शनिवार, 13 नवंबर 2010

मोहल्ला टाइप का एक मोहल्ला



अनुज खरे

हमारे एक रूटीन किस्म के पिताजी हैं। एक परंपरागत किस्म की माताजी हैं। एक भाईनुमा भाई है। एक बहन प्रवृति की बहन भी हैं। कुछ सामान है, यानी पूरा घर, घर किस्म का है। हमारा घर एक मोहल्लेटाइप के मोहल्ले में रहता है। मोहल्ले में भाईचारा किस्म की पुरातन व्यवस्थाओं का अस्तित्व भी पाया जाता है। मोहल्ले में कुछ ढोर भी हैं, जिनकी प्रवृति जानवरोंे के समान है। एक घूरा है जिसके दिन नहीं फिरे हैं। एक चक्की है जहां आटा पीसा जाता है। चक्की चलाने वाले एक भाई साब हैं जो आटा पीसने से बचे समय का सद्प्रयोग लव लेटर लिखने में करते हैं। कई बार तौलने वाले कांटे पर एक तरह आटे का कनस्तर दूसरी तरफ लव लेटर रखकर शब्दों के वजन तौलते हैं। हर बार पीपा ही वजनी निकलता है। अपने शब्दों में कम वजन और महंगा गेहूं देखकर वे लव मैरिज करने का साहस लंबे समय से नहीं जुटा पा रहे हैं। चक्की चलाते समय उनमें इतनी बुनियादी समझ तो आ ही गई है कि कच्ची उमर के प्यार की निरंतरता भविष्य में आटे की आबाध आपूर्ति क्षमता पर निर्भर है। इसके अलावा मोहल्ले में एक किराने की दुकान है जहां मिलावट भी होती है। डंडी भी मारी जाती है। बेइज्जती भी होती है। कई मजदूरों के घरों में शाम का खाना इसी दुकान के बलबूते बनता है। लोग मानते हैं कि बनिया कमीना है लेकिन ससुरा उधार तो देता है इसलिए आदर के काबिल तो है। तो इसलिए लोग आदर देते हैं वो उधार देता है बरसों से लेन-देन का ये संबंध इसी तरह चला आ रहा है।
हमारे मोहल्ले में एक फिक्स चबूतरा है जहां मोहल्ले के आवारा बुजुर्ग बैठते हैं। महिलाओं को घूरते हैं। बहुओं की बुराइयां करते हैं। उनके पिछलग्गू बनने पर अपने-अपने लड़कों को गालियां देते हैं। लगातार अपान वायु का विसर्जन करते हैं और फिर एक-दूसरे की तरफ शक की निगाहों से देखते हैं। लेकिन बैठते रोज हैं, जीवन की संध्या में एक-दूसरे के भरोसे यूं ही उनका जीवन चल रहा है। मोहल्ले में ही परंपरागत रूप से एक हैंडपंप है जहां पुश्तैनी आधार पर पानी भरने को लेकर झगड़ा चलता रहता है। हैंडपंप के पास बहुत सारे ईंट के टुकड़े पड़े हैं। जो पुरानी लड़ाइयों के काम आ चुके हैं। बर्तन मांजने और नई लड़ाइयों के काम आते हैं। मोहल्ले में एक हैयर कटिंग की एक दुकान है। जहां मालिश करने, चुगलखोरी करने के अलावा बीच-बीच में बाल भी काटे जाते हैं। दाढ़ी भी बनाई जाती है। मोहल्ले की कई लड़इयों में बुनियादी तौर पर योगदान दे चुकने के बाद भी रामभरोसे नऊआ का हर घर में आदर है। घर-घर बुलउआ देने का काम उसी के हवाले है। हमारे इस मोहल्ले में एक कुत्ता भी रहता है, जिसका एकमात्र उपयोग परंपरागत आधार पर मोहल्ले के बूढ़े अपने वर्तमान लड़के और उसके बीच, उसे ज्यादा वफादार बताने में करते हैं।
प्राचीनकालीन रुमानी कथाओं की तरह मोहल्ले में एक जवान मास्टरनी भी रहती हैं। जिन पर सबकी नजर है। मोहल्ले के लड़कों को अधिकांश समय उन्हें लाइन मारने में कटता है। रिटायर्ड लोगों का अधिकांश समय उनकी बदचलनी के किस्से सुना-सुना कर पास होता है। कुछ संजीदा किस्म के लोग मास्टरनी को इन सारी बातों की जानकारी देकर किसी जरूरत के समय अपने होने के बारे में सूचित करते हैं। अतिरिक्त सुरक्षा के रूप में अपनी छोटी बहन जैसा मानने का इरादा भी लगातार दोहराते हैं। हालांकि मास्टरनी को किसी की जरूरत पड़ती नहीं। कालांतर में संजीदा किस्म के लोग भी मायूस होकर रिटायर्ड किस्म वाली गतिविधियों में उतर आते हैं।
यूं तो मोहल्ले में फूट भी है, लेकिन जब कभी बाहर के मोहल्ले से आकर कोई लड़का किसी लड़की को लाइन मारता है तो सब एकजुट हो जाते हैं। बुजुर्ग उसके पिता को समझाने में निकल लेते हैं। लड़के उस बाहरी आक्रांता लड़के को पीटने की प्लानिंग बनाने में जुट जाते हैं। उस दौरान सबका भाईचारा और सह्दयता देखते ही बनती है। चाय या समोसे के पैसे के लिए कहना नहीं पड़ता कोई भी चुका देता है। मोहल्ले की लड़की है, गंभीर विमर्श चल रहा है, पैसे की क्या बात। इसी मामले में मोहल्ले की महिलाएं उसके छिप-छिपकर मिलने के किस्सों पर विचार गोष्ठि आयोजित कर लेती हैं। सबसे बड़ा बज्रपात तो मोहल्ले के उन लड़कों पर होता है जिनका अपनी तरफ से पचास परसेंट प्यार लड़की से चल रहा होता है वे बेचारे बैठे-बिठाए एकतरफा देवदास हो जाते हैं। शेविंग करवाना बंद कर देते हैं। रामभरोसे नऊवा की ऐसी ही नियमित ग्राहकी कम होती है, तो उसके संबंध में उनकी दुकान पर इतनी गहनता से विमर्श चलता है कि कुछ ही दिनों में पूरा मोहल्ला जान लेता है कि लड़की तो एक नंबर की आवार है। इसका तो कइयों से चक्कर था। इतने गंभीर आयोजन का नतीजा कुछ यूं निकलता है कि भले ही लड़की लाख मना करे कि वो किसी लड़के को नहीं जानती लेकिन घरवालों उसकी पहरेदारी और आवन-जावन के लिए इंतजाम किए बिना नहीं मानते। हालांकि उनका बस नहीं चलता अन्यथा तो लड़की की माताजी क्लास में भी उसके साथ बैठना शुरू कर दें। लड़की को तो पता तक नहीं चलता कि सारा मोहल्ला उसे बदचलन मानने लगा है। ऐसी बातें सुनकर लड़की से ज्यादा सदमे में तो उनका कथित प्रेमी आ जाता है। खुद को भाग्यशाली भी मानता है कि मैं कहां फंसने वाला था। तो हमारा इतना प्यारा मोहल्ला है कि बिना कुछ किए ही हर किस्म की हरकत को करता है।
इसी मोहल्ले में कई घरों में ताजे पति रहते हैं। शर्माने-लजाने में अपनी पत्नियों से बढ़कर हैं। अड़ोस-पड़ोस को लोगों के आने पर वे इतना शर्माते हैं जैसे वे नवब्याहता हों। इनके विपरीत इलाके में छुट्टा सांड़ किस्म के कुछ पुराने पति भी रहते हैं। जो पत्नियां को घर की मुर्गियां मानते हैं। लेकिन दूसरे की पत्नियों के प्रति उनका आदर गजब का है। अपनी निजी पत्नी को छोड़कर दूसरी सभी पत्नियों को पतिव्रता मानते हैं। उनके सतित्व की दुहाई उनके पति से ज्यादा विश्वास के साथ दे सकते हैं। किसी से कुछ नहीं सीखते लेकिन अपनी पत्नी को नई दिखने वाली हर महिला से आदर्श सीखने के बारे में निरंतर सूचित करते रहते हैं। मोहल्ले में आस-पड़ोस के घरों में लड़ाई और भाईचारे की परंपरागत किस्में भी पाई जाती हैं। परंपरागत यूं कि झगड़े के कारण शाश्वत हैं। घर का कूड़ा दूसरे के घर के आगे डाला तो लड़ाई, अपने बच्चे को बाजू वाले ने मारा तो मार-कुटाई, उनकी लड़की का किसी लड़के से नैन मटक्का चला तो ताने, हमारे लड़के से चला तो अपनी लड़की को संभालो, हमारे लड़के को बिगाड़ रही है किस्म के फिकरे। बाउंड्रीवॉल बनाने को लेकर रार, ऊपर बताए मामलों में से किसी एक आधार पर ठन चुकी पुश्तैनी दुश्मनी निभाने की परंपरा। भाईचारे की परंपरागत किस्मों के अंतर्गत मोहल्ले के दूसरे घरों की बुराई करने का स्नेहिल आयोजन, मेहमानों के आने पर छोटी बहन जैसी है कहकर मिलाने का फैशन, नमक से लेकर शक्कर तक हक से उधार मांगने की आदतें, बिटिया की शादी में पूरे मोहल्ले के लग जाने की फुरसतिया प्रवृतियां। मेहमानों के आने पर दूसरे घरों से खाने के बर्तनों के सैट मांगने जैसा भरपूर भव्य प्रयास। यानी परंपरा को खुद में समेटे एक मोहल्ले जैसा प्रवृति रखने वाला मोहल्ला हमारे यहां अभी भी सांस ले रहा है। फड़फड़ा रहा है। डूब रहा है। उतरा रहा है, लेकिन अपनी हरकतें छोड़ने से बाज नहीं आ रहा है।
हमारे मोहल्ले में त्योहार भी मनाए जाते हैं। इन त्योहारों को सब मिलजुलकर मनाते हैं। कमेटी बनाते हैं। चंदा भी एकट्ठा करते हैं। कमेटी में हर कोई इस बात पर एकमत है कि जो कमेटी में नहीं है उसके घर से सबसे ज्यादा चंदा लिया जाना चाहिए। हर घर से कोई ना कोई कमेटी में होता ही है। चंदा जोरदार होता है। त्योहार जमकर मनाया जाता है। बाद में अगले त्योहार तक कमेटी चंदा खाने को लेकर आपस में लड़ती है। अगले त्योहार पर फिर कमेटी बनती है। चंदा होता है। हर घर से कोई न कोई कमेटी में आता है। झगड़ा भी होता है पर मजाल है कि आपस में जरा सा भी मनमुटाव हो। चंदा करके त्योहार मनाने के बारे में सब एकमत हैं। इस तरह हमने प्राचीन संस्कृति को जिंदा कर रखा है। चंदा संस्कृतियों को जिंदा रखने में बेहद उपयोगी है। शहरों में लोग आपसी ठसक के कारण चंदा मांगते नहीं हैं इस कारण वहां से संस्कृति का लोप हो रहा है। लोग राजनैतिक पार्टियों तक से नहीं सीखते कि वे कैसे चंदे के बल पर अपनी समस्त प्रकार की अंदरूनी संस्कृति को जीवित रखे हैं। जागो मोहल्लो, ग्राम, कस्बों संस्कृति की खातिर जागो। चंदा करो। संस्कृति की रक्षा करो। अन्यथा हमारे जैसे कुछ मोहल्ले अपने एकल प्रयासों से क्या खाकर पूरे देश की संस्कृति को बचा पाएंगे। खैर, बात चल रही कि हमारा मोहल्ला बिलकुल ही अलग किसम की मोहल्ले जैसी चीज है। हर राष्ट्रीय समस्या पर पर्याप्त रूप से स्थानीय तौर पर चिंतित है।
हमारे मोहल्ले में यूं तो एक पार्क भी है। जो मुख्यत: दिन में आवारा लोगों के सोने, रात में जुआ खेलने के काम आता है। बीच-बीच में जब कभी वहां फूल-पत्तियां उग आती हैं तो ढोर भी मुंह मार देते हैं। कभी यहां झूले और फिसलपट्टियां भी लगाई गई होंगी जो अब कभी हम बुलंद इमारत थे-जीवन फानी है, संसार नश्वर है, जो आएगा सो जाएगा, खाली हाथ आए थे, खाली हाथ जाएंगे,माया जोड़ने से लाभ नहीं, टाइप की दार्शनिक बातों का इश्तेहार भर बन के रह गई हैं। पार्क का गेट बंधनमुक्त हो चुका है। यानी हर आदमी या जानवर चाहे जब घुस सकता है। पार्क में सही में एक फूल दो माली हैं। दूसरा माली चौकीदार भी है। फूल एक ही है वो भी बेशरम का है। मूलत: उगा तो पार्क के बाहर है लेकिन डाल अंदर को झुकी हुई है। सो पार्क की प्रॉपर्टी होने का भ्रम देती है। दो मालियों में से दिन की पाली वाला माली पार्क के नल से जरूरतमंदों और टैंकरवालों को पानी बेचता है। रातवाली पाली का चौकीदार, चौकीदारी के अलावा चिलम पीता है। चिलम और गांजे की महफिल सजाकर पूरे पार्क के मच्छरों को मोहल्ले के घरों की तरफ ढकेल देता है। पेशे के प्रति इतना ईमानदार है कि कभी रात को सोता नहीं है। पूरी रात सुट्टे लगाता रहता है। सुबह पांच बजे चिमनी बंद करता है तो फिर आठ बजे तक खांसता है। कई घरों में लोग धुआं देखकर मॉनिर्ंग वॉक और खांसना सुनकर ऑफिस के लिए तैयार होना शुरू कर देते हैं। पार्क का अस्तित्व इसलिए है कि मोहल्ला है। मोहल्ला पार्क का उपयोग पता बताने के लिए करता है। भले ही उजाड़ हो लेकिन पार्क मुस्तैदी से पता बताने में अपना अविस्मरणीय योगदान दे रहा है। पार्क और मोहल्ले में युग-युगांतर का संबंध है। जब तक मोहल्ला है, पार्क की कहानियां पीढ़ी-दर-पीढ़ी गाई जाएंगी। भले बाद में रसूखदार वहां अतिक्रमण कर लें या बिल्डर इमारतें खड़ी कर दें। लोग भले ही कुछ न करें लेकिन पार्क को अपनी यादों में जिंदा रखने की भरपूर कोशिश तो जरूर ही करेंगे। क्योंकि लोग और क्या कर सकते हैं या क्यों करें।
हमारे मोहल्ले के बीच से एक गंदा नाला भी बहता है। नाले स्वच्छ भी होते हैं इसके बारे में मेरी जानकारी सीमित है। नाले के साथ गंदा शब्द कब से जोड़ा गया, कब से कहा जा रहा है यह रहस्य ही है। लेकिन हमारे मोहल्ले का ये नाला, गंदे नाले के रूप में ही आदर पाता रहा है। आदर इसलिए कि पूरे शहर में ये मोहल्ला गंदे नाले वाले मोहल्ले के रूप में ख्याति प्राप्त है। पूरे शहर के लिए मच्छरों का उत्पादन अकेला ही कर देता है। ये नाला मोहल्ले के रुमानी जीवन का भी हिस्सा रहा है। सैकड़ों कहानियां इसी नाले के किनारे घटित हुई हैं। प्यार की दर्जनों प्लानिंगें इसी नाले के पाट पर बनाई गई हैं। मामला ठीक-ठाक न बैठने पर कई उपहार गुस्से में इसी नाले में फेंके गए हैं। प्रेमिका की कहीं और शादी होने पर उसके घरवालों से बदला लेने के लिए गंगा मइया की कसम की तरह की कई कसमें इसी नाले के आसपास खाई गई हैं। मार के नाले में फेंक देंगे..टाइप के शाश्वत डॉयलाग भी बोले गए हैं। नाले में बहने वाली विभिन्न वस्तुओं की तुलना भी झगड़ने वालों ने एक-दूसरे से की है। नाली के स्थान पर नाले के कीड़े टाइप के अशुद्ध वाक्य भी इसी की कृपा से प्रचलन में आए हैं।
इतना भयंकर मोहल्ला होने के बावजूद आजतक इस मोहल्ले के किसी बुजुर्ग के साथ बद्तमीजी नहीं की, किसी बच्चे ने किसी बड़े के साथ कभी बेअदबी नहीं की है। बूढ़े हो जाने पर घरों में उनकी कद्र की गई है। किसी बुजुर्ग ने कभी खुद को कमजोर नहीं समझा, 80 साल के हो जाने पर भी 55 साल के बेटे को डांटने और तमाचा मारने का साहस यहां के सभी बुजुर्गो में रहा है। किसी लड़के ने भी कभी डांट खाकर मजाल है कि कभी बाप को पलटकर जवाब दिया हो हमेशा गुस्सा अंदर जाकर पत्नी पर ही निकाला है।
इस तरह लड़ते-झगड़ते, पीढ़ियों साथ रहते, पुश्तैनी दुश्मनियां और मुंहबोली रिश्तेदारियां निभाते रहने वाला करेले के हलवे जैसा टेस्टी हमारा मोहल्ला केवल हमारे मोहल्ले में पाया जाता है। आपका मोहल्ला भी ऐसा ही है तो सौभाग्य मानिए।
ऐसी भागम-भाग और आत्मकेंद््िरत होते जमाने के दौर में आज कहीं मिलते हैं इतने प्यारे मोहल्ले.. सच कहिओ, तुम्हें उसी जवान मास्टरनी की कसम..,उस गंदे नाले की कसम.., तुम्हें तुम्हारे मोहल्ले की कसम..।
अनुज खरे

1 टिप्पणी:

  1. बड़े भैया टाइप को प्रणाम
    सजीव चलचित्र और सच्‍चाई झलकता पोस्‍ट है ।
    अतिसुन्‍दर व्‍यंग,,,,,,,साभार

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