शनिवार, 5 अप्रैल 2008

एक मासूम हत्यारा कैसे हो सकता है?


डॉ महेश परिमल
एक बार फिर एक बाल हत्यारा सुर्खियॊं में है। उसके क्रिकेट के खेल में हुए विवाद पर अपने ही साथी को चाकू से मार डाला। आखिर क्या कारण है कि आज के युवा और मासूम दोनों ही अपने गुस्से पर नियंत्रण नहीं रख पा रहे हैं। कभी स्कूल में तो कभी खेल के मैदान में वे अपना रौद्र रूप दिखा देते हैं। माता-पिता कहते हैं कि ऐसा हो जाता है। पर सच यह नहीं है। मनोवैज्ञानिक कहते हैं कि आज घर में ही जो बच्चों का दुश्मन टीवी के रूप में बैठा है, वही इन मासूमों को सब कुछ सिखा रहा है। आपको भले ही यह बात नागवार गुजरे, पर सच यही है कि आज सुदूर गाँवों में भी बच्चे कुछ ऐसा सीख रहे हैं, जो उस उम्र में नहीं सीखा जाना चाहिए। संभ्रांत परिवार के बच्चों को यह सब आसानी से मिल जाता है, पर आज मध्यम और निम्न तबके के लोग भी टीवी से अछूते नहीं हैं, वे भी इससे कुछ तो ऐसा सीख ही रहे हैं, जो समाज के लिए ठीक नहीं है।
आठ साल का मासूम एक से अधिाक हत्याए कर सकता है। यह बात मानने लायक नहीं है।पर यह सच है। आज जहॉ चारों ओर हिंसा का साम्राज्य है, दूसरी ओर आकाशीय मार्ग से होने वाली ज्ञान वर्षा के कारण बच्चे समय से पहले ही समझदार होने लगे हैं,इस स्थिति में कोई एकदम निरापद रह सकता है,यह कल्पनाकरना मुश्किल है।विदेशों में तो आजकल बच्चों का गुस्सा देखने लायक होता है।वेअब स्कूलों में पिस्तौल लेकर जाने लगे हैं,थोड़ा साभी गुस्सा आया कि वे चला देते हैं दनादन गोलियाँ।बाद में पता चलता है कि नाराजगी की कोई बात ही नहीं थी, यदि थी भी तो बहुत छोटी थी।उसका यह अंजाम होगा किसी ने नहीं सोचा। हम जिस मासूम की बात कर रहे हैं, वह किसी शहर का नहीं, बल्कि बिहार के बेगूसराय जिले के भगवानपुर गॉव का है, नाम है उसका अमरदीप सदा।मात्र आठ वर्ष की उम्र, इस उम्र में बच्चा क्या सीख पाता है,वह भी ठेठ गॉव का बच्चा।लेकिन उसने बिना कुछसीखे ही बता दिया कि हत्या करने में उसे मजा आता है। उसने अभी तक तीन खून किए हैं।खुद की सगी बहन,चाचा की लड़की और मामाकी लड़की की हत्या ठंडे कलेजे से करदी।जब पुलिस ने इन हत्याओं के बारे में उससे पूछा तो जवाब में वह हँसते हुए कहता है कि मुझे मजा आरहा था।इसलिए मार डाला।उस मासूम को अपने किए पर जरा भी पछतावा नहीं है।हर सवाल के जवाब में वह हॅसता ही है।
आश्चर्य इसबात का हैकि अमरदीप के खानदान में आजतक कोई ऐसा नहीं हुआ है,जिसने इसतरह का अपराधा किया हो।जब परिवार में ऐसी कोई बात नहीं है,तो फिर आक्रामक और हिंसक होने के बीज उसे कहाँ से मिले?इसके अलावा उस गॉव में भी ऐसी कोई बात नहीं है, जिसके आधाार पर यह कहा जा सके कि समाज ही ऐसा है।इसका कारण खोजने के लिए हम काफी दूर जा रहे हैं,वास्तव में ऐसा नहीं है,कारण बहुत ही करीब है।यही कारण आज सभ्रांत परिवारों में भी नजर आ रहा है, वही कारण उस गरीब परिवार में भी नजर आया।शहरों में अक्सर ऐसाहोता है कि माता-पिता जबदोनों ही नौकरी पर जाते हैं, तो घर में अकेला रहने वाला मासूम किसी अनजाने मोह में फॅस जाता है।यह मोह अपनी गर्ल फ्रेण्ड या बॉय फ्रेण्ड को लेकर हो सकता है, उससे जरा सा भी कहीं कुछ विचारों की पटरी नहीं बैठी,तो दिमाग का पारा सातवें आसमान पर पहुच जाता है।इसका अंजाम भी बुरा ही होता है।
गॉव के इस मासूम के साथ ऐसी कोई बात नहीं थी। बात यह हुई कि जब उस मासूम ने पहली बार हत्या की,तो उसके पालकों ने इस घटना को गंभीरता से नहीं लिया।वे इस बात को जानते हुए भी दबाना चाहते थे, पर जब उस बच्चे ने पड़ोसी की बच्ची को मार डाला,तब इस बात को नहीं छिपाया जा सका और गॉव वालों ने भगवानपुर पुलिस स्टेशन पर इसकी शिकायत की।बात तब सामने आई।पुलिस स्टेशन में जब उस बच्चे से पूछा कि उसने हत्या कैसे की,तब उसने हॅसते हुए बताया किएक मासूम खुश्बू का तो पहले उसने गला दबा दिया। इसके बाद भी संतोष नहीं मिला,तो उसने उसके माथे पर पत्थरों से चोट की, फिर एक निर्जन स्थान पर जाकर उसे गाड़ दिया। इसके बाद जब खुश्बू को खोज शुरू हुई, तो इसी अमरदीप ने सबको उस स्थान तक पहुॅचाया, जहॉ उसे गाड़ा गया था, मानो उसने कोई बहुत ही बड़ा काम किया हो।
इस संबंधा में मनोवैज्ञानिकों का मानना है कि इस मासूम की प्रवृति पर पीड़ा में आनंद लेने की है। ऍगरेजी में इसे 'सेडिस्ट' कहते हैं। इस उम्र में बच्चा स्वप्रेरित होकर ऐसा कुछ कर सकता है, इसकी कल्पना ही नहीं की जा सकती।यदि वह बालक शहर में रहता और वहॉ की संस्कृति से परिचित होता, तो यह समझा जा सकता था कि ऐसा संभव है। पर वह गॉव का है, जहॉ ऐसा कोई संसाधान नहीं है, जिससे वह प्रेरणा ले सके।बात एक बार फिर पालकों के गलत रवैए की ओर चली जाती है। जब बच्चे ने पहली बार हत्या की,तो उसके पालकों ने इसे दबाए क्यों रखा? फिर जब उसने अपनी गलती दोहराई, तब भी उसे न तो डॉटा, न पीटा और नही नाराजगी दिखाई।इससे उसकी हिम्मत बढ़ गई। उसके अचेतन में यहबात पैठ गई कि इसप्रकार की गलती यदि बार-बार दोहराई जाए, तो कोई बुरा नहीं है।इससे उसकी हिम्मत बढ़ी और उसने एक बार फिर हत्या की।
अब जरा उस स्थिति पर ध्यान दें।हिंसा काककहरा बच्चा कहॉ से सीखता है? घर के टीवी से, अखबारों से और समाज में होने वाली तमाम हिंसक घटनाओं से।इन सबका बच्चों के अचेतन परगहरा प्रभाव पड़ता है।हिंसा आजसमाज का एक आवश्यक अंग बनकर रह गई है। अब तो सास-बहू के धाारावाहिक में भी हिंसा आवश्यक होगई है।उसके बिनातो धारावाहिक में महिलाओं को भी मजा नहीं आता। कभी बच्चे के जन्म दिन पर मिलने वाले उपहारों पर धयान दिया है।बंदूक, गन, पिस्तौल, हिंसा वाले खेल की सीडी, कंप्यूटर गेम,जिसमें गोलियॉ अनलिमिटेड होती हैं, बस अपराधियों कोमारते जाना है।इन खेलों केनियम-कायदों को बच्चे आसानी से जान जाते हैं। कभी धयान दिया कि बच्चे इतनी आसानी सेये सब कैसे कर लेते
हैं?हम सोचते हैं कि नई उमर की हवा से कोई बेअसर नहीं रह सकता। यह आज की जरूरत है।पर क्या यह सोचा,पहले जब समय की जरूरत थी, तो आपने यह सब क्यों नहीं सीखा?जो हम सीख नहीं पाए, उसे हम बच्चों के माधयम से सीखना चाहते हैं।पर बच्चे से आप क्या सीख रहे हैं, इस पर कभी गंभीरता से विचार किया? कभी-कभी ऐसा भी होता है कि जो हमने सीखा उसे हमें बच्चे को सिखाते हैं।यह मैेंने तब जाना,जब एक पिता को अपने 6 वर्ष के बच्चे को टीवी पर वार गेम सिखाते देखा। आज समाज में हिंसा काजो अतिरेक हमें दिखाई दे रहा है उसके मूल में जाए तो सब स्पष्ट हो जाएगा। फिर वहचाहे स्कूल में बच्चे द्वारा की गई हिंसा हो,याफिर अपनी ही सहपाठी के साथ बलात्कार।हमें इसके मूल में जाना ही होगा, तभी हम कुछ समझ सकते हैं।अब स्थिति यह है कि अमरदीप के अपने कोई भाईबहन नहीं है। मारपीट के डर से उसके मजदूर माता-पिता गॉव छोड़कर चले गए हैं। अब उस मासूम का भविष्य पुलिस और उसके समाज के हाथों में है। उसका क्या होगा, यह कोई नहीं जानता, पर यह सब जानते हैं कि अपने बच्चों की हरकतों पर यदि समय रहते धयान नहीं दिया गया, तो बच्चे के साथसाथ माता-पिता का भविष्य खतरे में है।
डॉ महेश परिमल

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