डॉ. महेश परिमल
हमारे बीच बहुत से ऐसे लोग थे, जो ईमानदार होने के बाद भी बेईमानी की मौत मर गए। बेईमानी का आशय यह है कि वे ईमानदार लोग बेईमानों के चक्रव्यूह में फँस गए। यही बेईमान लोग आज नेता के रूप में बड़े-बड़े पदों पर काबिज हैं। अवकाश के दिन एक जांबाज अफसर अपनी ड्यूटी निभाते हुए अपनी जान दे रहा है, तो दूसरी तरफ प्रदेश के नेता अपने बयानों से सियासत का खेल खेल रहे हो, तो फिर कैसे सहज बनेगी, प्रदेश की तस्वीर? इस पर यदि कांग्रेस नेता ये आरोप लगाएँ कि मध्यप्रदेश सरकार को माफिया चला रहे हैं, तो गलत क्या है? आज पूरा प्रदेश ही माफिया की चपेट में है। इन पर कार्रवाई सिर्फ इसलिए नहीं हो पाती,क्योंकि ये चुनाव के समय पार्टी को चंदे के रूप में मोटी रकम देते हैं। मानो चंदा देकर इन्होंने प्रदेश के नेताओं को भी अपना गुलाम बना लिया हो। वैसे सच्चई यही है कि कहीं भी कुछ गलत होता है, तो हमारे ये नेता तुरंत पहुँचकर उसी सही कर देते हैं। प्रदेश में फैले माफियाराज की जो तस्वीर अभी सामने आई है, वह बहुत ही भयानक है। यह तस्वीर यही बताती है कि अपना काम पूरी ईमानदारी से कभी मत करो। इन माफिया के हौसले इतने बुलंद है कि किसी की जान लेना इनके बाएँ हाथ का खेल है। सबसे बड़ी बात यह है कि इनके खिलाफ कोई ऐसा सख्त कानून ही नहीं है, जिससे ये खौफ खाएँ। आसान सा जुर्माना और आसान सी सजा। जो इनके लिए बहुत ही सामान्य है।
मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने इसकी न्यायिक जाँच के आदेश दे दिए हैं। इसके पहले भी प्रदेश में कई घटनाओं की जाँच के लिए आदेश किए जा चुके हैं। यह तो मुख्यमंत्री को भी नहीं मालूम होगा कि कितने मामलों की जाँच हो चुकी है, रिपोर्ट भी आ चुकी है, पर किसी पर भी अमल नहीं किया गया। प्रदेश में एक के बाद एक कई घटनाएँ हो चुकी हैं, जिसमें माफिया का हाथ है, पर अभी तक कोई ऐसा शख्स पकड़ा नहीं गया, जिसे सजा हुई हो। प्रदेश में न्याय व्यवस्था पूरी तरह से चरमरा गई है। हत्या की यह घटना मध्यप्रदेश सरकार के माथे का कलंक है। प्रदेश में लगातार ऐसा हो रहा है कि कर्तव्यनिष्ठ और ईमानदार अफसरों को प्रताड़ित और हतोत्साहित किया जा रहा है। होना तो यह था कि उन्हें संरक्षण दिया जाता, ताकि वे अपना काम और भी अधिक निष्ठा के साथ निभाते। पर ऐसा हुआ नहीं। सरकार अभी तक यह समझने को तैयार ही नहीं है कि ईमानदार अधिकारियों को कर्तव्यनिष्ठा में कितनी परेशानियाँ आती हैं। अवैध खनन में राज्य सरकार को करोड़ों का घाटा हो रहा है। पर इस दिशा में सरकार तो स्वयं आँखें बंद करके बैठी है, पर जो अफसर इस दिशा में सक्रिय होकर कुछ करना चाहते हैं, उन्हें सरेआम मार डाला जाता है। सरकार केवल जाँच का आदेश देकर खामोश हो जाती है। ईमानदार अफसरों को अपनी कर्तव्य परायणता का मोल चुकाना पड़ रहा है। कई अधिकारी इस मोल को चुका चुके हैं, पर सरकार ने इस दिशा में ऐसा कोई भी कड़ा कदम नहीं उठाया, जिससे माफिया के चेहरे पर शिकन भी आई हो।
माफिया प्रदेश में इसलिए बेखौफ है, क्योंकि उन्हें राजनैतिक संरक्षण प्राप्त है। कैसी विडम्बना है, जिन्हें संरक्षण मिलना चाहिए, वे मैदानों में पदस्थ हैं, अपनी जान की परवाह न कर वे कर्तव्यनिष्ठ रहकर देश के विकास में अपना योगदान देना चाहते हैं, पर सरकार उन्हें ऐसा नहीं करने देती। इससे उनका मनोबल ही टूट जाता है। बिना मनोबल के कोई लड़ाई नहीं लड़ी जा सकती। माफिया के हाथ कानून से भी लंबे हैं। इसे साबित करती है, यह घटना। ऐसा नहीं है कि इसके पहले इस तरह की कोई घटना प्रदेश में नहीं हुई। हाल ही में इस तरह की कई घटनाएँ प्रदेश में हुई हैं। जिसकी केवल जाँच ही जारी है। मामला यदि फास्ट ट्रेक कोर्ट में जाए, तभी इस दिशा में कुछ ठोस कार्रवाई संभव हो पाएगी। अभी जो भी मामले हैं, वे सभी अदालत में हैं। कई मामलों में आरोपी जमानत पर रिहा भी हो चुके हैं। ऐसे में यह अपेक्षा कैसे की जा सकती है कि सरकार इस दिशा में कोई ठोस कार्रवाई करेगी?
क्यों खौफ नहीं?
अवैध उत्खनन में सिर्फ प्रति वाहन जुर्माने का प्रावधान। सजा नहीं होती। इसलिए कार्रवाई के बावजूद कोई फर्क नहीं पड़ता। सिद्ध करना मुश्किल, क्योंकि ठेकेदार फर्जी रसीदें पेश कर देता है। खनन में ठेकेदार किराए के ट्रैक्टर-ट्राली लगाते हैं। मामला बढऩे पर सारा आरोप ड्राइवर पर मढ़ देते हैं या ट्रैक्टर मालिक पर। खनिज अफसरों से सांठगांठ के कारण बड़ी कार्रवाई नहीं होती। अधिकांश खनन ठेकेदार सीधे पार्टियों व नेताओं को चंदा देते हैं इसलिए भी उन पर कार्रवाई नहीं होती। एक दशक पहले तक सामान्य व्यक्ति भी खदानें ले लेते थे, पर अब दबंग लोग इस धंधे में आ गए हैं। रॉयल्टी एक जगह की भरते हैं और उसकी आड़ में अन्य स्थानों का खनिज का अवैध परिवहन करते हैं। सरपंचों की दादागिरी इसमें सहायक है। किसी विभाग की कार्रवाई करने पर वे दबाव बनाते हैं। ठेकेदार को सरपंच और ग्राम पंचायतों द्वारा क्षेत्र विशेष में खुदाई के लिए कह देते हैं और जब राजस्व या खनिज विभाग कार्रवाई करता है तो उस पर दबाव बनाते हैं।
खनन माफियाओं का गणित
2007 में बानमोर के बटेश्वरा क्षेत्र में तत्कालीन कलेक्टर व एसपी पर फायरिंग की थी। 2010 में रिठौरा क्षेत्र में पत्थर माफिया ने वन विभाग के कर्मचारियों व अफसरों पर फायरिंग की थी। तब चार लोग घायल हुए थे। 2011 दिसंबर में सेलटैक्स बैरियर के पास शिवनगर में टास्कफोर्स पर फायरिंग की थी। 2012 जनवरी में भाजपा नेता ने अफसर से अवैध पत्थर से भरे दो ट्रैक्टर लूट लिए थे।
.तो अधिकारी चढ़ जाता अवैध उत्खनन की भेंट
फर्शी पत्थर की खदानों से लबरेज मालथौन तहसील के गांव अटा में खनिज माफियाओं का वर्चस्व है। माफिया सागर, ललितपुर, झांसी नेशनल हाइवे को भी क्षति पहुंचाने लगे। तत्कालीन मालथौन थाना प्रभारी (वर्तमान में मुलताई में पदस्थ) मदन मोहन को सितंबर 2010 में एक ट्रक से अवैध पत्थर के परिवहन की सूचना मिली। वे ट्रक का पीछा करते हुए उप्र जिले के नाराहट सीमा में प्रवेश कर गए। बकौल मदन मोहन कई बार ट्रक चालक ने उन्हें कुचलने का प्रयास किया। यदि ओवरटेक करते तो जान भी जा सकती थी। अंतत: चालक भागने में सफल हो गया।
सच्चई यह है.
-खदान माफिया पालते हैं डकैतों को ग्वालियर-चंबल संभाग में खदान माफिया ही डकैतों के रहने-खाने का इंतजाम करते हैं।
- खदान माफिया पुलिस और वन विभाग को अवैध कारोबार से दूर रखने के लिए करता है व्यवस्था।
- डकैत वैध खदान वालों से रंगदारी टैक्स वसूलते हैं, जबकि खदान माफिया खुद ही रसद पहुंचाते हैं।
- जंगल में मिलने वाले संसाधनों की वजह से डकैत पनपते हैं।
- राजेंद्र करई वाला और कल्ली गुर्जर गैंग भी अवैध खदानों से पैसा वसूल रहे हैं।
- प्रमुख डकैत गिरोहों के खत्म होने के बाद ही सामने आई अवैध खनन की घटनाएं।
हत्या पर सियासत
आईपीएस अधिकारी नरेंद्र कुमार की चिता की आग अभी ठंडी भी नहीं हो पाई है कि उनकी हत्या को लेकर मध्य प्रदेश में सियासत शुरू हो गई है। सत्ताधारी दल भाजपा उनकी हत्या को महज एक हादसा करार देने में जुटी है तो वहीं विपक्षी दल कांग्रेस ने सरकार को घेरने की तैयारी कर ली है, जबकि दूसरी ओर उनके हत्यारे अभी भी पुलिस की गिरफ्त से बाहर हैं। हत्या में भाजपा विधायक पर शक:-नरेंद्र के घरवालों का आरोप है कि उनकी हत्या एक साजिश के तहत की गई है। उनके पिता केशव ने इसके पीछे एक भाजपा विधायक पर शक जताया है। उन्होंने कहा कि कुछ समय पहले उस विधायक के दबाव में ही उनकी बहु का तबादला किया गया था। 32 वर्षीय नरेंद्र कुमार 2009 बैच के आईपीएस अधिकारी थे, उनकी पत्नी आईएएस अधिकारी हैं। पूर्व भाजपा विधायक समेत 8 पर मामला दर्ज:-पुलिस पार्टी ने जब अवैध रुप से बेची जा रही शराब की बिRी को रोकने का प्रयास किया तो वहां मौजूद शराब माफिया ने उन पर पत्थरों एवं लाठियों से हमला कर दिया। पुलिस पार्टी को वहां से बेरंग वापस लौटना पड़ा। पुलिस ने पूर्व भाजपा विधायक नरेन्द्र सिंह सहित उनके आठ समर्थकों के खिलाफ नामजद एवं लगभग डेढ़ दर्जन अज्ञात आरोपियों के खिलाफ शासकीय कार्य में बाधा पहुंचाने का मामला दर्ज कर लिया है लेकिन अभी तक किसी की गिरफ्तारी नहीं हुई है।
इन हालात में यह सोचा जा सकता है कि सरकार कितनी विवश है इन माफियाओं के सामने। एक तरह से सरकार नतमस्तक है। सरकार में इच्छा शक्ति का पूरी तरह से अभाव है। सरकार की इसी कमजोरी के कारण ही माफिया सर उठा रहे है। पुलिस बल पर हमला करना अब प्रदेश में आम बात है। पुलिस भी अब अपनी ड्यृटी छोड़कर कुछ ऐसे काम करने लगी है, जिससे उनकी आवक हो और उन्हें संरक्षण भी प्राप्त हो। कर्तव्यनिष्ठ साथियों का हश्र वह अपनी आँखों से देख रही है। ऐसे में कानून-व्यवस्था का लचर होना स्वाभाविक है।
डॉ. महेश परिमल
हमारे बीच बहुत से ऐसे लोग थे, जो ईमानदार होने के बाद भी बेईमानी की मौत मर गए। बेईमानी का आशय यह है कि वे ईमानदार लोग बेईमानों के चक्रव्यूह में फँस गए। यही बेईमान लोग आज नेता के रूप में बड़े-बड़े पदों पर काबिज हैं। अवकाश के दिन एक जांबाज अफसर अपनी ड्यूटी निभाते हुए अपनी जान दे रहा है, तो दूसरी तरफ प्रदेश के नेता अपने बयानों से सियासत का खेल खेल रहे हो, तो फिर कैसे सहज बनेगी, प्रदेश की तस्वीर? इस पर यदि कांग्रेस नेता ये आरोप लगाएँ कि मध्यप्रदेश सरकार को माफिया चला रहे हैं, तो गलत क्या है? आज पूरा प्रदेश ही माफिया की चपेट में है। इन पर कार्रवाई सिर्फ इसलिए नहीं हो पाती,क्योंकि ये चुनाव के समय पार्टी को चंदे के रूप में मोटी रकम देते हैं। मानो चंदा देकर इन्होंने प्रदेश के नेताओं को भी अपना गुलाम बना लिया हो। वैसे सच्चई यही है कि कहीं भी कुछ गलत होता है, तो हमारे ये नेता तुरंत पहुँचकर उसी सही कर देते हैं। प्रदेश में फैले माफियाराज की जो तस्वीर अभी सामने आई है, वह बहुत ही भयानक है। यह तस्वीर यही बताती है कि अपना काम पूरी ईमानदारी से कभी मत करो। इन माफिया के हौसले इतने बुलंद है कि किसी की जान लेना इनके बाएँ हाथ का खेल है। सबसे बड़ी बात यह है कि इनके खिलाफ कोई ऐसा सख्त कानून ही नहीं है, जिससे ये खौफ खाएँ। आसान सा जुर्माना और आसान सी सजा। जो इनके लिए बहुत ही सामान्य है।
मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने इसकी न्यायिक जाँच के आदेश दे दिए हैं। इसके पहले भी प्रदेश में कई घटनाओं की जाँच के लिए आदेश किए जा चुके हैं। यह तो मुख्यमंत्री को भी नहीं मालूम होगा कि कितने मामलों की जाँच हो चुकी है, रिपोर्ट भी आ चुकी है, पर किसी पर भी अमल नहीं किया गया। प्रदेश में एक के बाद एक कई घटनाएँ हो चुकी हैं, जिसमें माफिया का हाथ है, पर अभी तक कोई ऐसा शख्स पकड़ा नहीं गया, जिसे सजा हुई हो। प्रदेश में न्याय व्यवस्था पूरी तरह से चरमरा गई है। हत्या की यह घटना मध्यप्रदेश सरकार के माथे का कलंक है। प्रदेश में लगातार ऐसा हो रहा है कि कर्तव्यनिष्ठ और ईमानदार अफसरों को प्रताड़ित और हतोत्साहित किया जा रहा है। होना तो यह था कि उन्हें संरक्षण दिया जाता, ताकि वे अपना काम और भी अधिक निष्ठा के साथ निभाते। पर ऐसा हुआ नहीं। सरकार अभी तक यह समझने को तैयार ही नहीं है कि ईमानदार अधिकारियों को कर्तव्यनिष्ठा में कितनी परेशानियाँ आती हैं। अवैध खनन में राज्य सरकार को करोड़ों का घाटा हो रहा है। पर इस दिशा में सरकार तो स्वयं आँखें बंद करके बैठी है, पर जो अफसर इस दिशा में सक्रिय होकर कुछ करना चाहते हैं, उन्हें सरेआम मार डाला जाता है। सरकार केवल जाँच का आदेश देकर खामोश हो जाती है। ईमानदार अफसरों को अपनी कर्तव्य परायणता का मोल चुकाना पड़ रहा है। कई अधिकारी इस मोल को चुका चुके हैं, पर सरकार ने इस दिशा में ऐसा कोई भी कड़ा कदम नहीं उठाया, जिससे माफिया के चेहरे पर शिकन भी आई हो।
माफिया प्रदेश में इसलिए बेखौफ है, क्योंकि उन्हें राजनैतिक संरक्षण प्राप्त है। कैसी विडम्बना है, जिन्हें संरक्षण मिलना चाहिए, वे मैदानों में पदस्थ हैं, अपनी जान की परवाह न कर वे कर्तव्यनिष्ठ रहकर देश के विकास में अपना योगदान देना चाहते हैं, पर सरकार उन्हें ऐसा नहीं करने देती। इससे उनका मनोबल ही टूट जाता है। बिना मनोबल के कोई लड़ाई नहीं लड़ी जा सकती। माफिया के हाथ कानून से भी लंबे हैं। इसे साबित करती है, यह घटना। ऐसा नहीं है कि इसके पहले इस तरह की कोई घटना प्रदेश में नहीं हुई। हाल ही में इस तरह की कई घटनाएँ प्रदेश में हुई हैं। जिसकी केवल जाँच ही जारी है। मामला यदि फास्ट ट्रेक कोर्ट में जाए, तभी इस दिशा में कुछ ठोस कार्रवाई संभव हो पाएगी। अभी जो भी मामले हैं, वे सभी अदालत में हैं। कई मामलों में आरोपी जमानत पर रिहा भी हो चुके हैं। ऐसे में यह अपेक्षा कैसे की जा सकती है कि सरकार इस दिशा में कोई ठोस कार्रवाई करेगी?
क्यों खौफ नहीं?
अवैध उत्खनन में सिर्फ प्रति वाहन जुर्माने का प्रावधान। सजा नहीं होती। इसलिए कार्रवाई के बावजूद कोई फर्क नहीं पड़ता। सिद्ध करना मुश्किल, क्योंकि ठेकेदार फर्जी रसीदें पेश कर देता है। खनन में ठेकेदार किराए के ट्रैक्टर-ट्राली लगाते हैं। मामला बढऩे पर सारा आरोप ड्राइवर पर मढ़ देते हैं या ट्रैक्टर मालिक पर। खनिज अफसरों से सांठगांठ के कारण बड़ी कार्रवाई नहीं होती। अधिकांश खनन ठेकेदार सीधे पार्टियों व नेताओं को चंदा देते हैं इसलिए भी उन पर कार्रवाई नहीं होती। एक दशक पहले तक सामान्य व्यक्ति भी खदानें ले लेते थे, पर अब दबंग लोग इस धंधे में आ गए हैं। रॉयल्टी एक जगह की भरते हैं और उसकी आड़ में अन्य स्थानों का खनिज का अवैध परिवहन करते हैं। सरपंचों की दादागिरी इसमें सहायक है। किसी विभाग की कार्रवाई करने पर वे दबाव बनाते हैं। ठेकेदार को सरपंच और ग्राम पंचायतों द्वारा क्षेत्र विशेष में खुदाई के लिए कह देते हैं और जब राजस्व या खनिज विभाग कार्रवाई करता है तो उस पर दबाव बनाते हैं।
खनन माफियाओं का गणित
2007 में बानमोर के बटेश्वरा क्षेत्र में तत्कालीन कलेक्टर व एसपी पर फायरिंग की थी। 2010 में रिठौरा क्षेत्र में पत्थर माफिया ने वन विभाग के कर्मचारियों व अफसरों पर फायरिंग की थी। तब चार लोग घायल हुए थे। 2011 दिसंबर में सेलटैक्स बैरियर के पास शिवनगर में टास्कफोर्स पर फायरिंग की थी। 2012 जनवरी में भाजपा नेता ने अफसर से अवैध पत्थर से भरे दो ट्रैक्टर लूट लिए थे।
.तो अधिकारी चढ़ जाता अवैध उत्खनन की भेंट
फर्शी पत्थर की खदानों से लबरेज मालथौन तहसील के गांव अटा में खनिज माफियाओं का वर्चस्व है। माफिया सागर, ललितपुर, झांसी नेशनल हाइवे को भी क्षति पहुंचाने लगे। तत्कालीन मालथौन थाना प्रभारी (वर्तमान में मुलताई में पदस्थ) मदन मोहन को सितंबर 2010 में एक ट्रक से अवैध पत्थर के परिवहन की सूचना मिली। वे ट्रक का पीछा करते हुए उप्र जिले के नाराहट सीमा में प्रवेश कर गए। बकौल मदन मोहन कई बार ट्रक चालक ने उन्हें कुचलने का प्रयास किया। यदि ओवरटेक करते तो जान भी जा सकती थी। अंतत: चालक भागने में सफल हो गया।
सच्चई यह है.
-खदान माफिया पालते हैं डकैतों को ग्वालियर-चंबल संभाग में खदान माफिया ही डकैतों के रहने-खाने का इंतजाम करते हैं।
- खदान माफिया पुलिस और वन विभाग को अवैध कारोबार से दूर रखने के लिए करता है व्यवस्था।
- डकैत वैध खदान वालों से रंगदारी टैक्स वसूलते हैं, जबकि खदान माफिया खुद ही रसद पहुंचाते हैं।
- जंगल में मिलने वाले संसाधनों की वजह से डकैत पनपते हैं।
- राजेंद्र करई वाला और कल्ली गुर्जर गैंग भी अवैध खदानों से पैसा वसूल रहे हैं।
- प्रमुख डकैत गिरोहों के खत्म होने के बाद ही सामने आई अवैध खनन की घटनाएं।
हत्या पर सियासत
आईपीएस अधिकारी नरेंद्र कुमार की चिता की आग अभी ठंडी भी नहीं हो पाई है कि उनकी हत्या को लेकर मध्य प्रदेश में सियासत शुरू हो गई है। सत्ताधारी दल भाजपा उनकी हत्या को महज एक हादसा करार देने में जुटी है तो वहीं विपक्षी दल कांग्रेस ने सरकार को घेरने की तैयारी कर ली है, जबकि दूसरी ओर उनके हत्यारे अभी भी पुलिस की गिरफ्त से बाहर हैं। हत्या में भाजपा विधायक पर शक:-नरेंद्र के घरवालों का आरोप है कि उनकी हत्या एक साजिश के तहत की गई है। उनके पिता केशव ने इसके पीछे एक भाजपा विधायक पर शक जताया है। उन्होंने कहा कि कुछ समय पहले उस विधायक के दबाव में ही उनकी बहु का तबादला किया गया था। 32 वर्षीय नरेंद्र कुमार 2009 बैच के आईपीएस अधिकारी थे, उनकी पत्नी आईएएस अधिकारी हैं। पूर्व भाजपा विधायक समेत 8 पर मामला दर्ज:-पुलिस पार्टी ने जब अवैध रुप से बेची जा रही शराब की बिRी को रोकने का प्रयास किया तो वहां मौजूद शराब माफिया ने उन पर पत्थरों एवं लाठियों से हमला कर दिया। पुलिस पार्टी को वहां से बेरंग वापस लौटना पड़ा। पुलिस ने पूर्व भाजपा विधायक नरेन्द्र सिंह सहित उनके आठ समर्थकों के खिलाफ नामजद एवं लगभग डेढ़ दर्जन अज्ञात आरोपियों के खिलाफ शासकीय कार्य में बाधा पहुंचाने का मामला दर्ज कर लिया है लेकिन अभी तक किसी की गिरफ्तारी नहीं हुई है।
इन हालात में यह सोचा जा सकता है कि सरकार कितनी विवश है इन माफियाओं के सामने। एक तरह से सरकार नतमस्तक है। सरकार में इच्छा शक्ति का पूरी तरह से अभाव है। सरकार की इसी कमजोरी के कारण ही माफिया सर उठा रहे है। पुलिस बल पर हमला करना अब प्रदेश में आम बात है। पुलिस भी अब अपनी ड्यृटी छोड़कर कुछ ऐसे काम करने लगी है, जिससे उनकी आवक हो और उन्हें संरक्षण भी प्राप्त हो। कर्तव्यनिष्ठ साथियों का हश्र वह अपनी आँखों से देख रही है। ऐसे में कानून-व्यवस्था का लचर होना स्वाभाविक है।
डॉ. महेश परिमल
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