शुक्रवार, 28 दिसंबर 2012

नारी अपनी लक्ष्मण रेखा स्वयं तय करे

डॉ. महेश परिमल
दिल्ली में गेंगरेप की घटना के बाद युवा आक्रोश देखने के काबिल है। यह बात अभी तक समझ में नहीं आई कि गुजरात में यदि एक ढाई साल की मासूम के साथ दुष्कर्म होता है, तो उसके लिए कोई जनांदोलन नहीं होता। गुजरात ही क्यों अन्य किसी शहर में किसी युवती के साथ भी दुष्कर्म होता है, तो भी युवा आक्रोश इस तरह से सड़कों पर नहीं उतरता। आखिर दिल्ली की घटना को इतना अधिक तूल क्यों दिया जा रहा है? आधुनिक युवतियों की मानसिकता दिल्ली के गेंगरेप की घटना के कारण इतनी उहापोह आखिर क्यों? इस घटना ने नारी स्वातं˜य पर नए सिरे से विचार करने के लिए प्रेरित किया है। वैसे यह तय है कि नारी स्वातं˜य की भ्रामक कल्पना ही नारी की दुश्मन है।
पिछले साल देश भर में नारी के साथ दुष्कर्म की 24,206 घटनाएं हुई थीं। निश्चित ही इस वर्ष यह आंकड़ा उससे बड़ा होगा। सवाल यह है कि अभी तक युवाओं का यह जोश आखिर कहां था। इससे अधिक दुष्कर्म की घटनाएं तो अन्य राज्यों में भी हुई हैं। दिल्ली की घटना को नारी की गरिमा मानने वाले शायद मुम्बई की उस घटना को भूल गए हैं, जहां एक नेपाली महिला पर तीन बार दुष्कर्म किया गया। मणिपुर में भी एक महिला के साथ सामूहिक अनाचार किया गया था। आखिर इन घटनाओं पर युवा इतना अधिक उद्वेलित क्यों नहीं हुआ? इसका कारण ढूंढने के लिए हमें आधुनिक शहरी युवतियों के मानस पर एक दृष्टि डालनी होगी। दिल्ली में जिस युवती के साथ दुष्कर्म हुआ है, वह भी कॉलेज की आम माडर्न युवतियों की तरह ही है। वह भी देश की करोड़ों आम युवतियों की तरह अपने दोस्त के साथ महानगरीय स्वतंत्रता का आनंद ले रही थी। वह अपने दोस्त के साथ घूम रही थी या फिल्म देखने गई थी। इसके बाद उसके दोस्त की उपस्थिति में उसके साथ जो कुछ हुआ, यह जानकर अन्य वुवतियां बुरी तरह से घबरा गई हैं। उनमें भीतर से असुरक्षा की भावना घर कर गई है। उनमें यह भय जागा कि जो कुछ उक्त युवती के साथ हुआ, वह कभी भी उनके साथ भी हो सकता है। इसी धारणा ने शहरी युवाओं को इस जनांदोलन के लिए प्रेरित किया है। मुम्बई में यदि तीन साल की मासूम के साथ दुष्कर्म होता है, तो दिल्ली की युवतियों को कोई फर्क नहीं पड़ता। दिल्ली में देर रात यदि किसी युवती के साथ गेंगरेप होता है, तो यह युवतियां यही समझती हैं कि हम कहां देर रात घर से बाहर निकलते हैं? मुम्बई में यदि नेपाल की युवती के साथ गेंगरेप होता है, तो यही युवतियां सोचती हैं कि वह युवती अनजाने शहर में रास्ता भूल गई होगी, इसीलिए उसके साथ ऐसा हुआ। दूसरी और दिल्ली और मुम्बई जैसे महानगरों में कई युवतियां अपने पुरुष दोस्त के साथ देर रात फिल्म देखने जाती हैं। इसके बाद दिल्ली में यदि किसी युवती के साथ गेंगरेप होता है, तो यही युवतियां स्वयं को असुरक्षित समझने लगती हैं। उन्हें यह चिंता सताने लगती है कि कहीं हमारे साथ ऐसा हो गया तो? इसीलिए इतनी युवतियां बिना किसी नेतृत्व के इस जनांदोलन में शामिल हो गई हैं।
दिल्ली की इस घटना ने कई युवतियों के पालकों को चिंता में डाल दिया है। कई पालक तो अपनी बेटियों के वार्डरोब पर नजर डालना शुरू कर दिया है कि कहीं उसके कपड़े इतने भड़काऊ तो नहीं, जिससे पुरुष आकर्षित हो। कपड़े कहीं इतने अधिक चुस्त तो नहीं, जो उसकी काया को एक्सपोज करते हों। कई पालकों ने बेटियों पर कड़ी नजर रखना शुरू कर दिया है। कई ने तो रात में उनके घर से निकलने पर ही पाबंदी लगा दी है। कई जागरूक पालकों ने बेटियों के मोबाइल पर नजर डालना शुरू कर दिया है। उसके पास कितने बांयफ्रेंड के फोन आते हैं, किससे वह मिलती-जुलती है। किसके साथ पार्टियों में जाती है। कॉलेज जाने वाली युवतियों को यह बात खटकने लगी है, इसलिए वे आंदोलन में शामिल होने के लिए सड़कोंपर उतर आई हैं। इक्कीसवीं सदी की भारतीय नारी आज 19 वीं सदी की नारियों की तुलना में स्वतंत्रता का भरपूर आनंद उठा रही हैं। नारी को स्वतंत्र होना चाहिए, इसमें कोई दो मत नहीं। इस पर किसी को आपत्ति भी नहीं होनी चाहिए। पर नारी स्वातं˜य के साथ उनकी सुरक्षा पर भी ध्यान देना अति आवश्यक है। जिस समाज में सभी पुरुष अपने भीतर नारी सम्मान की भावना रखते हैं, तो यह अच्छी बात है। लेकिन आज शायद कोई समाज इससे अछूता हो, जिस समाज में नारी के साथ दुष्कर्म न होता हो। आज भले ही पुरुष कितना भी अच्छे स्वभाव वाला माना जाता हो, पर समय आने पर नारी उत्पीड़न में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभा ही लेता है। आज हर पुरुष ने अपने चेहरे पर एक नकाब लगा रखा है। अवसर पाते ही नकाब बदल जाता है। एक साधू पुरुष भी दुष्कर्म करने में पीछे नहीं रहता। हर पुरुष के भीतर एक राक्षस होता है, जो लाचार नारी को देखकर अपना रूप दिखा देता है। यही कारण है कि आज जब यही पुरुष नारी को स्वछंद रूप से विचरते देखता है, तो उसके भीतर का राक्षस बाहर आ जाता है। वह कभी नहीं चाहता कि एक नारी इस तरह से देर रात तक बेखौफ अपने दोस्तों के साथ घूमती रहे। पुरुष के भीतर राक्षस को जगाने का काम करते हैं युवतियों के भड़काऊ कपड़े, जिससे उसका पूरा शरीर झांकता रहता है। यदि देर रात घूमने वाली युवतियां अपने उत्तेजक कपड़ों पर एक नजर डाल दे, तो उन्हें समझ में आ जाएगा कि माजरा आखिर क्या है? आखिर क्यों पुरुष उसे खा जाने वाली निगाहों से देख रहे हैं। एक युवती को यह सुरक्षित रहना है, तो सबसे पहले उसे अपने कपड़ों पर ध्यान देना चाहिए।
क्रांकिट के इस घने जंगल में शिकारी घूमते रहते हैं। जो केवल युवतियों का शिकार करते रहते हैं। इस पर यदि सरकार यह ऐलान करती है कि युवतियों को देर रात घर से बाहर नहीं निकलना चाहिए अन्यथा वह हिंसक जानवरों का शिकार बन सकती हैं। इस पर यदि युवतियां यह मांग करें कि प्राणियों को हिंसा नहीं करनी चाहिए, तो यह मांग जायज कैसे हो सकती है? बैंक से जब राशि बाहर निकाली जाती है, तो सुरक्षा का पूरा इंतजाम किया जाता है। घर में भी रुपए गिनते समय आसपास का ध्यान रखा जाता है। इसलिए यह व्यवस्था दी गई है कि महिला या युवती को देर रात घर से बाहर नहीं निकलना चाहिए, तो इसके पीछे यही भावना है कि वह सुरक्षित रहे। समाज की यह व्यवस्था नारी को गुलाम बनाने के लिए कतई नहीं है। यह व्यवस्था नारी स्वभाव की रक्षा के लिए है। सीता ने जब लक्ष्मण रेखा पार की, तभी उनका अपहरण हो पाया। आज की नारी भी अपनी लक्ष्मण रेखा स्वयं तय कर ले। तभी वह समाज मे सुरक्षित रह सकती है। नारी पर अत्याचार न हो, इसके लिए कानून तो अपना काम कर ही रहा है। कानून की शिक्षा प्राप्त करने वाली महिलाएं ही इस दिशा में ऐसे कानून की वकालत करें, जिसमें नारी की सुरक्षा की बात हो, तो शायद यह एक सकारात्मक कदम होगा। यौन अपराध कोई आज का नया अपराध नहीं है। यह भी सनातन काल से चला रहा अपराध है। इसे नेस्तनाबूद करने के लिए ऐसा कानून हो, जिससे पुरुषों में भय हो। वह एक बारगी सोचे, कि ऐसा करने पर मेरे साथ क्या-क्या हो सकता है? केवल यही एक विचार ही पुरुष को अपराध करने से रोक सकता है।
आज दिल्ली में जो प्रदर्शन हो रहे हैं, उसकी तारीफ तो करनी ही होगी कि वह बिना नेतृत्व का है। लेकिन यह आंदोलन शांतिपूर्ण होता, तो सरकार भी सोचने के लिए विवश हो जाती। अन्ना हजारे का आंदोलन शांतिपूर्ण था, इसलिए सरकार झुकी। यह आंदोलन कहीं-कहीं हिंसक हो उठा है, इसलिए सरकार ने भी देर से ध्यान दिया। आंदोलन जितना अहिंसक होना, उतना ही धारदार होगा, युवाओं को यह नहीं भूलना चाहिए।
  डॉ. महेश परिमल

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