हाथ उठाने चल पड़े , बिना रीढ़ बेपांव ।
जाग रहें हैं चोर सब , सोया सारा गांव ।
सोया सारा गांव ,सयाने खांस रहे हैं ,
युवक सभी ,मां के पल्लू से झांक रहे हैं ।
दुखिया दास कबीर , बात किस किस की माने ?
देश उठाने चले हैं ये, या हाथ उठाने ?
अपना देश महान है , अपने हृदय विशाल ।
गीदड़ पूजित हो रहे पहन शेर की खाल ।
पहन शेर की खाल , लकड़बग्गे भी हंसते ,
मगर हिरण खरगोश हैं भोले ,प्रायः फंसते ।
जंगल देखे , जंगल में मंगल का सपना ।
हासिलाई में केवल दंगा , अपना अपना ।
सिंह जहां है बादशा‘ , हाथी बस गजराज ।
उस जंगल का रोज ही होता सत्यानाश ।
होता सत्यानाश , नीलगायों सी जनता ,
हाहाकार करे ,पर इससे कब क्या बनता ?
दु£िया दास कबीर , अहिंसा जहां धर्म है ।
साधु साध्वी हिंसक! उनमें शर्म कहां है ?
पूंछ उमेंठी भैंस की ,भैंस हो गई रेल ।
चारा से भी चू पड़ा ,चमत्कार का तेल ।
चमत्कार का तेल, छछूंदर लगा रही है ,
खोटा सिक्का घिसकर सोना बना रही है।
हुए नारीमय पुरुष सब,कटा-कटाकर पूंछ ,
चली नचाती बंदरिया ,इक बंदर बेपूंछ।
पूछ रहा है रेल से , रोलर एक सवाल।
लौह-पांत ने क्यों भरी ,इतनी बड़ी उछाल ?
इतनी बड़ी उछाल, कि अपनी जगह गिर गए।
अभिमन्यु को घेर रहे थे ,स्वयं घिर गए।
सब अपराधी हंस रहे ,रहे अलावा कूद ।
कौन किसे है छल रहा ,देश रहा है पूछ।
मंगलवार, 14 अप्रैल 2009
पाँच सामयिक कुंडलियाँ
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आज का सच
जीवन यात्रा जून 1957 से. भोपाल में रहने वाला, छत्तीसगढ़िया गुजराती. हिन्दी में एमए और भाषा विज्ञान में पीएच.डी. 1980 से पत्रकारिता और साहित्य से जुड़ाव. अब तक देश भर के समाचार पत्रों में करीब 2000 समसामयिक आलेखों व ललित निबंधों का प्रकाशन. आकाशवाणी से 50 फ़ीचर का प्रसारण जिसमें कुछ पुरस्कृत भी. शालेय और विश्वविद्यालय स्तर पर लेखन और अध्यापन. धारावाहिक ‘चाचा चौधरी’ के लिए अंशकालीन पटकथा लेखन. हिन्दी गुजराती के अलावा छत्तीसगढ़ी, उड़िया, बँगला और पंजाबी भाषा का ज्ञान. संप्रति स्वतंत्र पत्रकार।
संपर्क:
डॉ. महेश परिमल, टी-3, 204 सागर लेक व्यू होम्स, वृंदावन नगर, अयोघ्या बायपास, भोपाल. 462022.
ईमेल -
parimalmahesh@gmail.com
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