शुक्रवार, 4 जनवरी 2013

टीवी के भ्रामक विज्ञापनों से सावधान!

डॉ. महेश परिमल
हाल ही में स्वास्थ्य से खिलवाड़ करने वाली और झूठे दावे कर अपना माल बेचने वाली 38 कंपनियों पर कानूनी कार्रवाई की गई है। ये कंपनियां टीवी पर झूठा दावा कर अपने उत्पाद का विज्ञापन करती थीं। आज हमारे मनोरंजन का एक सहारा टेलीविजन ही है। पर इस माध्यम पर आजकल विज्ञापन हावी होने लगे हैं। टीवी पर इतने अधिक विज्ञापन आते हैं कि बच्चे अब यह तय करने लगे हैं कि घर में कोई नई चीज आएगी, तो वह किस तरह की होगी। वह किस कंपनी की होगी। उसका क्या मॉडल होगा। इस तरह से कंपनियां झूठे वादे कर उपभोक्ताओं को भ्रमित करती हैं। इसके सबसे अधिक शिकार होते हैं बच्चे। क्योंकि बच्चों का काफी समय टीवी के सामने ही गुजरता है। विज्ञापनों का जाल अब शालाओं तक पहुंचने लगा है। कंपनियां स्कूलों में जाकर अपने उत्पाद का विज्ञापन करती हैं। टूथपेस्ट बेचने वाली कंपनियां तो बरसों से स्कूलों में जाकर छोटी साइज का पेस्ट और ब्रश बांटती हैं। इस तरह से अनजाने में बच्चे भी बहुराष्ट्रीय कंपनियों के जाल में फंस रहे हैं।
कोई व्यापारी यदि अपना माल झूठ बोलकर बेचे तो इस ठगी माना जाता है। इस पर धारा 420 के तहत कानूनी कार्रवाई होती है। पर टीवी पर झूठे दावे करने वाली कंपनियां अपना उत्पाद वर्षो से बेच रही हैं, पर आज तक किसी भी कंपनी पर कानूनी कार्रवाई नहीं हुई है। इसकी वजह साफ है, वह यह कि हमारे देश को कई मामलों में प्रयोगशाला समझा जाता है। कई दवाओं ही नहीं, बल्कि कई उत्पादों को प्रयोग के बतौर हमारे देश में ही बेचा जाता है। टीवी पर दिखाए जाने वाले विज्ञापनों को देखकर यह नहीं लगता है कि हमारे देश में सरकार ने फूड सेप्टी एंड स्टेंडर्ड अथारिटी ऑफ इंडिया नाम एक कानूनी संस्था भी बनाई है। यह जानकारी न तो टीवी के दर्शकों को है और न ही सामान्य नागरिकों को। इस संस्था का काम है कि लोगों को भ्रामक विज्ञापनों से बचाना, उससे दूर रहने की सलाह देना और ऐसे विज्ञापनों पर नियंत्रण रखना। तय है कि यह संस्था अपना कर्तव्य पूरी निष्ठा के साथ नहीं निभा रही है, इसीलिए आज टीवी पर बेतहाशा भ्रामक विज्ञापन दिखाए जा रहे हैं। संस्था सक्रिय होती तो कई विज्ञापन बंद हो जाते। पर वे आज भी दिखाए जा रहे हैं।
विशेषज्ञों का मानना है कि ऐसी कोई क्रीम हो ही नहीं सकती, जिससे काली चमड़ी गोरी हो जाती हो। इसके बाद भी टीवी पर कई क्रीम के विज्ञापन दिखाए जाते हैं, जो काली चमड़ी को गोरी बनाने का दावा करते हैं। दूसरी तरफ डॉक्टर भी कहते हैं कि एक निश्चित उम्र के बाद किसी इंसान की लंबाई नहीं बढ़ती। इसके बाद भी ऊंचाई बढ़ाने वाली कई कंपनियों के विज्ञापन टीवी पर दिखाए जा रहे हैं। इस तरह के भ्रामक विज्ञापन दिखाकर ये कंपनियां अरबों रुपए का व्यापार कर लेती हैं और हमारी सरकार को इसका पता भी नहीं चलता। बरसों से इन कंपनियों का गोरखधंधा चल रहा है। हाल ही देश की फूड सेप्टी एंड स्टेंडर्ड अथारिटी ने प्रचार माघ्यमों से झूठा दावा करने वाली 38 कंपनियों पर कानूनी कार्रवाई की है। टीवी के दर्शकों को इन चीजों की सूची को टीवी सेट  पर चस्पा कर देना चाहिए। इस सूची को देखें, तो स्पष्ट होगा कि कंपनियां हमें किस तरह से मूर्ख बनाकर करोड़ों रुपए कमा चुकी हैं। उदाहरण के लिए कोम्प्लान कंपनी के विज्ञापन में यह दावा किया जाता है कि जो बच्चे इस कंपनी का टॉनिक लेते हैं, वे दूसरे बच्चोंे की अपेक्षा तेजी से बढ़ते हैं। यह दावा प्राथमिक दृष्टि से ही गलत साबित होता है। कंपनी ने इस दावे की पुष्टि करने के लिए कोई शोध नहीं किया है। इसके अलावा एक अन्य कंपनी यह दावा करती है कि उसके उत्पाद के सेवन से याददाश्त बढ़ती है। इसके लिए कंपनी केवल दावा करती है, कोई प्रमाण नहीं देती। इसे देखते हुए इन कंपनियों पर धोखाधड़ी का आरोप लगाते हुए मामला दर्ज किया गया है। इसके अलावा हॉर्लिक्स और बूस्ट का उत्पादन करने वाली ग्लेक्सो स्मिथक्लिन कंपनी का यह दावा भी झूठा साबित हुआ कि उसके उत्पाद बच्चों को मजबूत बनाते हैं।
बच्चों को यदि सचमुच मजबूत बनाना है तो उसके लिए बाजार से महंगे टॉनिक खरीदने के बजाए उन्हें गाय का दूध पिलाया जाए। गाय के दूध से बने घी से रोज सुबह नाश्ते में हलुआ खिलाया जाए, ठंड में उड़द दाल और बाजरे का इस्तेमाल करते हुए उन्हें इसके व्यंजन खाने के लिए दिए जाएं, तो बच्चों में स्फूर्ति आती है, वे बलवान बनते हैं। उड़द दाल से बनी चीजें और चिक्की खाने से बच्चे हमेशा तरोताजा रहते हैं। आश्चर्य इस बात का है कि इन चीजों के विज्ञापन टीवी पर नहीं दिखाए जाते। जिसके विज्ञापन दिखाए जाते हैं, उनमें से अधिकांश हमारे लिए बेकार होती हैं। हमारे देश में लोग बरसों से नाश्ते में रोटी, पोहा, खाखरा,पूड़ी, जलेबी खाते आए हैं। इससे वे निरोगी भी रहते आए हैं। अब विज्ञापनों के माध्यम से बच्चों को फ्लेक्स का चस्का लगाया जा रहा है। इसके लिए विदेशी कंपनी केलॉग्स कंपनी खूब परिश्रम कर रही है। उसके लेबल पर बहुत से फलों के चित्र दिखाए गए हैं। वास्तव में इसमे कोई फल होता ही नहीं। इस कंपनी को भी नोटिस दिया गया है।
टीवी पर ऐसी कई उत्पादों के विज्ञापन दिखाए जाते हैं, जिसमें पोषण, स्वास्थ्य एवं बुद्धि बढ़ाने का दावा किया जाता है। उनके दावों का कोई वैज्ञानिक आधार नहीं होता। इसे प्रयोगों द्वारा साबित भी नहीं किया जाता। इसके बाद भी कंपनियां झूठे दावे कर भ्रामक विज्ञापन के सहारे अपने उत्पाद बेचती रहती हैं। हमारे सामने टीवी पर ऐसे कई विज्ञापन दिखाए जाते हैं, जिसमें प्रमुख हैं- इमामी, सोयाबीन तेल, सफोला का तेल, न्यूट्री चार्ज मेन, एंजिन सरसों तेल, केलॉग्स के स्पेशल के. ब्रिटानिया के न्यूट्री च्वाइस बिस्किट्स, टुडे प्रीमियम टी, न्यूट्री लाइट, रियल एक्टिव फाइबर, किसान क्रीम स्प्रेड, राजधानी बेसन, ब्रिटानिया विटा मारी मेगी और पेडियास्योर डिरंकस । ये सभी उत्पाद बनाने वाली कंपनियों पर झूठे और भ्रामक विज्ञापन प्रदर्शित करने के आरोप में नोटिस दिया गया है।
फूड सेप्टी एंड स्टैंडड़र्स अथारिटी ने हाल में अपनी रिपोर्ट संसद में प्रस्तुत कर कई चौंकाने वाली हकीकतों का खुलासा किया है। कई समाजसेवा संस्थाओं ने अथारिटी पर यह आरोप लगाया वह झूठे और भ्रामक विज्ञापन कि दिखाने वाली कंपनियों के साथ मिल गई है, इसलिए अपना का पूरी मुस्तेदी के साथ नहीं कर पा रही है। भारतीय संविधान कहता है कि जो कंपनी झूठे और भ्रामक विज्ञापन जारी करती है, उसे दस लाख रुपए का दंड दिया जाएगा। पर उक्त 38 कंपनियों में से अभी तक किसी को भी दंड नहीं दिया गया है। अथारिटी उपभोक्ताओं के हितों की रक्षा करने में पूरी तरह से नाकाम रही है। अभी तक केवल 19 कंपनियों को नोटिस दिया गया है और शेष 19 कंपनियों के खिलाफ मामला दर्ज किया गया है। आश्चर्य इस बात का है कि इसके बाद भी टीवी पर झूठे और भ्रामक विज्ञापन पूरे जोर-शोर के साथ दिखाए जा रहे हैं।
 डॉ. महेश परिमल

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