डॉ. महेश परिमल
मौसम के तेवर बदले हुए हैं। अब तक गर्मी की दस्तक सुनाई दे रही थी, जो अब दबे पाँव आँगन तक आ गई है। इस मौसम ने सभी को व्यस्त कर दिया है। बच्चों के लिए तो यह परीक्षा का मौसम है। तनावभरा मौसम। गुजरात में यह बच्चों की परीक्षा और पालकों के लिए अग्निपरीक्षा है। इस मौसम में एक तरह की खुश्की का अहसास दिन-भर बना रहता है। इन दिनों प्रकृति अपना चोला बदल रही होती है। विज्ञान की मानें तो मानव मस्तिष्क में भी फिरोटीन नामक रसायन का स्तर कम-ज्यादा होता रहता है। इससे व्यक्ति में जोश पैदा होता है। कई मामलों में जब इसकी मात्रा कम हो जाती है, तब एक आलस पूरे वातावरण में फैल जाता है। किसी काम में मन नहीं लगता । इसलिए हमने देखा होगा कि कुछ लोग तो पूरे जोश-खरोश के साथ काम करते दिखते हैं, दूसरी तरफ कुछ लोग ऐसे भी होते हैं, जिनसे कुछ भी नहीं होता। आलसीपन उनके चेहरे पर दिखाई देता है। यह इसी फिरोटीन का ही कमाल है। जो इन दिनों हमारे शरीर को नियंत्रित करता है। उधर प्रकृति का रंग भी बदलने लगा है। हवाएँ तेज होने लगी हैं। पत्ते पीले पड़ने लगे हैं। पेड़ों से हरियाली कुछ समय के लिए विदा लेने लगी है। मानव ग्रीष्म ऋतु के स्वागत के लिए आतुर है।
बात फिर परीक्षा की। यह चलती तो केवल 15-20 दिन, पर इसका असर दो-तीन महीनों तक रहता है। मन एक अनजाने भय का अनुभव करता है। यह भय भीतर तक पहुँच जाता है। अंदर से टूटने की आवाज आती है। किसी काम में मन नहीं लगता। मन भटकता रहता है। कोई भी विचार लंबे समय तक टिक नहीं पाता। पढ़ा हुआ याद नहीं रह पाता। इस कारण गुस्सा सदैव नाक पर होता है। किसी की सलाह भी सहन नहीं होती। छोटी-छोटी बात पर नाराजगी दिखाई देती है। सब कुछ जानते हुए भी इससे मुक्ति पाने की छटपटाहट बढ़ती जाती है। कई लोग इसे बीमारी का नाम दे देते हैं। पर यह बीमारी नहीं है। तनाव के कारण मन की ऐसी दशा होती है। यह एक प्रकार की अस्थायी स्थिति है। इससे बाहर आने के लिए स्वयं को दृढ़ बनाना होगा। फिर भी यह सब-कुछ चलता रहेगा, जब तक यह परीक्षारूपी तलवार सर पर लटकती होगी। परीक्षा खत्म, सब कुछ सामान्य।
लेकिन परीक्षा तक आखिर ऐसा क्या किया जाए, जिससे मन भटके नहीं? यह तो तय है कि बिना परिश्रम के सफलता नहीं मिल सकती। सफल जीवन के लिए सबसे पहले दिनचर्या को व्यवस्थित करना होगा। इसमें शामिल है शरीर का स्वस्थ रहना। यह स्वस्थ रहेगा, तभी हम भविष्य की इबारत लिखने में कामयाब होंगे। भटकाव एक मन आधारित प्रक्रिया है। जो कुछ घट रहा है, वह मन में घट रहा है, लेकिन इसका असर शरीर पर पड़ रहा है। इसीलिए कहा गया है कि ‘मन चंगा तो कठौती में गंगा।’ अपनी शक्ति पर विश्वास रखो, हम सब कुछ कर सकते हैं। मन पर काबू रखो, जो भी करो, पूरी निष्ठा के साथ करो। भीतर की शक्ति को पहचानो। असफलता से क्यों डरना? आप जानते हैं- जो कभी भी कहीं असफल नही हुआ वह आदमी महान नहीं हो सकता । असफलता आपको महान कार्यों के लिए तैयार करने की प्रकृति की योजना है । सफलता की सभी कथाएं बडी-बडी असफलताओं की कहानियां हैं। असफलता फिर से अधिक सूझ-बूझ के साथ कार्य आरम्भ करने का एक अवसर मात्र है । असफल होने पर, आप को निराशा का सामना करना पड़ सकता है। परन्तु, प्रयास छोड़ देने पर, आप की असफलता सुनिश्चित है। हमारी प्रत्येक गलती हमें कुछ न कुछ सिखाती ही है। जो भी सीखें, अपनी गलतियों से सीखें। सफलता हमारे बहुत करीब होगी। यह तय मानो कि असफलता सफलता की दिशा में बए़ाया गया पहला कदम है। कदम कभी गलत नहीं होते, गलत होते हैं उसके परिणाम। कदम ईमानदारी भरा होगा, तो परिणाम भी ईमानदाराना होंगे। इसलिए कोई भी कदम उठाने से पहले अपने करीब से बेईमानी को दूर भगा दें, पूरी शिद्दत के साथ ईमानदारी के साथ एक कदम उठाकर तो देखो, परिणाम अपेक्षा से अधिक सुनहरा होगा। इस एक कदम के बाद हम अपने स्थान से दस कदम आगे होंगे। तो जनाव सोच क्या रहे हैं, एक कदम तो ईमानदारी से उठाओ, फिर देखो दस कदमों का कमाल!
डॉ. महेश परिमल
शुक्रवार, 23 मार्च 2012
सफलता की दिशा में बढ़ाया गया पहला कदम है असफलता
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ललित निबंध
जीवन यात्रा जून 1957 से. भोपाल में रहने वाला, छत्तीसगढ़िया गुजराती. हिन्दी में एमए और भाषा विज्ञान में पीएच.डी. 1980 से पत्रकारिता और साहित्य से जुड़ाव. अब तक देश भर के समाचार पत्रों में करीब 2000 समसामयिक आलेखों व ललित निबंधों का प्रकाशन. आकाशवाणी से 50 फ़ीचर का प्रसारण जिसमें कुछ पुरस्कृत भी. शालेय और विश्वविद्यालय स्तर पर लेखन और अध्यापन. धारावाहिक ‘चाचा चौधरी’ के लिए अंशकालीन पटकथा लेखन. हिन्दी गुजराती के अलावा छत्तीसगढ़ी, उड़िया, बँगला और पंजाबी भाषा का ज्ञान. संप्रति स्वतंत्र पत्रकार।
संपर्क:
डॉ. महेश परिमल, टी-3, 204 सागर लेक व्यू होम्स, वृंदावन नगर, अयोघ्या बायपास, भोपाल. 462022.
ईमेल -
parimalmahesh@gmail.com
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