शनिवार, 30 अगस्त 2008
चिंतन:-विचारों का टकराव
डॉ. महेश परिमल
उस दिन हमारी सोसायटी की महिलाओं में विवाद हो गया। विवाद का कारण गंदगी का होना था। महिलाएँ परस्पर आरोप लगा रहीं थीं, समझ में नहीं आ रहा था कि गलती कहाँ रही है? दोनों पक्षों के अपने-अपने दावे थे। कोई भी पक्ष झुकना नहीं चाहता था। इस विवाद में कई बातें सामने आई। जिस पर अब तक किसी का ध्यान ही नहीं था। विवाद तो अभी तक अनसुलझा ही है, पर जो बातें सामने आईं, उससे लगता है कि यदि विवाद नहीं होता, तो जो नई बातें आज सामने आई हैं, वे कभी सामने ही नहीं आतीं। सवाल यह उठता है कि नए विचार आए कहा से? बात एकदम सही है। जो भी आता है, अपने लिए जगह की तलाश करता है। जब तक पुराने विचारों को नहीं तिलांजलि नहीं दी जाएगी, तब तक नए विचारों को जगह कहाँ से मिलेगी? खंडहर के स्थान पर तभी नई इमारत बनेगी, जब खंडहर को तोड़ा जाएगा, जब तक खंडहर तोड़ा नहीं जाएगा, तब तक भला इमारत की बात कैसे सोची जा सकती है। याद रखें निर्माण सदैव विध्वंस के रास्ते से आता है। लेकिन विध्वंस इतना भी न हो कि विचारों का आना ही रुक जाए।
विचारों का टकराव अक्सर विरोध को जन्म देता है। यह सभी जानते हैं, पर यह बहुत कम लोग जानते हैं कि टकराव की यह प्रक्रिया कई नए विचारों को जन्म देती है। नए विचार याने नया उत्साह। यही उत्साह है, जो हममें जोश भरता है। इसी जोश में छिपे होते हैं जीवन तत्व। दुनिया में कोई व्यक्ति ऐसा नहीं होगा, जिसे आलसी, काहिल, सुस्त और चेहरे पर मुर्दनी वाले लोग पसंद हो। हर किसी को हँसते-मुस्काते चेहरे ही अच्छे लगते हैं। ऐसे व्यक्ति पूरे समाज को अपने जैसा बनाने की कोशिश में लगे रहते हैं। उनका यह प्रयास व्यर्थ नहीं जाता, वे जहाँ भी जाते हैं, अपनी मुस्कान बिखेर देते हैं।
लोग उन्हें ही पसंद करते हैं, जो ऊर्जावान होते हैं। उत्साह जिनकी ऑंखों में छलकता रहता है और जो अपने मस्तिष्क को संतुलित रखते हैं। किसी काम को हाथ में लेकर उसे सही अंजाम देने में अपनी शक्ति लगा देते हैं। ऐसे लोग कभी चैन से नहीं बैठते। वे क्रियाशील रहते हैं। उन्हें काम चाहिए। वे लगातार काम करने के आदी होते हैं। ऐसे लोगों से ही यदि विचारों का टकराव होता है, तो उस स्थिति में कई नई बातें सामने आती हैं।
आइए, विश्लेषण करें, टकराव की शुरूआत से। यदि किसी अधिकारी ने अपने अधीनस्थ कर्मचारी को कोई ऐसा काम दे दिया, जो उसकी रूचि का न हो। उस काम को कर्मचारी अनमने ढंग से अरूचि के साथ करता है। नतीजा आशा के विपरीत मिलता है, जो स्वाभाविक है। ऐसे में अधिकारी इसे अपनी अवहेलना मानेगा और कर्मचारी पर कार्रवाई करेगा। दूसरी ओर कर्मचारी ने अरूचिपूर्ण कार्य को अपने रूचिपूर्ण कार्य के अतिरिक्त किया है, तो उसके मन में यह बात आएगी कि मैंने तो काम को अंजाम देने में पूरी कोशिश की, फिर भी परिणाम बेहतर नहीं निकला तो इसमें मेरा क्या दोष?
यह वह स्थिति है, जहाँ यह मतभेद मनभेद हो जाता है। परस्पर टकराव यदि सकारात्मक है, तो परिणाम बेहतर होते हैं, किंतु नकारात्मक टकराव के परिणाम कभी अच्छे नहीं होते। मतभेद और मनभेद में यही सकारात्मक और नकारात्मक वाली स्थिति है। जहाँ सभी एक जैसा सोचते हों, वहाँ प्रगति संभव नहीं। अनेक विचारों से बनने वाला एक विचार सफलता का सूत्र होता है। विचारों की यह टकराहट स्वयं को भी भीतर से देखने, जानने और समझने का रास्ता साफ करती है। हम सर्वश्रेष्ठ हैं, यह भावना विचारों के टकराव से दूर हो जाती है।
इस स्थिति से हमें घबराना नहीं चाहिए। यह स्थिति एक अच्छे विचार को सामने लाने के लिए प्रेरित करती है। यदि हमने इस टकराव को अपना अहं मान लिया, तो परिस्थितियाँ प्रतिकूल हो जाएँगी, क्योंकि तब विचार नहीं अहं टकराएँगे। अहं का टकराव भयंकर परिणाम देता है। इससे बचने की हमें पूरी-पूरी कोशिश करनी चाहिए।
- विचारों के टकराव को सकारात्मक लें।
- इसे कभी प्रतिष्ठा का प्रश्न न बनाएँ।
- मतभेद को सहर्ष स्वीकारें, पर मनभेद न होने दें।
- अच्छे विचारों का प्रादुर्भाव टकराव से होता है।
- नए विचारों के स्वागत को सदैव तत्पर रहें।
याद रखें- जो लोग दूसरों को माफ नहीं कर सकते, वे उस पुल को तोड़ देते हैं, जिससे उन्हें आगे जाकर गुजरना है।
डॉ. महेश परिमल
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चिंतन
जीवन यात्रा जून 1957 से. भोपाल में रहने वाला, छत्तीसगढ़िया गुजराती. हिन्दी में एमए और भाषा विज्ञान में पीएच.डी. 1980 से पत्रकारिता और साहित्य से जुड़ाव. अब तक देश भर के समाचार पत्रों में करीब 2000 समसामयिक आलेखों व ललित निबंधों का प्रकाशन. आकाशवाणी से 50 फ़ीचर का प्रसारण जिसमें कुछ पुरस्कृत भी. शालेय और विश्वविद्यालय स्तर पर लेखन और अध्यापन. धारावाहिक ‘चाचा चौधरी’ के लिए अंशकालीन पटकथा लेखन. हिन्दी गुजराती के अलावा छत्तीसगढ़ी, उड़िया, बँगला और पंजाबी भाषा का ज्ञान. संप्रति स्वतंत्र पत्रकार।
संपर्क:
डॉ. महेश परिमल, टी-3, 204 सागर लेक व्यू होम्स, वृंदावन नगर, अयोघ्या बायपास, भोपाल. 462022.
ईमेल -
parimalmahesh@gmail.com
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जो लोग दूसरों को माफ नहीं कर सकते, वे उस पुल को तोड़ देते हैं, जिससे उन्हें आगे जाकर गुजरना है।
जवाब देंहटाएंbahut sahi baat hai....aapka lekh prerak hai.
चिंतन व व्यवहार दोनों के लिये उपयोगी लेख है ।
जवाब देंहटाएं