डॉ. महेश
परिमल
आसान नहीं
है किले फतह करना। इंसान अपने जीवन में किले फतह करता ही रहता है। जब भी कोई बड़ी
उपलब्धि प्राप्त होती है, तो उसे किला फतह
करना कहा जाता है। गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी के सामने एक नहीं, दो नहीं, पूरे 6 किलों को फतह करने की चुनौती है। सुषमा स्वराज ने नरेंद्र
मोदी को प्रधानमंत्री पद के लिए काबिल बताया है। वैसे जिस तरह से नरेंद्र मोदी ने
अपनी कार्यशैली से अश्वमेघ का जो घोड़ा छोड़ा है, उसे पकड़ने की हिम्मत कोई नहीं कर सकता। पर अभी उनके सामने कई चुनौतियां
हैं, जिसे उन्हें पार करना है। इन चुनौतियों को
स्वीकार तो वे कर ही चुके हैं, देखना यह है कि
कितनी मजबूती से वे इस कार्य को संपादित करते हैं। उनकी सबसे बड़ी मुश्किल हाल ही
में की गई 50 लाख घर बनाने की घोषणा है। इस
लुभावनी घोषणा से यदि वे एक बार फिर मुख्यमंत्री पद पर काबिज हो जाते हैं, तो पूरे राज्य के बिल्डर मिल भी जाएं, तो रोज 2739 मकान नहीं बना सकते। इतने मकान रोज 5 साल तक बनाने होंगे, तब ये
वादा पूरा होगा। यदि उनकी नीयत साफ होती, तो वे
पिछले 12 बरसों से राज्य की हाउसिंग बोर्ड को
निष्क्रिय नहीं रखते। लोग इसे एक चुनावी स्टंट मान रहे है। संभव है यही लुभावनी
घोषणा उनके लिए गले की हड्डी बन जाए। इस संवेदनशील मुद्दे को पहले तो कांग्रेस ने
ही पकड़ा, इसके लिए कांग्रेस द्वारा पूरे राज्य में
करीब 30 लाख फार्म भी वितरित किए गए। कांग्रेस के
मुद्दे को हथियाकर मोदी ने नए स्वरूप में प्रस्तुत किया है।
सुषमा
स्वराज के बयान का अर्थ
गुजरात
में चुनाव प्रचार के लिए आईं सुषमा स्वराज ने मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी को
प्रधानमंत्री पद के लिए योग्य प्रत्याशी बताया। इससे मोदी समर्थक तो खुशी से पागल
हो गए। जो व्यक्ति स्वयं ही प्रधानमंत्री पद का दावेदार हो, वही आगे चलकर नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री पद के लिए योग्य बताए, तो यह निश्वित रूप से आश्चर्यजनक है। यदि सुषमा स्वराज की
बातों पर ध्यान दिया जाए, तो यह समझ में आ
जाएगा कि नरेंद्र मोदी के लिए अभी दिल्ली दूर है। अभी कई किले उन्हें फतह करने
हैं। सबसे पहले तो सुषमा जी के ही बयान को समझने की कोशिश की जाए। उन्होंने जो कुछ
भी कहा, वह उनका निजी मत है। जब पत्रकार इस प्रकार
का सवाल करते हैं, तो उसका जवाब तो देना ही पड़ता है।
पत्रकार को किसी भी तरह का जवाब दिया जाए, उससे अपने
हिसाब से प्रचारित-प्रसारित करने का काम आजकल जोरों से चल रहा। इसमें कमाल सवाल
पूछने वाले का होता है। पत्रकार ने जब सुषमा जी से पूछा कि प्रधानमंत्री पद के लिए
भाजपा में कौन-कौन काबिल है? तो सुषमा जी ने
कह दिया कि नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री पद के लिए काबिल व्यक्ति हैं। इसके पहले
प्रधानमंत्री पद के लिए जब भी किसी भाजपाई से पूछा जाता, तो वे गोल-मोल जवाब दे देते थे। सुषमा स्वराज के जवाब से यह नहीं सोचा
जाना चाहिए कि नरेंद्र मोदी ही प्रधानमंत्री पद के एकमात्र दावेदार हैं।
सुषमा
स्वराज के बयान का यह अर्थ है कि भाजपा में प्रधानमंत्री पद की रेस में जितने भी
लोग हैं, उनमें एक नरेंद्र मोदी भी हैं। उन्होंने
कहीं भी कुछ ऐसा नहीं कहा है कि मोदी भाजपा में प्रधानमंत्री पद के पहले नम्बर के
दावेदार हैं। उन्होंने कहीं भी ऐसा नहीं कहा है कि मोदी सबसे लायक दावेदार हैं। या
मोदी को भाजपा ने प्रधानमंत्री बनाने का निर्णय ले लिया है। अभी की राजनैतिक स्थिति
पर दृष्टि डाली जाए, तो एक अनार दर्जन बीमार जैसी स्थिति
है। सभी प्रमुख दलों से एक नहीं, बल्कि कई
उम्मीदवार हैं। इसे यदि नरेंद्र मोदी को सामने रखकर देखें तो उनके सामने अभी कई
चुनौतियां हें। अभिमन्यु की तरह उन्हें अभी कई पड़ाव पूरे करने हैं। उनके सामने अभी
चुनौतियों के 6 किले फतह करने हैं। इनमें से पहला
किला है गुजरात के मुख्यमंत्री पद पर काबिज रहना है। गुजरात भाजपा में इस पद के
लिए उनके सामने कोई प्रतिस्पर्धी नहीं है। मतलब इस किले को उन्होंने फतह कर लिया
है। दूसरा किला है गुजरात में तीसरी बार चुनाव जीतकर आना है। उनके विजय बाबत किसी
को शंका नहीं है। इस पड़ाव में वे जितनी अधिक सीटें प्राप्त करते हैं, उतनी सहायता उन्हें अगले पड़ाव में होगी। भाजपा को यदि 128 सीटें मिल जाती हैं, तो यह
मोदी के लिए डिस्टिंकशन कहलाएगा। यदि 120 से कम
सीटें मिलती हैं, तो उनहें कस्टर क्लास से संतोष करना
होगा।
आरएसएस को
भेदना मुश्किल
गुजरात के
मुख्यमंत्री बनने के बाद तीसरे पड़ाव में उन्हें आरएसएस को भेदना होगा। आरएसएस के
लिए नरेंद्र मोदी एक अनिवार्य अनिष्ट की तरह हैं। यह दिल से नरेंद्र मोदी को
प्रधानमंत्री नहीं बनने देना चाहती, पर भाजपा को और
अधिक सीटें चाहिए, तो नरेंद्र मोदी से अधिक लोकप्रिय
नेता उनके पास नहीं है। आरएसएस ने अभी तक प्रधानमंत्री पद के लिए नरेंद्र मोदी के
नाम पर अपनी मुहर नहीं लगाई है। इसके लिए अभी गुजरात चुनाव के परिणाम की राह देख
रही है। चौथा पड़ाव भाजपा की नेतागीरी को चुनौती देना है। इस पड़ाव में उनके सामने
आधा दर्जन गंभीर दावेदार हैं। ये सभी लोकसभा चुनाव की घोषणा हो जाए, उसके पहले नरेंद्र मोदी के आगे झुक जाएं, तो यह एक चमत्कार ही होगा। मोदी के लिए पांचवां पड़ाव पूरे
देश में घूम-घूमकर भाजपा को पूर्ण बहुमत दिलाना है। इसके लिए उन्हें अपना करिश्मा
गुजरात की सरहदों के पार भी करना होगा। ताकि यह साबित हो जाए कि उनका जादू केवल
गुजरात ही नहीं, बल्कि देश के अन्य भागों में भी चलता
है। यदि भाजपा को पूर्ण बहुमत नहीं मिलता, तो छठे
पड़ाव में उन्हें एनडीए के साथियों को मनाना है। यह एक दुष्कर कार्य है। क्योकि
इसमें सबसे बड़ी बाधा बिहार के मुख्यमंत्री नीतिश कुमार हैं। नीतिश कुमार मोदी के
कट्टर विरोधी हैं। यदि भाजपा नरेंद्र मोदी को आगे करके चुनाव जीत लेती है, तो उससे नाता तोड़ने वालों में नीतिश ही सबसे पहले होंगे।
इसके बाद नवीन पटनायक, जयललिता, येद्दियुरप्पा, ममता बनर्जी आदि को प्रसन्न करने के
बाद ही मोदी एनडीए के सर्वमान्य नेता बन सकते हैं। इसके बाद प्रधानमंत्री की
कुर्सी पर बैठने के पहले उन्हें अल्पसंख्यक वर्ग की सहानुभूति प्राप्त करनी होगी,
इसके लिए उन्हें देश भर में सद्भावना यात्रा करनी होगी।
इतने अधिक
पड़ावों से गुजरकर नरेंद्र मोदी यदि अपनी पुरानी पहचान कायम रख पाते हैं, तो यह बहुत बड़ी बात होगी। पहले पड़ाव के रूप में उनकी हाल ही
की गई घोषणा है, जिसमें उन्होंने 50 लाख घर बनाने का वचन दिया है। यह वचन उन्हें अपने ही राज्य
में काफी भारी पड़ेगा। वचन के अनुसार उन्हें रोज 2739 मकान बनाने होंगे। यह किसी भी तरह से संभव नहीं दिखता। इसके पहले भी
चुनाव के पहले वोट बटोरने के लिए कई लोक लुभावने नारों के साथ वचन दिए गए। न तो
उत्तर प्रदेश में बेरोजगारी भत्ता और युवाओं को लेपटॉप दिए जा सके, न ही अन्य वादों को निभाया गया। इसलिए 50 लाख मकान बनाने की घोषणा कर एक तरह से वे फँस गए हैं। यदि
उनकी नीयत साफ होती, तो अपने राज्य में वे हाउसिंग बोर्ड
को निष्क्रिय होने नहीं देते। यह तो कांग्रेस का मुद्दा था, जिसे मोदी ने हथियाकर उसे नए रूप में सामने लाया है। कांग्रेस ने तो घर के
लिए 30 लाख फार्म का वितरण भी कर दिया है। यदि
जनता के लिए घर इतना ही महत्वपूर्ण है, तो यह
घोषणा ठीक चुनाव के पहले क्यों की गई? इसके लिए
तो दस वर्ष का समय उनके पास था ही। आखिर यह घोषणा इतने अधिक विलम्ब से क्यों की गई?
ऐसे कई प्रश्न हैं, जिससे मोदी को जूझना है। भोली जनता को वे अब वादों से बहला नहीं सकते। अब
लोग काम देखना चाहते हैं। क्या यह काम मोदी कर दिखाएंगे?
डॉ. महेश परिमल