मंगलवार, 16 नवंबर 2010
भारतीय सेना के माथे पर ‘आदर्श’ कलंक
डॉ. महेश परिमल
राजनीति की बिसात में अशोक चौहान बलि का बकरा बन गए। लेकिन इस ‘आदर्श’ घपले में बहुत से नाम ऐसे हैं, जिनका नाम हम सब अब तक गर्व से लिया करते हैं। राजनीति के नाम से होने वाले इस घपले में सेना के कई अधिकारी भी जुड़े हैं। यदि पूरे मामले की ईमानदारी से जाँच की जाए, तो कई ऐसे चौंकाने वाले नाम आएँगे, जिससे पूरा देश ही शर्मसार होगा। राजनेताओं ने अपने स्वार्थ की रोटी सेंकी, तो अधिकारियों ने अपने अधिकारों का जमकर दुरुपयोग किया। जिसने ीाी ‘आदर्श’ में अपना सहयोग दिया, उसे उपकृत किया गया। फिर चाहे वह राजनीति के माध्यम से हो या फिर सेना के माध्यम से। आठ करोड़ का फ्लैट 80 लाख में भला कौन लेना नहीं चाहेगा?
वास्तव में देखा जाए, तो इस आदर्श घपले में महाराष्ट्र के राजनेताओं के बाद उच्च अधिकारियों और सेना के अधिकारियों की महत्वपूर्ण भूमिका रही है। इसमें सभी दल के राजनेता भी शामिल हैं, जो आपस में आरोप-प्रत्यारोप करते रहते हैं। शुरू से शुरू करने के लिए हमें 11 वर्ष पीछे जाना होगा। तब महाराष्ट्र में सत्ता शिवसेना के हाथ में थी। मुख्यमंत्री थे नारायण राणो। इन्होंने सेना की जमीन पर आवासीय भवन तैयार करने की अनुमति सबसे पहले दी। पहले गुनहगार तो ये हैं। इसके बाद महाराष्ट्र-कांग्रेस एनसीपी का शासन आया और विलासराव देशमुख ने मुख्यमंत्री पद सँभाला। इन्होंने उक्त जमीन पर निर्माण कार्य की अनुमति दी। ये दूसरे गुनहगार हुए। इसके बाद सुशील कुमार श्ंिादे ने यहाँ पर 6 मंजिल से 31 मंजिल बनाने की अनुमति देकर तीसरे गुनहगार हुए। इसके बाद ही आए, अशोक चौहान। इन्होंने यहाँ बनने वाले फ्लैटों में 40 प्रतिशत फ्लैट्स असैनिकों को देने की अनुमति दी। यह रास्ता निकालकर उन्होंने अपनों को उपकृत करने का फैसला किया। कालांतर उनकी यह करतूत सामने आ गई और उन्हें अपने पद से इस्तीफा देना पड़ा। सवाल यह उठता है कि गाज केवल अशोक चौहान पर ही क्यों गिरी? क्या शेष राजनेता बेदाग हैं? उन्होंने इस यज्ञ में अपने कार्यो की आहूति नहीं दी? आखिर उन्हें क्यों छोड़ दिया गया?
इस आदर्श कांड में सबसे बड़ी भूमिका तो हमारे देश के सैन्य अधिकारियों की है। जिन पर हम नाज करते हैं कि उनसे ही देश की सीमाएँ सुरक्षित हैं। देश के लिए जान देने में ये सबसे आगे होते हैं। पश्चिम बंगाल में सुकना जमीन कांड के कारण सैन्य अधिकारियों की धवल चादर पर काला दाग लगा था। आदर्श कांड के बाद यह दाग और भी गहरा गया। सुकना जमीन कांड में सेना के पूर्व जनरल दीपक कपूर का नाम सामने आया था। आदर्श कांड में उन्हें फ्लैट दिया गया है। जनरल दीपक कपूर करोड़ों की संपत्ति के मालिक हैं। आवक से अधिक धन रखने के मामले में उन पर केस चल रहा है। उनके साथ सेना के ही एक अन्य अधिकारी एन.सी. वीज का नाम भी लिया जा रहा है। नौका दल के पूर्व अध्यक्ष एडमिरल माधवेंद्र सिंह भी इस कांड में शामिल हैं। मूल रूप से सेना की जमीन महराष्ट्र सरकार को तश्तरी में मिल गई। जमीन सरकार को मिलने में निश्चित रूप से सेना की उक्त तीनों अधिकारियों की महत्वपूर्ण भूमिका रही। इससे सेना की कितनी बदनामी हुई, क्या यह जानने की कोशिश कभी होगी? दूसरी ओर सेना के साथ ही धोखाधड़ी का भी मामला बनता है। सेना के इन भूतपूर्व अधिकारियों ने किस तरह से अपने अधिकारों का दुरुपयोग किया। आदर्श में इन तीनों अधिकारियों को फ्लट्स दिए गए हैं। चूँकि उपरोक्त तीनों अधिकारी सेवानिवृत्त हो चुके हैं, इनका कोर्ट मार्शल तो नहीं हो सकता, पर क्या इनके खिलाफ सीबीआई भी जाँच नहीं कर सकती? यदि जाँच में ये दोषी पाए जाते हैं, तो इन्हें भी सजा होनी चाहिए।
आदर्श हाउसिंग सोसायटी को जो जमीन दी गई थी, वह वास्तव में रक्षा विभाग की थी। इस पर सेना का कब्जा था। सन् 2000 में इस जमीन को ‘आदर्श’ के नाम पर तब्दील करने के लिए जनरल आफिसर कमांडिंग की मंजूरी आवश्यक थी। इसे मंजूर कराने में मेजर जनरल तेज किशन कौले ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उस समय श्री कौल सब एरिया कमांडर थे। इस जमीन को सोसायटी को देने में तमाम कागजी कार्यवाही पूरी करने में इन्होंने खूब मेहनत की। इसका विरोध भी हुआ, पर उन्हें फ्लैट देकर शांत कर दिया गया। इसमें भी कौल ने महत्वपूर्ण भूमिका अदा की। जब यह ‘आदर्श’ कांड आकार ले रहा था, तब ब्रिगेडियर तारा कांत सिंह गुजरात और महाराष्ट्र के कर्नल थे। ‘आदर्श’ सौदे के जितने भी सवाल पूछे गए, उनके जवाब बड़ी चतुराई से दिए गए, जिससे विरोधियों की बोलती बंद हो गई। इस दौरान लेफ्टिनेंट जनरल तेजिंदर सिंह महाराष्ट्र और गुजरात के जनरल ऑफिसर ऑफ कमाडिंग के पद पर थे। इसके बाद ही वे कर्नल कमाडेंट ऑफ द गार्डस रेजिमेंट बने। जब यह मामला बाहर आया, उसके कुछ समय बाद ही वे रिटायर्ड हो गए। उन्हें भी इस सोसायटी में फ्लैट मिला। इसके बाद तो सोसायटी को जितनी भी मंजूरी मिलनी थी, वह सब धड़ाधड़ मिलती गई। मेजर जनरल आर.के. हुड्डा तीन महीने पहले ही मुंबई के कमांडर थे। उनकी भूमिका की भी जाँच की जा रही है। रक्षा मंत्रालय के सूत्रों के अनुसार इस कांड में भारतीय सेना के करीब 40 उच्च अधिकारियों की मिलीभगत है। इन सबके खिलाफ जाँच के आदेश जारी हो चुके हैं। यदि जाँच ईमानदारी के साथ हो, तो कई चेहरे बेनकाब हो सकते हैं।
मायानगरी में इतना बड़ा कांड हो, तो यह संभव ही नहीं कि इसमें सरकारी कर्मचारियों की सहायता न ली जाए। इसमें महाराष्ट्र के चीफ सेक्रेटरी से लेकर मुंबई म्युनिसिपल कमिश्नर और आयकर आयुक्त भी शामिल हैं। जिन्हें आदर्श सोसायटी में फ्लैट्स मिले हैं, उनके रिश्तेदारों की सूची बनाई जाए, तो स्पष्ट हो जाएगा कि इसमें कौन-कौन से अधिकारी शामिल हैं। वैसे भी मुंबई जैसे महानगर में इतना बड़ा घोटाला करना हो, तो एक-एक संबंधित सरकारी विभाग के छोटे-छोटे बाबुओं की भी सहायता लेनी पड़ती है। इनके उच्चधिकारियों के बिना विभाग का पत्ता भी नहीं हिलता। इन्हें भी कुछ न कुछ तो मिला ही होगा। इसके अलावा कई आईएएस अधिकारी भी इसमें शामिल हैं। जब आदर्श सोसायटी को अनुमति मिली, तब मुंबई म्युनिसिपल कमिश्नर जयराज फाटक थे। पहले इसे 30 मंजिला भवन बनाने की अनुमति मुंबई महानगरपालिका की उच्चस्तरीय कमेटी ने दी थी। किंतु बाद में 31 वीं मंजिल भी बनाने की अनुमति मिल गई। इसके बदले में जयराज फाटक के पुत्र कनिष्क फाटक को एक फ्लैट आदर्श में मिल गया। यह भी एक प्रकार का भ्रष्टाचार ही है।
आदर्श सोसायटी के मामले में शहरी विकास सचित रामानंद तिवारी भी भागीदार हैं। सन् 2004 में जब इस सोसायटी को और 12 मंजिल बनाने की अनुमति मिली, तो उसके बाजू के प्लाट की एफआईसी माँगी गई थी। यह प्लाट बेस्ट कंपनी के लिए बस स्टैंड बनाने के लिए सुरक्षित रखा गया था। इस आवेदन को रामानंद तिवारी ने रिजेक्ट कर दिया। इसके बाद 2005 में बाजू के प्लाट पर आदश्र का कब्जा हो गया। इसके बदले में तिवारी के पुत्र ओंकार तिवारी को आदर्श में एक फ्लैट मिल गया। उस समय बेस्ट के जनरल मैनेजर उत्तम खोब्रागड़े थे, उन्होंने आवेदन रिजेक्ट होने के खिलाफ मुँह नहीं खोला, इसके बदले में उनकी सुपुत्री देवयानी को एक फ्लैट मिल गया। 2004 में प्रदीप व्यास मुंबई के कलेक्टर थे। चूँकि आदर्श को जमीन असंवैधानिक तरीके से दी गई थी, इसलिए कलेक्टरा की पुत्री सीमा को भी एक फ्लैट मिल गया। महाराष्ट्र के भूतपूर्व मुख्य सचिव डी.के. शंकरन के पुत्र संजय को भी आदर्श में एक फ्लैट मिला है, क्योंकि जब शंकरन महसूल विभाग में थे, तब उन्होंने आदर्श को अनुमति दिलाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।
हमारे देश के लिए यह घोटाला एक आदर्श है। क्यांेकि इसमें सरकारी विभाग भी भ्रष्टाचार में पूरी तरह से लिप्त दिखाई दे रहा है। यह घोटाला केवल राजनेताओं का ही होता, तो एक बार दब भी जाता, पर इसमें तो उच्चधिकारियों का भी समावेश है, इसलिए यह कहा जा सकता है कि इसकी गूँज दूर तक सुनाई देगी। वैसे सभी दोषियों को सलाखों के पीछे धकेल देना न्यायसंगत होगा। देखना यह है कि इस घोटाले में कौन किस तरह से बच निकलता है। वैसे सरकार को इस दिशा में कड़े कदम उठाने ही होंगे, क्योंकि यदि यह भवन सुरक्षा और पर्यावरण की दृष्टि से लोगों के लिए खतरा है, तो इसे जमींदोज करना ही मुनासिब होगा। लेकिन क्या ऐसा हो पाएगा? दोषी सलाखों के पीछे होंगे, आखिर इस बहती गंगा में किसने हाथ धोए हैं? इस तरह के अनेक प्रश्न लोगों को मथ रहे हैं
डॉ. महेश परिमल
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आज का सच
जीवन यात्रा जून 1957 से. भोपाल में रहने वाला, छत्तीसगढ़िया गुजराती. हिन्दी में एमए और भाषा विज्ञान में पीएच.डी. 1980 से पत्रकारिता और साहित्य से जुड़ाव. अब तक देश भर के समाचार पत्रों में करीब 2000 समसामयिक आलेखों व ललित निबंधों का प्रकाशन. आकाशवाणी से 50 फ़ीचर का प्रसारण जिसमें कुछ पुरस्कृत भी. शालेय और विश्वविद्यालय स्तर पर लेखन और अध्यापन. धारावाहिक ‘चाचा चौधरी’ के लिए अंशकालीन पटकथा लेखन. हिन्दी गुजराती के अलावा छत्तीसगढ़ी, उड़िया, बँगला और पंजाबी भाषा का ज्ञान. संप्रति स्वतंत्र पत्रकार।
संपर्क:
डॉ. महेश परिमल, टी-3, 204 सागर लेक व्यू होम्स, वृंदावन नगर, अयोघ्या बायपास, भोपाल. 462022.
ईमेल -
parimalmahesh@gmail.com
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