सोमवार, 1 अगस्त 2011
जाना येद्दियुरप्पा का.. पर अब कौन?
डॉ. महेश परिमल
येद्दियुरप्पा तो गए, पर भाजपा का टेंशन अभी कम नहीं हुआ है। ये तो शुरुआत है। क्योंकि कर्नाटक को संभालना बहुत ही मुश्किल है। चहाँ रेड्डी बंधुओं का राज चलता है। ऐसे में येदि के स्थान वर किसी ऐसे व्यक्ति को कर्नाटक की कमान देना, जिसकी छवि साफ हो। पर वो कोन होगा, यही प्रश्न भाजपा को मथ रहा है। वैसे जब बिहार में भ्रष्टाचार के आरोप में लालू प्रसाद घिर गए, तब उन्होंने अपनी पत्नी राबड़ी देवी को मुख्यमंत्री बना दिया। मध्यप्रदेश की मुख्यमंत्री उमा भारती ने जब इस्तीफा दिया, तो उन्होंने अपने चहेते बाबूलाल गोर को सत्ता सौंप दी। पर येद्दियुरप्पा ने ऐसी कोई पेशकश नहीं की है कि उनके स्थान पर किसे रखा जाए। कुछ नाम अवश्य हैं, जिन पर विचार किया जा सकता है। कर्नाटक भाजपाध्यक्ष के.एस. ईश्वरप्पा, राज्यसभा सदस्य प्रभाकर कोरे, पूर्व भाजपाध्यक्ष सदानंद गोवडा आदि पर लोगों की निगाहें हैं। इनमें से ईश्वरप्पा कुरुबा जाति के अगुवा हैं, इसके साथ ही येद्दियुरप्पा के कट्टर विरोधी भी। मंत्रिमंडल को येद्दियुरप्पा के मोहपाश से मुक्त करना है, तो यही नाम सबसे ऊपर है। उसके बाद राज्यसभा सदस्य प्रभाकर कोरे का नाम आता है। वे एक सुलझे हुए शिक्षाशास्त्री हैं। दूसरी ओर येद्दियुरप्पा स्वयं सदानंद गोवडा को पसंद करते हैं। इन्हें मुख्यमंत्री बनाकर लिंगायत जाति को खुश किया जा सकता है। फिर जगदीश शेट्टार को उपमुख्यमंत्री बनाकर मंत्रिमंडल को संतुलित किया जा सकता है।
कर्नाटक में नए मुख्यमंत्री और वहाँ के हालात को परखने के लिए भाजपा कार्यसमिति ने अरुण जेटली और राजनाथ सिंह को जबावदारी सौंपी है। कार्यसमिति के सामने अनंतकुमार भी मुख्यमंत्री पद के दावेदार माने जा सकते हैं। पर उनके साथ यह मानइस पाइंट है कि वे येद्दियुरप्पा की तरह लिंगायत न होकर ब्राrाण हैं। इसके अलावा नीरा राडिया के साथ भी उनका नाम जुड़ा हुआ है। जगदीश शेट्टार अच्छे प्रत्याशी हो सकते हैं, पर वे रेड्डी बंधुओं के अधिक निकट होने के कारण उनका पत्ता भी कट सकता है। इसके अलावा विधि मंत्री सुरेश कुमार भी योग्य प्रत्याशी हो सकते हैं।
येद्दियुरप्पा को मुख्यमंत्री पद से हटाने का सबसे बड़ा कारण यह था कि जब पार्टी कार्यकर्ता स्वयं को पार्टी से ऊपर मानने लगता है, तो उसे बेइज्जत होकर जाना ही पड़ता पद न छोड़ने के लिए येद्दियुरप्पा ने पार्टी आलाकमान को कई तरह की धमकियाँ दी। उनके बिना कर्नाटक में भाजपा रसातल में चली जाएगी। रेड्ड्ी बंधुओं पर वे ही लगाम कस सकते हैं। एक तरह से उनका यह भयादोहन था। लेकिन आलाकमान ने तय कर रखा था कि इन्हें हटाना ही है। काफी ना-नुकुर के बाद अंतत: उन्होंने इस्तीफा दे ही दिया। भाजपा को यह काम काफी पहले ही कर देना था, इससे उसकी छवि और भी निखर गई होती। भ्रष्टाचार से लड़ने में इस उदाहरण को एक नजीर बनाकर पेश किया जा सकता था। पर देर कर दी, लेकिन देर आयद दुरुस्त आयद।
वैसे भी लोकायुक्त की रिपोर्ट आने के बाद येद्दियुरप्पा का जाना तय था। क्योंकि सरकार को करोड़ों का चूना लगाने वाले और अपने खानदान को उपकृत करने के लिए उन्होंने जो पाप किए, उसे तो भुगतना ही था। दूसरी ओर पार्टी को भी लग गया कि इन्हें काफी संरक्षण दे दिया गया है, अब इन्हें सहन नहीं किया जा सकता। पार्टी चाहती,तो येद्दियुरप्पा के खिलाफ अभी सबूत नहीं मिले हैं, कहकर पल्ला झाड़ सकती थी, लेकिन उसे अपनी छवि साफ रखने के लिए येदि को दरवाजा दिखाना ही था। वैसे येदि ने अपनी तरफ से पूरा जोर लगा दिया, लोकायुक्त की रिपोर्ट के आधार पर वे दोषी नहीं ठहराए जा सकते। ऐसा माना जा सकता था। इसके पहले भी दिल्ली की मुख्यमंत्री शीला दीक्षित ऐसा कर चुकी हैं। लेकिन भाजपा आलाकमान को व्यक्ति से अधिक पार्टी का अनुशासन प्रिय था, इसलिए उन्होंने येदि का इस्तीफा लेने में देर नहीं की।
वैसे पार्टी की ढीली नीति के कारण ही येदि को मनमानी की पूरी छूट मिल गई। इसका नुकसान पार्टी को उठाना पड़ा। उन्हें पता था कि येदि जितने समय तक मुख्यमंत्री रहेंगे, तब तक पार्टी की छवि उज्जवल नहीं हो सकती। भाजपा ने भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ने का नैतिक अधिकार ही खो दिया था। इसलिए एक आदर्श स्थापित करने के लिए येदि की बलि लेनी ही थी। इससे भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ने का रास्ता साफ हो गया। उधर मीडिया भी भाजपा को भ्रष्टाचार के मुद्दे पर भाजपा को बार-बार घेर रहा था। इसलिए येदि को हकालना उसकी मजबूरी भी कहा जा कसकता है। इस निर्णय से भाजपा ने दूसरा अच्छा काम यह किया कि येदि को आईना दिखा दिया। अब तक येदि स्वयं को पार्टी से ऊपर समझने लगे थे। वे ये भूल गए थे कि वे भाजपा के कारण मुख्यमंत्री हैं, न कि अपने बल पर या फिर रेड्डी बंधुओं के बल पर। वे अतिआत्मविश्वास के शिकार हो गए थे। रेड्ी बंधुओं द्वारा किए जा रहे असंवैधानिक कामों के प्रति उन्होंने अपनी आँखें ही बंद कर रखी थी। इस तरह से आसमान पर उड़ने वाले येदि को जमीन दिखानी थी, इसलिए दिखा दी। इससे दूसरे अन्य लोगों तक यह संदेश चला गया कि पार्टी व्यक्ति से बड़ी है। इसके अलावा भ्रष्टाचार को पोषित करना भी भ्रष्टाचार से कम अपराध नहीं है।
खैर, भाजपा के सामने कई प्रश्नचिह्न् हैं, जिसका सामना उसे करना है। इसे वह कांग्रेस के खिलाफ लड़ाई का एक पड़ाव मान सकती है। क्योंकि येद्दियुरप्पा से इस्तीफा लेकर उसने एक नषीर तो पेश की ही है। इससे कांग्रेस की बोलती बंद हो गई है। अब भाजपा पूरे दम खम के साथ कांग्रेस का जवाब दे सकती है कि उसने एक भ्रष्टाचारी मुख्यमंत्री को लोकायुक्त की रिपोर्ट आते ही हटा दिया। कांग्रेस ऐसा नहीं कर पाई। केग की रिपोर्ट में कई मं˜त्रियों का पर्दाफाश हो गया था, फिर भी उन्हें पूरा संरक्षण दिया गया। कनोटक यदि अब भाजपा से छूट भी जाए, तो उसके लिए दिल्ली दूर नहीं है।
डॉ. महेश प
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अभिमत
जीवन यात्रा जून 1957 से. भोपाल में रहने वाला, छत्तीसगढ़िया गुजराती. हिन्दी में एमए और भाषा विज्ञान में पीएच.डी. 1980 से पत्रकारिता और साहित्य से जुड़ाव. अब तक देश भर के समाचार पत्रों में करीब 2000 समसामयिक आलेखों व ललित निबंधों का प्रकाशन. आकाशवाणी से 50 फ़ीचर का प्रसारण जिसमें कुछ पुरस्कृत भी. शालेय और विश्वविद्यालय स्तर पर लेखन और अध्यापन. धारावाहिक ‘चाचा चौधरी’ के लिए अंशकालीन पटकथा लेखन. हिन्दी गुजराती के अलावा छत्तीसगढ़ी, उड़िया, बँगला और पंजाबी भाषा का ज्ञान. संप्रति स्वतंत्र पत्रकार।
संपर्क:
डॉ. महेश परिमल, टी-3, 204 सागर लेक व्यू होम्स, वृंदावन नगर, अयोघ्या बायपास, भोपाल. 462022.
ईमेल -
parimalmahesh@gmail.com
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