मंगलवार, 1 अप्रैल 2008
अप्रैल फूल का इतिहास
आरुणि परिमल
अप्रैल फूल याने मूर्ख दिवस, मार्च के अंतिम सप्ताह से समझदार लोग कुछ लोगों को मूर्ख बनाने की जुगत में लग जाते हैं। कुछ लोग तो इस दिन केवल इसलिए घर से बाहर नहीं निकलते कि कहीं कोई उन्हें अप्रैल फूल न बना दे। वैसे इस दिन सभी की कोषिष होती है कि किसी से बेवफूफ न बनें, पर कुछ लोग बन ही जाते हैं। कुछ लोग इस दिषा में अधिक जागरूक होते हैं। वे तो यह सोचने में ही वक्त निकाल देते हैं कि आखिर इस दिन की षुरुआत कैसे हुई होगी? जो बेवकूफ न बनें हों, वे सोचते रहें, पर हम आपको बता देते हैं कि इस दिन की षुरुआत कैसे हुई:-
सदियों पहले रोमन कैलेण्डर के अनुसार पहली अप्रैल याने वसंत ऋतु का पहला दिन। ईस्वी पूर्व 154 में पहली अप्रैल नए वर्ष का पहला दिन था। जब रोम की सत्ता ईसाइयों के हाथ में आई, तब उन्होंने वसंत की धार्मिक विधि के बदले ईस्टर का आयोजन षुरू किया। पुराने जमाने के लोग फिर भी अप्रैल में ही नया साल मनाते थे, जो नए जमाने के लोगों को अच्छा नहीं लगा, तब नए जमाने के लोगों ने अप्रैल में नया साल मनाने वालों का मजाक उड़ाना षुरू किया। इस तरह से नए लोग उन्हें मूर्ख समझने लगे और उन्हें इस दिन नए-नए ढंग से मूर्ख भी बनाने लगे। इस तरह से अप्रैल फूल डे की षुरुआत हुई।
एक दंतकथा के अनुसार सोलहवीं सदी में फ्रांस में नया साल पहली अप्रैल को षुरु होता था, परंतु ईस्वी सन् 1562 में पोप ग्रेगरी ने नया कैलेण्डर बनाया, जिसके अनुसार नया साल पहली जनवरी से षुरु हुआ। फिर भी कई लोगों ने पहली जनवरी को नए वर्ष के रूप में स्वीकार नहीं किया। वे लोग पुरानी परंपरा के अनुसार ही पहली अप्रैल को नया साल मनाते थे। इससे आधुनिक लोग परंपरावादियों को अप्रैल फूल कहकर चिढ़ाते औैर उन्हें मूर्खता के संदेष भेजते। यह परम्परा आज भी चली आ रही है। आज भी मित्रों में यह होड़ लगी रहती है कि कौन अधिक से अधिक लोगों को सबसे पहले मूर्ख बनाए। अब तो लोग यह भी मानने लगे हैं कि एक अप्रैल मूर्खों का दिन है और बाकी दिन समझदारों के।
वैसे हँसी-मजाक स्वास्थ्य के लिए अच्छे होते हैं, पर यह दिल्लगी कभी किसी पर आफत के रूप में भी सामने आ सकती है। इसलिए लोग मूर्ख बनने से डरते भी हैं। इस डर को फोबिया कहा जाता है। आइए जानें कि यह फोबिया कितनी तरह का होता है। षोध के अनुसार यह फोबिया कई प्रकार का होता है, लेकिन हम यहाँ मुख्य 6 फोबिया के बारे में चर्चा करेंगे।
1. केटेगिलो फोबिया :-यह फोबिया ऐसे लोगों को होता है, जो खुद का मजाक बनने से डरते हैं।
2. नियो फोबिया :-खुद के साथ कुछ नया होने का डर नियो फोबिया कहलाता है। मूर्ख बनने के डर से कई लोग डरते ही रहते हैं।
3. रयूथो फोबिया :-इस प्रकार के फोबिया में लोग इस बात पर डरते हैं कि कहीं उन्हें सबके सामने हँसी का पात्र न बना दिया जाए।
4. स्कोपो फोबिया :- कितने लोग इस बात से डरते हैं कि पहली अप्रैल के दिन वे अन्य लोगों के सामने आष्चर्य का केंद्र न बन जाएँ।
5. मायथो फोबिया :- जिन्हें हमेषा इस बात का डर लगा रहता है कि वे कहीं किसी से कुछ गलत न बोल जाएँ।
6. ट्रोमैटो फोबिया :-इस प्रकार के फोबिया में लोगों को अपनी संवेदनाओं का मजाक बन जाने का डर होता है।
कई बार हम कुछ लोगों से इस तरह से मजाक कर लेते हैं, जिससे उनके दिल को चोट पहुँचती है, इसका सामने वाले पर खराब असर होता है। इस तरह के फोबिया से ग्रस्त लोग गलत कदम उठा लेते हैं।
पूरी दुनिया में एक अप्रैल के दिन सभी एक-दूसरे को फूल यानि मूर्ख बनाते हैं। क्या आप जानते हैं कि कई बार ऐसे भी मजाक हुए हैं, जिनसे 8-10 नहीं, बल्कि हजारों लोग एक साथ मूर्ख बनें हैं। आइए देखें, वे सब कैसे मूर्ख बने :-
बीबीसी ने बनाया अप्रैल फूल :-सन् 1957 में टीवी पर बीबीसी ने अपने एक कार्यक्रम ''पैनोरमा'' में खबर दिखाई कि स्विट्जरलैण्ड में एक खास तरह के पेड़ पर स्पेगेटी ऊग रहे हैं। स्पेगेटी एक प्रकार का लोकप्रिय इतालवी भोजन (पास्ता) होता है, जिसे लम्बा और पतला बनाया जाता है। इस खबर के साथ ही बीबीसी ने एक वीडियो भी दिखाया, जिसमें एक महिला को सावधानी से स्पेगेटी पेड़ से तोड़कर उसे सूखाते हुए दिखाया। इसे देखने के बाद कई दर्षक इतने उत्साहित हो गए कि वे खुद के स्पेगेटी पेड़ खरीदने के लिए बीबीसी आफिस में फोन कर पूछताछ करने लगे। बीबीसी द्वारा किया गया यह मजाक पहला मौका था, जब टीवी द्वारा लोगों को अप्रैल फूल बनाया गया।
एक बार फिर :- इसके बाद 1965 में एक बार फिर बीबीसी ने अपने दर्षकों को अप्रैल फूल बनाया। उन्होंने यह घोषणा की कि बीबीसी ने एक नई तकनीक तैयार की है, जिससे ट्रांसमिषन के दौरान वह अपने दर्षकों तक कई प्रकार की सुगंध भेज रहे हैं। इस खबर के बाद भी कई दर्षकों ने बीबीसी कार्यालय में फोन करके यह बताया कि उनके कार्यक्रमों के साथ सुगंध भी आई थी।
डी-हाइड्रेटेड वॉटर :- सन् 1970 में इंग्लैण्ड में यू. के. टेलिविजन ने एक कार्यक्रम में डी-हाइड्रेटेड वॉटर की टेबलेट्स के बारे में खबर दी, जिसके अनुसार डी-हाइड्रेटेड वॉटर की गोलियों को तेज धूप में रखने पर सूरज की पराबैगनी किरणों से यह गोलियाँ टूट जाती हैं, फिर वातावरण में मौजूद ऑक्सीजन के साथ उसकी प्रतिक्रिया होती है, जिससे कई गैलन पानी बनाया जा सकता है। इस तरह यू. के. टीवी ने भी हजारों लोगों को अप्रैल फूल बनाया।
तो कैसा लगा आपको यह अप्रैल फूल बनाने का तरीका। कहीं आप तो कभी इस तरह से अप्रैल फूल नहीं बने?
आरुणि परिमल
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बच्चों का कोना
जीवन यात्रा जून 1957 से. भोपाल में रहने वाला, छत्तीसगढ़िया गुजराती. हिन्दी में एमए और भाषा विज्ञान में पीएच.डी. 1980 से पत्रकारिता और साहित्य से जुड़ाव. अब तक देश भर के समाचार पत्रों में करीब 2000 समसामयिक आलेखों व ललित निबंधों का प्रकाशन. आकाशवाणी से 50 फ़ीचर का प्रसारण जिसमें कुछ पुरस्कृत भी. शालेय और विश्वविद्यालय स्तर पर लेखन और अध्यापन. धारावाहिक ‘चाचा चौधरी’ के लिए अंशकालीन पटकथा लेखन. हिन्दी गुजराती के अलावा छत्तीसगढ़ी, उड़िया, बँगला और पंजाबी भाषा का ज्ञान. संप्रति स्वतंत्र पत्रकार।
संपर्क:
डॉ. महेश परिमल, टी-3, 204 सागर लेक व्यू होम्स, वृंदावन नगर, अयोघ्या बायपास, भोपाल. 462022.
ईमेल -
parimalmahesh@gmail.com
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