बुधवार, 8 अप्रैल 2009
इंटरनेट पर हिन्दी साहित्य के एक लाख पृष्ठ होंगे उपलब्ध
हिन्दी नवजागरण के अग्रदूत भारतेंदु हरिशचंद्र की रचनाओं से लेकर अब तक के संपूर्ण श्रेष्ठ हिन्दी साहित्य के एक लाख रिपीट 100000 पृष्ठ इंटरनेट पर डाले जा रहे हैं ताकि देश-विदेश के हिन्दी प्रेमी घर बैठे पुस्तकों को पढ सकें। महात्मा गांधी अन्तरराष्ट्रीय हिन्दी विश्वविद्यालय, वर्धा ने विश्वविद्यालय अनुदान आयोग की मदद से पहली बार यह महत्वाकांक्षी योजना शुरू की है जिससे हिन्दी का संपूर्ण श्रेष्ठ साहित्य कम्प्यूटर पर क्लिक करते ही उपलब्ध हो जाएगा। यह साहित्य विश्वविद्यालय की वेबसाइट हिंदी समय डाट काम पर देखा जा सकेगा। विश्वविद्यालय के कुलपति विभूति नारायण राय ने रविवार को यहां बताया कि अंग्रेजी में क्लासिक रीडर डॉट काम ऐसा वेबसाइट है जिस पर क्लिक करते ही अंग्रेजी के किसी भी बडे लेखक की रचनाएं इंटरनेट पर उपलब्ध हो जाती है। हिन्दी में अभी तक कोई ऐसी वेबसाइट नहीं है जिस पर सभी श्रेष्ठ हिन्दी साहित्य को इंटरनेट पर पढा जा सके। श्री राय विश्वविद्यालय की तीन पत्रिकाओं बहुवचन, पुस्तक वार्ता और ंिहंदी के लोकार्पण समारोह में भाग लेने कल यहां आए हुए थे। इन पत्रिकाओं का लोकार्पण विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति और वरिष्ठ कवि अशोक वाजपेयी, वरिष्ठ साहित्यकार राजेंद्र यादव और ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित कवि कुंवर नारायण ने किया। उन्होंने बताया कि इस योजना पर करीब पांच करोड रुपये खर्च आएंगे। विश्वविद्यालय अनुदान आयोग ने हमें अभी करीब दो करोड रुपये दिए हैं। योजना के तहत जिन लेखकों की कॉपीराइट खत्म हो गई है। उनकी रचनाएं हम वेबसाइट पर डालेंगे। श्री राय ने बताया कि इसके अलावा आज के जो भी लेखक अपनी कृतियों को वेबसाइट पर देना चाहेंगे, वे भी दे सकेंगे। हम उनकी तथा प्रकाशक की अनुमति से उनकी पुस्तकों को भी वेबसाइट पर डाल देंगे जिससे दुनिया भर में बैठे हिन्दी प्रेमी हिन्दी साहित्य के विशाल भंडार से परिचित हो जाएंगे। उन्होंने कहा कि इसके लिए हमने एक संपादकीय मंडल भी बनाया है जो इन रचनाओं का चयन करेगा। उन्होंने बताया कि बाद में इन रचनाओं को विभिन्न विदेशी भाषाओं में भी अनुदित करने की योजना है ताकि अंग्रेजी, फ्रेंच, जर्मनी, इतालवी, रूसी, चीनी भाषा में भी लोग हिन्दी साहित्य से परिचित हो सकें। उन्होंने बताया कि विश्वविद्यालय की हिन्दी पत्रिका पुस्तकवार्ता बहुवचन और हिन्दी साहित्य के बारे में अंग्रेजी पत्रिका हिन्दी को भी वेबसाइट पर डाला जा रहा है। इसके अलावा पिछले दिनों विश्वविद्यालय में हुई राष्ट्रीय संगोष्ठी में पढे गए परचों और दिए गए वक्तव्यों को भी वेबसाइट पर डाला जा रहा है। हिन्दी के दिग्गज लेखकों की रचनाओं की संचयिता भी हम प्रकाशित कर रहे हैं।
लेबल:
हिंदी विशेष
जीवन यात्रा जून 1957 से. भोपाल में रहने वाला, छत्तीसगढ़िया गुजराती. हिन्दी में एमए और भाषा विज्ञान में पीएच.डी. 1980 से पत्रकारिता और साहित्य से जुड़ाव. अब तक देश भर के समाचार पत्रों में करीब 2000 समसामयिक आलेखों व ललित निबंधों का प्रकाशन. आकाशवाणी से 50 फ़ीचर का प्रसारण जिसमें कुछ पुरस्कृत भी. शालेय और विश्वविद्यालय स्तर पर लेखन और अध्यापन. धारावाहिक ‘चाचा चौधरी’ के लिए अंशकालीन पटकथा लेखन. हिन्दी गुजराती के अलावा छत्तीसगढ़ी, उड़िया, बँगला और पंजाबी भाषा का ज्ञान. संप्रति स्वतंत्र पत्रकार।
संपर्क:
डॉ. महेश परिमल, टी-3, 204 सागर लेक व्यू होम्स, वृंदावन नगर, अयोघ्या बायपास, भोपाल. 462022.
ईमेल -
parimalmahesh@gmail.com
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
Post Labels
- अतीत के झरोखे से
- अपनी खबर
- अभिमत
- आज का सच
- आलेख
- उपलब्धि
- कथा
- कविता
- कहानी
- गजल
- ग़ज़ल
- गीत
- चिंतन
- जिंदगी
- तिलक हॊली मनाएँ
- दिव्य दृष्टि
- दिव्य दृष्टि - कविता
- दिव्य दृष्टि - बाल रामकथा
- दीप पर्व
- दृष्टिकोण
- दोहे
- नाटक
- निबंध
- पर्यावरण
- प्रकृति
- प्रबंधन
- प्रेरक कथा
- प्रेरक कहानी
- प्रेरक प्रसंग
- फिल्म संसार
- फिल्मी गीत
- फीचर
- बच्चों का कोना
- बाल कहानी
- बाल कविता
- बाल कविताएँ
- बाल कहानी
- बालकविता
- भाषा की बात
- मानवता
- यात्रा वृतांत
- यात्रा संस्मरण
- रेडियो रूपक
- लघु कथा
- लघुकथा
- ललित निबंध
- लेख
- लोक कथा
- विज्ञान
- व्यंग्य
- व्यक्तित्व
- शब्द-यात्रा'
- श्रद्धांजलि
- संस्कृति
- सफलता का मार्ग
- साक्षात्कार
- सामयिक मुस्कान
- सिनेमा
- सियासत
- स्वास्थ्य
- हमारी भाषा
- हास्य व्यंग्य
- हिंदी दिवस विशेष
- हिंदी विशेष
महेश जी सबसे पहले मैं महिविवि, वर्धा और इसके कर्ताधर्ता लोगोंको बधाई देना चाहता हूँ। यह बहुत ही जरूरी और महत्व का काम है।
जवाब देंहटाएंकिन्तु मुझे सरकारी घोषणाओं पर हमेशा शक होता आया है। इसी विश्वविद्यालय ने घोषणा की थी कि यह विश्वविद्यालय २५ विषयों के विश्वकोश तैयार करेगा। पता नहीं क्या हो रहा है क्या नहीं।
इसी प्रकार वैज्ञानिक एवं तकनीकी शब्दावली आयोग बहुत दिनो (चार-पाँच वर्ष से) से घोषणा करता आ रहा है कि कई लाख वैज्ञानिक एवं तकनीकी शब्द अन्तरजाल पर रखे जाने वाले हैं। पता नहीं यह काम कब तक लटका रहेगा।
सी-डैकौर कुछ हिन्दी संस्थान मिलकर किसी प्रकार हिन्दी विश्वकोश को नेट पर रख पाये हैं। किन्तु यह यूनिकोड में नहीं है। इसके अलावा अक्सर यह साइट खुलने में असफल रहती है।
फिर भी हम आशा लगाये बैठे हैं। सबसे बड़ी आशा हिन्दी के व्यक्तिगत प्रयासों से है। इसी से हिन्दी की बहुत बड़ी सामग्रीौर बहुत सारे उपकरण नेट पर आ चुके हैं।
अच्छी खुशखबरी है।
जवाब देंहटाएं