मंगलवार, 21 जून 2011

गरीब परिवारों के लिए वरदान है हिप्नोबर्थिग

डॉ. महेश परिमल
एक नारी के लिए सच्च सुख है मातृत्व प्राप्त करना। इसे प्राप्त करने के पहले उसे पीड़ा की एक नदी ही पार करनी होती है। जिसे प्रसव वेदना कहा जाता है। असीम पीड़ा, तीव्र पीड़ा और असह्य दर्द, ये सभी एक साथ सामने आते हैं, जब एक नारी इस वेदना से गुजर रही होती ेहै। इस वेदना को कम करने के लिए आज के चिकित्सक उसे इंजेक्शन दे देते हैं, जिससे कुछ देर के लिए यह दर्द काफूर हो जाता है। थोड़ी देर बाद फिर वही पीड़ा का दौर। बरसों पहले गाँव-गाँव में दाइयाँ हुआ करती थीं, जो अपने अनुभव से विवाहिता को इस पीड़ा से छुटकारा दिलाती थीं। इनके अनुभव काफी काम आते थे। सोचो, एक बड़े शहर में एक महिला को प्रसव वेदना हुई। वह तड़पने लगी। उसकी सास ने एम्बुलेंस को फोन किया। कुछ ही देर में एम्बुलेंस आ गई। थोड़ी देर बाद सास ने देखा कि बहू अब चीख नहीं रही है। उसे आश्चर्य हुआ। वह महामृत्युंजय का पाठ करने लगी। ईश्वर ये क्या हो गया। दिन पूरे हैं, इस वेदना हुई और अब वह किसी तरह की पीड़ा से छटपटा नहीं रही है। हमारे जमाने में तो पूरा आसमान ही सर पर उठा लिया जाता था। सास अमंगल विचारों से घिर गईं। एम्बुलेंस नर्सिंग होम पहुँची, वहाँ पूरी तैयारी थी। डेढ़ घंटे बाद बहू एक नवजात के साथ बाहर आई। सास को आश्चर्य हुआ! दोनों ही स्वस्थ थे। सास को विश्वास ही नहीं हो रहा था कि ऐसा भी हो सकता है। सास ने जब बहू से इसका राज पूछा, तो बहू ने मुस्कराकर कहा-माँ जी, यह तो हिप्नोबर्थिग का कमाल है। अब भला सास क्या जाने, ये हिप्नोबर्थिग क्या होती है? हम भी नहीं जानते कि ये आखिर है क्या?
आजकल डॉक्टर पहले से अधिक उतावले हो गए हैं। प्रसूता को धर्य नहीं है। वे प्रसव वेदना से गुजरना ही नहीं चाहतीं। इसका पूरा लाभ चिकित्सक उठा रहे हैं। वे जरा भी इंतजार नहीं करते और सिजेरियन की सलाह देते हुए तुरंत आपरेशन के लिए दबाव बनाते हैं। इस दौरान पालकों का भी विवेक काम नहीं करता, क्योंकि चिकित्सकों ने इसे काफी बढ़ा-चढ़ाकर बताया है। इसलिए वे भी उनकी हाँ में हाँ मिला देते हैं। जो काम थोड़े धर्य के साथ कुछ ही पलों में हो सकता था, वही काम अधिक खर्च के साथ अधिक पीड़ा वाला साबित होता है। लेकिन हिप्नोबर्थिग ने प्रसूताओं को इस भय से पूरी तरह से मुक्त कर दिया है। आओ, जानें कि आखिर यह हिप्नोबर्थिग है क्या? वैसे नाम से तो पता चल ही गया होगा कि यह स्वसम्मोहन प्रक्रिया है। अपने आप को सम्मोहित करना। जैसे हमें एक सूई में धागा पिरोना है। हम कितनी सावधानी से धागा पिरोने का काम करते हैं। पूरी तरह से एकाग्र होकर, सारी चिंताओं से दूर होकर पूरी तन्मयता के साथ ये कार्य सम्पन्न होता है। इसी तरह दूसरे कई काम हैं, जिसके लिए तन्मयता की आवश्यकता है। ठीक उसी तरह स्व-सम्मोहन भी एक ऐसी ही पद्धति है, जिसमें पीड़ित व्यक्ति स्वयं को सम्मोहित करता है। आजकल यूरोप-अमेरिका में यह अति लोकप्रिय टेकनिक है। हॉलीवुड की अभिनेत्री जेसिका अल्बा ने इस टेकनिक से प्रसूति करवाई थी। आज भी गाँवों में कई दाइयाँ ऐसी हैं, जो आज की गायनेकोलॉजिस्ट के अनुभव को चुनौती देने में सक्षम हैं। यह पद्धति इसलिए लोकप्रिय हुई है कि आज के लालची चिकित्सक द्वारा लगातार किए जा रहे सिजेरियन ऑपरेशन हैं। कुछ विशेष कारणों में सिजेरियन आवश्यक हो सकता है, पर हर मामले में सिजेरियन संभव ही नहीं है, लेकिन लालची चिकित्सक इसे संभव बनाने में लगे हुए हैं।
हिप्नोबर्थिग में गर्भवती महिला को स्व-सम्मोहन करना सिखाया जाता है। कई मामलों में गर्भवती महिलाएँ अपने घर में ही प्रसूति कराने के किस्से सामने आए हैं। पति, प्रशिक्षित नर्स और परिजनों की उपस्थिति में गर्भवती महिला अपने इष्टदेव का स्मरण कर स्व-सम्मोहन द्वारा अपनी पीड़ा को सह्य बनाती है। पीड़ा को भूलने के लिए हिप्नोटिज्म यानी सम्मोहन विद्या का सहारा लिया जाता है। आधुनिक विज्ञान कहता है कि स्व-सम्मोहन से जब मादक द्रव्यों का नशा छुड़ाया जा सकता है, तो फिर प्रसव वेदना को कम कैसे नहीं किया जा सकता? दिल्ली और बेंगलोर में हिप्नोबर्थिग के सफल प्रयोग हो चुके हैं। इस तकनीक से सिजेरियन ऑपरेशन को टाला जा सकता है। इससे प्राकृतिक रूप से बच्चे का जन्म लेना संभव हुआ है। यहाँ यह बात उल्लेखनीय है कि हमारे देश में अभी भी अधिकांश लोग सफाई के प्रति उतने गंभीर नहीं हैं, जितना उन्हें होना चाहिए। यदि कोई मध्यमवर्गीय महिला ये चाहे कि वह अपने घर में ही बच्चे को जन्म दे, तो इसके लिए काफी तैयारी करनी पड़ेगी। ताकि जच्चे-बच्चे को किसी तरह का संक्रामक रोग न लग जाए। हिप्नोबर्थिग के समर्थक कहते हैं कि इस पद्धति से दिल्ली और चेन्नई में सिजेरियन से होने वाली डिलीवरी में कमी आई है।सन् 2007-8 में 38 प्रतिशत डिलीवरी सिजेरियन से हुई थी, जो सन् 2009-10 में घटकर 21 प्रतिशत हो गई थी।
इस पद्धति का इतिहास यह है कि सबसे पहले ब्रिटिश ओब्स्टेट्रीशियन ग्रेंटली डीक-रेड (1890-1959) ने इसकी सिफारिश की थी। अपने अनुभव के आधार पर उन्होंने एक किताब भी लिखी- ‘चाइल्ड बर्थ विदाउट फियर’, इस पर कई चिकित्सकों ने मिलकर इस विचार को आगे बढ़ाया। इस तकनीक के समर्थक कहते हैं कि हिप्नोबर्थिग से प्रसव का समय घटता है। पीड़ा का अनुभव नहीं के बराबर होता है। सबसे बड़ी बात तो यह है कि इसमें प्रसूति प्राकृतिक रूप से होती है। इसमें सिजेरियन की आवश्यकता ही नहीं पड़ती। अभी यूरोप और अमेरिका में मेरी मोंगन और केरी टुश्शोफ की हिप्नोबर्थिग टेकनीक काफी लोकप्रिय है। जो प्रसूता अस्पताल जाने के काल्पनिक भय से पीड़ित होती है, उसके लिए यह टेकनीक उपयोगी है। भारत में यह तकनीक अभी कुछ शहरों तक ही सीमित है। यदि इसका सुचारू रूप से प्रचार किया जाए, तो यह मध्यम वर्गीय परिवारों के लिए एक वरदान साबित हो सकती है।

डॉ. महेश परिमल

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