डॉ महेश परिमल
सत्या कक्षा 6 से 8 तक मेरा विद्यार्थी था। बहुत ही शिष्ट अैर तेज दिमाग का। दूसरी-तीसरी कतार में ही हमेशा बैठता। पढ़ते वक्त हमेशा लीन। घंटों लायब्रेरी में रहता। उसे केवल तीन विषय ही पसंद थे- गणित गणित और गणित। मैंने उसे कभी शैतानी करते नहीं देखा। क्रिकेट का जबर्दस्त शौक था। बाकी बच्चे बताते थे कि बड़े होकर क्या बनेंगे। पर उसने ऐसा कभी नहीं बताया। हम टीचर्स उसकी लगन को देखकर अंदाजा लगा सकते थे कि वह मन ही मन कुछ बड़ा करने की सोच रहा था। पर इतना बड़ा-इसका अंदाज नहीं था। आज मुझे मेरे शिष्य पर गर्व है। यह शब्द हैं प्रोफेसर जी. जयानंद के, जिन्होंने माइक्रोसाफ्ट के नए सीईओ को बचपन में पढ़ाया था। अब हम गर्व के साथ कह सकते हैं कि सत्या नदेला हमारे बीच की वह हस्ती हैं, जिन्होंने अमेरिका में भारतीयों का गौरव बढ़ाया है। यही नहीं सत्या को देश के आई टी क्षेत्र ने विश्वफलक पर अपलोड किया है। अपनी नियुक्ति के बाद उन्होंने माइक्रोसाफ्ट को अपना जो पहला मंत्र दिया, वह इस प्रकार है:- लोग परंपराओं का नहीं, अविष्कारों का सम्मान करते हैं। अब सत्या नदेला के सामने चुनौतियों की विंडो खुल गई हैं, पर हम सभी का विश्वास है कि वे इन चुनौतियों का साहसपूर्वक सामना कर सकते हैं, इसलिए उन्हें इतने बड़े पद से नवाजा गया है।
भारत में जब क्रिकेट के चेम्पियन सचिन तेंदुलकर को भारत रत्न सम्मान दिया जा रहा था, तब विश्व की सर्वोच्च साफ्टवेयर कंपनी माइक्रोसाफ्ट ने भारतीय मूल के सत्या नदेला को कंपनी के ‘रत्न’ के रूप में चयन कर उन्हें सीईओ के पद से नवाजा। क्रिकेट में सचिन चेम्पियन हैं, तो सत्या भी क्रिकेट के जबर्दस्त फैन हैं। सत्या की नियुक्ति से भारत के आईटी क्षेत्र का नाम विश्व में ऊंचा हुआ है। हैदराबाद में जन्म लेने वाले और मणिपाल यूनिवर्सिटी से इंजीनियर हुए सत्या नदेला 1992 अमेरिका गए थे। यहां उन्हें अपनी प्रतिभा दिखाने का अवसर मिला। जिन्हें पुस्तकें खरीदने का बहुत शौक है, पर उसे पूरा पढ़ने का समय नहीं है,जो ऑनलाइन कोर्स का फार्म भरते हैं, पर समय के अभाव में कोर्स पूरा नहीं कर पाते, ऐसे सत्या नदेला के पास अब समय की अत्यधिक कमी होगी, यह तय है। अब उनके हाथ में विश्व की सर्वोच्च कंपनी की बागडोर है। वैसे तो वे पिछले 23 वर्षो से ही इस कंपनी से जुड़े हैं, पर कंपनी की कमान अब उनके हाथों में पूरी तरह से अब आई है। पूर्व में भी वे इसी कंपनी के विभिन्न पदों को सुशोभित कर चुके हैं। उनकी क्षमताओं को देखकर ही उन्हें यह पद सौंपा गया है।
सत्या नदेला ने भारत को गौरव प्रदान किया है। 1990 तक माइक्रोसाफ्ट में कोई भी भारतीय मूल का साफ्टवेयर इंजीनियर सीनियर लेबल पर नहीं था, आज आंध्रप्रदेश और कर्नाटक के साफ्टवेयर क्षेत्र में ट्वीटर पर सत्या नदेला का अभिनंदन किया जा रहा है। नदेला पूरी तरह से योग्य हैं, इसलिए कंपनी के लिए कुछ नया अवश्य करेंगे, ऐसी आशा की जा सकती है। आज कंप्यूटर के क्षेत्र में क्रांति आ गई है। अब पर्सनल कंप्यूटर को लोग भूलने लगे हैं। उसके स्थान पर टेब्लेट और स्मार्टफोन छा गए हैं। इस स्थिति में माइक्रोसाफ्ट को अनेक चुनौतियों का सामना करना है। अमेरिकी आईटी कंपनियों में भारतीयों को देखा जा सकता है। इसके अलावा भारतीय सेप, ओरेकल, गूगल, लींकडीन आदि में भी देखे जा सकते हैं। अमेरिका की सात और केनेडा की चार कंपनियों में मूल भारतीय सीईओ हैं। हैदराबाद में 1967 में जन्मे सत्या नदेला के परिवार में पत्नी और तीन संताने हैं। 22 वर्ष पहले उनकी शादी हुई। माइक्रोसाफ्ट के 39 वर्ष के इतिहास में ऐसा तीसरी बार हुआ है कि सीईओ का चयन स्टाफ में से किया गया हो। पिछले 30 जून तक उनका वेतन 7.67 मिलीयन डॉलर था, सीईओ होने के बाद उनका वेतन भारतीय मुद्रा में 112 करोड़ रुपए होगा।
अमेरिका में भारत के लिए यह कहा जाता है कि भारत के युवा ऊंची डिग्री के साथ इंजीनियर बन सकते हैं, पर मैनेजर बनने की क्षमता उनमें नहीं है। यदि मैनेजर नहीं बन सकते, तो सीईओ बनना तो कदापि संभव नहीं है। पर सत्या ने इस धारणा को झुठलाकर दिखा दिया कि भारतीय चाहें, तो कुछ भी कर सकते हैं। भारतीय की इसी काबिलियत को देखते हुए अमेरिकी राष्ट्रपति ने एक बार कहा था कि अमेरिकियों काम करो, अन्यथा भारतीय तुम्हें खा जाएंगे। सत्या की नियुक्ति से यह संदेश गया है कि अमेरिका की सर्वोच्च कंपनी भी सीईओ जैसे महत्वपूर्ण पदों के लिए भारतीयों पर विश्वास करती है। अमेरिका में बसने वाले भारतीयों के लिए भी यह गर्व की बात है। आज उसी अमेरिका में अमेरिकी भारतीय आपस में जो ई मेल कर रहे हैं, उसमें यही लिखा जा रहा है कि ‘भारतीय होने का गौरव करो’। एक अंदाज के मुताबिक अमेरिका में 38 प्रतिशत डॉक्टर भारतीय हैं। नासा में 36 प्रतिश्त भारतीय हैं। अमेरिका में बसने वाले भारतीय तीन गुणों को विकसित करने में विश्वास करते हैं, वे गुण हैं भावना, असुरक्षा और उत्तेजना पर काबू करना सीखो। साफ्टवेयर मार्केट में अब भारत का डंका बजने लगा है। यहां महत्वपूर्ण यह है कि सिलीकॉन वेली में 2005 में विदेशों में जन्म लेने वाले 25 प्रतिशत कंपनियों में बॉस के रूप में नियुक्त थे। 2012 में यह प्रतिशत 33 पार कर चुका था।
विश्व की सर्वोच्च कंपनी का संचालन एक भारतीय करे, इसे माइक्रोसाफ्ट ने कर दिखाया है। यह समाचार पढ़कर भारत में छोटी-छोटी बातों पर मतभेद पैदा करने वाले राजनीतिज्ञों को सुधर जाना चाहिए। अमेरिकी राष्ट्रपति ने चार साल पहले जो कहा था, वह सच साबित हो रहा है। आज यदि कंप्यूटर की भाषा में कहा जाए, तो माइक्रोसाफ्ट ने सत्या नदेला को सीईओ के रूप अपलोड किया है। उसके साथ ही विश्व फलक पर भारत का आईटी क्षेत्र भी अपलोड हुआ है।
डॉ महेश परिमल
सत्या कक्षा 6 से 8 तक मेरा विद्यार्थी था। बहुत ही शिष्ट अैर तेज दिमाग का। दूसरी-तीसरी कतार में ही हमेशा बैठता। पढ़ते वक्त हमेशा लीन। घंटों लायब्रेरी में रहता। उसे केवल तीन विषय ही पसंद थे- गणित गणित और गणित। मैंने उसे कभी शैतानी करते नहीं देखा। क्रिकेट का जबर्दस्त शौक था। बाकी बच्चे बताते थे कि बड़े होकर क्या बनेंगे। पर उसने ऐसा कभी नहीं बताया। हम टीचर्स उसकी लगन को देखकर अंदाजा लगा सकते थे कि वह मन ही मन कुछ बड़ा करने की सोच रहा था। पर इतना बड़ा-इसका अंदाज नहीं था। आज मुझे मेरे शिष्य पर गर्व है। यह शब्द हैं प्रोफेसर जी. जयानंद के, जिन्होंने माइक्रोसाफ्ट के नए सीईओ को बचपन में पढ़ाया था। अब हम गर्व के साथ कह सकते हैं कि सत्या नदेला हमारे बीच की वह हस्ती हैं, जिन्होंने अमेरिका में भारतीयों का गौरव बढ़ाया है। यही नहीं सत्या को देश के आई टी क्षेत्र ने विश्वफलक पर अपलोड किया है। अपनी नियुक्ति के बाद उन्होंने माइक्रोसाफ्ट को अपना जो पहला मंत्र दिया, वह इस प्रकार है:- लोग परंपराओं का नहीं, अविष्कारों का सम्मान करते हैं। अब सत्या नदेला के सामने चुनौतियों की विंडो खुल गई हैं, पर हम सभी का विश्वास है कि वे इन चुनौतियों का साहसपूर्वक सामना कर सकते हैं, इसलिए उन्हें इतने बड़े पद से नवाजा गया है।
भारत में जब क्रिकेट के चेम्पियन सचिन तेंदुलकर को भारत रत्न सम्मान दिया जा रहा था, तब विश्व की सर्वोच्च साफ्टवेयर कंपनी माइक्रोसाफ्ट ने भारतीय मूल के सत्या नदेला को कंपनी के ‘रत्न’ के रूप में चयन कर उन्हें सीईओ के पद से नवाजा। क्रिकेट में सचिन चेम्पियन हैं, तो सत्या भी क्रिकेट के जबर्दस्त फैन हैं। सत्या की नियुक्ति से भारत के आईटी क्षेत्र का नाम विश्व में ऊंचा हुआ है। हैदराबाद में जन्म लेने वाले और मणिपाल यूनिवर्सिटी से इंजीनियर हुए सत्या नदेला 1992 अमेरिका गए थे। यहां उन्हें अपनी प्रतिभा दिखाने का अवसर मिला। जिन्हें पुस्तकें खरीदने का बहुत शौक है, पर उसे पूरा पढ़ने का समय नहीं है,जो ऑनलाइन कोर्स का फार्म भरते हैं, पर समय के अभाव में कोर्स पूरा नहीं कर पाते, ऐसे सत्या नदेला के पास अब समय की अत्यधिक कमी होगी, यह तय है। अब उनके हाथ में विश्व की सर्वोच्च कंपनी की बागडोर है। वैसे तो वे पिछले 23 वर्षो से ही इस कंपनी से जुड़े हैं, पर कंपनी की कमान अब उनके हाथों में पूरी तरह से अब आई है। पूर्व में भी वे इसी कंपनी के विभिन्न पदों को सुशोभित कर चुके हैं। उनकी क्षमताओं को देखकर ही उन्हें यह पद सौंपा गया है।
सत्या नदेला ने भारत को गौरव प्रदान किया है। 1990 तक माइक्रोसाफ्ट में कोई भी भारतीय मूल का साफ्टवेयर इंजीनियर सीनियर लेबल पर नहीं था, आज आंध्रप्रदेश और कर्नाटक के साफ्टवेयर क्षेत्र में ट्वीटर पर सत्या नदेला का अभिनंदन किया जा रहा है। नदेला पूरी तरह से योग्य हैं, इसलिए कंपनी के लिए कुछ नया अवश्य करेंगे, ऐसी आशा की जा सकती है। आज कंप्यूटर के क्षेत्र में क्रांति आ गई है। अब पर्सनल कंप्यूटर को लोग भूलने लगे हैं। उसके स्थान पर टेब्लेट और स्मार्टफोन छा गए हैं। इस स्थिति में माइक्रोसाफ्ट को अनेक चुनौतियों का सामना करना है। अमेरिकी आईटी कंपनियों में भारतीयों को देखा जा सकता है। इसके अलावा भारतीय सेप, ओरेकल, गूगल, लींकडीन आदि में भी देखे जा सकते हैं। अमेरिका की सात और केनेडा की चार कंपनियों में मूल भारतीय सीईओ हैं। हैदराबाद में 1967 में जन्मे सत्या नदेला के परिवार में पत्नी और तीन संताने हैं। 22 वर्ष पहले उनकी शादी हुई। माइक्रोसाफ्ट के 39 वर्ष के इतिहास में ऐसा तीसरी बार हुआ है कि सीईओ का चयन स्टाफ में से किया गया हो। पिछले 30 जून तक उनका वेतन 7.67 मिलीयन डॉलर था, सीईओ होने के बाद उनका वेतन भारतीय मुद्रा में 112 करोड़ रुपए होगा।
अमेरिका में भारत के लिए यह कहा जाता है कि भारत के युवा ऊंची डिग्री के साथ इंजीनियर बन सकते हैं, पर मैनेजर बनने की क्षमता उनमें नहीं है। यदि मैनेजर नहीं बन सकते, तो सीईओ बनना तो कदापि संभव नहीं है। पर सत्या ने इस धारणा को झुठलाकर दिखा दिया कि भारतीय चाहें, तो कुछ भी कर सकते हैं। भारतीय की इसी काबिलियत को देखते हुए अमेरिकी राष्ट्रपति ने एक बार कहा था कि अमेरिकियों काम करो, अन्यथा भारतीय तुम्हें खा जाएंगे। सत्या की नियुक्ति से यह संदेश गया है कि अमेरिका की सर्वोच्च कंपनी भी सीईओ जैसे महत्वपूर्ण पदों के लिए भारतीयों पर विश्वास करती है। अमेरिका में बसने वाले भारतीयों के लिए भी यह गर्व की बात है। आज उसी अमेरिका में अमेरिकी भारतीय आपस में जो ई मेल कर रहे हैं, उसमें यही लिखा जा रहा है कि ‘भारतीय होने का गौरव करो’। एक अंदाज के मुताबिक अमेरिका में 38 प्रतिशत डॉक्टर भारतीय हैं। नासा में 36 प्रतिश्त भारतीय हैं। अमेरिका में बसने वाले भारतीय तीन गुणों को विकसित करने में विश्वास करते हैं, वे गुण हैं भावना, असुरक्षा और उत्तेजना पर काबू करना सीखो। साफ्टवेयर मार्केट में अब भारत का डंका बजने लगा है। यहां महत्वपूर्ण यह है कि सिलीकॉन वेली में 2005 में विदेशों में जन्म लेने वाले 25 प्रतिशत कंपनियों में बॉस के रूप में नियुक्त थे। 2012 में यह प्रतिशत 33 पार कर चुका था।
विश्व की सर्वोच्च कंपनी का संचालन एक भारतीय करे, इसे माइक्रोसाफ्ट ने कर दिखाया है। यह समाचार पढ़कर भारत में छोटी-छोटी बातों पर मतभेद पैदा करने वाले राजनीतिज्ञों को सुधर जाना चाहिए। अमेरिकी राष्ट्रपति ने चार साल पहले जो कहा था, वह सच साबित हो रहा है। आज यदि कंप्यूटर की भाषा में कहा जाए, तो माइक्रोसाफ्ट ने सत्या नदेला को सीईओ के रूप अपलोड किया है। उसके साथ ही विश्व फलक पर भारत का आईटी क्षेत्र भी अपलोड हुआ है।
डॉ महेश परिमल
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