डॉ. महेश परिमल
आखिर गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी के पाँव छूने वाले अधिकारी को चुनाव से दूर कर दिया गया। पूर्व भाजपाध्यक्ष लालकृष्ण आडवाणी के जन्म दिन पर आयोजित समारोह में चुनाव अधिकारी भरत वैष्णव को सभी ने नरेंद्र मोदी के पांव छूते हुए देखा। चुनाव आयोग ने तत्काल कार्रवाई करते हुए उन्हें चुनावी कार्यो से मुक्त कर दिया। आश्चर्य की बात तो यह है कि इस समारोह में उपस्थित रुसी राजदूत ने भी लालकृष्ण आडवाणी के पाँव छुए। आखिर पांव छूने में इतना अधिक आकर्षक क्यों है? कहा जाता है कि झुकती है दुनिया, झुकाने वाला चाहिए।
पहले इंसान किसी के आगे सामने वाले के व्यक्तित्व से आकर्षित होकर उनके पाँव छूता था, लेकिन अब इस कार्य में स्वार्थ शामिल हो गया है। अब यह कार्य आत्मप्रेरित न होकर स्वार्थप्रेरित हो गया है। चुनाव अधिकारी ने सोचा कि मोदी के पांव छूने से भविष्य में उनकी कृपा मिल जाएगी, पर इसके पहले ही चुनाव आयोग ने उन पर कृपा करके चुनाव कार्यो से मुक्त कर दिया। इसके पहले गुजरात विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति डॉ. परिमल त्रिवेदी ने भी एक समारोह में मोदी के पाँव छूए थे। ये तो छोड़ो, एक अन्य समारोह में जब अमरेली के कलेक्टर डी.जी. झालावाड़िया को क्षेत्र के विकास कार्यो के लिए जब उन्हें एक करोड़ का चेक दिया गया, तो कलेक्टर महोदय से रहा नहीं गया, और उन्होंने मोदी का चरणस्पर्श कर लिया।
चरणस्पर्श प्रणाम करना भारतीय संस्कृति का एक भाग है। किसी के प्रति आदर भाव व्यक्त करने का इससे अच्छा दूसरा तरीका नहीं है। पहले यह सहज भाव से किया जाता था, पर अब इसमें स्वार्थ ने अपना स्थान ले यिला है। हम भले ही किसी की इज्जत न करें, पर त्योहारों के अवसर पर वही सामने आ जाए, तो हम सहर्ष उन्हें चरणस्पर्श प्रणाम कर लेते हैं। कई बार तो ऐसा भी हुआ है कि आज के युवा जब किसी वयोवृद्ध को चरणस्पर्श प्रणाम नहीं करते, तो वे बुजुर्ग नाराज हो जाते हैं। चरणस्पर्श प्रणाम करने का दृश्य कई बार अपना असर दिखाता है। इस कार्य को लोग अब चापलूसी से जोउ़ने लगे हैं। निश्चित रूप से कलेक्टर या फिर चुनाव अधिकारी मुख्यमंत्री की चापलूसी करना चाहते हों, इसलिए उन्होंने मोदी को चरणस्पर्श प्रणाम किया। लेकिन उनकी यह निष्ठा कैमरे में कैद हो गई, इसलिए चुनाव अधिकारी तो कोप के भाजन बन ही गए। आम जीवन में जिनके पाँव छूए जाते हैं, तो उन्हें यह अच्छा लगता है। आडवाणी के जन्म दिवस समारोह में भाजपाध्यक्ष नीतिन गडकरी ने न केवल आडवाणी बल्कि रुसी राजदूत एलेक्जेंडर के पाँव छुए। समारोहों में कई बार यह भी देखने में आता है कि चरणस्पर्श प्रणाम करने वाना जाक पौव छूने के लिए झुकता है, पर जिसके पांव छूए जा रहे हैं, उसे तो पता ही नहीं होता कि किसने उनके पाँव छूए। इससे कई बार पाँव छूने वाला मूर्ख साबित हो जाता है। सभा-समारोहों में ऐसे किस्से आम होते हैं, जब कोई विवादास्पद व्यक्ति भी लोगों से अपने पाँव छुआता दिखाई देता है। इससे पाँव छूने की यह परंपरा स्वार्थ में लिपटी दिखाई देने लगी है।
दक्षिण भारत में वैसे भी सेलिब्रिटी को भगवान का दर्जा दिया जाता है। इसलिए किसी कार्यक्रम में यदि जयललिता हो, तो उनके दुश्मन भी उनके पांव छूते हैं। कई बार तो शपथ ग्रहण समारोह में मंत्री शपथ लेते ही वहां उपस्थित राज्यपाल अथवा मुख्यमंत्री के पाँव छूकर आभार व्यक्त करते हैं। हरियाणा में पाँव छूना तो गौरवशाली होने का प्रतीक है। कई बार यह प्रतिष्ठा का प्रश्न भी बन जाता है। यहां भी जिसने अपने वरिष्ठोंे के पांव नहीं छूए, उसे कई लोगों से अपमानित होना पड़ता है। सोनिया गांधी या फिर आडवाणी ही नहीं, बल्कि सुषमा स्वराज्य के पांव छूने वाले कई लोग हैं। मायावती के पांव छूने वाले इतने अधिक लोग हैं कि उनकी गिनती के लिए एक अलग से आयोग बिठाया जा सकता है। मायावती का आभा मंडल इतना अधिक गहरा है कि सुरक्षा अधिकारी उनके जूते भी साफ करते दिखाई देते हैं। ऐसा बहुत कम होता है कि जब कोई दुश्मन पाँव छूता है, तो उसे आशीर्वाद नहीं दिया जाता। या फिर आशीर्वाद देने के बजाए उसे अनदेखा कर दिया जाता है। इससे सामने वाला समझ जाता है कि इन्हें सम्मान देकर मैंने गलत किया। भाजपाध्यक्ष यदि खुलेआम बाबा रामदेव के पाँव छूएं, तो भी वह खबर बन जाती है। लेकिन यदि किसी टीवी शो में माधुरी दीक्षित यदि सरोज खान के बार-बार पांव छूती हैं, तो लोग आश्चर्य में पड़ जाते हैं। रियलिटी शो में तो स्पर्धक अपने जज का पांव छूना नहीं भूलते। कई बार यह भी देखने में आया है कि लोग पाँव छूने के बहाने आधा ही झुकते हैं। इस आधे झुकने में ही कई लोग आशीर्वाद की मुद्रा में आ जाते हैं, इसलिए उन्हें पूरा झुकना पड़ता है।
विद्वानों के अनुसार चरणस्पर्श प्रणाम करने और कराने वाले में से किसी एक का फायदा तो होता ही है। कई बार यह कार्य सामने वाले की अहम तुष्टि के लिए भी किया जाता है। वैसे चरणस्पर्श प्रणाम करने की यह कला बहुत कम लोगों को आती है। कुछ लोग हर समारोह में यह पुनीत कार्य करते हुए दिखाई दे जाते है। आजकल यह दिखावा अधिक हो गया है। इसमें लगातार तेजी भी आ रही है। क्योंकि चुनाव करीब हैं। पाँच साल बाद अपने क्षेत्र में जाने पर प्रत्याशी किसी गाँव या कस्बे में किसी बुजुर्ग महिला या पुरुष के पाँव छू लेता है, तो यह तस्वीर वह अखबारों या टीवी पर बताना नहीं भूलता। उत्तर प्रदेश में चुनाव प्रचार के दौरान कई लोग तो प्रियंका गांधी के चरण छूने के लिए आगे आने लगे, तब प्रियंका ने जोर देते हुए कहा था कि पाँव मत छूओ, लेकिन हाथ अवश्य मिलाओ। फिरा भी लोग अपनी आदतों से बाज नहीं आते थे, मौका मिला नहीं कि छू लिया पाँव। चुनाव के समय इस तरह के नजारे आम हो जाते हैं। यह कार्य सम्पन्न होने के बाद दोनों ही गर्वोन्मत होते थे। मैने छू लिए और आखिर उसे झुका ही दिया, के भाव के साथ दोनों ही गर्व महसूस करते हैं।
डॉ. महेश परिमल
आखिर गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी के पाँव छूने वाले अधिकारी को चुनाव से दूर कर दिया गया। पूर्व भाजपाध्यक्ष लालकृष्ण आडवाणी के जन्म दिन पर आयोजित समारोह में चुनाव अधिकारी भरत वैष्णव को सभी ने नरेंद्र मोदी के पांव छूते हुए देखा। चुनाव आयोग ने तत्काल कार्रवाई करते हुए उन्हें चुनावी कार्यो से मुक्त कर दिया। आश्चर्य की बात तो यह है कि इस समारोह में उपस्थित रुसी राजदूत ने भी लालकृष्ण आडवाणी के पाँव छुए। आखिर पांव छूने में इतना अधिक आकर्षक क्यों है? कहा जाता है कि झुकती है दुनिया, झुकाने वाला चाहिए।
पहले इंसान किसी के आगे सामने वाले के व्यक्तित्व से आकर्षित होकर उनके पाँव छूता था, लेकिन अब इस कार्य में स्वार्थ शामिल हो गया है। अब यह कार्य आत्मप्रेरित न होकर स्वार्थप्रेरित हो गया है। चुनाव अधिकारी ने सोचा कि मोदी के पांव छूने से भविष्य में उनकी कृपा मिल जाएगी, पर इसके पहले ही चुनाव आयोग ने उन पर कृपा करके चुनाव कार्यो से मुक्त कर दिया। इसके पहले गुजरात विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति डॉ. परिमल त्रिवेदी ने भी एक समारोह में मोदी के पाँव छूए थे। ये तो छोड़ो, एक अन्य समारोह में जब अमरेली के कलेक्टर डी.जी. झालावाड़िया को क्षेत्र के विकास कार्यो के लिए जब उन्हें एक करोड़ का चेक दिया गया, तो कलेक्टर महोदय से रहा नहीं गया, और उन्होंने मोदी का चरणस्पर्श कर लिया।
चरणस्पर्श प्रणाम करना भारतीय संस्कृति का एक भाग है। किसी के प्रति आदर भाव व्यक्त करने का इससे अच्छा दूसरा तरीका नहीं है। पहले यह सहज भाव से किया जाता था, पर अब इसमें स्वार्थ ने अपना स्थान ले यिला है। हम भले ही किसी की इज्जत न करें, पर त्योहारों के अवसर पर वही सामने आ जाए, तो हम सहर्ष उन्हें चरणस्पर्श प्रणाम कर लेते हैं। कई बार तो ऐसा भी हुआ है कि आज के युवा जब किसी वयोवृद्ध को चरणस्पर्श प्रणाम नहीं करते, तो वे बुजुर्ग नाराज हो जाते हैं। चरणस्पर्श प्रणाम करने का दृश्य कई बार अपना असर दिखाता है। इस कार्य को लोग अब चापलूसी से जोउ़ने लगे हैं। निश्चित रूप से कलेक्टर या फिर चुनाव अधिकारी मुख्यमंत्री की चापलूसी करना चाहते हों, इसलिए उन्होंने मोदी को चरणस्पर्श प्रणाम किया। लेकिन उनकी यह निष्ठा कैमरे में कैद हो गई, इसलिए चुनाव अधिकारी तो कोप के भाजन बन ही गए। आम जीवन में जिनके पाँव छूए जाते हैं, तो उन्हें यह अच्छा लगता है। आडवाणी के जन्म दिवस समारोह में भाजपाध्यक्ष नीतिन गडकरी ने न केवल आडवाणी बल्कि रुसी राजदूत एलेक्जेंडर के पाँव छुए। समारोहों में कई बार यह भी देखने में आता है कि चरणस्पर्श प्रणाम करने वाना जाक पौव छूने के लिए झुकता है, पर जिसके पांव छूए जा रहे हैं, उसे तो पता ही नहीं होता कि किसने उनके पाँव छूए। इससे कई बार पाँव छूने वाला मूर्ख साबित हो जाता है। सभा-समारोहों में ऐसे किस्से आम होते हैं, जब कोई विवादास्पद व्यक्ति भी लोगों से अपने पाँव छुआता दिखाई देता है। इससे पाँव छूने की यह परंपरा स्वार्थ में लिपटी दिखाई देने लगी है।
दक्षिण भारत में वैसे भी सेलिब्रिटी को भगवान का दर्जा दिया जाता है। इसलिए किसी कार्यक्रम में यदि जयललिता हो, तो उनके दुश्मन भी उनके पांव छूते हैं। कई बार तो शपथ ग्रहण समारोह में मंत्री शपथ लेते ही वहां उपस्थित राज्यपाल अथवा मुख्यमंत्री के पाँव छूकर आभार व्यक्त करते हैं। हरियाणा में पाँव छूना तो गौरवशाली होने का प्रतीक है। कई बार यह प्रतिष्ठा का प्रश्न भी बन जाता है। यहां भी जिसने अपने वरिष्ठोंे के पांव नहीं छूए, उसे कई लोगों से अपमानित होना पड़ता है। सोनिया गांधी या फिर आडवाणी ही नहीं, बल्कि सुषमा स्वराज्य के पांव छूने वाले कई लोग हैं। मायावती के पांव छूने वाले इतने अधिक लोग हैं कि उनकी गिनती के लिए एक अलग से आयोग बिठाया जा सकता है। मायावती का आभा मंडल इतना अधिक गहरा है कि सुरक्षा अधिकारी उनके जूते भी साफ करते दिखाई देते हैं। ऐसा बहुत कम होता है कि जब कोई दुश्मन पाँव छूता है, तो उसे आशीर्वाद नहीं दिया जाता। या फिर आशीर्वाद देने के बजाए उसे अनदेखा कर दिया जाता है। इससे सामने वाला समझ जाता है कि इन्हें सम्मान देकर मैंने गलत किया। भाजपाध्यक्ष यदि खुलेआम बाबा रामदेव के पाँव छूएं, तो भी वह खबर बन जाती है। लेकिन यदि किसी टीवी शो में माधुरी दीक्षित यदि सरोज खान के बार-बार पांव छूती हैं, तो लोग आश्चर्य में पड़ जाते हैं। रियलिटी शो में तो स्पर्धक अपने जज का पांव छूना नहीं भूलते। कई बार यह भी देखने में आया है कि लोग पाँव छूने के बहाने आधा ही झुकते हैं। इस आधे झुकने में ही कई लोग आशीर्वाद की मुद्रा में आ जाते हैं, इसलिए उन्हें पूरा झुकना पड़ता है।
विद्वानों के अनुसार चरणस्पर्श प्रणाम करने और कराने वाले में से किसी एक का फायदा तो होता ही है। कई बार यह कार्य सामने वाले की अहम तुष्टि के लिए भी किया जाता है। वैसे चरणस्पर्श प्रणाम करने की यह कला बहुत कम लोगों को आती है। कुछ लोग हर समारोह में यह पुनीत कार्य करते हुए दिखाई दे जाते है। आजकल यह दिखावा अधिक हो गया है। इसमें लगातार तेजी भी आ रही है। क्योंकि चुनाव करीब हैं। पाँच साल बाद अपने क्षेत्र में जाने पर प्रत्याशी किसी गाँव या कस्बे में किसी बुजुर्ग महिला या पुरुष के पाँव छू लेता है, तो यह तस्वीर वह अखबारों या टीवी पर बताना नहीं भूलता। उत्तर प्रदेश में चुनाव प्रचार के दौरान कई लोग तो प्रियंका गांधी के चरण छूने के लिए आगे आने लगे, तब प्रियंका ने जोर देते हुए कहा था कि पाँव मत छूओ, लेकिन हाथ अवश्य मिलाओ। फिरा भी लोग अपनी आदतों से बाज नहीं आते थे, मौका मिला नहीं कि छू लिया पाँव। चुनाव के समय इस तरह के नजारे आम हो जाते हैं। यह कार्य सम्पन्न होने के बाद दोनों ही गर्वोन्मत होते थे। मैने छू लिए और आखिर उसे झुका ही दिया, के भाव के साथ दोनों ही गर्व महसूस करते हैं।
डॉ. महेश परिमल