डॉ. महेश परिमल
दीपावली गई, पर उसका असर अभी तक कायम है। इस बार भी महंगाई ने कमर तोड़ दी। मध्यमवर्ग के लिए हालात मुश्किल हो गए हैं। सरकार के महंगाई कम करने के तमाम वादे किसी काम के नहीं रहे। विधानसभा चुनाव को देखते हुए सरकार ने कुछ कोशिश अवश्य की, पर महंगाई के बेकाबू होने पर अंकुश नहीं लग पाया। प्याज के बाद अब टमाटर रुला रहा है। आम आदमी की थाली से प्याज के बाद अब टमाटर गायब हो गया है। सरकार चुनावों में व्यस्त होने के कारण आम आदमी की समस्या को जानने की फुरसत किसी के पास नहीं। सरकार की यही अनदेखी का असर निश्चित रूप से चुनाव परिणामों पर दिखाई देगा। प्याज को लेकर देश में आंदोलन हो चुके हैं। अब टमाटर को लेकर भी होंगे। हालत यह है कि चुनाव प्रचार करने वाले किसी भी नेता पर अब टमाटर फेंकना भी महंगा पड़ेगा, कौन होगा कि अपनी भड़ास 80 रुपए किलो वाली महंगी चीज से निकालना चाहेगा? प्याज आंखों में आंसू ला रही थी, तो टमाटर गालों की लालिमा छीनने में लगा है।
इन दिनों ब्लागरों की बन आई है। कई ब्लॉगर महंगाई को लेकर तरह-तरह के तर्क दे रहे हैं। कई तर्क भले ही एक नजर में मजाकिया लगें, पर उनकी गंभीरता को अनदेखा नहीं किया जाना चाहिए। ऐसी बात नहीं है कि प्याज का उत्पादन नहीं हो पाया है। प्याज का विपुल उत्पादन हमारे देश में हुआ है। वह तो मुनाफाखोरों के कारण प्याज के दाम बढ़ रहे हैं, दूसरे सरकार की नीति भी ऐसी है कि वह प्याज उत्पादकों के बजाए बिचौलियों की परवाह अधिक करती है। प्याज के बढ़ते दाम से हम यही सोचते हैं कि इस बार प्याज उत्पादक किसानों के पौ-बारह हैं। पर ऐसी बात नहीं है। प्याज के बढ़ते दामों से किसानों को किसी तरह का फायदा नहीं हुआ है। सारी मलाई तो बिचौलिए ही मार रहे हैं। इसलिए दबंग के संवाद को लोग अब इस तरह से कहने लगे हैं कि साहब प्याज से डर नहीं लगता, पर टमाटर से डर लगता है। मीडिया में प्याज-टमाटर के बढ़ते दामों के पीछे की राजनीति की खोज की जा रही है। इन जरुरी जिंसों के दाम कैसे बढ़े, इसका विश्लेषण बताया जा रहा है। पर वे यह भूल रहे हैं कि अब शादी का मौसम आ गया है। अब तो आलू के अलावा अन्य जिंसों के दाम तेजी से बढेंगे। कई बार किसानों को अपने उत्पाद का सही दाम नहीं मिल पाता। कई बार उसे आशा से भी कम दाम पर अपना उत्पाद बिचौलियों को बेचना पड़ता है। सरकार यदि इन बिचौलियों पर अंकुश रख सके, तो आवश्यक जिंसों के दाम को बढ़ने से रोका जा सकता है। उत्पादकों-बिचौलियों और सरकार की नीतियों के बीच मध्यम वर्ग की हालत बहुत ही खराब है। वह अपने खर्च में कटौती नहीं कर पा रहा है और आवश्यक जिंसों के दाम तेजी से बढ़ते जा रहे हैं। आय कम और व्यय अधिक।
दीपावली गई, पर उसका असर अभी तक कायम है। इस बार भी महंगाई ने कमर तोड़ दी। मध्यमवर्ग के लिए हालात मुश्किल हो गए हैं। सरकार के महंगाई कम करने के तमाम वादे किसी काम के नहीं रहे। विधानसभा चुनाव को देखते हुए सरकार ने कुछ कोशिश अवश्य की, पर महंगाई के बेकाबू होने पर अंकुश नहीं लग पाया। प्याज के बाद अब टमाटर रुला रहा है। आम आदमी की थाली से प्याज के बाद अब टमाटर गायब हो गया है। सरकार चुनावों में व्यस्त होने के कारण आम आदमी की समस्या को जानने की फुरसत किसी के पास नहीं। सरकार की यही अनदेखी का असर निश्चित रूप से चुनाव परिणामों पर दिखाई देगा। प्याज को लेकर देश में आंदोलन हो चुके हैं। अब टमाटर को लेकर भी होंगे। हालत यह है कि चुनाव प्रचार करने वाले किसी भी नेता पर अब टमाटर फेंकना भी महंगा पड़ेगा, कौन होगा कि अपनी भड़ास 80 रुपए किलो वाली महंगी चीज से निकालना चाहेगा? प्याज आंखों में आंसू ला रही थी, तो टमाटर गालों की लालिमा छीनने में लगा है।
इन दिनों ब्लागरों की बन आई है। कई ब्लॉगर महंगाई को लेकर तरह-तरह के तर्क दे रहे हैं। कई तर्क भले ही एक नजर में मजाकिया लगें, पर उनकी गंभीरता को अनदेखा नहीं किया जाना चाहिए। ऐसी बात नहीं है कि प्याज का उत्पादन नहीं हो पाया है। प्याज का विपुल उत्पादन हमारे देश में हुआ है। वह तो मुनाफाखोरों के कारण प्याज के दाम बढ़ रहे हैं, दूसरे सरकार की नीति भी ऐसी है कि वह प्याज उत्पादकों के बजाए बिचौलियों की परवाह अधिक करती है। प्याज के बढ़ते दाम से हम यही सोचते हैं कि इस बार प्याज उत्पादक किसानों के पौ-बारह हैं। पर ऐसी बात नहीं है। प्याज के बढ़ते दामों से किसानों को किसी तरह का फायदा नहीं हुआ है। सारी मलाई तो बिचौलिए ही मार रहे हैं। इसलिए दबंग के संवाद को लोग अब इस तरह से कहने लगे हैं कि साहब प्याज से डर नहीं लगता, पर टमाटर से डर लगता है। मीडिया में प्याज-टमाटर के बढ़ते दामों के पीछे की राजनीति की खोज की जा रही है। इन जरुरी जिंसों के दाम कैसे बढ़े, इसका विश्लेषण बताया जा रहा है। पर वे यह भूल रहे हैं कि अब शादी का मौसम आ गया है। अब तो आलू के अलावा अन्य जिंसों के दाम तेजी से बढेंगे। कई बार किसानों को अपने उत्पाद का सही दाम नहीं मिल पाता। कई बार उसे आशा से भी कम दाम पर अपना उत्पाद बिचौलियों को बेचना पड़ता है। सरकार यदि इन बिचौलियों पर अंकुश रख सके, तो आवश्यक जिंसों के दाम को बढ़ने से रोका जा सकता है। उत्पादकों-बिचौलियों और सरकार की नीतियों के बीच मध्यम वर्ग की हालत बहुत ही खराब है। वह अपने खर्च में कटौती नहीं कर पा रहा है और आवश्यक जिंसों के दाम तेजी से बढ़ते जा रहे हैं। आय कम और व्यय अधिक।
देखा जाए, तो टमाटर के दाम बढ़ने के पीछे का कारण ही है प्याज। लोग सलाद में प्याज और टमाटर क इस्तेमाल करते हैं। जब प्याज के दाम बढ़े, ता ेवह सलाद से अदृश्य हो गई। फिर उसमें टमाटर की अधिकता होने लगी। इसलिए टमाटर भी महंगा होने लगा। इधर प्याज का इस्तेमाल कम होने लगा। उधर टमाटर का इस्तेमाल अधिक होने लगा। सलाद में पत्ता गोभी आदि का इस्तेमाल होने लगा। पाव-भाजी वालों की तो दुकान ही बंद हो गई। आखिर क्या डालें उसमें? बाजार में प्याज टमाटर की आवक तो हैं, पर वह मुनाफाखोरों के हाथ में होने के कारण वे ही इनके दाम तय करने लगे हैं। बाजार के विशेषज्ञ बताते हैं कि तुलसी विवाह के बाद शादी का मौसम शुरू हो जाएगा, फिर प्याज-टमाटर की मांग बढ़ेगी। ऐसे में इनके साथ-साथ अन्य जिंसों के दाम भी बढें़गे, इसमें कोई दो मत नहीं। इन हालात में अन्य कई सब्जियां भी आम आदमी की थाली से गायब हो जाएंगी। यह हाल 13 दिसम्बर तक रहेंगे। उसके बाद कड़वे दिन शुरू हो जाएंगे, उसके बाद 18 जनवरी से फिर शादी का मौसम शुरू हो जाएगा। तो यही समझा जाए कि यदि हम यह देखते आए हैं कि ठंड में सब्जियों के दाम कम होते हैं, तो इस बार यह धारणा झूठी साबित होगी। सब्जियों े विकल्प के रूप में अन्य सूखी सब्जियों की ओर लोगों का ध्यान जाता है, पर इस समय दलहन के दामों में 200 प्रतिशत की वृद्धि देखी गई है, पिछले वर्ष की तुलना में इनके दामों में तीन गुना इजाफा हुआ है। इसलिए यह भी आम आदमी के हाथ से निकल गई।
आज सरकार को चिंता इस बात की है कि लोग सोना-चांदी अधिक खरीद रहे हैं, सोने के आयात पर नियंत्रण रखने के लिए वह कई उपाय कर रही है। पर वह यह भूल गई है कि गरीबों के पास सोने-चादंी खरीदने के लिए धन नहीं है, उसकी हालत तो रोजमर्रा की चीजें खरीदने में ही खराब हो रहीे है। टमाटर, प्याज, डीजल और डॉलर आज सामान्य प्रजा के लिए एक आफत बनकर सामने आ गए हैं। इससे निबटने में सरकार तो पूरी तरह से अक्षम साबित हुई है, पर इस पर नियंत्रण रखने के सरकार के सारे उपाय धराशायी होने लगे हैं। सरकार स्वयं प्याज बेचे, इससे अच्छा यह है कि प्याज की कीमतें नियंत्रण रखने का प्रयास करे। यदि प्याज की जमाखोरी हो रही है, तो इसका सबसे आसान उपाय यह है कि जिन कोल्ड स्टोरेज में प्याज जमा है, वहां की बिजली ही काट दी जाए। प्याज वैसे ही बाजार मे आ जाएगी। सरकार स्वयं प्याज बेचे, यह शर्मनाक स्थिति है। पेट्रोल-डीजल के भाव बढ़ने से सबसे पहला असर रोजमर्रा की चीजों पर ही पड़ता है, वह महंगी होने लगती है। सामान्य जनता प्याज, आलू, टमाटर, ककड़ी, लौकी का ही इस्तेमाल करता है। आजकल इनके भाव आममान पर हैं, ये सभी दोगुने-तीगुने दाम पर बिक रहे हैं। परवल, भिंडी आदि सब्जी तो आजकल अमीरों की सब्जी बनकर रह गई है। ये इतनी महंगी हैं कि सामान्य आदमी इसके भाव सुनकर ही दंग रह जाता है। डीजल के बढ़ते दाम के साथ इनकी भी कीमतें तेजी से बढ़ने लगी हैं। हालात दिनों-दिन बेकाबू होते जा रहे हैं।
लगातार महंगाई की चक्की में पीसते मध्यम वर्ग में बचत की मात्रा में कमी आई है। पहले यह मध्यम वर्ग अपनी बचत का कुछ हिस्सा शेयर बाजार और सोना-चांदी की खरीदी में लगाता था, पर शेयर बाजार से मध्यम वर्ग अब चेत गया है। सोना-चांदी खरीदना अब उसके बूते की बात नहीं रही। अभी पांच विधानसभाओं की चुनावी जंग शुरू हो चुकी है। सन 2014 लोकसभा चुनावों का वर्ष है। तब तक महंगाई अपने विकराल रूप में दिखाई देगी। इस महंगाई से बच पाना नई सरकारों के लिए मुश्किल है। सत्ता संभालते ही हमारे नेताओं को सबसे पहले महंगाई से ही निबटना होगा। उसके बाद ही कोई अन्य काम हो पाएगा। विकास की बात करने वाले हमारे नेता किस तरह से महंगाई पर काबू पाते हैं, यही देखना है।
डॉ. महेश परिमल
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें