शुक्रवार, 1 अगस्त 2008
किडनी कांड : भारतीय समाज पर लगा कलंक
डॉ. महेश परिमल
क्या आप सोच सकते हैं कि कोई व्यक्ति किसी आरोप में पाँच बार गिरफ्तार हुआ हो, उसके बाद भी वह अपना गलत काम बेखौफ जारी रखता हो, ऐसा कैसे संभव हो सकता है। जी हाँ, ऐसा केवल हमारे देश में ही संभव है। यहाँ ऐसा होता आया है। पुलिस और नेताओं की छत्रछाया में हमारे देश में कई अपराध आज भी फल-फूल रहे हैं। अपराधी अपराध करने के बाद भी बेखौफ रहते हैं, वे यह अच्छी तरह से जानते हैं कि उन पर पुलिस और नेताओं का हाथ है, इसीलिए किडनी कांड का आरोपी जब गिरफ्तार किया गया, तो उसके चेहरे पर मुस्कान थी। इससे लगता है कि उसे अपने किए पर भी पछतावा नहीं है। पुलिस से उसके संबंध इतने गहरे हैं कि जब उसे गिरफ्तार किया जाना था, तब उसे इसकी जानकारी हो गई थी और वह नेपाल भाग गया।
जब कोई अपराध लम्बे समय से बेखौफ चल रहा हो, तो यह तय मानें कि उस अपराध पर पुलिस या नेताओं का साया है। ऐसा देशको बदनाम करने वाले किडनी कांड में भी हुआ। इस मामले में अभी कुछ पुलिस अधिकारियों की धरपकड़ हुई है, जिन पर आरोप है कि उन्होंने अमित कुमार से 19.85 करोड़ रुपए की रिश्वत लेकर किडनी कांड के कथित सरगना को छोड़ दिया। अभी इस मामले में 6 पुलिस अधिकारियों की गिरफ्तारियाँ शेष हैं। यदि इस मामले की निष्पक्षता से जाँच की जाए, तो कई पुलिस अधिकारियों के अलावा कई राजनेताओं के चेहरे सामने आ सकते हैं।
नेपाल पुलिस ने जब अमित कुमार को गिरफ्तार किया, तब उसके पास यूरो और डॉलर के रूप में करीब छह करोड़ रुपए थे। उसने कुछ समय पहले ही कनाडा में ढाई करोड़ रुपए में एक मकान खरीदा था, जहाँ वह अपनी दूसरी पत्नी पूनम और बच्चों के साथ रहता था। नेपाल पुलिस ने जब उसे पकड़ा, तो वह दुबई के रास्ते कनाडा भाग जाने के फिराक में था। बताया जाता है कि उसने इस धंधे में 10 अरब रुपए से भी अधिक की कमाई की है। उसे एक किडनी से दस लाख रुपए का मुनाफा होता है, इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि उसने कितनी किडनी बेची होगी। पिछले 15 वर्षों में उसने किडनी बेचकर जो धन अर्जित किया, उसका निवेशशेयर बाजार, रियल स्टेट और फिल्म लाइन में किया। अमित कुमार ने कुछ सी ग्रेड की फिल्मों में काम भी किया है।
किडनी कांड के सरगना अमित कुमार के इस अवैधानिक धंधे का लगातार वर्षों तक बेखौफ चलना भारतीय पुलिस तंत्र की विफलता की पहचान है। अमित कुमार जैसा अपराधी 5-5 बार गिरफ्तार हुआ, उसके बाद भी उसकी समाज विरोधी गतिविधियों में कोई फर्क नहीं पड़ा, इससे यह साबित होता है कि हमारे देशका कानून उसकी तमाम समाज विरोधी गतिविधियों को रोक पाने में पूर्णत: विफल रहा। संतोष राउत उर्फ अमित कुमार को सबसे पहले मुम्बई पुलिस ने 1994 में इसी किडनी के धंधे में लिप्त होने के कारण गिरफ्तार किया गया था। उसके बाद उसने अपना नाम बदलकर अमित कुमार के नाम अपना गैर कानूनी धंधा बरकरार रखा। इसके बाद 1990 के दशक में उसके खिलाफ जयपुर में तीन फौजदारी मामले दर्ज हुए, इसके बाद भी उसके धंधे में किसी प्रकार की कमी नहीं आई। उक्त तीनों मामले में से दो मामले आज भी चल रहे हैं। सन् 2000 में दिल्ली पुलिस ने उसकी पाँचवीं बार धरपकड् की और जमानत पर छोड़ दिया। जमानत में छूटने के बाद भी उसने बिना किसी भय के अपना पुराना धंधा जारी रखा। दिल्ली के आसपास तो उसने किडनी के दलालों, डॉक्टरों, पेथालॉजी लेब, नर्सों और नर्सिंग होम्स का एक व्यापक नेटवर्क खड़ा किया था। ये सारी कार्यवाही पुलिस की देखरेख के बिना हो ही नहीं सकती। अमित कुमार ने पुलिस को इतनी बार रिश्वत दी थी कि उसे पुलिस का जरा भी भय नहीं था। इस मामले में वह उस्ताद बन गया था।
मानव शरीर किसी अन्य के अंग को स्वीकार नहीं करता। शरीर हमेशा उस अंग का प्रतिकार करता है। लेकिन सन् 1980 के दशक में वैज्ञानिकों ने ऐसी दवा तैयार की, जिससे शरीर की प्रतिकारक शक्ति दब जाती है। इसके कारण दूसरे की किडनी भी हमारे शरीर में फिट की जा सकती है। इस वैज्ञानिक शोध के कारण इस धंधे में अचानक ही तेजी आ गई और मानव अंगों का व्यापार फलने-फूलने लगा। सन् 1994 में एक कानून के अंतर्गत मानव अंगों की बिक्री पर प्रतिबंध लगा दिया गया। ईरान जैसे कई देशों में आज भी कानूनन किडनी की खरीदी की जा सकती है। किडनी क अंतरराष्ट्रीय बाजार माँग और आपूर्ति के नियमों के अनुसार चलता है। अमित कुमार ने अंतरराष्ट्रीय बाजार में अच्छी साख बना ली थी। उसका यह धंधा दस से अधिक देशों में फैला हुआ था।
दवा बनाने वाली कई अंतरराष्ट्रीय कंपनियों को नई दवा बनाने के लिए लीवर, किडनी, हृदय जैसे अंगों की आवश्यकता पड़ती है। इन अंगों की आपूर्ति अवैधानिक रूप से अमित कुमार जैसे दलाल करते रहते हैं। कानूनी रूप से देखा जाए, तो अपने संबंधी को भी किडनी दान करना हमारे देश में बहुत मुश्किल है। पर यदि इसे ही जरा हटकर देखें तो गैर कानूनी रूप से यह काम बहुत ही आसान हो जाता है। अमित कुमार की सम्पत्ति देखकर यही लगता है कि उसने हमारे देशके सरकारी तंत्र को पूरी तरह से कूचल कर रख दिया है। किडनी बेचने पर उसके सामने कानून कभी आड़े नहीं आया।
दिल्ली के गुड़गाँव की जिस क्लिनिक में अमित कुमार किडनी ट्रांसप्लांट करता था, उसे सरकार की तरफ से इस आशय का कोई लायसेंस नहीं मिला था। उसके बाद भी उसने वर्षों तक यह गैर कानूनी कार्य किया। सन् 2000 में जब उसकी क्लिनिक पर छापा मारा गया, तब उसे सील कर दिया गया था। इसकी जानकारी गुड़गाँव की पुलिस को भी थी, उसके बाद भी यह सील तोड़कर बेखौफ किडनी ट्रांसप्लांट का धंधा जारी रहा, इससे स्पष्ट है कि पुलिस ने उक्त गोरखधंधे को बंद करने के बजाए रिश्वत लेकर जारी रखा। कहा तो यहाँ तक जा रहा है कि पुलिस ने लाखों में नहीं, बल्कि करोड़ों की रिश्वत इस मामले में ली है।
कानून कहता है कि किसी भी क्षेत्र में जब किसी नागरिक पर फौजदारी मामला चलता है, तो उसकी जानकारी करीब के पुलिस स्टेशन को होती है। पुलिस विभाग उस व्यक्ति की गतिविधियों पर नजर रखता है, ताकि वह व्यक्ति पुन: गैर कानूनी धंधे में लिप्त न हो जाए। सन् 2000 में जब अमित कुमार की धरपकड़ की गई, तब जमानत पर रिहा होने के बाद भी उसने अपना पुराना धंधा फिर शुरू कर दिया, इसका आशय यही कि अमित कुमार ने अपना धंधा पुलिस की ही देखरेख में किया। एक तरह से पुलिस ने अमित कुमार को किडनी बेचने का खुला लायसेंस ही दे दिया। पुलिस ने अमित कुमार को कितनी छूट दे रखी थी, इसका अंदाज इसी बात से लगाया जा सकता है कि 2003 में जब तुर्किस्तान के तीन नागरिकों की उसके क्लिनिक में रहस्यमय हालत में मौत हो गई। सामान्य रूप में होता यह है कि भारत में यदि किसी विदेशी व्यक्ति की अप्राकृतिक मौत हो जाए, तो स्थानीय पुलिस इस मामले की सघन जाँच करती है। उसके बाद रिपोर्ट उस देशके दूतावास को देती है। गुड़गाँव की पुलिस ने अमित कुमार से रिश्वत लेकर इस मामले को रफा-दफा कर दिया। तुर्की के दूतावास के दबाव के बाद भी पुलिस ने इस दिशा में कोई उल्लेखनीय कार्य नहीं किया। इससे भी स्पष्ट हो जाता है कि पुलिस किस तरह से अमित कुमार को बचाने की जुगत में लगी थी।
आखिर जब मुरादाबाद पुलिस ने अमित कुमार के गुड़गाँव स्थित क्लिनिक पर छापा मारा, तब उसे इसकी जानकारी मिल गई थी, इसी कारण वह नेपाल भाग जाने में सफल रहा। इस पूरे मामले में अमित कुमार ही अकेला दोषी नहीं है, बल्कि उसे संरक्षण देने वाले कई हाथ हैं, जिसमें भ्रष्टाचारी पुलिस के अलावा कई राजनेता भी शामिल हैं। इस मामले में दोषी पुलिस अधिकारियों पर जब तक सख्त कार्रवाई नहीं होगी, तब तक उसकी छवि धूमिल ही रहेगी। इसके साथ ही यह मामला हमारी न्याय व्यवस्था पर भी चोट करता है। जहाँ एक ओर हजारों निर्दोष बिना न्याय के सालों तक जेल में सड़ने को विवशहैं, वहीं अमित कुमार जैसे अपराधी भी हैं, जो जमानत पर रिहा होकर भी अपना गोरखधंधा जारी रखते हैं। आखिर अपराधी यह सब कैसे कर लेते हैं, निश्चित ही उन्हें इस काम में तमाम बड़े लोगों का संरक्षण प्राप्त होता है। बिना संरक्षण के इतना बड़ा काम इतने समय तक चल ही नहीं सकता।
डॉ. महेश परिमल
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आज का सच
जीवन यात्रा जून 1957 से. भोपाल में रहने वाला, छत्तीसगढ़िया गुजराती. हिन्दी में एमए और भाषा विज्ञान में पीएच.डी. 1980 से पत्रकारिता और साहित्य से जुड़ाव. अब तक देश भर के समाचार पत्रों में करीब 2000 समसामयिक आलेखों व ललित निबंधों का प्रकाशन. आकाशवाणी से 50 फ़ीचर का प्रसारण जिसमें कुछ पुरस्कृत भी. शालेय और विश्वविद्यालय स्तर पर लेखन और अध्यापन. धारावाहिक ‘चाचा चौधरी’ के लिए अंशकालीन पटकथा लेखन. हिन्दी गुजराती के अलावा छत्तीसगढ़ी, उड़िया, बँगला और पंजाबी भाषा का ज्ञान. संप्रति स्वतंत्र पत्रकार।
संपर्क:
डॉ. महेश परिमल, टी-3, 204 सागर लेक व्यू होम्स, वृंदावन नगर, अयोघ्या बायपास, भोपाल. 462022.
ईमेल -
parimalmahesh@gmail.com
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हमारे रक्षक ही भक्षक बन जाये तो कया करे जनता ? ऎसे केसो पर कोई मुकदमा ना चले सीधे ही गोली..... दो चार बार ऎस हो जाये फ़िर देखो कोन कुत्ता किडनी का व्यापार करता हे, लेकिन भारत मे यह सब मुस्किल हे,हमारे यहां सब कुछ बिकाउ हे सब कुछ...........
जवाब देंहटाएंधन्यवाद एक सचाई से रुबरु करने के लिये, जिसे सब जानते हे, लेकिन हमारी पुलिस,हमारा कानुन, हमारे नेता नही जानते,वो सब बिक गये हे:
Raj ji se sahmat hun..
जवाब देंहटाएंachchha lekh aapne likha hai..
आपने सही लिखा है। यही है , आज का सच।
जवाब देंहटाएं