सोमवार, 11 अगस्त 2008
जहां चाह, वहां राह
* अंबरीष
उम्र कैद की सजा काट रहे चुनींदा कैदी विभिन्न व्यावसायिक पाठयक्रमों की पढ़ाई कर रहे. इससे उन्हें रिहाई के बाद नई जिंदगी शुरू करने में मदद मिलने की उममीद है
नर्मदा घाटी की गोद में स्थित होशंगाबाद का एक 51 वर्षीय किसान महिपाल सिंह राजपूत इन दिनों 'रिलायंस फ्रेश' के कारोबार का गहन अध्ययन कर रहा है. अर्थशास्त्र और भूगोल में स्नातकोत्तर उपाधिधारक राजपूत की कृषि उत्पादों में दिलचस्पी स्वाभाविक है, मगर यह बात इस तथ्य के मद्देनजर और भी महत्वपूर्ण हो जाती है कि अभिनव सोच रखने वाला यह किसान हत्या के मामले में आजीवन कारावास की सजा काट रहा है. और कृषि उत्पादों का विपणन एमबीए पाठयक्रम का हिस्सा है, जिसे वह जेल में पढ़ रहा है.
भोपाल केंद्रीय जेल के दो दर्जन से यादा कैदी, जिनमें एक महिला भी शामिल है, इन दिनों एमबीए की पढ़ाई कर रहे हैं. इनमें से एक को छोड़कर सभी हत्या के मामलों में आजीवन कारावास की सजा भुगत रहे हैं. एमबीए की पढ़ाई कर रहा एकमात्र अन्य कैदी भी हत्या की कोशिश करने का दोषी पाया गया था. इन कैदियों के अपराध ने उन्हें जिंदगी के बारे में काफी कुछ पढ़ा दिया और अब सजा उनके लिए नया रास्ता खोल रही है.
जेल में एमबीए पाठयक्रम का संचालन मध्य प्रदेश के भोज मु1त विश्वविद्यालय द्वारा किया जा रहा है. इंदिरा गांधी राष्ट्रीय मु1त विश्वविद्यालय की तर्ज पर राय में बने इस विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ. कमलेश्वर सिंह कहते हैं, ''दूरस्थ शिक्षा का मूल विचार ऐसे समूहों तक पहुंचना है, जो शिक्षा से दूर रहे हैं. जेल में बंद कैदियों से अलग-थलग भला और कौन हो सकता है?''
इस जेल में रहकर एमबीए की डिग्री हासिल करने वाले पहले तीन कैदियों को कम अवधि की सजा हुई थी और वे रिहा हो चुके हैं. जेल के अधिकारी उनकी पहचान जाहिर नहीं करते. उप-जेलर एम. कमलेश कहते हैं, ''हम उनका नाम, सजा की अवधि या रिहाई की तारीख उनकी सहमति के बिना नहीं बता सकते.'' इन दिनों पढ़ रहे कैदी दूसरे सेमेस्टर की परीक्षा उत्ताीर्ण कर चुके हैं. वे अपनी पढ़ाई पर पूरा ध्यान दे रहे हैं और डिग्री हासिल करने को प्रतिबध्द हैं. दो साल पहले इस जेल में दूरस्थ शिक्षा केंद्र शुरू किए जाने के बाद से भोज विश्वविद्यालय के शिक्षक नियमित तौर पर कक्षाएं लेते हैं. जेल के पुस्तकालय में विषय से संबंधित अच्छी पुस्तकें लाई जा चुकी हैं और विश्वविद्यालय कैदियों के लिए नियमित अंतराल पर अध्ययन सामग्री मुहैया कराता है.
कैदियों में सजा के अलावा और कोई समानता नहीं है. सिहोर की निवासी 28 वर्षीया शालिनी पाठक, जो अंग्रेजी में स्नातकोत्तार उपाधिधारक है, राजमार्गों पर डकैती डालने वाले गिरोह की सदस्य थी. ऐसे ही एक मामले में शिकार की हत्या हो गई और पांच साल पहले शालिनी को सजा सुनाई गई. निचली अदालत के फैसले के खिलाफ हाइकोर्ट में शालिनी की अपील अभी लंबित है और उसने एमबीए की पढ़ाई करने का फैसला किया. वह मानव संसाधन प्रबंधन (एचआरएम) में विशेषज्ञता हासिल करना चाहती है. यादातर कैदी एचआरएम में विशेषज्ञता हासिल करना चाहते हैं, तो इसकी वजह भी है. 28 वर्षीय कमलेश गौर का कहना है, ''दरअसल, सजा काटने के बाद जब हम नौकरी करेंगे, तो एचआरएम में परदे के पीछे रहकर भी काम किया जा सकता है. हत्या के मामले में सजा काट चुके शख्स को कोई भी सेल्स या मार्केटिंग में नौकरी नहीं देगा.'' गौर के हाथों अपराध होने से पहले वह अपने गृह नगर सिहोर में एक गैर-सरकारी संगठन (एनजीओ) में कार्यरत था. उसकी दिलचस्पी सामाजिक कार्य में स्नातकोत्तार उपाधि हासिल करने में थी, मगर वह पाठयक्रम जेल में उपलब्ध नहीं है.
एमबीए पाठयक्रम में प्रवेश लेने की प्रेरणा अलग-अलग है. राजपूत ने, जो इस समूह में सबसे उम्रदराज है, महज साथियों को प्रेरित करने के लिए पढ़ने का मन बनाया. उसका कहना है, ''यदि मैं 51 साल की उम्र में पढ़ सकता हूं तो दूसरे भी पढ़ सकते हैं.'' यही नहीं, राजपूत के संयु1त परिवार में बच्चे, जो व्यावसायिक शिक्षा की ओर ध्यान नहीं देते थे, अब इस दिशा में गंभीरता से सोचने लगे हैं.
वहीं 30 वर्षीय राजेश शाक्य को, जो भोपाल निवासी इंजीनियर है और छह साल से सजा काट रहा है, जेल में पहुंचने के बाद अपनी योजनाएं पूरी करने का मौका मिला. उसका कहना है, ''जब मैंने इंजीनियरिंग की पढ़ाई पूरी की, तभी मुझे एहसास था कि इसकी बदौलत नौकरी पाना आसान नहीं है और कुछ विशेषज्ञता हासिल करना जरूरी है.'' अब एमबीए पाठयक्रम के लिए पढ़ाई में जुटने से वह व्यस्त रहता है. उम्र कैद की सजा काट रहे इन कैदियों ने अपनी सजा के खिलाफ हाइकोर्ट में अपील कर रखी है. सिरोंज के 40 वर्षीय मोहम्मद जलील, जिसने सीखचों के पीछे 12 साल काट लिए हैं, के अलावा बाकी किसी भी कैदी को जल्दी रिहा होने की उममीद नहीं है. उन सभी की उम्मीदें अपनी अपील पर टिकी हैं.
बहरहाल, लंबे समय तक जेल में रहने की आशंका भी इन कैदियों को एमबीए की पढ़ाई करने से रोक नहीं सकी. 24 वर्षीय शैलेंद्र बाथम को जब सजा सुनाई गई, तब उसकी उम्र सिर्फ 18 साल थी. किसी दार्शनिक के अंदाज में वह कहता है, ''जो बीत गई, सो बात गई. अब हमारी उममीदें भविष्य पर टिकी हैं.'' अपराध और सजा मिलने के उतार-चढ़ाव भरे दौर में कई कैदियों को किस्मत पर भरोसा होने लगा है. वहीं कुछ अन्य कैदी सुकून पाने के लिए धर्म की शरण लेते हैं. जेल अधीक्षक पुरुषोत्ताम सोमकुंवर, जिन्होंने जेल में एमबीए और डीसीए पाठयक्रम शुरू करने में खासी दिलचस्पी ली, कहते हैं, ''इसी वजह से हमने धर्म शिक्षा और योतिष में पाठयक्रम शुरू किए हैं. इसके पीछे विचार यह है कि कैदियों को ऐसे काम में व्यस्त रखा जाए, जो जीवन के इस कठिन दौर में उन्हें राहत दे सके. इसके अलावा गरीब और निमन-मध्यम वर्ग के इन लोगों को जेल से रिहा होने के बाद इससे आजीविका चलाने में भी मदद मिल सकेगी.''
पर तमाम खूबियों और क्षमताओं के बावजूद यह प्रयास नाकाफी है और इसे जेलों में व्यापक सुधार लाने की वृहद कोशिश की बजाए कुछ अधिकारियों की निजी स्तर पर पहल कहा जा सकता है. चंबल इलाके के दुर्दांत दस्युओं को सुधारने के लिए शुरू की गई देश की पहली 'खुली जेल' दो दशक पहले ही बंद हो चुकी है. दिवंगत फिल्म निर्माता वी. शांताराम ने दो आंखें बारह हाथ फिल्म से कैदियों का जीवन सुधारने का जो अभियान सिनेमा के जरिए छेड़ा था, वह सिरे नहीं चढ़ सका. उनके बाद न्यायमूर्ति मुल्ला आयोग ने जेल सुधारों पर रिपोर्ट सौंपी और फिर महिला कल्याण पर संसदीय समितियों, राय मानवाधिकार आयोगों और नामी-गिरामी विधि संस्थानों ने भी जेल सुधारों के संबंध में दर्जनों अनुशंसाएं कीं. मगर इन्हें किसी-न-किसी बहाने से लागू नहीं किया गया. चूंकि जेल राय सूची का विषय है, तो जेलों से जुड़े कानूनों, संहिताओं और नियम पुस्तिकाओं में संशोधन का अधिकार रायों को है. भोपाल स्थित राष्ट्रीय विधि संस्थान विश्वविद्यालय के प्रोफेसर सी. राजशेखर कहते हैं, ''दुर्भाग्य से आजकल विधि निर्माता इस ओर उदासीनता बरत रहे हैं.''
बहरहाल, भोपाल केंद्रीय जेल में उम्र कैद की सजा काट रहे इन कैदियों को पूरी उममीद है कि व्यावसायिक डिग्री हासिल करने के बाद उनका भविष्य सुधर सकता है.
* अंबरीष
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जिंदगी
जीवन यात्रा जून 1957 से. भोपाल में रहने वाला, छत्तीसगढ़िया गुजराती. हिन्दी में एमए और भाषा विज्ञान में पीएच.डी. 1980 से पत्रकारिता और साहित्य से जुड़ाव. अब तक देश भर के समाचार पत्रों में करीब 2000 समसामयिक आलेखों व ललित निबंधों का प्रकाशन. आकाशवाणी से 50 फ़ीचर का प्रसारण जिसमें कुछ पुरस्कृत भी. शालेय और विश्वविद्यालय स्तर पर लेखन और अध्यापन. धारावाहिक ‘चाचा चौधरी’ के लिए अंशकालीन पटकथा लेखन. हिन्दी गुजराती के अलावा छत्तीसगढ़ी, उड़िया, बँगला और पंजाबी भाषा का ज्ञान. संप्रति स्वतंत्र पत्रकार।
संपर्क:
डॉ. महेश परिमल, टी-3, 204 सागर लेक व्यू होम्स, वृंदावन नगर, अयोघ्या बायपास, भोपाल. 462022.
ईमेल -
parimalmahesh@gmail.com
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