सोमवार, 20 जून 2011

बहुत काम आती हैं पिता की सीख



रमेश शर्मा
पत्थलगांव/छत्तीसगढ़/
अक्सर ऐसा होता है, जब लोग सामने होते हैं, तो उनकी कद्र नहीं होती, पर जब वे अपनी सुनहरी यादें छोड़कर चले जाते हैं, तब उनकी खूब याद आती है! तब उनकी याद का स्थायी रखने के लिए उनके द्वारा किए गए कार्यों को याद करते हैं! कई तो उनकी सीख को गाँठ बांधकर रख लेते हैं। अब रमेश मेहरा को ही देख लो, वे मानते हैं कि जब कभी धैर्य चुकने लगता है तो पिता का स्मरण कर उन्ही से मदद मांगता हूं। इसके बाद सभी मुश्किलें देखते ही देखते आसान हो जाती हैं। पांच साल की छोटी सी उम्र के दौरान स्कूल में दाखिला दिलाने के बाद भले ही पिता का साया साथ नहीं रह पाया हो पर पिता का सिखाया हुआ शिक्षा का मूलमंत्र जशपुर जिले के पत्थलगांव निवासी रमेश मेहरा को हमेशा काम आ रहा है।
यहंा होटल का व्यवसाय करने वाला शख्स रमेश मेहरा को पिछले चार दशकों से अपनी विधवा भाभी और चार छोटी बहनों के लिए पिता जैसी जिम्मेदारी का निर्वहन कर रहे हैं। मेहरा का कहना है कि वह अपने बड़े परिवार की परवरिश में कहीं भी पिता की कमी को याद नहीं आने देते। कई बार बेहद जटिल स्थिति निर्मित हो जाती हैं उस मुश्किल घड़ी में एकांत में बैठकर पिता का स्मरण करने के बाद उसे फिर से काम करने की ऊर्जा मिल जाती है। रमेश मेहरा ने बताया कि उसकी कम उम्र में ही पिता का देहांत हो गया था। अपने पिता से जीवन की बारीकिंया भले ही सीखने को नहीं मिल पाई थी। लेकिन पिता व्दारा स्कूल में दिलाया गया दाखिला को ही वह जीवन का मूलमंत्र मानता है। इस शख्स ने अपने परिवार के अन्य बच्चों को कठिन परिस्थितियों के बाद भी बेहतर शिक्षा दिला कर उनके जीवन की राह आसान कर दी हैं। मेहरा की बहन और भतीजों का बड़ा परिवार होने के बाद भी शिक्षा के मूलमंत्र के चलते उसे कहीं भी दिक्कतों का सामना नहीं करना पड़ रहा है। मेहरा के दो भतिजों को प्रारम्भ से ही अच्छी शिक्षा-दीक्षा मिल जाने से वे अब जर्मनी में रह कर अपना जीवन यापन कर रहे हैं। मेहरा का कहना है कि पिता का प्यार से भौतिक सुख सुविधा की बराबरी नहीं की जा सकती है। लेकिन पिता की बातों सुखद अहसास हमेषा काम आता है। उन्होने बताया कि पिता ने स्वयं जाकर स्कूल में दाखिला नहीं दिलाया होता तो वह शायद षिक्षा का महत्व नहीं समझ पाता। मेहरा का कहना है कि वह अपने परिवार के सभी बच्चों का स्कूल में जाकर दाखिला कराना नहीं भुलता है। पिता की इस याद को वह परम्परा बना चुका है। शिक्षा के बलबूते ही उसे जीवन के लम्बे सफर में अभाव और मुश्किलों का सामना नहीं करना पड़ा है।

रमेश शर्मा
पत्थलगांव/छत्तीसगढ़/

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