शुक्रवार, 29 अगस्त 2008
चिंतन:-विश्वास का घेरा
डॉ. महेश परिमल
कहते हैं कि विश्वास बहुत बड़ी चीज होती है, यदि हो, तो। किसी पर विश्वास करने के लिए यह आवश्यक है कि आपके पास भी विश्वास का लहराता सागर होना चाहिए। विश्वास से ही विश्वास उपजता है। कभी-कभी तो आप किसी पर सहसा ही बहुत विश्वास कर लेते हैं, पर कभी-कभी तो सामने वाले पर जरा भी विश्वास नहीं कर पाते हैं। आखिर ऐसा क्यों होता है? कभी जानने की कोशिश की है आपने?
उस रात ट्रेन अपने सही समय पर थी, पर उस व्यक्ति के लिए मानों एक-एक पल भारी पड़ रहा था, आखिर मामला बिटिया के लिए सुयोग्य वर देखने का था। उसे किसी दूसरे शहर जाना था। परिवार के अन्य सदस्य भी साथ थे। आखिर ट्रेन आई, अपने निर्धारित कूपे में जाकर उन्होंने अपनी बर्थ ढूँढी और थोडी ही देर में सबके बिस्तर भी बिछ गए। ट्रेन के चलते के कुछ ही देर बाद सभी ट्रेन के हिचकोलों के साथ ही गहरी नींद के आगोश में थे। इसे कहते हैं विश्वास की पराकाष्ठा। एक तरफ तो वे अपनी बिटिया के लिए सुयोग्य वर की तलाश में हैं, आखिर बिटिया की जिंदगी का सवाल है। अपने भावी दामाद के बारे में सब-कुछ जान लेना चाहते हैं। इस मामले में वे किसी पर विश्वास नहीं करना चाहते, दामाद की एक-एक आदत को जान लेना चाहते हैं, लेकिन दूसरी तरफ ट्रेन में निश्ंचित सोकर उन्होंने अपने परिवार का जीवन एक अनजाने ड्राइवर के हवाले कर दिया। जिस ड्राइवर को उन्होंने कभी देखा नहीं, जाना नहीं, समझा नहीं, उस पर एक अनजाना विश्वास, वह भी इतना बड़ा विश्वास कि पूरा परिवार उसके भरोसे कर दिया। इसे ही तो कहते हैं विश्वास की पराकाष्ठा।
आखिर यह विश्वास आया कहाँ से? कहते हैं विश्वास ही विश्वास को जन्म देता है। सो जब उस ड्राइवर पर सरकार ने विश्वास किया, करोड़ों की सम्पत्ति उसके हवाले कर दी। सरकार के उस विश्वास को उसने पूरी ईमानदारी के साथ निभाया। जब लगातार सरकार की सम्पत्ति सही-सलामत रही, तो यात्रियों का विश्वास जागा, इसी विश्वास के बल पर नए विश्वास का जन्म हुआ और विश्वास ने एक बड़ा आकार ग्रहण कर लिया, जिसमें सभी का विश्वास शामिल है। केवल एक विश्वास शब्द की रक्षा करने के लिए न जाने कितने लोग अपने प्राणों की आहूति दे देते हैं। कई युध्द तो केवल विश्वास के बल पर ही जीते जा चुके हैं।
विश्वास का जुड़ना जितना सहज है, उतना ही मुश्किल है उसका टूट जाना। यह स्थिति इंसान को भीतर तक हिलाकर रख देती है। इंसान को इससे उबरने में काफी वक्त लगता है। यदि इंसान का अनुभव कटु है, तो उसे किसी पर सहसा विश्वास ही नहीं होगा। दूसरी ओर कई ऐसे सच्चे और सरल लोग भी मिल जाएँगे, जो सहसा ही किसी पर विश्वास कर लेते हैं। कई बार इन्हें धोखा हो सकता है, पर इनका विश्वास पर विश्वास बना ही रहता है।
पहले जब शिक्षा गुरुकुल में दी जाती थी, तब पालक गुरुओं के पास जाकर अपने बच्चों को छोड़ देते थे, क्योंकि उन्हें मालूम था कि इस गुरुकुल में उनकी संतान को ऐसी शिक्षा मिलेगी ही, जिससे वह अपने कर्म क्षेत्र में प्रगति करेगा। होता भी यही था। यह विश्वास का परिणाम था। पालकों के विश्वास को गुरुओं ने समझा और उसका अच्छा परिणाम दिया। गुरुओं पर उस समय अविश्वास जैसी कोई बात ही नहीं होती थी। गुरु को विश्वास का पर्याय माना जाता था। अब उस स्थिति में विचलन आया है। आजकल विश्वास अपना रूप बदलने लगा है। इसके कई रूप हो गए हैं।
डॉ. महेश परिमल
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चिंतन
जीवन यात्रा जून 1957 से. भोपाल में रहने वाला, छत्तीसगढ़िया गुजराती. हिन्दी में एमए और भाषा विज्ञान में पीएच.डी. 1980 से पत्रकारिता और साहित्य से जुड़ाव. अब तक देश भर के समाचार पत्रों में करीब 2000 समसामयिक आलेखों व ललित निबंधों का प्रकाशन. आकाशवाणी से 50 फ़ीचर का प्रसारण जिसमें कुछ पुरस्कृत भी. शालेय और विश्वविद्यालय स्तर पर लेखन और अध्यापन. धारावाहिक ‘चाचा चौधरी’ के लिए अंशकालीन पटकथा लेखन. हिन्दी गुजराती के अलावा छत्तीसगढ़ी, उड़िया, बँगला और पंजाबी भाषा का ज्ञान. संप्रति स्वतंत्र पत्रकार।
संपर्क:
डॉ. महेश परिमल, टी-3, 204 सागर लेक व्यू होम्स, वृंदावन नगर, अयोघ्या बायपास, भोपाल. 462022.
ईमेल -
parimalmahesh@gmail.com
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yeah! its much better,
जवाब देंहटाएंwell its nice to know that you have great hits here.
जवाब देंहटाएंI agree with you about these. Well someday Ill create a blog to compete you! lolz.
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