सोमवार, 1 सितंबर 2008
पहला कदम तो बढ़ाएँ...
डॉ. महेश परिमल
संत अपनी वाणी में कहते हैं कि जिस घर में यदि बरकत न हो, तो उस घर में जाकर देखो, निश्चित रूप से उनके घर का कोई नल टपकता होगा। यानि जिस घर में एक-एक बूँद पानी बेकार बह रहा हो, तो उस घर में न तो शांति होती है और न ही उस घर के खर्च में कभी कोई कमी आती है। पानी बचाना याने धन बचाना है; पर जब किसी भी तरह से नल का टपकना बंद ही न हो, तो क्या किया जाए?
प्रश्न गंभीर है, पर इसका समाधान बहुत ही आसान है। आसान ब होगा, जब उसे आप ही ठीक करने का फैसला कर लें। इसके लिए एक छोटी सी कहानी सुन लें। हुआ यूँ एक बार एक किसान ने गाँव के कुछ मजदूरों से कहा कि कभी मेरे खेत आ जाओ, और फसल काट दो, ताकि उसे खलिहान में पहुँचा दिया जाए। मजदूरों को और कहीं काम मिल जाता, इसलिए वे उस काम को टाल दिया करते। किसान भी उस काम को गंभीरता से नहीं ले रहा था। किसान और मज़दूरों में होने वाली बातचीत खेत में ही घोसला बनाकर रहने वाली चिड़िया ने भी सुनी, लेकिन उसने नए स्थान जाने की दिषा में कोई कदम नहीं उठाया। चिड़िया के बच्चों ने पूछा- माँ, अगर मजदूर आ जाएँगे, तो हम क्या करेंगे? लेकिन चिड़िया ने कहा- अभी चिंता करने की आवश्यकता नहीं। किसान रोज ही भुनभुनाता, लेकिन मज़दूरों को नहीं आना था, इसलिए वे नहीं आए। एक दिन किसान ने तय कर लिया कि अब मजदूर आएँ या न आएँ, कल वह स्वयं ही फसल काटने का काम शुरू करेगा। तब चिड़िया ने अपने बच्चों से कहा कि कल सुबह जन्द ही हमें अपना यह बसेरा छोड़ना होगा। बच्चों ने पूछा-माँ आखिर हुआ क्या? तब चिड़िया बोली- बच्चों, अब किसान ने समझ लिया है कि मजदूरों के भरोसे अधिक समय तक नहीं रहा जा सकता। इसलिए उसने स्वयं ही फसल कटाई का निर्णय लिया। इंसान जब तक दूसरों के भरोसे रहकर अपना काम टालता रहता है, तब तक उसका काम नहीं हो पाता, लेकिन जब उसने तय कर लिया कि अब किसी के भरोसे न रहकर अपना काम स्वयं ही करना है, तो समझ लो उसने आधा काम तो कर ही लिया।
कहा भी यही जाता है कि काम को उत्साह के साथ पूरा करने के लिए एक कदम ही उठा लिया जाए, तो समझ लो, आधा काम हो गया। अक्सर हम दूसरों के भरोसे अपना समय और धन बरबाद कर देते हैं, पर काम हो नहीं पाता। इसके पीछे यही कारण है कि हममें आत्मविश्वास की कमी है। हममें काम शुरू करने का ही माद्दा नहीं है। इसलिए काम की पहल तो खुद से ही करनी होगी।
अब आते हैं नल टपकने की बात पर। आप अपने घर के उस टपकते हुए नल को देखें, वह कहाँ से टपक रहा है? बहुत ही कम खर्च में वह काम हो सकता है, यदि इस काम के लिए आप नल सुधारक या प्लम्बर को बुलाएँगे, तो वह आपसे काफी रुपए ले लेगा। वैसे एक बार उससे वह काम करवाकर देखें तो सही। वह क्या करता है? आप देखेंगे कि उसने नल को खोला, उसमें एक नैलोन का वायसर डाला और उसे फिट कर दिया। बस हो गया काम। आप कहेंगे, इतनी सी बात थी, जिसे करने के लिए इतने लम्बे समय तक प्रतीक्षा करनी पड़ी। उधर नल का टपकना बंद हुआ, इधर फालतू खर्च कम हो गए। इस पर ध्यान बहुत ही कम लोगों का जाता है।
आप कहेंगे कि हमारे पास प्लम्बर जितने संसाधन नहीं हैं, इसलिए यह काम हमारे बस का नहीं है। सच है, जिसका जो काम होता है, उसे वही काम भाता है और उसे वह अच्छी तरह से कर भी सकता है। पर जब बहुत बुलाने के बाद भी नल ठीक करनेवाला न आए, तब क्या किया जाए? कभी स्चयं आगे वढ़कर उस काम को करने की कोशिश करें, आप पाएँगे कि वह काम तो आसानी से हो गया। अब हिसाब लगाएँ कि उस काम को यदि किसी दूसरे से करवाया जाता, तो कितना खर्च होता? उस खर्च को सामने रखते हुए उस धन से कुछ संसाधन खरीद लिए जाएँ। जैसे एक छोटा सा टूल बॉक्स, जिसमें कुछ आवश्यक सामान हों। बस हो गया काम। अब आप उससे घर के कई काम ऐसे भी कर सकते हैं, जो बरसों से अटके पड़े थे, बस उसके शुरुआत करने की ही देर थी।
बात स्वयं को क्रियाशील रखने की है। यदि हम क्रियाशील रहेंगे, तो कई काम न केवल आसान हो जाएँगे, बल्कि कुछ नए कामों के लिए दिमाग में आइडिए भी आ जाएँगे। जो लोग सदैव ठंडे पानी से नहाते हैं, उनके लिए ठंडी में भी ठंडे पानी से नहाना बड़ी बात नहीं है, पर जो नहीं नहाते, उनके लिए तो यह काम मुश्किल भरा है। पर ध्यान दें, पहला मग पानी ही शरीर पर डालते ही ठंड गायब हो जाती है, फिर तो कितना भी पानी शरीर पर डालें, कोई फर्क नहीं पड़ता। बात तो पहला मग पानी शरीर पर डालने की है।
किसी विद्वान ने कहा है कि आप पहला कदम तो बढ़ाएँ, थोड़ी ही देर में आप दस कदम आगे होंगे। सवाल यही है कि पहला कदम बढ़ाएँ। अक्सर लोगों से पहला कदम बढ़ाते ही नहीं बनता। वे दूसरों की प्रतीक्षा करते हैं कि कोई उनसे पहले यह काम करे। इस प्रतीक्षा में वे अपना मूल्यवान समय खो देते हैं और सामने वाला पहला कदम बढ़ाकर आगे भी निकल जाता है। जीवन में पीछे मुड़कर देखने का प्रयास किया जाए, तो स्पष्ट हो जाएगा कि कहाँ आपने पहला कदम नहीं बढ़ाया और जीवन की राहों में पीछे रह गए। आज उसका अफसोस करने के बजाए यह सोचा जाए कि अब पहला कदम बढ़ाने में चूक नहीं होगी, देर नहीं होगी, तो यह संकल्प हमें हर जगह काम आएगा, जो हमारे काम को आसान बनाएगा। तो उठाएँ पहला कदम और करें नए काम की नई शुरुआत.......
डॉ. महेश परिमल
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चिंतन
जीवन यात्रा जून 1957 से. भोपाल में रहने वाला, छत्तीसगढ़िया गुजराती. हिन्दी में एमए और भाषा विज्ञान में पीएच.डी. 1980 से पत्रकारिता और साहित्य से जुड़ाव. अब तक देश भर के समाचार पत्रों में करीब 2000 समसामयिक आलेखों व ललित निबंधों का प्रकाशन. आकाशवाणी से 50 फ़ीचर का प्रसारण जिसमें कुछ पुरस्कृत भी. शालेय और विश्वविद्यालय स्तर पर लेखन और अध्यापन. धारावाहिक ‘चाचा चौधरी’ के लिए अंशकालीन पटकथा लेखन. हिन्दी गुजराती के अलावा छत्तीसगढ़ी, उड़िया, बँगला और पंजाबी भाषा का ज्ञान. संप्रति स्वतंत्र पत्रकार।
संपर्क:
डॉ. महेश परिमल, टी-3, 204 सागर लेक व्यू होम्स, वृंदावन नगर, अयोघ्या बायपास, भोपाल. 462022.
ईमेल -
parimalmahesh@gmail.com
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