शनिवार, 6 सितंबर 2008
विचारों का टकराव नए विचारों को जन्म देता है
डॉ. महेश परिमल
विचारों का टकराव अक्सर विरोध को जन्म देता है। यह सभी जानते हैं, पर यह बहुत कम लोग जानते हैं कि टकराव की यह प्रक्रिया कई नए विचारों को जन्म देती है। नए विचार याने नया उत्साह। यही उत्साह है, जो हममें जोश भरता है। इसी जोश में छिपे होते हैं जीवन तत्व। दुनिया में कोई व्यक्ति ऐसा नहीं होगा, जिसे आलसी, काहिल, सुस्त और चेहरे पर मुर्दनी वाले लोग पसंद हों। ऐसा एक व्यक्ति पूरे समाज को अपने जैसा बनाने का सामर्थ्य रखता है।
लोग उन्हें ही पसंद करते हैं, जो ऊर्जावान होते हैं। उत्साह उनकी ऑंखों में छलकता रहता है। मस्तिष्क संतुलित रखते हैं। किसी काम को हाथ में लेकर उसे सही अंजाम देने में अपनी शक्ति लगा देते हैं। ऐसे लोग कभी चैन से नहीं बैठते। वे क्रियाशील रहते हैं। उन्हें काम चाहिए। वे लगातार काम करने के आदी होते हैं। ऐसे लोगों से ही यदि विचारों का टकराव होता है, तो उस स्थिति में कई नई बातें सामने आती हैं।
आइए, विश्लेषण करें, टकराव की शुरुआत से। यदि किसी अधिकारी ने अपने अधीनस्थ कर्मचारी को कोई ऐसा काम दे दिया, जो उसकी पसंद का न हो, तो उस काम को कर्मचारी अनमने ढंग से अरुचि के साथ करता है। नतीजा आशा के विपरीत मिलता है, जो स्वाभाविक है। ऐसे में अधिकारी इसे अपनी अवहेलना मानेगा और कर्मचारी पर कार्रवाई करेगा। दूसरी ओर कर्मचारी ने उस अरुचिपूर्ण कार्य को अपने रुचिपूर्ण कार्य के अतिरिक्त किया है, तो उसके मन में यह बात आएगी कि मैंने तो काम को अंजाम देने में पूरी कोशिश की, फिर भी परिणाम बेहतर नहीं निकला तो मेरा क्या दोष?
यह वह स्थिति है, जहाँ यह मतभेद मनभेद हो जाता है। परस्पर टकराव यदि सकारात्मक है, तो परिणाम बेहतर होते हैं, किंतु नकारात्मक टकराव के परिणाम कभी अच्छे नहीं होते। मतभेद और मनभेद में यही सकारात्मक और नकारात्मक वाली स्थिति है। जहाँ सभी एक जैसा सोचते हों, वहाँ प्रगति संभव नहीं। अनेक विचारों से बनने वाला एक विचार सफलता का सूत्र होता है। विचारों की यह टकराहट स्वयं को भी भीतर से देखने, जानने और समझने का रास्ता साफ करती है। हम सर्वश्रेष्ठ हैं, यह भावना विचारों के टकराव से दूर हो जाती है।
इस स्थिति से हमें घबराना नहीं चाहिए। यह स्थिति एक अच्छे विचार को सामने लाने के लिए प्रेरित करती है। यदि हमने इस टकराव को अपना अहं मान लिया, तो परिस्थितियाँ प्रतिकूल हो जाएँगी, क्योंकि तब विचार नहीं, अहं टकराएँगे। अहं का टकराव भयंकर परिणाम देता है। इससे बचने की हमें पूरी-पूरी कोशिश करनी चाहिए।
- विचारों के टकराव को सकारात्मक लें।
- इसे कभी प्रतिष्ठा का प्रश्न न बनाएँ।
- मतभेद को सहर्ष स्वीकारें, पर मनभेद न होने दें।
- अच्छे विचारों का प्रादुर्भाव टकराव से ही होता है।
- अच्छे विचारों के स्वागत के लिए हमेशा तैयार रहें।
याद रखें- जो लोग दूसरों को माफ नहीं कर सकते, वे उस पुल को तोड़ देते हैं, जिससे उन्हें आगे जाकर गुजरना है।डॉ. महेश परिमल
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चिंतन
जीवन यात्रा जून 1957 से. भोपाल में रहने वाला, छत्तीसगढ़िया गुजराती. हिन्दी में एमए और भाषा विज्ञान में पीएच.डी. 1980 से पत्रकारिता और साहित्य से जुड़ाव. अब तक देश भर के समाचार पत्रों में करीब 2000 समसामयिक आलेखों व ललित निबंधों का प्रकाशन. आकाशवाणी से 50 फ़ीचर का प्रसारण जिसमें कुछ पुरस्कृत भी. शालेय और विश्वविद्यालय स्तर पर लेखन और अध्यापन. धारावाहिक ‘चाचा चौधरी’ के लिए अंशकालीन पटकथा लेखन. हिन्दी गुजराती के अलावा छत्तीसगढ़ी, उड़िया, बँगला और पंजाबी भाषा का ज्ञान. संप्रति स्वतंत्र पत्रकार।
संपर्क:
डॉ. महेश परिमल, टी-3, 204 सागर लेक व्यू होम्स, वृंदावन नगर, अयोघ्या बायपास, भोपाल. 462022.
ईमेल -
parimalmahesh@gmail.com
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बहुत अच्छे विचार हैं आपके। लिखते भी अच्छी तरह हैं। आपको पढ़ना अच्छा लगता है।
जवाब देंहटाएंआभार इन विचारों के लिए.
जवाब देंहटाएं-------------------------
निवेदन
आप लिखते हैं, अपने ब्लॉग पर छापते हैं. आप चाहते हैं लोग आपको पढ़ें और आपको बतायें कि उनकी प्रतिक्रिया क्या है.
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-समीर लाल
-उड़न तश्तरी
महेशजी आप की बात से सहमत हूँ लेकिन यहाँ हालत ये है कि लोग जरा भी अपने विचारों के खिलाफ किसी को जाते देखते हैं तो वाणी को अविवेकपूर्ण ढंग से इतना तेज कर लेंगे कि लगेगा..वही सत्य बोल रहे हैं..बाकी तो बस यूँ ही बोल रहे हैं :)
जवाब देंहटाएंअच्छी पोस्ट