परंपरा बरसों से चली आ रही है। परंतु सार्वजनिक गणशोत्सव में गणपति की स्थापना के पीछे संगठन और एकता की भावना है। गणपति को दस दिन पूजने के बाद उनकी जो हालत होती है, यह देखने वाला आज कोई नहीं है। मूर्ति यदि माटी की होती है, तो वह पानी में घुल जाती है। पर यदि वह प्लास्टर ऑफ पेरिस की है, तो वह पानी में नहीं घुलती और उसे प्रदूषित करती है। दूसरी ओर नदी, नाले और समुद्र में विसर्जित की गई मूर्तियां कुछ दिनों बाद टुकड़ों-टुकड़ों में दिखाई देती है। कही सर, कहीं घड़, कहीं हाथ और कहीं पांव, विघ्नहर्ता की यह दशा देखकर कई बार रोना आता है। ये कैसी पूजा, हमारे आराध्य की यह हालत। इसके लिए आखिर दोषी कौन है। जिसे हम विघ्नहर्ता मान रहे हैं, आज उनका विघ्न हरने वाला कौन बचा है? कोई बता सकता है?
डॉ. महेश परिमल
sir, it is Ganesh, not Ganosh
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