शुक्रवार, 3 जून 2011
बाबा रामदेव का उपवास सफल होना चाहिए?
डॉ. महेश परिमल
देश में फैले भ्रष्टाचार और काले धन के खिलाफ बाबा रामदेव ने आमरण अनशन का बिगुल फूँक दिया है। इससे केंद्र सरकार हिल गई है। निश्चित रूप से यह सोचने वाली बात है कि सरकार को जो कुछ करना चाहिए, उसे अण्णा हजारे और रामदेव बाबा जैसे लोग बता रहे हैं। बाबा के इरादे जो कुछ भी हों, पर सच तो यह है कि उन्होंने एक ज्वलंत मुद्दे को सामने लाने का प्रयास किया है। यदि सरकार इस दिशा पर पहले ही ध्यान देती और उसकी नीयत साफ होती, तो शायद ऐसा कुछ नहीं होता। पर सरकार की नीयत में खोट है, इसलिए कुछ लोगों को सामने आने का मौका मिल रहा है। वैसे बाबा ने प्रधानमंत्री की अपील ठुकराकर यह साबित कर दिया है कि उनकी कोई हैसियत नहीं है। वे चाहकर भी कुछ ऐसा नहीं कर सकते, जिससे क्रांति आ जाए।
केंद्र सरकार ने चार हस्तियों को बाबा को मनाने के लिए भेजा। इससे ऐसा लगता है कि बाबा भी अण्णा हजारे की तरह ही लोगों की भीड़ जुटा सकते हैं और अपनी माँगें मनवा सकते हैं। लेकिन बाबा को यह अच्छी तरह से मालूम है कि किस तरह से सरकार आश्वासन देकर बाद में अपने वादे से मुकर जाती है। इसलिए उन्होंने यह घोषणा कर दी है कि आमरण अनशन का फैसला वे किसी भी सूरत में वापस नहीं लेंगे। उनके इस दृढ़ संकल्प से सरकार हिल गई है। सरकार भी यह अच्छी तरह से जानती है कि जिन दो मुद्दों को लेकर बाबा आगे बढ़ रहे हैं, वे मुद्दे देश के लिए कोढ़ साबित हो रहे हैं। केंद्र सरकार में बहुत से भ्रष्ट राजनेता हैं, जिनके काले धन विदेशी बैंकों में जमा हैं। यही नहीं भ्रष्टाचार न करने वाला कोई नेता ऐसा नहीं है, जो दावे के साथ कह दे कि उसने कभी भ्रष्टाचार नहीं किया। सरकार यह जानती-समझती है, इसलिए वे डरी हुई है। जिस तरह से अण्णा हजारे को जनता का समर्थन मिला, ठीक उसी तरह बाबा रामदेव को मिला, तो देश एक नई राह पर जाने से कोई रोक नहीं सकता।
बरसों से यह बात सामने आती रही है कि किस मंत्री का कितना धन विदेशों में जमा है। इस दिशा में कभी कोई ऐसे प्रयास नहीं हुए, जिससे लगे कि सरकार इस दिशा में सचमुच गंभीर है। सरकार को इस दिशा में गंभीर किया अण्णा हजारे ने। सरकार के लिए केवल अण्णा हजारे कतई महत्वपूर्ण नहीं थे, महत्वपूर्ण था उन्हें मिलने वाला जन समर्थन। इसी जन समर्थन से सरकार बनाने वाले विजयी होते हैं, आज वही जन सैलाब इन्हीं मंत्रियों और नेताओं के लिए आँख के किरकिरी बन गए हैं। यदि बाबा के साथ जन सैलाब उमड़ पड़ा, तो क्या होगा? यही चिंता सरकार को सता रही है।
बाबा के शंखनाद से यह तो तय हो गया है कि अब जो लोग सरकार की किसी भी कार्यप्रणाली पर अपने विचार नहीं रखते थे, सब चलता है, की तर्ज पर वे सरकार की मनमानियों को सह लेते थे, वे भी अब खुलकर बोलने लगे हैं। आम आदमी का इस तरह से खुलकर बोलना किसी भी सरकार के लिए सरदर्द हो सकता है, उन परिस्थितियों में जब सरकार स्वयं ही भ्रष्टाचार में गले तक डूबी हुई हो। चार जून सरकार के लिए उतना ही महत्वपूर्ण है, जितना बाबा के लिए। अब दोनों की कसौटी है। जनता का धर्य जवाब दे चुका है। बाबा ने इसे जानते समझते हुए यह कदम उठाया है। सरकार की परेशानी यह है कि उनके खिलाफ किसी प्रकार की कार्रवाई भी नहीं कर सकती। क्योंकि उनके खिलाफ एक कदम भी प्रजा के गुस्से का कारण बन सकता है। भले ही बाबा असरकारी हैं, उनका किसी पार्टी से कोई लेना-देना नहीं है, फिर भी उन पर हाथ डालना खतरे से खाली नहीं है। क्योंकि उनके साथ जन समर्थन है।
जिस तरह से अण्णा हजारे को सरकार ने आश्वासन दिया था कि लोकपाल विधेयक को लेकर उनकी माँगें मानी जाएँगी, बाद में चर्चा में उनकी कई माँगों को नजरअंदाज किया गया। इससे साबित हो गया कि सरकार की नीयत में खोट है। अब जब बाबा काले धन और भ्रष्टाचार के मुद्दे पर जनता को लेकर आमरण अनशन की घोषणा कर चुके हैं, यही नहीं प्रधानमंत्री और रह्वाजनैतिक हस्तियों की अपील और अनुनय-विनय को भी स्वीकार नहीं कर रहे हैं, तब सरकार के पास यही उसाय बचता है कि बाबा की माँगें मान ली जाएँ। बाबा की पूरी माँगें मानना सरकार के लिए संभव नहीं है। सरकार की अपनी कुछ विवशताएँ हैं। इसके चलते विवाद तो होने ही हैं। संभव है सरकार ही हिल जाए।
अब सबकी नजरें चार जून पर टिकी हैं,जब बाबा अपना आमरण-अनशन शुरू करेंगे। निश्चित रूप से इन्हें भी जन समर्थन मिलेगा। वैसे भी अपने योग से वे भीड़ जुटाने में सिद्धहस्त हो चुके हैं। अपने योग से वे अपनी क्षुधा को तो शांत कर लेंगे, पर उनके इस हठयोग को सरकार किस तरह से निपटेगी, यही देखना है।
डॉ. महेश परिमल
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अभिमत
जीवन यात्रा जून 1957 से. भोपाल में रहने वाला, छत्तीसगढ़िया गुजराती. हिन्दी में एमए और भाषा विज्ञान में पीएच.डी. 1980 से पत्रकारिता और साहित्य से जुड़ाव. अब तक देश भर के समाचार पत्रों में करीब 2000 समसामयिक आलेखों व ललित निबंधों का प्रकाशन. आकाशवाणी से 50 फ़ीचर का प्रसारण जिसमें कुछ पुरस्कृत भी. शालेय और विश्वविद्यालय स्तर पर लेखन और अध्यापन. धारावाहिक ‘चाचा चौधरी’ के लिए अंशकालीन पटकथा लेखन. हिन्दी गुजराती के अलावा छत्तीसगढ़ी, उड़िया, बँगला और पंजाबी भाषा का ज्ञान. संप्रति स्वतंत्र पत्रकार।
संपर्क:
डॉ. महेश परिमल, टी-3, 204 सागर लेक व्यू होम्स, वृंदावन नगर, अयोघ्या बायपास, भोपाल. 462022.
ईमेल -
parimalmahesh@gmail.com
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जो भी निष्कर्ष निकलें, देशहित में हों।
जवाब देंहटाएंदिग्गीk राजा सही कह रहे हैं प्रजातंत्र ने कमान मनमोहन जी को दी हैं, बाबा जी को नही , इन बाबा जी द्वारा भीडतंत्र को लोकतंत्र का जामा पहनाने का प्रयास प्रजातंत्र के लिऐ आत्म घाती कदम हैं, सवा सौ करोड में पांच दस लाख को जुटाकर जब हम अपने देश की ही सरकार को ललकारेगे तो विदेश के लोग तो आसानी से हमारी ऐसी की तैसी कर देगें, राम देव जी अगर योग को घर घर तक पहुचाने की बात करते हैं तो भष्ट्रासचार रहित संस्का र की बाते भी घर घर पहुचा सकते थे इस तरह दिल्लीे के रामलीला मैदान में पांच सितारा टेण्टस लगाकर ग्याारह हजार चार सौ करोड के योगी का चंदे में पांच दस लाख की मांग करना क्यां अस्वाटभाविक नही हैं ........खैर पब्लिक सब खेल समझ रही हैं सब मीडिया के कैमरे का कमाल हैं......सतीश कुमार चौहान भिलाई satishkumarchouhan@blogspot.com
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