शनिवार, 5 फ़रवरी 2022

साइबर ठगी की तय हो जवाबदेही

 

5 फरवरी 2022 को दैनिक जागरण के राष्ट्रीय संस्करण में प्रकाशित


लालच के कारण बढ़ रहे साइबर फ्रॉड

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने पूर्व न्यायाधीश पूनम श्रीवास्तव के बैंक खाते से झारखंड के सायबर अपराधियों द्वारा 5 लाख रुपए की ठगी के सभी आरोपियों की जमानत अर्जी खारिज कर दी है। कोर्ट ने कहा है कि सायबर ठगी के मामले में पैसे की सुरक्षा की जिम्मेदारी बैंक की होनी चाहिए। यह आदेश न्यायमूर्ति शेखर कुमार यादव ने नीरज मंडल उर्फ राकेश, तपन मंडल, शूबो शाह उर्फ शुभाजीत और तौसीफ जमा की जमानत अर्जी पर दिया है। कोर्ट ने कहा कि बैंक में पैसा जमा करने वाले देश के प्रति ज्यादा ईमानदार हैं। हर हाल में उनका पैसा सुरक्षित रहना चाहिए। गरीब और ईमानदार आदमी अपना पैसा बैंक में रखता है। इससे देश की आर्थिक स्थिति मजबूत होती है। कालाबाजारी करने वाले सफेदपोश लोग पैसा तहखाने में रखते हैं। जो देश के विकास में काम नहीं आता। ऐसा करके वे विकास में रोड़ा उत्पन्न करते हैं। कोर्ट ने कहा कि बैंक यह कहकर नहीं बच सकती कि वह जिम्मेदार नहीं है। इसके साथ ही पुलिस भी यह कहकर नहीं बच सकती कि सायबर अपराधी उनकी पहुंच से दूर नक्सली क्षेत्रों में रहते हैं। सायबर अपराध की जवाबदेही तय होनी चाहिए।

आखिर सायबर क्राइम क्या है? देखा जाए, तो यह एक ऐसा अपराध है, जिसमें कंप्यूटर या मोबाइल एक वस्तु के रूप में हमारे सामने होता है। हेकिंग, फिशिंग, स्पैमिंग को एक औजार के रूप में इस्तेमाल किया जाता है। इस अपराध में किसी के कंप्यूटर या मोबाइल को हैक कर उससे उसकी सारी गोपनीय सूचनाएं निकाल ली जाती हैं। उसके बाद इन सूचनाओं के आधार पर व्यक्ति को डरा-धमकाकर ब्लेकमेल किया जाता है। इस अपराध में अपराधी सामने नहीं होता, केवल उसकी आवाज ही होती है, इसलिए ठगी का शिकार व्यक्ति कुछ न कर पाने की स्थिति में होता है। इसके अलावा ठगी करने वाला अपने शिकार से कुछ इस तरह से बातचीत करता है, जिससे वह प्रभावित हो जाता है। बिना किसी परिश्रम के कुछ ही समय में वह लाखों रुपए का मालिक बन जाने का सपना देखना शुरू कर देता है। यही दीवास्वप्न उसे ठगी का शिकार बना देता है।

व्यापार-उद्योग तथा दैनंदिन जीवन में डिजिटल ट्रांजेक्शन और इंटरनेट का वर्चस्व लगातार बढ़ रहा है। ऐसे में साइबर क्राइम या ऑनलाइन फ्रॉड की घटनाओं में वृद्धि हो रही है। अकेले गुजरात में ही करीब 5 लाख औद्योगिक कारखाने हैं। इसमें से केवल 15 प्रतिशत से भी कम कंपनियां साइबर सिक्योरिटी का उपयोग कर रही हैं। वैश्विक स्तर पर बढ़ रहे साइबर क्राइम के कारण साइबर सिक्योरिटी एक नई इंडस्ट्रीज के रूप में उभर रही है। अब देश भर में साइबर सिक्योरिटी का बाजार डेढ़ लाख करोड़ रुपए वार्षिक पार कर गया है।

सायबर ठगी के बढ़ते मामलों को देखते हुए सूचना एव प्रौद्योगिकी अधिनियम 2000 के तहत इस पर नियंत्रण का काम शुरू किया। इधर जैसे-जैसे सख्ती बढ़ती गई, अपराधियों ने भी नए-नए पैंतरे लगाने शुरू कर दिए। अब तो ठगी के कई नए तरीके सामने आ गए हैं। इस दिशा में पुलिस अभी तक पूरी तरह से सजग नहीं हो पाई है। सायबर सेल का अलग विभाग बना देने के बाद भी वहां आज भी अपने मोबाइल के खो जाने की रिपोर्ट लिखवाने के लिए कई बार चक्कर लगवाया जाता है। कुल मिलाकर पुलिस इस दिशा में अभी तक सचेत नहीं हुई है। इसलिए सायबर अपराध लगातार बढ़ रहे हैं। कोर्ट की फटकार के बाद भी पुलिस अपनी जवाबदेही से बचना चाहती है।

इस अपराध में सबसे बड़ी बात यह है कि लोग आधुनिक तकनीक की पूरी जानकारी नहीं रखते। थोड़ी-सी ही जानकारी के आधार पर लोग अपने डेबिट कार्ड, क्रेडिट कार्ड आदि का प्रयोग असावधानीवश करते रहते हैं। इस अपराध में अपराधी सामने नहीं होता। वह सुदूर क्षेत्रों में या फिर विदेशों में बैठकर भी यह अपराध कर लेता है। अधिकारियों की लापरवाही के कारण इन सायबर अपराधियों को मौका मिल जाता है। इसके अलावा दूसरी महत्वपूर्ण बात यह है कि लोगों में लालच का भाव भरा हुआ है। मुफ्त में मिलने वाली किसी भी चीज के लिए वे इंकार नहीं करते। इसलिए वे प्रलोभन का शिकार हो जाते हैं। अपराधी उनकी इसी कमजोरी का पूरा फायदा उठाते हुए उन्हें ठग लेते हैं। सामान्य जनता आधुनिक संसाधनों का खूब इस्तेमाल करती है, पर सजगता नहीं होने के कारण वह अक्सर ठगी का शिकार हो जाती है। जनता यह नहीं सोचती कि आजकल कोई आपको मुफ्त में आधी कप चाय नहीं पिलाता, तो फिर वह क्यों केवल आपको लाखों रुपए यूं ही दे देगा। ये अपराधी मानव की भीतर की लालसा को जगाकर उनसे ठगी कर लेते हैं। बैंक द्वारा बार-बार यह आग्रह किया जाता है कि किसी अनजान को कभी अपना मोबाइल नम्बर, आधार नम्बर या ओटीपी न दें। बैंक कभी किसी से फोन पर किसी भी तरह की जानकारी नहीं मांगती। फिर भी लोग लालच में आकर ठगी का शिकार हो जाते हैं।

व्यापार में वेल्थ क्रिएट करने के लिए और अपने व्यापार को बनाए रखने के लिए साइबर सुरक्षा अनिवार्य हो गई है। वैश्विक स्तर पर कार्पोरेट बिजनेस में साइबर फ्रॉड की संख्या लगातार बढ़ रही है। हर साल 6 ट्रिलियन डॉलर से अधिक का नुकसान साइबर फ्रॉड से विश्व को हो रहा है। देश में औसतन 25 हजार करोड़ से अधिक का नुकसान साइबर फ्रॉड के कारण हो रहा है। इसमें लगातार बढ़ोत्तरी हो रही है। डिजिटल ट्रांजेक्शन में धोखाधड़ी के मामले लगातार बढ़ रहे हैं। साइबर क्राइम फ्रॉड में महाराष्ट्र और दिल्ली सबसे ऊपर हैं। सरकार इस दिशा में सक्रिय होकर लोगों को लगातार साइबर क्राइम की ओर जागरूक कर रही है। पर जब तक लोगों में जागृति नहीं आएगी, तब तक लोग साइबर फ्रॉड के शिकार होते रहेंगे।

इलाहाबाद हाईकोर्ट की टिप्पणी इस संबंध में यह सोचने को विवश करती है कि सायबर अपराधियों पर किस तरह से रहम किया जाए। उनकी जमानत अर्जी को क्यों मंजूर की जाए? इन अपराधियों ने लोगों के सपनों को कुचलने का प्रयास किया है। लोगों की मेहनत की कमाई को एक झटके में झटक लेने का काम किया है। उनके सपनों को ऐसे ही चूर-चूर नहीं किया जा सकता। अब तो सरकार को भी इस दिशा में सख्त से सख्त कार्रवाई वाले प्रावधानों को जोड़ा जाना चाहिए। लोगों को भी यह कहना है कि अपनी मेहनत की कमाई को यूं ही लालच के कारण किसी के हाथों में न जाने दें। अपनी गोपनीयता को बनाए रखें। सरकार एवं बैंकों द्वारा जो भी निर्देश दिए जाएं, उनका पूरी ईमानदारी से पालन किया जाए। यदि नागरिक अपने अधिकारों के प्रति सजग हैं, तो उन्हें अपने कर्तव्य के प्रति भी सजग होना होगा, तभी सायबर अपराध पर अंकुश लगाया जा सकता है।

डॉ. महेश परिमल



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