1 . बोतलों में बंद पानी
पर्वतों चट्टान पर ठहरा नहीं ,स्वच्छंद पानी ।
लिख रहा बंजर पड़े मैदान पर ,नव-छंद पानी ॥
सभ्यता के होंठ पर दो बूंद तृप्ती छींटकर ,
बह नहीं सकता नदी सा ,बोतलों में बंद पानी ॥
है चमक आंखों में ,चेहरों में चमक है ,
इसलिए निर्मल कि रचता ,कुछ नहीं छल-छंद पानी ॥
आग की लपटों से लहरें ,होड़ ले लेकर लड़ें ,
जीत के इतिहास में रुतवा ,रखे बुलंद पानी ॥
रोज कितने फूटते हैं ,द्वेष के विष कूट-काले ,
डाल देता दहकते अंगार पर ,आनंद पानी ॥
जब जहां दिल चाहता बस फूट पड़ता है वहां ,
कब कहां करता किसी से ,कोई भी अनुबंध पानी ॥
2. भीड़ की भैंगी नज़र
क्यों भला अब दिल को मैं तड़पाऊँगा ?
याद तेरी आएगी तो गाऊँंगा ॥
भीड़ की भैंगी नज़र लग जाएगी ,
दर्द को एकांत में सहलाऊँंगा ॥
हर शहर में शोर है , बारूद है ,
किस जगह मैं प्यार को ले जाऊँंगा ॥
है बहुत बदला हुआ माहौल , उफ्
क्या पता मैं कैसा चेहरा पाऊँगा !!
एक सच ,सौ मौत मरता है यहाँ ,
मैं भी इक दिन मुफ्त मारा जाऊँंगा ॥
आऊँगा ,मैं आऊँगा ,मैं आऊँगा ,
फिर वही कोरा हृदय मैं लाऊँगा ॥
-
3 . गुल्लक की पूँजी
पागलपन की हद तोड़ी तो होश में आया ।
यादों की डयोढी छोड़ी तो होश में आया ॥
उसके बोल , अदाएं उसकी , हीरे मोती ,
गुल्लक की पूंजी जोड़ी तो होश में आया ॥
बंधी रह गई अस्तबलों में भरी जवानी ,
उम्र हुई बूढ़ी घोड़ी तो होश में आया ॥
पकी हुई सूखी बल्ली दो टूक हो गई ,
इक दुखती उंगली तोड़ी तो होश में आया ॥
मेरे पीछे सूनापन था ,सन्नाटा था ,
आज यूँ ही गर्दन मोड़ी तो होश में आया ॥
आदर्शों के इन्द्रधनुष झूठे होते हैं ,
'ज़ाहिद' उम्र बची थोड़ी तो होश में आया ॥
4 . अक्ल के अंधे
नींद आती नहीं है ,ख्वाब दिखाने आए ॥
अक्ल के अंधे गई रात जगाने आए ॥
जिस्म में जान नहीं है मगर रिवाज़ तो देख ,
चल के वैशाखी मेें ये देश चलाने आए ॥
बीच चौराहे में फिर कोई मसीहा लटका ,
मुर्दे झट जाग उठे ,लाश उठाने आए ॥
जिसको बांहों में ,बंद मुट्ठियों में रखना है ,
ऐसी इक चीज़ को ये अपना बनाने आए॥
कुछ गए साल गए वक्त क़ा खाता लेकर ,
मेरे नामे पै चढ़ा क़र्ज़ बताने आए ॥
सर पै 'जाहिद'के हादिसों की यूं लाठी टूटी ,
जैसे अब सरफिरे की अक्ल ठिकाने आए ॥
5 . है हवा गर्म
अच्छे लगते हुए हर लम्हे बचाए कल के ।
आज तक हम सभी बस इस तरह आए चल के ॥
कुछ को छोड़ा किया ,पकडा किया ,अनदेखा किया ,
यूं परेशानी के पेशानी से साए ढलके ॥
तुमने कुछ अलहदा कुछ मैंने अलहदा पाए ,
दाने जो बालियों से हमने उठाए मल के ॥
दोस्त!क्यों रंज की ,शिकवे गिले की बात करें ,
शदमानी के तो लम्हे ही हैं आए पल के ॥
जिस तरफ से लगे अच्छा कि उधर से देखो ,
चेहरा ख्यालातो तसव्वुर के बजाए ढलके ॥
ज़िन्दगी तो वही 'ज़ाहिद' जहां ख़ुदाख्याली हो ,
है हवा गर्म ,सबा अब के ना आए जल के ॥
डॉ . रामकुमार रामार्य, सिवनी रोड , नैनपुर
मंगलवार, 7 अप्रैल 2009
राम कुमार रामार्य की पाँच ग़ज़लें
लेबल:
जिंदगी
जीवन यात्रा जून 1957 से. भोपाल में रहने वाला, छत्तीसगढ़िया गुजराती. हिन्दी में एमए और भाषा विज्ञान में पीएच.डी. 1980 से पत्रकारिता और साहित्य से जुड़ाव. अब तक देश भर के समाचार पत्रों में करीब 2000 समसामयिक आलेखों व ललित निबंधों का प्रकाशन. आकाशवाणी से 50 फ़ीचर का प्रसारण जिसमें कुछ पुरस्कृत भी. शालेय और विश्वविद्यालय स्तर पर लेखन और अध्यापन. धारावाहिक ‘चाचा चौधरी’ के लिए अंशकालीन पटकथा लेखन. हिन्दी गुजराती के अलावा छत्तीसगढ़ी, उड़िया, बँगला और पंजाबी भाषा का ज्ञान. संप्रति स्वतंत्र पत्रकार।
संपर्क:
डॉ. महेश परिमल, टी-3, 204 सागर लेक व्यू होम्स, वृंदावन नगर, अयोघ्या बायपास, भोपाल. 462022.
ईमेल -
parimalmahesh@gmail.com
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
Post Labels
- अतीत के झरोखे से
- अपनी खबर
- अभिमत
- आज का सच
- आलेख
- उपलब्धि
- कथा
- कविता
- कहानी
- गजल
- ग़ज़ल
- गीत
- चिंतन
- जिंदगी
- तिलक हॊली मनाएँ
- दिव्य दृष्टि
- दिव्य दृष्टि - कविता
- दिव्य दृष्टि - बाल रामकथा
- दीप पर्व
- दृष्टिकोण
- दोहे
- नाटक
- निबंध
- पर्यावरण
- प्रकृति
- प्रबंधन
- प्रेरक कथा
- प्रेरक कहानी
- प्रेरक प्रसंग
- फिल्म संसार
- फिल्मी गीत
- फीचर
- बच्चों का कोना
- बाल कहानी
- बाल कविता
- बाल कविताएँ
- बाल कहानी
- बालकविता
- भाषा की बात
- मानवता
- यात्रा वृतांत
- यात्रा संस्मरण
- रेडियो रूपक
- लघु कथा
- लघुकथा
- ललित निबंध
- लेख
- लोक कथा
- विज्ञान
- व्यंग्य
- व्यक्तित्व
- शब्द-यात्रा'
- श्रद्धांजलि
- संस्कृति
- सफलता का मार्ग
- साक्षात्कार
- सामयिक मुस्कान
- सिनेमा
- सियासत
- स्वास्थ्य
- हमारी भाषा
- हास्य व्यंग्य
- हिंदी दिवस विशेष
- हिंदी विशेष
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें