बुधवार, 3 अगस्त 2011
वे मौत के वाहक नहीं रोजी-रोटी का साधन हैं
रमेश शर्मा
पत्थलगांव। राह चलते अगर कहीं हमारा पांव किसी मुलायम चीज पर पड़ जाए, तो हमें सांप होने का आभास होता है और हमारी सिट्टी-पिट्टी गुम हो जाती है। सांप का नाम लेते ही रोंगटे खडे़ हो जाते हैं। हमारे लिए तो ये मौत के वाहक हैं, पर उन मासूमों के लिए तो ये ही खतरनाक और विषैले सांप रोजी-रोटी का साधन बन गए हैं। स्कूल जाने की चाहत तो रखते हैं, पर माता-पिता का जीवन यायावर की तरह होने के कारण ये भी उनके साथ खानाबदोश जिंदगी जीते हैं। कभी यहां तो कभी वहां! सबव के इस पावन महीने में इन सांपों को दिखाकर ये मासूम अच्छी कमाई कर लेते हैं।
नागलोक के नाम से चर्चित जशपुर जिले में ग्रामीणों की मौत का कारण बनने वाले नाग यहंा पर कुछ लोगों की रोजी रोटी का सहारा भी बने हुऐ हैं। इस अचंल में बहुतायत में मिलने वाले नाग और करैत जैसे जहरीले सांपों के भय से यहंा के लोग भले ही डर कर सहम जाते हैं पर इन्ही सांपों को कुछ बच्चों ने अपने जीवन यापन का सहारा बना लिया है। नागलोक के नाम से चर्चित इस अचंल में काले नाग भले ही ग्रामवासियों के लिये मौत का पैगाम लेकर पहुंचते हैं पर सन्तोष और पारस जैसे बच्चों के लिये यही जानलेवा कहलाने वाले काले नाग रोजी रोटी का सहारा बने हुए हैं। ये बच्चे जगह जगह इन भयावह दिखने वाले काले नाग को गले में लटका कर तथा फन निकाले हुए गुस्सा वाली मुद्रा का प्रदर्शन कर दो वक्त की रोटी की जुगाड़ में लगे रहते हैं।
इसी रविवार को पत्थलगांव के बस स्टैण्ड पर काला नाग लेकर कुछ बच्चे भीख मांगते हुऐ दिखाई पड़े। सावन का पावन महीना होने के कारण कई श्रद्धालु इन बच्चों के हाथों में काले नाग के दर्शन कर नतमस्तक हो रहे थे। ऐसे लोगों से नाग दर्शन के एवज में दो चार रुपए.मांगकर ये बच्चे अपनी रोजी रोटी का जुगाड़ में जुटे हुऐ थे।
पारस और सन्तोष नामक इन बच्चों ने बताया कि वे महासमुन्द जिले के निवासी हैं। यहंा पर वे अपने परिजनों के साथ सांप दिखाकर जीवन यापन का काम में जुटे हुए हैं। पारस ने बताया कि बचपन से इन सांपों के साथ रहने से उन्हे इनसे किसी तरह का डर नहीं लगता है। इस बच्चे ने बताया कि उसकी स्कूल जाकर पढ़ने लिखने की इच्छा होती है पर उनके माता पिता घुमन्तू जीवन व्यतीत करने के कारण उनकी पढ़ाई की इच्छा पूरी नहीं हो पाती है। अब तो सांपों के करतब दिखाने में ही पूरा समय गुजर जाता है।
सन्तोष नामक बच्चे का कहना था कि उन्हे अक्षर ज्ञान भले नहीं है पर काले नाग को कैसे वश में किया जाता है इसका बखूबी ज्ञान है। सन्तोष ने बताया कि बेहद जहरीले काले नाग को विषविहीन करने के बाद उनके माता पिता इन सांपों को उन्हे सौंप देते हैं। यदाकदा गुस्से में आकर सांप उनके शरीर पर अपने नुकीले दांत गड़ा देता है। इसके लिये वे जड़ी बूटियों का सहारा ले लेते हैं। इन बच्चों ने बताया कि जहरीले सांपों का विष निकालकर इसके खरीददारों के पास बेच दिया जाता हैं। पारस का कहना था कि सांपों का प्रदर्शन करके वे अपनी रोटी के साथ सांप के लिये ूुघ की व्यवस्था करते हैं।इन बच्चों के माता पिता भी टोकरों में सांपों को लेकर उनका प्रदर्शन के बाद जड़ी-बूटी बेचते हैं। एक गांव से दूसरे गांव की खाक छानने के बाद इन सांपों से उनकी रोटी का जुगाड़ हो जाता है। इन बच्चों का कहना था कि यहंा के लोग सुरक्षा के उपाय करें तो निश्चित ही सर्पदंश की घटनाओं में कमी आ सकती है। पारस का कहना था कि बहुत से लोग सांप को फन उठाए हुई मुद्रा में देखना पसंद करते हैं जिसके एवज में उनकी अच्छी आमदनी हो जाती है।
रमेश शर्मा पत्थलगॉंव
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जिंदगी
जीवन यात्रा जून 1957 से. भोपाल में रहने वाला, छत्तीसगढ़िया गुजराती. हिन्दी में एमए और भाषा विज्ञान में पीएच.डी. 1980 से पत्रकारिता और साहित्य से जुड़ाव. अब तक देश भर के समाचार पत्रों में करीब 2000 समसामयिक आलेखों व ललित निबंधों का प्रकाशन. आकाशवाणी से 50 फ़ीचर का प्रसारण जिसमें कुछ पुरस्कृत भी. शालेय और विश्वविद्यालय स्तर पर लेखन और अध्यापन. धारावाहिक ‘चाचा चौधरी’ के लिए अंशकालीन पटकथा लेखन. हिन्दी गुजराती के अलावा छत्तीसगढ़ी, उड़िया, बँगला और पंजाबी भाषा का ज्ञान. संप्रति स्वतंत्र पत्रकार।
संपर्क:
डॉ. महेश परिमल, टी-3, 204 सागर लेक व्यू होम्स, वृंदावन नगर, अयोघ्या बायपास, भोपाल. 462022.
ईमेल -
parimalmahesh@gmail.com
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