डॉ. महेश परिमल
वर्ष 2012 विदा हो चुका है। 2013 अपनी पूरी मस्ती के साथ आ चुका है। यह साल कैसा होगा, यह अभी तो नहीं कहा जा सकता? पर इतना तय है कि पिछले वर्ष का अंत जिस तरह से हमारे सामने आया, उससे यही लगता है कि यह साल हम सबके लिए चुनौतीपूर्ण है? क्योंकि देश कई समस्याओं से जूझ रहा है। केंद्रीय सरकार हर मोर्चे पर विफल साबित हो रही है। भ्रष्टाचार बेलगाम है, अब बलात्कार की घटनाओं में अप्रत्याशित रूप से तेजी आ गई है। महंगाई अपना खेल खेल रही है। डीजल के दाम बढ़ने वाले हैं। कुल मिलाकर यही कहा जा सकता है कि 2013 कोई खुश खबरी लेकर नहीं आ रहा है। उसे तो आना ही है, वह आएगा भी। पर क्या हम उसका स्वागत उतनी शिद्दत से कर पाएंगे? नया वर्ष हमेशा नई चुनौतियां लेकर आता है। पर इस बार नया वर्ष पुरानी चुनौतियों को स्वीकार न करने के कारण दोगुनी चुनौतियों के साथ आएगा। निश्चित रूप से सरकार के लिए यह वर्ष काफी मुश्किलो से भरा होगा।
भारतीय प्रजा ने भ्रष्टाचार के खिलाफ अपनी आवाज बुलंद की थी। लोग सड़कों पर उतर आए थे। पर सरकर ने ऐसा कुछ नहीं किया, जिससे भ्रष्टाचार पर अंकुश लग सके। भ्रष्टाचार आज राजनीति में ही अधिक है, इसलिए अन्य क्षेत्रों में यह पसर रहा है। सरकार यहां भी नाकाम रही। वह अपने ही मंत्रियों को नहीं रोक पाई। दिसम्बर माह ने जाते-जाते देश के माथे पर बलात्कार का कलंक लगा दिया है। इस मोर्चे पर सरकार की नींद तब उड़ी, जब लोग सड़कों पर उतर आए। आठ दिन बाद तो प्रधानमंत्री ने अपनी सुस्त और मरियल आवाज में देश को संबोधित किया। उनके संबोधन से कहीं भी ऐसा नहीं लगा कि वे देश के लिए थोड़े से भी चिंतित हैं। उनके संबोधन को दूरदर्शन ने भी गंभीरता से नहीं लिया, यह भी पता चल ही गया है। इस सरकार के बारे में यह कहा जाता है कि जो ेजानकारी देश के बच्चे-बच्चे के पास होती है, वह जानकारी सरकार को बहुत देर से मिलती है। आने वाले वर्ष में अब लोगों के पास चर्चा के लिए दो ही सबसे उपयुक्त विषय होंगे। पहला भ्रष्टाचार और दूसरा बलात्कार। भ्रष्टाचार के मामले में देश के युवा अन्ना हजारे के नेतृत्व में सड़कों पर उतर आए थे। लेकिन बलात्कार के मामले पर देश के युवा स्व-प्रेरित होकर सड़कों पर उतर आए हैं। देश के लिए यह शर्मिदगी की बात है कि आंदोलन कर रहे युवाओं पर पुलिस द्वारा पानी की बौछारों, अश्रुगैस एवं लाठी का इस्तेमाल किया गया। इसमें दिल्ली पुलिस की भूमिका भी संदिग्ध है। हर मामले में राजनीति की रोटी सेंकने वाले हमारे नेताओं ने इन युवाओं अपना समर्थन देना भी उचित नहीं समझा। जबकि चुनाव के वक्त यही नेता युवाओं को आगे बढ़कर देश की राजनीति की दिशा को मोड़ने वाली शक्ति के रूप में परिभाषित करते हैं। युवाओं के वोट की अपेक्षा रखने वाले यही नेता युवाओं को भगवान भरोसे छोड़कर अपनी कंदराओं में बैठे रहे। पुलिस दमन करती रही, नेता आराम फरमाते रहे। इस तरह से सरकार अपनी ही रक्षा कर रही थी। यह उसकी विवशता ही थी, क्योंकि युवाओं के सवालों का जवाब सरकार के पास नहीं था। वह न तो बलात्कारियों को फांसी देने के पक्ष में थी और न ही कड़े दंड देने के पक्ष में। सरकार हमेशा की तरह इस मामले में बचाव की मुद्रा में ही दिखाई दी।
सरकार की ढिलाई इसी बात से सामने आती है कि पुलिस रिफार्म का मुद़दा पिछले 15 साल से सरकारी फाइलों में कैद है, वह आज तक बाहर नहीं आ पाया है। ऐसे अनेक फैसले फाइलों मे कैद हैं, जिन्हें बाहर आने का इंतजार है, पर सरकार इन्हें बाहर लाने की एक छोटी सी कोशिश भी नहीं कर पा रही है। पिछले साल अरबों रुपए भ्रष्टाचार की भेट चढ़ गए, इस कारण महंगाई बढ़ गई। पर सरकार कुछ नहीं कर पाई। मामला चाहे 2 जी का हो,राष्ट्रमंडल खेलों का हो, या फिर कोयला खनन का हो। सरकार की विवशता ही सामने आई। सरकार का रुख हर मामले मे ंनरम ही रहा है। इसलिए अफसरों ने भी अपनी मनमानी शुरू कर दी है। मंत्री निरंकुश हो गए, तो अफसरों की मनमानी चलने लगी। सरकार का खौफ किसी को नहीं है। इसी तरह कानून तोड़ने वाले भी बेखौफ हैं। वे पुलिस कार्रवाई और धीमी चलने वाली देश की न्याय प्रक्रिया से अच्छी तरह से वाकिफ हैं। इसलिए वे अपराध करने से पहले इसका अंजाम सोच लेते हैं। कई रसूखदार तो कानून को अपनी जेब में लेकर चलते हैं। कानून भी उनका कुछ बिगाड़ नहीं सकता। यही आम धारणा लोगों को अपराध करने के लिए प्रेरित करती है। गुजरात में भाजपा की शानदार जीत सरकर के लिए किसी सदमे से कम नहीं थी। वह अभी इसे पचा भी नहीं पाई थी कि दिल्ली में गेंगरेप हो गया। इस मामले में सरकार निर्णय लेने में कितनी सुस्त रही, यह बताने की आवश्यकता नहीं है।
हम भले ही 2012 को भ्रष्टाचार टू बलात्कार का वर्ष कहें, वास्तव में यह वर्ष सरकार की नाकामी का वर्ष साबित हुआ है। सरकार की व्यवस्था के खिलाफ रहा है। सरकार के तीनों स्तंभों के खिलाफ प्रजा के आक्रोश का रहा है। पुराने कानून-कायदों के निर्णयों में होने वाली देर और आतंकवादियों को फांसी देने में हीलहवाला के कारण प्रजा को बार-बार सड़कों पर उतरना पड़ा है। दिल्ली गेंगरेप की शिकार युवती अभी सिंगापुर में जिंदगी और मौत के बीच झूल रही है। इस बीच यदि उसे कुछ हो गया, तो सरकार के लिए नई मुश्किलें खड़ी हो जाएंगी। पहले भी वह जवाब नहीं दे पा रही थी, उसके बाद भी जवाब नहीं दे पाएगी। इस मामले में कई विवाद सरकार की राह देख रहे हैं। अभी दिल्ली के ये हाल हैं कि वह युवा आक्रोश से उबल रही है। पिछले कुछ समय से खाड़ी देशों में भी युवाओं ने सड़कों पर उतरकर सत्ता परिवर्तन किया था। शासक के खिलाफ जो जो खाड़ी के देशों में है,वह जोश अभी हमारे देश के युवाओं में देखने में नहीं आया है। पर हालात यही रहे, तो तय है कि यही युवा आक्रोश देश को नई दिशा देगा।
डॉ. महेश परिमल
वर्ष 2012 विदा हो चुका है। 2013 अपनी पूरी मस्ती के साथ आ चुका है। यह साल कैसा होगा, यह अभी तो नहीं कहा जा सकता? पर इतना तय है कि पिछले वर्ष का अंत जिस तरह से हमारे सामने आया, उससे यही लगता है कि यह साल हम सबके लिए चुनौतीपूर्ण है? क्योंकि देश कई समस्याओं से जूझ रहा है। केंद्रीय सरकार हर मोर्चे पर विफल साबित हो रही है। भ्रष्टाचार बेलगाम है, अब बलात्कार की घटनाओं में अप्रत्याशित रूप से तेजी आ गई है। महंगाई अपना खेल खेल रही है। डीजल के दाम बढ़ने वाले हैं। कुल मिलाकर यही कहा जा सकता है कि 2013 कोई खुश खबरी लेकर नहीं आ रहा है। उसे तो आना ही है, वह आएगा भी। पर क्या हम उसका स्वागत उतनी शिद्दत से कर पाएंगे? नया वर्ष हमेशा नई चुनौतियां लेकर आता है। पर इस बार नया वर्ष पुरानी चुनौतियों को स्वीकार न करने के कारण दोगुनी चुनौतियों के साथ आएगा। निश्चित रूप से सरकार के लिए यह वर्ष काफी मुश्किलो से भरा होगा।
भारतीय प्रजा ने भ्रष्टाचार के खिलाफ अपनी आवाज बुलंद की थी। लोग सड़कों पर उतर आए थे। पर सरकर ने ऐसा कुछ नहीं किया, जिससे भ्रष्टाचार पर अंकुश लग सके। भ्रष्टाचार आज राजनीति में ही अधिक है, इसलिए अन्य क्षेत्रों में यह पसर रहा है। सरकार यहां भी नाकाम रही। वह अपने ही मंत्रियों को नहीं रोक पाई। दिसम्बर माह ने जाते-जाते देश के माथे पर बलात्कार का कलंक लगा दिया है। इस मोर्चे पर सरकार की नींद तब उड़ी, जब लोग सड़कों पर उतर आए। आठ दिन बाद तो प्रधानमंत्री ने अपनी सुस्त और मरियल आवाज में देश को संबोधित किया। उनके संबोधन से कहीं भी ऐसा नहीं लगा कि वे देश के लिए थोड़े से भी चिंतित हैं। उनके संबोधन को दूरदर्शन ने भी गंभीरता से नहीं लिया, यह भी पता चल ही गया है। इस सरकार के बारे में यह कहा जाता है कि जो ेजानकारी देश के बच्चे-बच्चे के पास होती है, वह जानकारी सरकार को बहुत देर से मिलती है। आने वाले वर्ष में अब लोगों के पास चर्चा के लिए दो ही सबसे उपयुक्त विषय होंगे। पहला भ्रष्टाचार और दूसरा बलात्कार। भ्रष्टाचार के मामले में देश के युवा अन्ना हजारे के नेतृत्व में सड़कों पर उतर आए थे। लेकिन बलात्कार के मामले पर देश के युवा स्व-प्रेरित होकर सड़कों पर उतर आए हैं। देश के लिए यह शर्मिदगी की बात है कि आंदोलन कर रहे युवाओं पर पुलिस द्वारा पानी की बौछारों, अश्रुगैस एवं लाठी का इस्तेमाल किया गया। इसमें दिल्ली पुलिस की भूमिका भी संदिग्ध है। हर मामले में राजनीति की रोटी सेंकने वाले हमारे नेताओं ने इन युवाओं अपना समर्थन देना भी उचित नहीं समझा। जबकि चुनाव के वक्त यही नेता युवाओं को आगे बढ़कर देश की राजनीति की दिशा को मोड़ने वाली शक्ति के रूप में परिभाषित करते हैं। युवाओं के वोट की अपेक्षा रखने वाले यही नेता युवाओं को भगवान भरोसे छोड़कर अपनी कंदराओं में बैठे रहे। पुलिस दमन करती रही, नेता आराम फरमाते रहे। इस तरह से सरकार अपनी ही रक्षा कर रही थी। यह उसकी विवशता ही थी, क्योंकि युवाओं के सवालों का जवाब सरकार के पास नहीं था। वह न तो बलात्कारियों को फांसी देने के पक्ष में थी और न ही कड़े दंड देने के पक्ष में। सरकार हमेशा की तरह इस मामले में बचाव की मुद्रा में ही दिखाई दी।
सरकार की ढिलाई इसी बात से सामने आती है कि पुलिस रिफार्म का मुद़दा पिछले 15 साल से सरकारी फाइलों में कैद है, वह आज तक बाहर नहीं आ पाया है। ऐसे अनेक फैसले फाइलों मे कैद हैं, जिन्हें बाहर आने का इंतजार है, पर सरकार इन्हें बाहर लाने की एक छोटी सी कोशिश भी नहीं कर पा रही है। पिछले साल अरबों रुपए भ्रष्टाचार की भेट चढ़ गए, इस कारण महंगाई बढ़ गई। पर सरकार कुछ नहीं कर पाई। मामला चाहे 2 जी का हो,राष्ट्रमंडल खेलों का हो, या फिर कोयला खनन का हो। सरकार की विवशता ही सामने आई। सरकार का रुख हर मामले मे ंनरम ही रहा है। इसलिए अफसरों ने भी अपनी मनमानी शुरू कर दी है। मंत्री निरंकुश हो गए, तो अफसरों की मनमानी चलने लगी। सरकार का खौफ किसी को नहीं है। इसी तरह कानून तोड़ने वाले भी बेखौफ हैं। वे पुलिस कार्रवाई और धीमी चलने वाली देश की न्याय प्रक्रिया से अच्छी तरह से वाकिफ हैं। इसलिए वे अपराध करने से पहले इसका अंजाम सोच लेते हैं। कई रसूखदार तो कानून को अपनी जेब में लेकर चलते हैं। कानून भी उनका कुछ बिगाड़ नहीं सकता। यही आम धारणा लोगों को अपराध करने के लिए प्रेरित करती है। गुजरात में भाजपा की शानदार जीत सरकर के लिए किसी सदमे से कम नहीं थी। वह अभी इसे पचा भी नहीं पाई थी कि दिल्ली में गेंगरेप हो गया। इस मामले में सरकार निर्णय लेने में कितनी सुस्त रही, यह बताने की आवश्यकता नहीं है।
हम भले ही 2012 को भ्रष्टाचार टू बलात्कार का वर्ष कहें, वास्तव में यह वर्ष सरकार की नाकामी का वर्ष साबित हुआ है। सरकार की व्यवस्था के खिलाफ रहा है। सरकार के तीनों स्तंभों के खिलाफ प्रजा के आक्रोश का रहा है। पुराने कानून-कायदों के निर्णयों में होने वाली देर और आतंकवादियों को फांसी देने में हीलहवाला के कारण प्रजा को बार-बार सड़कों पर उतरना पड़ा है। दिल्ली गेंगरेप की शिकार युवती अभी सिंगापुर में जिंदगी और मौत के बीच झूल रही है। इस बीच यदि उसे कुछ हो गया, तो सरकार के लिए नई मुश्किलें खड़ी हो जाएंगी। पहले भी वह जवाब नहीं दे पा रही थी, उसके बाद भी जवाब नहीं दे पाएगी। इस मामले में कई विवाद सरकार की राह देख रहे हैं। अभी दिल्ली के ये हाल हैं कि वह युवा आक्रोश से उबल रही है। पिछले कुछ समय से खाड़ी देशों में भी युवाओं ने सड़कों पर उतरकर सत्ता परिवर्तन किया था। शासक के खिलाफ जो जो खाड़ी के देशों में है,वह जोश अभी हमारे देश के युवाओं में देखने में नहीं आया है। पर हालात यही रहे, तो तय है कि यही युवा आक्रोश देश को नई दिशा देगा।
डॉ. महेश परिमल