बुधवार, 5 फ़रवरी 2014

राजनीति के दो अराजक चेहरे

डॉ. महेश परिमल
अराजक कहीं भी किसी भी रूप में स्वीकार्य नहीं है। जिन्हें अराजक कहा जाता है, उन्हें देश के दुश्मन के रूप में देखा जाता है। पर इस समय देश की राजनीति में दो अराजक चेहरे उभर रहे हैं। पहला चेहरा है दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल और दूसरे हैं महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना के सब कुछ राज ठाकरे। अरविंद केजरीवाल अपने बड़बोलेपन और आम आदमी की छबि को लेकर आगे बढ़ रहे हैं। आगे बढ़ने के इस रास्ते में जो अवरोध आते हैं, उसका विरोध हर हालत में करते हैं। यह उन्हें न्यायोचित लगता है। कई बार वे संविधान के खिलाफ भी बोलने लगते हैं। दूसरी ओर बाल ठाकरे की छबि से अलग होकर अपना अलग ही चेहरा बनाने वाले राज ठाकरे अपने भाषण में बहुत ही ज्यादा आक्रामक दिखाई देते हैं। झूठे को झूठा कहने में वे कभी संकोच नहीं करते, इस कारण उनका समर्थक वर्ग तेजी से बढ़ रहा है। दोनों ही अराजक चेहरे कानून तोड़ने में संकोच नहीं करते। अरविंद केजरीवाल और उनके साथियों ने अन्ना हजारे के जनलोकपाल आंदोलन के दौरान भ्रष्टाचार मुक्त देश के नारे के साथ आम आदमी पार्टी तैयार की। देखते ही देखते इस पार्टी ने दिल्ली पर अपना शासन जमा लिया। यही नहीं, इसके बाद सरकारी तंत्र के खिलाफ अपना ही आंदोलन शुरू कर दिया।
राज ठाकरे के पास किसी राज्य में सत्ता नहीं है, पर महाराष्ट्र में उनके पास ऐसे आक्रामक कार्यकर्ता हैं, जो अन्य किसी के पास नहीं है। राज ठाकरे ने जब टोल टैक्स का भुगतान न करने की हुंकार भरी, तब तुरंत ही उनके कार्यकर्ताओं ने मोर्चा संभाल लिया। तोड़फोड़ शुरू कर दी। राजनीति में उनकी आक्रामक छवि अन्य दलों के लिए एक चुनौती बन गई। अभी तक कांग्रेस-भाजपा जिन मुद्दों को छूने से भी डरती थी, उन विषयों पर राज ठाकरे खुले आम बोलते थे। उधर आम आदमी पार्टी को शपथ लिए अभी एक महीना भी नहीं हुआ है कि उनके ही एक साथी विनोद कुमार बिन्नी ने बगावत कर दी। जंतर-मंतर पर उन्होंने अपना धरना कुछ ही घंटों में खत्म भी कर दिया। पार्टी ने उन्हें सस्पेंड कर दिया है। उनका मानना है कि ‘आप’ पार्टी बकवास है, जो लोगों को मूर्ख बना रही है। आज पार्टी अपने ही कानून मंत्री सोमनाथ भारती को लेकर कठघरे में आ गई है। मुख्यमंत्री उनका जितना अधिक बचाव कर रहे हैं, वे उतने ही फंसते जा रहे हैं। भारती पर इस्तीफे का दबाव बढ़ता जा रहा है। सोमनाथ भारती के मामले में यह साबित होता है कि एक मंत्री वह भी कानून मंत्री को कानून तोड़ने में किसी तरह का कोई गुरेज नहीं है। वे इस मामले में पुलिस वालों को दोषी बता रहे हैं। शायद उन्हें कानून की सीमा की जानकारी नहीं है।
केजरीवाल और राज ठाकरे दोनों ही आक्रामक हैं। पर ठाकरे केजरीवाल से कहीं अधिक मंजे हुए हैं। अरविंद केजरीवाल राजनीति में नए नवेले हैं, कब क्या कह जाते हैं, इसका उन्हें भान नहीं रहता। उनके कई झूठ सामने आ चुके हैं। अपने वादे पर मुकरते भी लोगों ने उन्हें देखा है। उधर मनसे के कार्यकर्ताओं ने टोल टैक्स नाके पर जिस तरह से तोड़फोड़ की है, उससे राज ठाकरे मुश्किल में पड़ सकते हैं। ठाकरे-केजरीवाल दोनों ही युवा हैं। देश को नई दिशा देने में वे सक्षम हैं। परंतु दोनों ही रॉकेट पालिटिक्स के शिकार हुए हैं। दोनों ही तेजी से आगे बढ़ना चाहते हैं। देश के कानून को तोड़ना उनके लिए एक खेल हो गया है। दोनों ही राजनीति में एक तरह का खेल ही खेल रहे हैं। उद्धव ठाकरे और संजय निरुपम ने जब से सक्रिय राजनीति में हिस्सा लेना शुरू कर दिया है, तब से राज ठाकरे ीाी आक्रामक मूड में दिखने लगे हैं। दिल्ली में बेरीकेट्स तोड़ते हुए केजरीवाल के समर्थक और टोल बूथ तोड़ने वालों में काफी समानता है। ये प्रदर्शनकारी अपने नेता से वरदहस्त पाकर ही इस तरह की आक्रामक हरकतें करते हैं। दिल्ली में अरविंद केजरीवाल ने रेल भवन के सामने धरना देकर अराजकता पैदा की। ऐसे उग्र आंदोलन के बाद भी उप राज्यपाल उनकी मांगों पर विचार करते हुए आधी मांगें मान ली और धरना खत्म हो गया। आम आदमी पार्टी के बारे में जानेमाने लेखक चेतन भगत ने उन्हें आइटम गर्ल कहकर ‘आप’ की आलोचना की थी। उधर इससे एक कदम आगे बढ़कर शिवसेना के उद्धव ठाकरे ने अरविंद केजरीवाल की तुलना राखी सावंत से की। अभी गणतंत्र समारोह में जब लोगों ने अरविंद केजरीवाल को वीआईपी सुरक्षा में देखा, तो उसकी भी काफी आलोचना की गई।
राज ठाकरे ने अपनी सीमा तय कर रखी है, वे केवल महराष्ट्र तक ही सीमित हैं। अरविंद केजरीवाल देशभर में फैले हुए हैं। आम आदमी पार्टी लोकसभा चुनाव लड़ना चाहती है। अरविंद के खिलाफ विरोध के स्वर मुखर हो रहे हैं। आज उनके सामने विनोद कुमार बिन्नी हैं, कल संभव है सोमनाथ भारती की गिरफ्तारी हो, इससे हालात और भी बेकाबू हो जाएंगे। जब से आम आदमी ने दिल्ली की गद्दी पर कब्जा जमाया है, तब से वह अग्निपथ पर ही चल रही है। जिन्होंने ‘आप’ को अपना कीमती वोट दिया है, वह पसोपेश में हैं। अराजकता फैलाने से प्रजा नाराज होती है, इसकी जानकारी इन दोनों नेताओं को नहीं है। प्रजा को आक्रामक नेता अच्छे लगते हें, परंतु उसका अतिरेक किसी को भी पसंद नहीं है। यह उन दोनों को समझ लेना चाहिए कि जब भी कोई नेता कानून अपने हाथ में लेता है, तो उसका राजनीतिक कद छोटा हो जाता है, उनकी प्रतिष्ठा कम हो जाती है। दोनों की राजनीतिक इच्छा शक्ति प्रबल है, पर उसे काबू करना नहीं आता। ऐसे में कई बार उन्हें समर्थक मिल जाते हैं,पर कई बार यही समर्थक ही अतिउत्साह में उनके लिए मुश्किलें पैदा कर देते हैं। इतना तो तय है कि ‘आप’ ने एक ओर सादगी की राजनीति का पाठ पढ़ाने की कोशिश की है, वहीं राज ठाकरे यह सीख देते नजर आते हैं कि आक्रामक होकर ही हम अपने अधिकारों को पा सकते हैं। ऐसी बेात नहेीं है कि आक्रामक हुए बिना कुछ भी नहीं मिलेगा, वहीं शाही सादगी दिखाकर भी कोई पहाड़ नहीं तोड़ लेता। लोगों ने पहले अरविंद केजरीवाल की सादगी को सराहा, अब वे उसी सादगी से दूर होते दिखाई दे रहे हैं। दूसरी ओर राज ठाकरे यह मानते हैं कि आक्रामक होने से ही सब कुछ पाया जा सकता है। दोनों ही अपनी जगह पर सही हो सकते हैं, पर सही साबित करने के लिए उन्होंने ऐसा कोई उपाय ही नहीं किया। इसलिए जनता उन्हें एक सिरे से ही अमान्य कर देती है।
डॉ. महेश परिमल

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