गुरुवार, 4 नवंबर 2010
हमारे आसपास बढ़ता चाणक्य नीति का महत्व
डॉ. महेश परिमल
आज देश की राजनीति का स्वरूप लगातार बदल रहा है। नहीं बदल रहा है, तो वह है नेताओं का चरित्र। इतना अवश्य जान लें कि जिस देश के राजनेता राजनीति के मूल सिद्धांतों को अच्छी तरह समझकर उसे अमल में लाएँगे, तो उस देश की प्रजा उतनी ही अधिक सुखी होगी और शासन यशस्वी बनेंगे। यह सच आज भारतीय राजनीति से बहुत दूर है। यहाँ प्रजा तो सुखी नहीं है, अलबत्ता राजनेता अपनी भावी पीढ़ियों के साथ बहुत ही अधिक खुश हैं। इन दिनों पूरे विश्व में अचानक कौटिल्य के अर्थशास्त्र की माँग बढ़ गई है। विदेशों के तथाकथित मैनेजमेंट गुरु भी कंपनियों के सफल संचालन के लिए कौटिल्य के सूत्र वाक्यों को अमल में लाने लगे हैं। कौटिल्य का अर्थशास्त्र तो लोकप्रिय है ही, इसके अलावा राजनीति पर उनकी लिखी किताब भी महत्वपूर्ण है। आज कौटिल्य के अर्थशास्त्र की तरह चाणक्यनीति भी विख्यात है। सबसे पहले यह भ्रम दूर कर लें कि चाणक्य और कौटिल्य अलग-अलग हैं। वास्तव में चाणक्य और कौटिल्य एक ही व्यक्ति का नाम है।
जब भी कहीं चाणक्य राजनीति की बात आती है, तब हम समझते हैं कि यह किताब कुटिलता से भरपूर होगी। इसमें यह बताया गया होगा कि किस तरह से राजनीति में प्रतिद्वंद्वी को परास्त करें और सत्ता हासिल करें। चाणक्यनीति के बारे में यह हमारी भूल है कि हम ऐसा समझते हैं। दरअसल चाणक्यनीति के मूल में स्वार्थ नहीं, बल्कि परमार्थ है। यही कारण है कि चाणक्य ने अपने ग्रंथ के पहले ही श्लोक में तीन लोकों के नाथ ईश्वर को प्रणाम कर अपने ग्रंथ का मंगलाचरण करते हैं। ईश्वर के अस्तित्व को स्वीकार करना ही चाणक्य की राजनीति का सबसे महत्वपूर्ण सिद्धांत है। यदि किसी भी शासक को राजनीति में सफल होना है, तो उसे ईश्वर के अस्तित्व और धर्म के मूलभूत सिद्धांतों में श्रद्धा रखनी होगी।
आज हमारे देश में सांप्रदायिक ताकतें लगातार बलशाली होती जा रहीं हैं। इसके रहते कोई भी शासक सफल नहीं हो सकता। इसे ही ध्यान में रखकर अपनी दूरदर्शिता दिखाते हुए चाणक्य ने ग्रंथ लिखा। अपने ग्रंथ के बारे में चाणक्य पूरी तरह से स्पष्ट हैं। चाणक्य कहते हैं ‘मैं यहाँ प्रजा के कल्याण के लिए राजनीति के ऐसे रहस्यों का उद्घाटन करुँगा, जिसे जानने के बाद व्यक्ति सर्वज्ञ बन जाएगा।’ यहाँ पर चाणक्य ने व्यक्ति के लिए जिस सर्वज्ञ शब्द कहा है, उसका आशय यही है कि ऐसा व्यक्ति संसार के सभी व्यवहारों को समझने लगेगा, अर्थात वह पूर्णत: व्यावहारिक हो जाएगा। उसका संबंध आध्यात्मिक जगत के साथ नहीं होगा। आध्यात्मिक दृष्टि प्राप्त करने वाले तो महात्मा होते हैं। चाणक्य दावे के साथ कहते हैं कि जो व्यक्ति मेरे ग्रंथ से राजनीति के इस विज्ञान को समझेगा, वही प्रजा का कल्याण कर पाएगा। चाणक्य ने यहाँ पर ज्ञान नहीं, बल्कि विज्ञान शब्द का प्रयोग किया है। राजनीति के सिद्धांतों का अभ्यास करने की क्रिया को ही ज्ञान कहा जाता है। इसे समाज के एक-एक व्यक्ति के हित में उसका उपयोग करना विज्ञान कहलाता है। ज्ञान की अपेक्षा विज्ञान अधिक सारगर्भित है। चाणक्य यह दावा नहीं करते कि इस ग्रंथ में जो कुछ लिखा गया है, वह मौलिक है। पहले ही श्लोक में वे कहते हैं कि अनेक शास्त्रों में से चुन-चुनकर राजनीति की बातों का संपादित किया है। इस वाक्य में ही चाणक्य की ईमानदारी और पारदर्शिता झलकती है। आज का युग चाणक्य के पाठकों को अँधेरे में रखना नहीं चाहता। वे स्पष्ट रूप से कुबूल करते हैं कि मैंने तो राजनीति के सिद्धांतों का संकलन ही किया है। इस तरह से संकलित कर चाणक्य ने अनेक पूर्व महर्षियो के ज्ञान की धरोहर को जीवंत रखा है और हम तक उसे पहुँचाने का पुण्य कार्य किया है।
किसी भी ग्रंथ को पढ़ने और उसे अमल में लाने के पहले हमें यह जान लेना आवश्यक है कि इस ग्रंथ का अभ्यास करने से हमें क्या लाभ होगा? चाणक्य ने पने ग्रंथ के प्रारंभ में ही इस प्रश्न का उत्तर दे दिया है। चाणक्य कहते हैं कि इस नीतिशास्त्र को सही अर्थो में समझा है, तो वे यह अच्छी तरह से जान जाएँगे कि कौन-सा कार्य अच्छा है और कौन-सा बुरा। इस माध्यम से उन्होंेने उत्तम मनुष्य की व्याख्या भी कर दी है। उत्तम मनुष्य उसे कहते हैं, जो नीतिशास्त्र केमूल सिद्धांतों को स्वयं अमल में लाए, उसके आधार पर प्रजा को क्या करना चाहिए, क्या नहीं करना चाहिए, यह भी स्पष्ट हो जाएगा। ईष्ट क्या है और अनिष्ट कय है, इसका भी बोध यह ग्रंथ कराएगा। चाणक्य का नीतिशास्त्र प्रजा को सुखी बनाने का शास्त्र है। कोई भी व्यक्ति, जो सुखी होना चाहता है, उसे जीवन को दु:खी बनाने वाले तत्वों की पहचान पहले कर लेनी चाहिए। चाणक्य का नीतिशास्त्र बहुत ही व्यावहारिक बातें करता है। इसी कारण सुख के साधनों की तलाश करने के बदले दु:ख पैदा करने वाले साधनों को पहचान लेना चाहिए, ताकि सुख प्राप्त करने में ये तत्व बाधक न बनें। आखिर कहाँ हैं ये दु:ख देने वाले तत्व? चाणक्य कहते हैं ‘मूर्ख व्यक्ति को दिया जाने वाला उपदेश, कुलटा स्त्री का भरण-पोषण और दु:खी लोगों का संसर्ग विद्वानों को भीे दु:खी बना देता है। ’ जिसे सुखी होना है, उसे कभी भी मूर्ख व्यक्ति को उपदेश नहीं देना चाहिए। कुलटा स्त्री का भरण-पोषण नहीं करना चाहिए। यहाँ पर दुखियारों की मदद करना निषेध नहीं माना है, पर उसके साथ रहने का निषेध किया गया है। क्योंकि उसका संक्रमण अवश्य होगा।
जैन शास्त्रों में भी लिखा गया है कि मूर्ख व्यक्ति को उपदेश देना ऐसा है, जैसे खुजली वाले कुत्ते के शरीर पर चंदन का लेप मलना। ये बेकार की मेहनत है। इसका कोई परिणाम नहीं निकलेगा। इससे निराशा ही मिलती है। बारिश में भीगने वाले बंदर से पेड़ के पक्षियों ने घोसला बनाने की सलाह दी। इससे क्रोधित होकर बंदर ने पक्षियों के घोसलों को ही नष्ट कर दिया। सइी तरह कुलटा स्त्री साँप की तरह है, जिसे दूध पिलाकर हम यह समझें कि हमने उस पर दया की। जो दया करने वाले के प्रति फादारी नहीं कर सकती, उसका भरण-पोषण करना पति का कर्तव्य नहीं है। आज का कानून भी पति से बेवफाई करने वाली स्त्री से तलाक लेने की सलाह देता है। दु:खी मनुष्यों में से एक प्रकार की नकारात्मक ऊर्जा प्रवाहित होती है। इस कारण ऐसे लोगों के साथ रहने वाला भी निराशावादी हो जाता है। जिन्हें आशावादी बनना हो, उसे आशावादियों के साथ रहना चाहिए। सोहबत का असर इंसानों पर ही सबसे पहले होता है। यह चाणक्य बहुत पहले कह गए हैं।
बाद के श्लोक में चाणक्य मनुष्य के जीवन के लिए सबसे अधिक हानिकारक चार तत्वों की बात करते हैं। चाणक्य कहते हैं ‘दुष्ट पत्नी, शठ मित्र, आज्ञा न मानने वाले नौकर और घर में बसने वाला साँप’ ये चारों मृत्यु के समान हैं। पति और पत्नी संसाररूपी रथ के दो पहिए है, यदि पत्नी दुष्ट हो, तो जीवन के हर कदम पर अवरोध पैदा होते हैं और संसार का यह रथ बराबर चल नहीं पाता। रणभूमि पर शत्रुओं का वीरतापूर्वक मुकाबला करने वाला पराक्रमी योद्धा भी पत्नी के सामने लाचार बन जाता है। दुष्ट पत्नी अपने पति के लिए अभिशाप होती है। वह सज्जन पुरुष का जीवन हराम कर देती है। पत्नी दुष्ट हो, तो घर से सुख-शांति हमेशा के लिए चली जाती है। जिस घर में शांति न हो, उसका समाज में भी कोई मान-सम्मान नहीं होता। पत्नी बेवफा हो, तो अरबों की दौलत भी सुख नहीं दे सकती।
इंसान की सबसे बड़ी पूँजी उसकी संतान और मित्र है। जिन्हें अच्छे मित्र मिले, वह विश्व का सबसे भाग्यशाली व्यक्ति है। जिन्हें धूर्त मित्र मिले हैं, वह विश्व का सबसे बड़ा दुर्भाग्यशाली व्यक्ति है। मनुष्य किसी भी व्यक्ति के साथ मित्रता करे, तब उसे उसके दुगरुणों के बारे में जानकारी नहीं होती, उसे यह विश्वास होता है कि मुसीबत के समय सहायता करने वालों में यही सबसे आगे होगा। मित्र तो सहायता करेगा ही। वास्तव में जीवन में जब बाधाएँ आती हैं और तब हमने मित्र से सहायता की अपेक्षा रखी हो, तभी वह धोखा दे जाए, तो कैसा लगता है? समाज में दूसरे लोग हमारे साथ धोखाधड़ी करते हैं, तब हमें आघात नहीं लगता, पर जब मित्र ही हमसे धोखा करने लगे, तो उस आघात को सहना बहुत ही मुश्किल होता है। इसी तरह मालिक का आदेश न मानने वाला नौकर भी खतरनाक होता है। घर में जब मेहमान आएँ हो, उस समय यदि उसे कोई आदेश दिया जाए, तभी नौकर सेठ का अपमान कर दे, तो यह बात सेठ के लिए बहुत ही अधिक आघातजनक होगी।
लोग यह दलील देते हैं कि चाणक्य आज से 2400 वर्ष पूर्व पैदा हुए थे। उसके समय की राजनीति और आज की राजनीति में जमीन-आसमान का अंतर है। तो उसका जवाब यह है कि चाणक्य ने अपने ग्रंथ में राजनीति के शाश्वत सिद्धांतों की चर्चा की है। राजनीति के साथ-साथ उन्होंने समाजशास्त्र के महत्वपूर्ण सिद्धांतों को भी समझाया है। यह सिद्धांत प्राचीन काल में जितने प्रासंगिक थे, आज भी उतने ही प्रासंगिक हैं। देश में राजशाही हो या लोकशाही, पर राजनीति के सिद्धांत कभी नहीं बदलते। जो राजनेता सिद्धांतों की जानकारी प्राप्त कर लेते है, वे अपने आप को देश, काल और परिस्थितियों के अनुरूप ढाल सकते हैं।
डॉ. महेश परिमल
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प्रबंधन
जीवन यात्रा जून 1957 से. भोपाल में रहने वाला, छत्तीसगढ़िया गुजराती. हिन्दी में एमए और भाषा विज्ञान में पीएच.डी. 1980 से पत्रकारिता और साहित्य से जुड़ाव. अब तक देश भर के समाचार पत्रों में करीब 2000 समसामयिक आलेखों व ललित निबंधों का प्रकाशन. आकाशवाणी से 50 फ़ीचर का प्रसारण जिसमें कुछ पुरस्कृत भी. शालेय और विश्वविद्यालय स्तर पर लेखन और अध्यापन. धारावाहिक ‘चाचा चौधरी’ के लिए अंशकालीन पटकथा लेखन. हिन्दी गुजराती के अलावा छत्तीसगढ़ी, उड़िया, बँगला और पंजाबी भाषा का ज्ञान. संप्रति स्वतंत्र पत्रकार।
संपर्क:
डॉ. महेश परिमल, टी-3, 204 सागर लेक व्यू होम्स, वृंदावन नगर, अयोघ्या बायपास, भोपाल. 462022.
ईमेल -
parimalmahesh@gmail.com
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'असतो मा सद्गमय, तमसो मा ज्योतिर्गमय, मृत्योर्मा अमृतं गमय ' यानी कि असत्य की ओर नहीं सत्य की ओर, अंधकार नहीं प्रकाश की ओर, मृत्यु नहीं अमृतत्व की ओर बढ़ो ।
जवाब देंहटाएंदीप-पर्व की आपको ढेर सारी बधाइयाँ एवं शुभकामनाएं ! आपका - अशोक बजाज रायपुर
चाणक्य को पढ़ना अपने आप में एक अनुभव है।
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